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प्रतिबंधों की आंच दुनिया भर की विमान सेवाओं पर

८ मार्च २०२२

रूसी हवाई सीमा और रूसी विमानों पर प्रतिबंध के दायरे में दुनिया भर के विमानों की सेवाएं आएंगी. रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों का दायरा इतना बड़ा है कि इसके असर का आकलन बहुत जटिल है.

प्रतिबंधों का असर दुनिया भर की एयरलाइनों पर होगा
प्रतिबंधों का असर दुनिया भर की एयरलाइनों पर होगातस्वीर: Yuri Kadobnov/AFP

रूस के विशाल आकार और दुनिया के विमानन उद्योग से करीबी रिश्ते का मतलब है कि यूक्रेन पर हमले के बाद लगे प्रतिबंधों का असर ईरान और उत्तर कोरिया पर लगे प्रतिबंधों की तुलना में बहुत ज्यादा होगा. एयरोफ्लोट, एस सेवन और एयर ब्रिज कार्गो जैसे एयरलाइनों के लिए विमान बनाने से लेकर लीज पर देने वाली और इंश्योरेंस से लेकर रखरखाव की चिंता करने वाली कंपनियों के लिए इन प्रतिबंधों का मतलब भारी नुकसान है. 

इनके अलावा विदेशी एयरलाइनें इस बीच रूसी एयरस्पेस से बचने के कारण लंबा रूट लेने पर विवश हैं. लंबा रूट यानी ज्यादा ईंधन का खर्च और इन सब का नतीजा टिकटों और माल ढुलाई की बढ़ी कीमतें.

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विमानों के लीज और इंश्योरेंस पर असर

रूसी एयरलाइन दुनिया में किराए पर विमान देने वाले उद्योग पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं. एयरलाइनों को अपने बेड़े में एयरबस और बोइंग के विमानों को आधुनिक बनाने के लिए इनकी बहुत जरूरत है. रूसी एयरलाइनों के पास यात्री सेवा में 980 विमान हैं. इनमें से 777 लीज यानी किराये पर हैं. ये आंकड़े एनालिटिक्स फर्म सिरियम के हैं. इन 777 विमानों में से 515 की कीमत तकरीबन 10 अरब डॉलर है और इन्हें एयरकैप और एयरलीज जैसी विदेशी फर्मों से किराये पर लिया गया है.

यूरोपीय संघ ने किराये पर विमान देने वाली कंपनियों को रूस में किए करारों को खत्म करने के लिए 28 मार्च तक का समय दिया है. हालांकि एयरस्पेस पर पाबंदी और स्विफ्ट पेमेंट ट्रांसफर में दिक्कतों के चलते इन विमानों को वापस लाना भी एक बड़ी चुनौती होगी. ऐसे में डर यह है कि रूसी सरकार घरेलू क्षमता को बनाए रखने के लिए विमान के बेड़ों का राष्ट्रीयकरण कर सकती है.

रूसी एयरलाइनों के ज्यादातर विमान लीज पर हैंतस्वीर: Leonid Faerberg/Aviation-Image/picture alliance

रूस की सरकारी विमानन प्राधिकरण ने निर्देश दिए हैं कि जिन एयरलाइनों के पास विदेशी विमान लीज पर हैं, उन्हें वो देश के बाहर भेजना बंद कर दें. अगर ये विमान आनन फानन में वापस ले भी लिए गए, तो इनकी बड़ी संख्या को कहीं और किराये पर डालना होगा. विश्लेषकों का कहना है कि इसकी वजह से दुनिया भर में किराये में भारी कमी आ सकती है.

