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प्रथा के नाम पर

५ फ़रवरी २००९

महिलाओं को पूरी दुनिया में किसी न किसी तरह ज़्यादती का सामना करना पड़ता है. लेकिन कई मामले ऐसे हैं, जहां छोटी बच्चियों को भी नहीं छोड़ा जाता.

रोको ये बरबर प्रथा एफ़जीएम, सोमालिया की महिलाओं की पुकारतस्वीर: picture-alliance / dpa/dpaweb

धर्म और संस्कृति के नाम पर बच्चियों के शरीर के साथ खिलवाड़ किया जाता है और उनके प्रजनन अंगों का बेरहमी से ऑप्रेशन कर दिया जाता है. अफ्रीकी महाद्वीप में कई ऐसे देश हैं, जहां मासूम बच्चियों को इस क्रूर रिवाज का सामना करना पड़ता है. चार से बारह साल की उम्र में उनके जननांगों के कुछ हिस्से को आपरेशन करके हटा दिया जाता है.

ख़तरनाक और जानलेवा

संयुक्त राष्ट्र ने इस ख़तरनाक परंपरा के ख़िलाफ़ मुहिम चलाई है और हर साल छह फ़रवरी का दिन इसके ख़िलाफ़ संघर्ष के प्रति समर्पित किया है. हालांकि फिर भी इस पर अंकुश लगाना संभव नहीं दिख रहा है. मान्यताओं के अनुसार क़रीब दो हज़ार साल पहले अफ्रीका के कुछ देशों में इस बर्बर परंपरा की शुरुआत हुई, जिसे बाद में धार्मिक रूप देने की भी कोशिश की गई.

कुप्रथा की कहानी

माली यानोगे माली के सोंघो गांव में रहते हैं और उन्होंने अपनी तीनों बेटियों का ऑपरेशन कराया. वो कहते हैं, 'यहां यह ऑपरेशन आम बात है. सब करते हैं. एक अच्छी मुसलमान लड़की को ऐसा करना है. क्योंकि अगर हम अपनी बेटियों का ऑपरेशन नहीं करवाया तो कोई उनसे शादी नहीं करेगा. खतरे तो इसमें कोई नहीं हैं.'

विश्व स्वास्थ्य संगठन की वेबसाइट बताती है कि दुनिया भर में इस वक्त दस से चौदह करोड़ महिलाएं इस कुप्रथा के साथ जीने को विवश हैं. अफ्रीका में तो हर साल क़रीब तीस लाख बच्चियों को इस सदमे से गुज़रना पड़ता है. बताया जाता है कि इस ऑप्रेशन के लिए माहिर डॉक्टरों की मदद नहीं ली जाती, बल्कि गांव देहात की दाई या नीम हकीम ही ऑप्रेशन कर देते है. कांच के टुकड़े से, रेज़र से, या चाकू से. कई मौक़ों पर बच्चियों को बेहोशी की दवा भी नहीं दी जाती और तड़पते हुए उन्हें इस डरावने एहसास से गुज़रना पड़ता है. हालांकि कुछ मौक़ों पर डॉक्टरों की भी मदद ली जाती है.

बर्बर विचार

घर की और समाज की दहलीज़ पर बैठायी गयी स्त्रीतस्वीर: AP

मानवाधिकार संस्थाओं का कहना है कि ऑपरेशन के बाद कई हफ़्तों तक बच्चियों के दोनों पैरों को बांध कर रखा जाता है ताकि वो ज़्यादा हिल-डुल न सकें. आम तौर पर यह ऑप्रेशन चार से बारह साल की बच्चियों का किया जाता है. लेकिन कई बार तो बड़ी उम्र की महिलाओं या नवजात बच्चियों को भी इस दर्दनाक अनुभव से गुज़रना पड़ता है.

कैसी मान्यता

अफ्रीकी देशों के छोटे छोटे कबीलों में ऐसी मान्यता है कि ये सब बच्चियों की बेहतर सेहत और उनकी पवित्रता के लिए किया जाता है. लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन का साफ़ कहना है कि इससे बेहतर सेहत का कोई लेना देना नहीं है. उलटे इससे सेहत पर बेहद ख़राब असर पड़ सकता है. कई बार तो ऑप्रेशन के दौरान ही बहुत ज़्यादा ख़ून बह जाने से उनकी मौत हो जाती है. इसकी वजह से कई महिलाएं जीवन भर सदमे में रहती हैं. उन्हें कई दूसरी बीमारियां भी होने का ख़तरा रहता है. इंफेक्शन का डर रहता है. बाद में बच्चों की पैदाइश के वक्त उन्हें ज़रूरत से ज़्यादा दर्द झेलना पड़ता है और कई बार तो इसकी वजह से नवजात बच्चों की मौत हो जाती है. फादूमा कोर्न सोमालिआई मूल की हैं और वे अब जर्मनी के शहर म्यूनिख में रहतीं हैं. वो सात साल की थी जब उसका ऑपरेशन किया गया. वो कहती हैं, 'जब से मैं समझने लगी हूं मुझे बताया जाता था कि मै पवित्र नहीं हूं, मेरी बदबू आती है. लेकिन एक न एक दिन मेरे लिए बड़ा मौका आएगा और तब मै एक असली लडकी बनूंगी.'

इसलिए फादूमा इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहीं थी क्योंकि उसे लगा कि ऑप्रेशन के साथ वह न सिर्फ सामाज का हिस्सा, बल्कि एक पति के लायक भी बनेगी. वैसे, मेडिकल साइंस में इस ऑप्रेशन को Female Genital Mutiliation कहा जाता है. अफ्रीकी देशों के अलावा कुछ अरब देशों में भी इसका प्रचलन है. जानकारों का कहना है कि इन जगहों से कट्टर विचारधारा वाले लोगों के दूसरे देशों में प्रवास के साथ यह अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और कई पश्चिमी देशों में भी जड़ें जमा चुका है.

