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प्रदूषण मुक्ति का संदेश देती दुर्गापूजा

१४ अक्टूबर २०१०

पश्चिम बंगाल में इस साल दुर्गापूजा के दौरान प्रदूषण मुक्ति का संदेश देने वाले कुछ पंडाल लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाले हैं. कुछ प्रतिमाएं सीसा रहित रंगों से चमकती नजर आएंगी तो कहीं वर्षा के जल संरक्षण का नजारा है.

तस्वीर: AP

आयोजकों का कहना है कि दुर्गापूजा लोगों के मन में रच-बस गई है. ऐसे में जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के खतरों से लोगों को आगाह कर उनको जागरूक बनाने के लिए इससे बेहतर कोई मौका नहीं हो सकता.

दक्षिण कोलकाता के न्यू अलीपुर स्थित सुरुचि संघ के पंडाल की थीम वर्षा का जल संरक्षण है. इस पंडाल को कर्नाटक माडल के जल संरक्षण का प्रतिरूप बनाया गया है. वहां 5000 वर्ष पहले से जल संरक्षण होता आ रहा है. पंडाल में एक छोटा सा तालाब भी बनाया गया है, उससे फव्वारा निकाला जाएगा. फव्वारे से जो पानी गिरेगा उसे पाइप से गंगा नदी में डाला जाएगा ताकि एक बूंद पानी भी नष्ट न हो.

तस्वीर: DW

पर्यावरण पर नजर

सुरुचि संघ के अध्यक्ष अरूप विश्वास का कहना है कि बीते कुछ सालों से वे लोग पर्यावरण पर केंद्रित पंडाल ही बना रहे हैं. बीते साल झारखंड की वनसंपदा पर केंद्रित पंडाल था. इसके लिए पंडाल के आयोजकों ने 40 प्रकार के विभिन्न पौधे रोपे और उन्हें साल भर तक खाद-पानी दिया. इनमें से कुछ पौधे 30 फीट तक लंबे हो गए थे. विश्वास कहते हैं कि हमें पता है कि वर्ष 2020 तक एक लीटर पानी की कीमत एक लीटर पेट्रोल से ज्यादा हो जाएगी. इसलिए पानी के संरक्षण पर अधिक से अधिक ध्यान देना जरूरी है.

बेहला का बोरीशा क्लब ने इस बार खाद्यान्नों और फलों की उपज बढ़ाने के संसाधनों को केंद्र में रख कर घड़ों का पंडाल बनाया है. ये घड़े वर्षा की प्रतीक्षा कर रहे प्रतीत होंगे. बारिश के बिना फसलों की कल्पना कैसे की जा सकती है.

जलवायु परिवर्तन की वजह से पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों के विलुप्त होने की समस्या के प्रति लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए एक पूजा समिति ने अपने पंडाल में पक्षियों के हजारों चित्र लगाए हैं. संतोषपुर स्थित उस क्लब के सदस्य अमल मजुमदार बताते हैं कि पक्षी इंसान के मित्र होते हैं. उल्लू तेजी से विलुप्त हो रहे हैं. हम लोगों का ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहते हैं.

तस्वीर: DW

कोलकाता की सिंघी पार्क पूजा समिति का पंडाल भी इस बार लोगों को प्रदूषण के बढ़ते खतरों के प्रति जागरूक बनाएगा. समिति के सदस्य भास्कर नंदी कहते हैं कि दुर्गा प्रतिमाएं मिट्टी से बनी होती हैं. इसलिए उनके विसर्जन से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचता. महानगर की एक अन्य पूजा समिति ने तो इस बार पूजा के दौरान इस्तेमाल होने वाली हर सामग्री किसी गैर-सरकारी संगठन को दान करने का फैसला किया है.

रंग जैविक

पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने मूर्तिकारों को मुफ्त में सीसा रहित रंग मुहैया कराया है ताकि वे बिना आर्थिक बोझ के अपना काम जारी रख सकें. लगभग एक लाख रुपए के रंग बांटे गए हैं.

बेहला का सोदपुर अग्रगामी संघ ने प्लास्टिक का महिषासुर बनाया है जिसका वध मां दुर्गा कर रही हैं. समिति के एक सदस्य बताते हैं कि मां दुर्गा के हाथों प्लास्टिक से बने असुर के वध से लोगों में प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं करने का संदेश जाएगा. राज्य में प्लास्टिक के इस्तेमाल पर पाबंदी है.

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः आभा एम

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