पौराणिक गाथाओं का नया ताना बाना
१ मई २०१३पत्रकार से कारोबारी बनीं मृगांका डडवाल रामायण के बारे में सब कुछ जानती हैं. मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जन्म से लेकर सीता हरण, रावण वध, राजतिलक सब कुछ लेकिन वो पराजित रावण के नजरिए से भी इस कहानी को जानना समझना चाहती हैं और उन्हें पुराने चरित्रों को लेकर नए नजरिए से लिखी कहानियां मिल रही हैं. पौराणिक कहानियों को नए नजरिए से काल्पनिक कथानकों और दिलचस्प कलेवरों में बदला जा रहा है. डडवाल और उनके जैसे लाखों शहरी, पढ़े लिखे और कथित अभिजात्य वर्ग के लोग अंग्रेजी में लिखी इन किताबों को ढूंढ ढूंढ कर पढ़ रहे हैं.
अमीश त्रिपाठी, आश्विन सांघी और अशोक बैंकर जैसे उभरते लेखकों की कलम से पुराणों के रहस्य का एक नया ताना बाना बुना जा रहा है और लोगों के मन में कहीं गहरे बैठे पौराणिक किरदारों के नए अंदाज सामने आ रहे हैं. 32 साल की डडवाल कहती हैं, "वे भारतीय पुराणों के बारे में ऐसी बात करते हैं जो पहले नहीं सुनी गईं." ये स्वदेशी लेखक सदियों से चले आ रही धारणाओं को नया रूप दे रहे हैं लेकिन भारतीय प्रकाशन उद्योग अंग्रेजी में ऐसी काल्पनिक कहानियों की सफलता को लेकर बहुत आश्वस्त नहीं. हैरी पॉटर की लेखिका जेके रॉलिंग्स की तरह ही अमीश त्रिपाठी को भी कई प्रकाशकों ने खारिज कर दिया लेकिन शिवा ट्रियोलॉजी के नाम से आई सीरीज की पहली किताब की सफलता देख सबके मुंह खुले के खुले रह गए.
2010 में आई द इममोर्टल्स ऑफ मेलुहा की 15 लाख से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं और बॉलीवुड ने भी इस पर काम शुरू कर दिया है. इसके बाद आई बाकी दोनों किताबें भी जबरदस्त कामयाब रहीं. फिर तो बैंकर से लेखक बने अमीश को जब उनकी नई सीरीज के लिए जिसका अभी विषय भी तय नहीं है, लाखों डॉलर का एडवांस मिला तो किसी को हैरानी नहीं हुई. 38 साल के अमीश का कहना है, "यह एक देश के रूप में हमारे भीतर बढ़ते आत्मविश्वास का नतीजा है. अंग्रेजी प्रकाशन उद्योग पहले शायद पश्चिमी बाजारों के लिए खुद को ज्यादा तैयार करता था, वह भारत के बाजारों में बिकने वाली विषयों की बजाए पश्चिमी बाजारों को भारत के बारे में समझाने में जुटा था."
भारत में किताबों के दुकानदार अपनी शेल्फ में आकर्षक और सस्ते पेपरबैक रूप में आ रहे इन किताबों को बड़े चाव से जगह दे रहे हैं. त्रिपाठी की नई किताब के बाजार में उतरने के मौके पर तो एक खास संगीत भी तैयार किया गया था. ऑक्सफोर्ड बुक स्टोर ने तो बकायदा इस नई विषयवस्तु के लिए अलग जगह बनाने की तैयारी शुरू कर दी है. ऑक्सफोर्ड बुक स्टोर के ऑपरेशंस और पर्चेसिंग विभाग की भारत प्रमुख स्वागत सेनगुप्ता कहती हैं, "इस विधा में तो एक तरह से धमाल हो गया है, हमें इसे खोना नहीं चाहिए वास्तव में किसी को नहीं खोना चाहिए."
हालांकि यह भी नहीं है कि सबको यह पसंद ही आ रहा है. 35 साल की नूपुर सूद बैंकर हैं और उनका कहना है कि फिर वही कहानी या नई पैकेजिंग से बहुत फर्क नहीं पड़ता और वह कुछ नया पढ़ना ज्यादा पसंद करेंगी, "यह मुझ पर दबाव डालता है कि जो मैं पहले से जानती हूं उसकी नए से तुलना करूं." आश्विन सांघी के तीन उपन्यासों की साढ़े चार लाख से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं और सावधान करते हुए कहते हैं कि पौराणिक काल्पनिक कहानियों की बाढ़ सी आ गई है. उनका मानना है, "समय के साथ प्रकाशक भी थक जाएंगे और तब आप फिर उसी स्थिति में आ जाएंगे कि कुछ ही किताबें होंगी जो छपेंगी और अच्छा करेंगीं."
एनआर/एएम(रॉयटर्स)