मानवाधिकार का हनन

विश्व स्वास्थ्य संगठन इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार का उल्लंघन मानता है. संगठन के मुताबिक़ यह पुरुषों और महिलाओं के बीच भेदभाव और असमानता बढ़ाता है और साथ ही यह किसी भी नागरिक की सेहत, सुरक्षा और शारीरिक संरक्षण के अधिकार का उल्लंघन है. क्योंकि ऐसे ऑप्रेशन कच्ची उम्र में किए जाते हैं, जिसमें उनसे इजाज़त लेने का सवाल ही पैदा नहीं होता. विश्व स्वास्थ्य संगठन इसे उत्पीड़न और क्रूरता, अमानवीय काम और जीवन के अधिकारों के ख़िलाफ़ भी उल्लंघन मानता है क्योंकि कई मौक़ों पर बच्चियों की ऑपरेशन के दौरान ही मौत हो जाती है. उदाहरण के लिए जर्मनी में इस पर 10 साल कैद की सज़ा हो सकती है. लेकिन ऐसे मां बाप जिन्होने अपने अपने मूल देश में अपनी बच्ची का ऑपरेशन किया हो, उन्हें सज़ा दिलाना बहुत मुश्किल है. जर्मनी में वकील अना लेना गोएत्शे बतातीं हैं कि, 'फ्रांस, ब्रिटेन, स्वीडन और स्पेन में डॉक्टरों को ऐसे मामले दर्ज कराने होते हैं जब उन्हे पता चलता है कि एक बच्ची के साथ ऐसा हुआ है. लेकिन मुकदमे अब तक फ्रांस में ही हुए हैं, यूरोपीय संघ के किसी दूसरे देश में नहीं.'

सिर्फ़ क़ानून से नहीं रुकेगी ये प्रथा

फ्रांस में सबसे सख़्त तरीके से उन लोगों का पीछा किया जाता है जो बच्चियों के साथ ऐसा करवाते हैं. वहां डॉक्टर ऑपरेशन के दौरान किए गए नुकसान को एक दूसरे ऑपरेशन के साथ कम करने की कोशिश भी करते हैं. बच्चियों के इलाज का पूरा खर्चा सरकारी बीमा कंपनियां भरती है. कईयों की जर्मनी में मांग है कि हर 2-3 साल एक सरकारी डॉकटर को अफ्रिकी मूल के लड़कियों का चेक अप करना चाहिए ताकी माबाप ऐसा ऑपरेशन करने से हिचकिचाए. वकिल अना लेना गोएत्शे बतातीं हैं कि 'समस्या यह भी है कि कोई भी बच्चा अपने माता पिता के खिलाफ आवाज़ नहीं उठाएगा. कई तो इसके लिए बहुत छोटे भी होते हैं. और कोई विदेशी समुदाय का आदमी किसी दूसरे के खिलाफ भी नहीं कुछ कहता है.'

जीवट और तक़लीफ़ साथ साथतस्वीर: AP

इसे सही ठहराने वालों का तर्क है कि कुछ धर्मों में पुरुषों के जननांगों को ऑप्रेशन करके हटाने का रिवाज है, इसलिए महिलाओं का ऑप्रेशन कोई ग़लत बात नहीं. लेकिन जानकारों का मानना है कि इससे महिलाओं को बेवजह कष्ट का सामना करना पड़ता है और मेडिकल साइंस भी इस बात की पुष्टि करता है कि इस ऑप्रेशन से बेहतर सेहत का कोई लेना देना नहीं.

संयुक्त राष्ट्र की लड़ाई

अफ्रीकी समाज में संस्कृति और धर्म के नाम पर फैली इस बुराई को ख़त्म करने के लिए कई क़ानून बने और संयुक्त राष्ट्र भी पचासों साल से इसके ख़िलाफ़ संघर्ष कर रहा है. राजनैतिक इच्छा शक्ति के अलावा निरक्षरता और जागरूकता का अभाव होने की वजह से ये प्रथा चली आ रही है. अफ्रीकी देश बुर्किना फासो में समाज सेवी मामादू देगेनी इस रिवाज़ के खिलाफ संघर्ष के बारे में बतातीं हैं कि बुर्किना फासो में कानून बनाया गया है जिसके तहत ऐसा ऑप्रेशन करना अपराध है. लेकिन यहां के लोग क्या करते हैं. वे अपनी बच्चियों को पड़ोसी देश माली लेकर जाते हैं क्योंकि सीमाओं पर कोई नियंत्रण नहीं है. ऐसे रिवाज़ों को तोड़ने के लिए कानून बनाना ही सब कुछ नहीं है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की कुछ कोशिशें

बच्चियों के साथ हो रही इस ज़्यादती के ख़िलाफ़ विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुहिम के कुछ पहलू ये भी हैं.

-विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यूनीसेफ़ के साथ मिल कर उनीस सौ सत्तानबे में इसके ख़िलाफ़ मिशन स्टेटमेंट जारी किया.

-प्रभावित देशों में अलग अलग संस्थाओं के साथ मिल कर काम करने पर ज़ोर दिया जा रहा है, जो लोगों को जागरूक करने की कोशिश कर रहे हैं.

-विश्व स्वास्थ्य संगठन ऐसे विशेषज्ञ डॉक्टरों को लेकर बेहद चिंतित हैं, जो बच्चियों के जननांगों का ऑप्रेशन कर रहे हैं. संगठन सभी डॉक्टरों से अपील करता है कि वे ऐसा काम न करें.

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