सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसानों को विरोध करने का पूरा अधिकार है और सरकार को उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करनी चाहिए. कोर्ट ने प्रस्ताव दिया है कि प्रदर्शन भी चलते रहें और विशेष समिति में किसानों की मांगों पर बातचीत भी.
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किसानों को प्रदर्शन स्थल से हटाने के लिए दायर की हुई एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. बुधवार को इसी सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एक समिति के गठन का प्रस्ताव दिया था जिसमें किसानों और सरकार दोनों पक्षों की तरफ से प्रतिनिधि हों और कृषि विशेषज्ञ भी हों.
गुरूवार को अदालत ने कहा कि समिति की कार्रवाई और विरोध प्रदर्शन दोनों साथ साथ चल सकते हैं. मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली जजों की पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार से पूछा कि क्या यह संभव है कि जब तक इस सुनवाई का फैसला ना हो जाए तब तक नए कृषि कानूनों को लागू नहीं किया जाए?
इस पर सरकार द्वारा असमर्थता जताने पर अदालत ने पूछा कि क्या सरकार कम से कम इतना आश्वासन दे सकती है कि बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए सरकार इन कानूनों के तहत कोई शासनात्मक कदम नहीं उठाएगी? इस पर सरकार की तरफ से जिरह कर रहे अटॉर्नी जनरल ने कहा कि वो इस पर सरकार से आदेश ले कर बताएंगे.
मुख्य याचिकाकर्ता के वकील हरीश साल्वे ने कई बार अदालत को कहा कि प्रदर्शनों की वजह से दिल्ली में आम लोगों का जनजीवन बहुत प्रभावित हुआ है लेकिन अदालत ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कोई भी आदेश देने से मना कर दिया. पीठ ने इसलिए भी कोई आदेश नहीं दिया क्योंकि आठ किसान संगठनों का कोई भी प्रतिनिधि सुनवाई में शामिल नहीं हुआ था.
सिर्फ भारतीय किसान यूनियन (भानु) की तरफ से अधिवक्ता ए पी सिंह शामिल हुए थे. अदालत ने बाकी संघों को नोटिस भेजने के लिए भी कहा ताकि आगे की सुनवाई शुक्रवार को या छुट्टियों के दौरान हो सके. अदालत सोमवार 21 दिसंबर से एक जनवरी 2021 तक क्रिसमस अवकाश के लिए बंद रहेगी. इस दौरान एक विशेष अवकाश पीठ मामले पर सुनवाई जारी रख सकती है.
प्रदर्शनों की वजह से दिल्ली की सीमाएं बंद होने से हो रही असुविधा की दलील पर पीठ ने कहा कि ऐसा नहीं कि सारे रास्ते बंद हो गए हैं. मुख्य न्यायाधीश ने किसानों के विरोध करने के अधिकार का पूरा समर्थन करते हुए कहा कि जब तक कोई हिंसा नहीं होती तब तक विरोध करना किसानों का अधिकार है.
सबसे पहले अध्यादेश के रूप में जून में लाए गए कानूनों का किसान अपने प्रांतों में विरोध कर रहे थे. लेकिन जब दिल्ली ने उनकी आवाज नहीं सुनी तो वो अपनी मांगों को लेकर दिल्ली ही आ गए. देखिए किसान आंदोलन को कैमरे की नजर से.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
आतंकवादी नहीं किसान
पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से हजारों किसान नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में प्रदर्शन करने के लिए निकले लेकिन पुलिस ने उन्हें दिल्ली की सीमाओं पर ही रोक दिया. राशन-पानी ले कर आए किसानों ने वही डेरा जमाया और आंदोलन छेड़ दिया. पुलिस के डंडे, ठंडे पानी की बौछार और आंसू गैस के गोलों के अलावा किसान प्रदर्शनकारियों ने जाहिल, आढ़तियों के एजेंट और आतंकवादी होने तक के आरोपों का सामना किया.
