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प्रयासों के बावजूद मारे जा रहे हैं बाघ

७ जनवरी २०१४

भारत में बाघों को बचाने की तमाम परियोजनाओं के बावजूद इनके शिकार की घटनाएं कम नहीं हो पा रही हैं. इसके उलट वर्ष 2013 में तो बाघों के शिकार की सबसे ज्यादा घटनाएं हुई हैं.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

पिछले सात वर्षों के दौरान कभी किसी एक वर्ष इतने बाघ शिकारियों के हाथों नहीं मारे गए थे. वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसायटी आफ इंडिया (डब्ल्यूपीएसआई) और नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी की ओर से जारी ताजा आंकड़ों में इसका खुलासा हुआ है. चीन में बाघ के शरीर के हिस्सों की भारी मांग की वजह से शिकारी हर तरह का खतरा उठाने को तैयार हैं. दुनिया में बाघों की कुल आबादी का आधा इसी देश में है.

ताजा आंकड़ा

भारत में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी) की ओर से जारी ताजा आंकड़ों में कहा गया है कि वर्ष 2013 के दौरान कुल 63 बाघों की मौत हुई. इनमें से कुछ तो सड़क हादसों और बीमारियों की वजह से मर गए. लेकिन 48 बाघ शिकारियों के हाथों मारे गए. वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसायटी आफ इंडिया ने इस दौरान शिकारियों के हाथों 42 बाघों के मारे जाने की बात कही है. लेकिन साथ ही उसका कहना है कि पिछले सात वर्षों में कभी किसी एक वर्ष के दौरान इतने बाघ शिकारियों के हत्थे नहीं चढ़े थे. सोसायटी ने इस दौरान शिकार समेत विभिन्न वजहों से कुल 76 बाघों के मरने की बात कही है. लेकिन सरकारी प्राधिकरण का कहना है कि यह तादाद 63 है.

तस्वीर: dapd

दोनों संगठनों के आंकड़ों में इस अंतर पर वन्यजीव प्रेमियों ने सवाल उठाए हैं. जाने-माने कार्यकर्ता बाल्मीकी थापर कहते हैं, "बाघों की मौतों का आंकड़ा जुटाने का काम निजी और गैर-सरकारी संगठनों को सौंप दिया जाना चाहिए. उनके पास इसके लिए जरूरी दक्षता होती है. प्राधिकरण को बजट और बाघों के संरक्षण के लिए जरूरी दिशानिर्देश तय करने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए."

डब्लूपीएसआई के प्रोग्राम मैनेजर टीटो जोसेफ अपने आंकड़ों का बचाव करते हुए कहते हैं, "हमने मौके पर व्यापक जांच-पड़ताल के बाद यह आंकड़े जुटाए हैं."

चीन में बढ़ती मांग

आखिर तमाम उपायों के बावजूद बाघों के शिकार पर अंकुश क्यों नहीं लग पा रहा है? इसका जवाब है पड़ोसी चीन में बाघ के शरीर के विभिन्न हिस्सों की लगातार बढ़ती मांग. वहां इससे पारंपरिक दवाएं बनाई जाती हैं. डब्ल्यूपीएसआई की भारत प्रमुख बेलिंडा राइट कहती हैं, "जब तक चीन में इस मांग पर अंकुश नहीं लगता तब तक बाघों के शिकार पर अंकुश लगाना मुश्किल है. लेकिन यह काम चीन ही कर सकता है." संगठन के टीटो जोसेफ कहते हैं, "तस्करों को इनके बदले इतनी ऊंची कीमत मिलती है कि वह कोई भी खतरा उठाने को तैयार रहते हैं."

तीन साल पहले हुई गिनती के मुताबिक, भारत में 1,706 बाघ थे जो दुनिया में बाघों की कुल आबादी का आधा है. वर्ष 2008 में देश में 1,411 बाघ थे. फिलहाल पिछले महीने बाघों की ताजा गिनती की प्रक्रिया शुरू हुई है.

संसाधनों की कमी

सुंदरबन टाइगर प्रोजेक्ट के एक अधिकारी कहते हैं, "वन विभाग में कर्मचारियों की कमी शिकार पर अंकुश लगाने की राह में एक रोड़ा है. हमारे पास उपकरणों और हथियारों की भी भारी कमी है. जबकि तस्कर आधुनिकतम उपकरणों और हथियारों से लैस रहते हैं. वह अपना काम करने के बाद राज्य की सीमा पार कर दूसरे राज्यों में चले जाते हैं. ऐसे में उन पर निगाह रखना मुश्किल है."

महाराष्ट्र सरकार ने बाघों का शिकार रोकने के लिए वन विभाग के कर्मचारियों को शिकारियों को गोली मारने की अनुमति दे दी है. ऐसे मामलों में कर्मचारियों के खिलाफ कोई मामला नहीं होगा. सरकार ने शिकारियों और पशु तस्करों की सूचना देने वालों को नकद इनाम देने का भी फैसला किया है. लेकिन इसके बावजूद बाघों का शिकार थमता नजर नहीं आ रहा है.

वन्यजीवों के संरक्षण में जुटे कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार को महज आंकड़े जुटाने की बजाय संरक्षण की दिशा में ठोस योजना बना कर आगे बढ़ना चाहिए.

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: महेश झा

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