रूसी एयरलाइनों को यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के बाजार से इंश्योरेंस और रिइंश्योरेंस भी बंद कर दिया गया है. इंश्योरेंस सेक्टर से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि यह साफ नहीं है कि विमान लीज पर देने वाला अगर विमान वापस नहीं दे पाता है, तो उसे घाटे के लिए बीमा कंपनी से सुरक्षा मिलेगी या नहीं. आमतौर पर इंश्योरेंस में ऐसे प्रावधान होते हैं कि प्रतिबंध लगने की स्थिति में बीमा की सुरक्षा अपने आप रद्द हो जाएगी. इन मामलों को सुलझाने के लिए कानूनी कार्रवाई की जरूरत पड़ सकती है. यह भी पढ़ेंः यूक्रेन संकट का भारतीय अर्थव्यवस्था पर कितना पड़ेगा असर 

बिक्री, रख रखाव, मरम्मत और कलपुर्जे पर पाबंदी

रूसी एयरलाइनों ने एयरबस और बोइंग से 62 विमान ऑर्डर पर लिए हैं, लेकिन अब इनकी डिलीवरी पर रोक लग जाएगी. फिलहाल उनके पास जो विमान हैं उनके रख रखाव से लेकर मरम्मत और कलपुर्जे की आपूर्ति देने वाली कंपनियां भी अपना काम बंद कर देंगी. जर्मनी की लुफ्थांसा टेक्निक ने कहा है कि उसने रूसी ग्राहकों की सेवा बंद कर दी है, उनके पास सैकड़ों विमानों के लिए करार था.

रूस की सरकारी समाचार एजेंसी तास ने खबर दी है कि रूसी परिवहन मंत्रालय ने एयरलाइनों की मदद के लिए एक ड्राफ्ट बिल तैयार किया है. इसके तहत सितंबर 2022 तक किसी थर्ड पार्टी से रख रखाव का काम कराया जा सकेगा. इसके साथ ही एयरलाइनों का निरीक्षण भी रद्द हो जाएगा.

दुनिया भर के विमान रूस के एयरस्पेस के ऊपर उड़ान नहीं भर रहे हैंतस्वीर: Michael Sohn/AP Photo/picture alliance

एविएशन के जानकार इस बात पर चिंता जता रहे हैं कि प्रतिबंधों के कारण विमान बनाने वाली कंपनियां सर्विस बुलेटिन साझा नहीं करेंगी और साथ ही हवाई सुरक्षा के निर्देशों का भी, जो सुरक्षा के लिहाज से बेहद अहम हैं.

तेल की बढ़ती कीमत और लंबी उड़ानें

पेट्रोलियम की कीमतें 2008 के बाद अपने सर्वोच्च स्तर पर हैं. इस बीच अमेरिका ने रूसी तेल के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है. फ्यूल सरचार्ज और किराया बढ़ा कर एयरलाइन कुछ दबाव को घटाने की कोशिश कर रही हैं, खासतौर से ऐसे समय में जब महामारी के चलते विमान यात्रियों की संख्या पहले ही बहुत कम है. रूसी एयरस्पेस के प्रतिबंधों की वजह से विमानों को लंबा रूट लेना पड़ रहा है और ऐसे में तेल की ऊंची कीमतों का दर्द और ज्यादा महसूस होगा. कई उड़ानों के लिए तो इसकी वजह से उड़ान का समय 3.5 घंटे तक बढ़ गया है.

सबसे ज्यादा असर यूरोप और जापान, दक्षिण कोरिया और चीन जैसे उत्तर एशियाई देशों को जाने वाले विमानों पर हुआ है. इसके अलावा दक्षिण पूर्वी एशिया, यूरोप, और भारत पर भी एयस्पेस की पाबंदी का असर है.

लंबी उड़ानों का मतलब केवल तेल ही नहीं बल्कि कर्मचारियों पर होने वाला खर्च, कम सामान की ढुलाई और रख रखाव पर ज्यादा खर्च के साथ ही उन विमानों के बढ़े किराये के रूप में सामने आता है जिन्हें उड़ान के घंटों के हिसाब किराये पर लिया गया है.

एनआर/एसएम(रॉयटर्स)

रूस को झटका देने वाली बड़ी कंपनियां

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