तस्वीर: Mohsin Javed
बात चंद किसानों की नहीं
हजारों की संख्या में किसान जीन तीन नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं, वो हैं आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून और कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून. इनका उद्देश्य ठेके पर खेती को बढ़ाना, भंडारण की सीमा तय करने की सरकार की शक्ति को खत्म करना और अनाज, दालों, सब्जियों के दामों को तय करने को बाजार के हवाले करना है.
तस्वीर: Mohsin Javed
आर-पार की लड़ाई
किसान सिर्फ भारी संख्या में ही नहीं आए, बल्कि महीनों का राशन साथ लेकर आए हैं. सरकार ने नए कानूनों को किसानों के लिए कल्याणकारी बताया है, लेकिन किसानों का मानना है कि इनसे सिर्फ बड़े उद्योगपतियों का फायदा होगा और छोटे और मझौले किसानों को अपने उत्पाद के सही दाम नहीं मिल पाएंगे. उनका कहना है कि इन कानूनों की वजह से कृषि उत्पादों की खरीद की व्यवस्था में छोटे और मझौले किसानों का शोषण बढ़ेगा.
तस्वीर: Mohsin Javed
पुलिस की बर्बरता का सामना
जय जवान और जय किसान का नारा लगाने वाले देश में किसान और जवान आमने सामने हैं. आंदोलन के दौरान किसानों को पुलिस की लाठियों का भी सामना करना पड़ा. कई बुजुर्ग किसान घायल हो गए और हालात कठिन होने की वजह से कुछ किसानों की मौत भी हो गई.
तस्वीर: Mohsin Javed
सर्दी में संघर्ष
सभी स्थानों पर किसान या तो खुले में या पतले शामियानों के नीचे दिन और रात बिता रहे हैं. सड़क-मार्ग से ही राजधानी आए किसान अपने ट्रैक्टरों को भी साथ लाए हैं, जो अब यहां पर उनका वाहन भी बना हुआ है, बेंच भी, बिस्तर भी और छत भी.
तस्वीर: Mohsin Javed
लंबी जद्दोजहद की तैयारी
किसान मान कर आए हैं कि केंद्र सरकार आसानी से उनकी मांगें नहीं मानेगी. इसलिए वो लंबे समय तक डेरा डालने की तैयारी करके आए हैं. धरना स्थलों पर खुद ही रोज अपना खाना पकाते हैं और खा-पी कर फिर धरने पर बैठ जाते हैं. सरकार के साथ बातचीत में भी वे अपना ही खाना लेकर जाते हैं और सरकारी खाना ठुकरा देते हैं.
तस्वीर: Seerat Chabba/DW
महिला शक्ति भी मौजूद
आंदोलन सिर्फ पुरुषों के कंधों पर ही नहीं चल रहा है. कुछ महिलाएं गांवों में खेती संभाल रही हैं तो कुछ मोर्चे पर डटी हुई हैं और पुरुषों का कंधे से कंधा मिला कर साथ दे रही हैं.
तस्वीर: Mohsin Javed
किताबों का साथ भी
धरना स्थलों पर प्रदर्शनकारियों का साथ देने, उनका हौसला बढ़ाने और उनकी सेवा करने कई लोग पहुंचे हुए हैं. कोई खाना खिला रहा है, कोई पानी पिला रहा है, कोई डॉक्टरी मदद दे रहा है तो कोई किताबें भी बांट रहा है.
तस्वीर: Mohsin Javed
मीडिया से नाराजगी
प्रदर्शनकारियों में मीडिया के एक धड़े के खिलाफ भी सख्त नाराजगी है. उनका आरोप है कि कुछ बड़े मीडिया संस्थान सिर्फ सरकार का पक्ष जनता के सामने परोस रहे हैं और सिर्फ किसानों की आलोचना कर रहे हैं.
तस्वीर: Mohsin Javed
हुक्के के बिना कैसे हो किसान आंदोलन
विशेष रूप से दिल्ली और नॉएडा की सीमा पर धरने पर बैठे पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आए किसान जरूरत जी दूसरी चीजों के साथ हुक्का भी साथ लाए हैं. सरकार के सामने पहले पलक किसानों की ना झपक जाए, इसीलिए इस लंबी लड़ाई में धैर्य और हुक्के का सहारा भी लिया जा रहा है.