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प्रकृति या विकासः ग्रीनलैंड के तेल भंडार

३० जून २०१०

उत्तरी ध्रुव में स्थित ग्रीनलैंड की बर्फ के परतों के नीचे तेल के भंडार हैं. विश्व के तापमान में बढ़ोतरी के बाद बर्फ कम हो गई है और तेल कंपनियां इस मौके का फायदा उठाना चाहती हैं. लेकिन क्या प्रकृति के लिए यह ठीक होगा?

ग्रीनलैंड-पिघलती बर्फतस्वीर: DW-TV

मैक्सिको की खाड़ी में हुई तेल दुर्घटना के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बाराक ओबामा ने गहरे सागर में ड्रिलिंग करने के लिए समयबद्ध प्रतिबंध की घोषणा की है. लेकिन ग्रीनलैंड में ऐसा नहीं है. ग्रीनलैंड दुनिया का सबसे बडा द्वीप है. उत्तरी ध्रुव के बहुत पास स्थित यह द्वीप डैनमार्क का एक स्वायत्त प्रदेश हैं. आर्क्टिक यानी उत्तरी ध्रुव के इस प्रदेश में बर्फ के नीचे तेल के विशाल भंडार छिपे हुए हैं. अनुमान है कि 50 अरब टन तेल वहा छिपा हुआ हैं. यह एक बहुत ही बड़ी मात्रा है क्योंकि पिछले साल पूरी दुनिया में तेल भंडारों वाले सभी देशों ने मिलकर सिर्फ करीब 380 करोड टन के बराबार तेल निकाला. ग्रीनलैंड में रहने वाले आदिवासियों के सबसे लोकप्रिय ओझा आंगांगाक का मानना है कि अगर किसी तरह की दुर्घटना होती है तो उत्तरी ध्रुव की बहुत ही नाज़ुक पर्यावरण प्रणाली को गंभीर नुकसान पहुंचेगा जिसका असर पूरी दुनिया पर पडेगा." ग्रीनलैंड के लोग आर्थिक विकास चाहते हैं. यह बिलकुल स्पष्ट है कि हमारे यहां दुनिया के सबसे बड़े गैस और तेल भंडार हैं. ड्रिलिंग करने के लिए एक जहाज़ अभी से उस इलाके में पहुंच चुका है. कई जगह तो वह 3 किलोमीटर की गहराई तक ड्रिलिंग करना चाहता है. "

मेक्सिको की खाड़ी में तेल के रिसाव से प्राकृतिक हादसातस्वीर: AP

ब्रिटेन की तेल कंपनी कैर्न ऐनर्जी कनाडा और ग्रीनलैंड को अलग करने वाले समुद्र के आसपास के इलाके में टेस्ट ड्रिलिंग करना चाहती हैं. इस इलाके को संयुक्त राष्ट्र की ओर से विश्व प्राकृतिक विरासत का दर्जा दिया गया है. अगर वह सफल रहा तो ग्रीनलैंड के लोग अपने जीवन स्तर को सुधारने की उम्मीद कर सकते हैं. वैसे ग्रीनलैंड दुनिया के सबसे कम आबादी वाले इलाकों में गिना जाता है. हालांकि मैक्सिको की खाड़ी में तेल हादसे को देखते हुए और यह समझने के बाद कि दुर्घटना से शायद स्थायी रूप से नुकसान हो सकता है, ड्रिलिंग करने के लिए कड़े नियम लागू किए गए हैं. आज तक विशेषज्ञों को पता नहीं है कि बर्फ के नीचे से तेल निकालने के क्या असर हो सकते हैं. आंगांगाक कहते हैं कि सभी कोशिशों के बाद भी पूरी तरह से सुरक्षित होना संभव नहीं है." यह संभव है कि सब ठीक रहे. यह भी हो सकता है कि सब बेकार हो जाए. कभी भी, कुछ भी हो सकता है. मेरी भी नहीं समझ में आता है कि क्या किया जाए. क्या हमें ड़्रिलिंग की अनुमति नहीं देनी चाहिए? लेकिन तब हम डेनमार्क पर हमेशा के लिए निर्भर रहेंगे. क्या हमें यूरोपीय संघ से मदद मिल सकती है? क्या मदद मिलने के बाद हमें ड़्रिलिंग करने की ज़रूरत ही नहीं पडेगी. मुझे ऐसा नहीं लगता. इस विरोधाभास में हम फंसे हुए हैं."

आइसबर्गतस्वीर: DW/Irene Quaile
साइबेरिया में तेल खननतस्वीर: picture-alliance/dpa

जलवायु परिवर्तन की वजह से उत्तरी ध्रुव में बर्फ की परत पतली हो गई है. अब जहाज़ भी वहां तक पहुंच सकते हैं. ओझा आंगांगाक का कहना है कि इसकी वजह से भी पर्यावरण प्रणाली को बहुत नुकसान पहुंच रहा है. वे कहते हैं कि गर्मी के दिनों में टैंकर इस मार्ग का इसतेमाल एशिया तक पहुंचने के लिए करने लगे हैं. वे इस बात पर चिंता व्यक्त करते हैं कि बहुत सारे जहाज़ों की तकनीक इस बर्फीले इलाके को पार करने लायक नहीं है." मैं तो कहूँगा कि क्रूज़, कंटेनर जहाज़ और तेल टैंकरों में से किसी को भी वहां जाने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए. अगर वे किसी आईसबर्ग यानी हिमशैल से टकराते हैं, तब टाईटैनिक वाली बेफकूफी को दोहराया जाएगा और एक बार फिर बहुत सारे लोगों की मौत होगी.

वैसे जाहाज़ बर्फ की पतली परतों का फायदा उठा रहे हैं और साईबेरिया से तेल और गैस कनाडा जैसे देशों तक पहुंचा रहे हैं. यह तरीका पाइपलाइन से तेल पहुंचाने के मुकाबले काफी सस्ता है. लेकिन 1989 में अमेरिकी प्रांत आलास्का में हुई तेल टैंकर दुर्घटना का नुकसान आज भी प्रकृति को झेलना पड़ रहा है. अगर उत्तरी ध्रुव वाले इलाके में किसी तरह की दुर्घटना होती है, तो फायदा तो दूर की बात, आर्थिक लेहाज़ से भी बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है.

रिपोर्टः प्रिया एसेलबॉर्न

संपादनः एम गोपालकृष्णन

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