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प्रदूषण से लड़ेगा पश्चिम बंगाल

३१ अगस्त २०११

पश्चिम बंगाल की नई सरकार राज्य में पर्यावरण की सुरक्षा को सुधारने के लिए कड़े कदम उठाने जा रही है. सरकार ने पर्यावरण की हालत को और खराब होने से रोकने और सुधार के लिए कदम उठाने के वास्ते एक नीति बनाने की कवायद शुरू की है.

तस्वीर: AP

सरकार कई स्तरों पर काम करने की योजना बना रही है. इसके तहत उद्योगों और अन्य तरीकों से होने वाले प्रदूषणों को खत्म के साथ साथ ऐसी तकनीक विकसित करने पर जोर दिया जाएगा जिससे पर्यावरण की सुरक्षा की जा सके.

राज्य के पर्यावरण मंत्री सुदर्शन घोष दस्तीदार बताते हैं कि एक रणनीति तैयार करने के लिए सुझाव देने का काम एक समिति को सौंपा गया है. यह समिति प्रदूषण से निपटने के साथ साथ उद्योगों से होने वाले जहरीले उत्सर्जन को रोकने के लिए नई तकनीक के विकास पर विचार करेगी.

दस्तीदार का कहना है कि समिति में अलग अलग क्षेत्रों, उद्योगों के प्रतिनिधियों, स्थानीय प्रशासन और प्रदूषण पर काम करने वाले विशेषज्ञों को शामिल किया जाएगा.

तस्वीर: AP

प्रदूषण फैलाने वालों पर नजर

राज्य में चमड़े और लोहे की औद्योगिक ईकाइयों को बड़े पैमाने पर प्रदूषण के लिए जिम्मेदार माना जाता है. उन्हें अपने आस पास हरियाली बढ़ाने के लिए ग्रीन बेल्ट बनाने का निर्देश दिया गया है. दस्तीदार ने कहा, "अधिकारियों ने कई ऐसी ईकाइयों का दौरा किया है ताकि समस्या को जड़ से समझा जा सके. इन दौरों का मकसद यह सुनिश्चित करना भी है कि सभी ईकाइयों में प्रदूषणरोधी युक्तियां लगाई गई हैं और प्रदूषण रोकने पर गंभीरता से काम हो रहा है."

राज्य का प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पोलीथीन बैग और ऐसी ही अन्य चीजों पर लगाए गए प्रतिबंध को सख्ती से लागू करने के लिए कड़े कदम उठा रहा है. बोर्ड के अधिकारी बताते हैं कि इसी महीने विभिन्न संस्थाओं के प्रतिनिधियों के साथ हुई बैठक में यह फैसला किया गया कि राज्य को एक महीने के भीतर ही प्लास्टिक से मुक्त करना होगा.

सरकार का ध्यान मोबाइल फोन टावरों से निकलने वाली तरंगों की ओर भी है. आईआईटी खड़गपुर और मुंबई के वैज्ञानिकों को टावर से निकलने वाली तरंगों के खतरे का पता लगाने का काम सौंपा गया है. पर्यावरण मंत्री ने बताया कि आईआईटी वैज्ञानिकों की समिति दो हफ्ते के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी. मंत्रालय ने कोलकाता और इसके आस पास 11 ऐसी जगहों की पहचान की है जहां सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक कचरा जमा किया जाएगा और उसे रीसाइकल किया जाएगा.

पैसा जुटाने के वास्ते

इस सारी कवायद के लिए अच्छे खासे धन की जरूरत होगी. इसके लिए राज्य सरकार की ओर से तो पैसा मिलेगा ही, साथ ही सरकारी प्रयोगशालाओं में उपलब्ध सुविधाओं को किराये पर देकर भी पैसा जुटाया जाएगा. दस्तीदार कहते हैं, "हम इंस्टिट्यूट ऑफ एन्वायर्नमेंटल स्टडीज एंड वेटलैंड मैनेजमेंट जैसे संस्थानों की लैब को बाहरी एजेंसियों के इस्तेमाल के लिए खोलने की योजना बना रहे हैं. वे लोग सीवेज सैंपल और अन्य खतरनाक पदार्थों के विश्लेषण का काम यहां कर पाएंगे." पैसा जुटाने के लिए पर्यावरण विभाग बाहरी एजेंसियों को सैटलाइट से मिलने वाली तस्वीरें और डेटा बेचेगा.

एक और समिति बनाई गई है जो शहरों के कचरे का ऊर्जा उत्पादन में इस्तेमाल करने के रास्ते तलाशेगी.

पर्यावरण मंत्रालय ने केंद्र सरकार की योजना गंगा एक्शन प्लान का हिस्सा बनने की ख्वाहिश भी जाहिर की है. इस योजना में गंगा की सफाई का काम किया जा रहा है. पूरे राज्य में पर्यावरण की सुरक्षा के लिए उठाए जा रहे कदमों की देखरेख के लिए परिवेश सेवक भर्ती किए जाएंगे. दस्तीदार के मुताबिक ये लोग हवा, पानी और शोर की निगरानी करने के लिए सरकार की आंख और कान की तरह काम करेंगे.

रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार

संपादनः महेश झा

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