प्रवासियों के लिए खुलता जर्मनी
१७ अक्टूबर २०१२ "आप इतना अच्छा जर्मन कैसे बोल लेती हैं." टीवी मेजबान एलिफ सेनेल को अकसर इस सवाल का जवाब देना पड़ता है, जो जर्मनी में ही पैदा हुईं हैं. कहती हैं, "मैंने पीढ़ियों के बीच फर्क देखा है. केवल बूढ़े लोग ऐसा पूछते हैं क्योंकि युवाओं के लिए यह आम बात है कि किसी का नाम जर्मन तो नहीं लेकिन वह फिर भी जर्मन नागरिक है." सेनेल के माता पिता 1970 में तुर्की के अनातोलिया से जर्मनी आए. उनके पिता यहां के सैकड़ों मेहमान मजदूर (गास्टआर्बाइटर) में थे. 1950 में विदेशियों को खास काम के लिए जर्मनी लाया गया.
जर्मन एकीकरण के बाद कई जर्मन अल्पसंख्यक गुट, जो विदेशों में रह रहे थे, वापस जर्मनी आ गए. 21वीं शताब्दी के पहले दशक में उच्च शिक्षा लेकर कई लोग जर्मनी आए हैं. कोलोन में एक आर्थिक शोध संस्था के मुताबिक 2009 में 21 प्रतिशत प्रवासी बहुत खास उपलब्धियां अपने साथ लेकर आए. क्लाउस बाडे जर्मनी में प्रवासियों के लिए खास बने आयोग के प्रमुख रहे हैं. उनका कहना है कि जर्मनी में उच्च शिक्षा लेकर आने वाले लोग इतने ज्यादा हो गए हैं कि मजदूरी करने वाले प्रवासियों की छवि फीकी पड़ रही है.बाडे कहते हैं कि जर्मनी में प्रवासियों के लिए माहौल अच्छा बन गया है, सिवाए कुछ गुटों के. उनके मुताबिक प्रवासी गुटों में कई ऐसे हैं जिन्हें परेशानी समझा जाता है. "
50 की दशक में इटली से आ रहे प्रवासी थे और उनके बारे में माना जाता था कि वे जर्मन लड़कियों के पीछे हैं. 80 और 90 की दशकों में पूर्वी यूरोप के प्रवासियों को बुरा माना जाता था. आजकल रोमा लोगों को शक की निगाह से दखा जाता है. यह लोग रोमानिया और बुल्गारिया से आते हैं."
बाडे का कहना है कि रोमा के खिलाफ पूर्वाग्रहों की वजह से रोमानिया और बुल्गारिया के लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा है हालांकि इन देशों के लोग बहुत सक्षम होते हैं. जर्मनी में मुसलमानों को भी शक से देखा जाता है. बाडे का कहना है कि नेता थीलो साराजिन की किताब ने इस छवि को बढ़ावा दिया है. जर्मनी अपने आप को खत्म कर रहा है, नाम की किताब में साराजिन कहते हैं कि मुसलमान खतरनाक हैं और वे कट्टरपंथी की ओर जा रहे हैं.
साराजिन की किताब में प्रवासियों को जर्मन समाज में शामिल करने की कोशिशों को भी बेकार बताया गया है. और एसवीआर नाम की संस्था के शोध से यह बात जाहिर है. बाडे कहते हैं, "2009 के अंत तक जर्मनी से जुड़े लोगों का कहना था कि जर्मनी में प्रवासी और यहां के लोग आराम से रहते हैं लेकिन एक साल बात इस मेल मिलाप को लेकर सकारात्मक सोच कम हो रही है."
लेकिन यह धारणा भी बदल रही है. शोध के नतीजे बताते हैं कि 60 प्रतिशत जर्मन और प्रवासी लोगों का मानना है कि उच्च शिक्षा पाकर ज्यादा लोगों को जर्मनी में आना चाहिए और 70 प्रतिशत मानते हैं कि उनके मेल मिलाप के लिए और कोशिशें की जानी चाहिए.
छिपने की जरूरत नहीं
रोजमर्रा की जिंदगी में मीडिया और लोग जर्मनी के मूल निवासियों और प्रवासियों और उनके परिवारों में भेदभाव करते हैं. पॉल मेरेशिल को यह बात खटकती है. "जर्मनी में लोगों का स्वागत करने के लिए यह मानना होगा कि लोग अलग अलग जगहों से आएंगे और अलग दिखेंगे." ओल्डेनबर्ग विश्वविद्यालय के मेरेशिल कहते हैं कि प्रवासियों के लिए जर्मन शब्द भी इस भेदभाव को बढ़ावा देते हैं.
पत्रकार एलिफ सेनेल हालांकि कहती हैं कि जर्मन टेलीविजन में आजकल अकसर ईरान के डॉक्टर होते हैं या तुर्क मूल के लोग. उनका मानना है कि सरकार ने लोगों को मिलाने की अच्छी कोशिश की है और प्रवासियों की छवि बेहतर हुई है. कहती हैं, "प्रवासियों में खुद आत्मविश्वास बढ़ा है. पहले प्रवासी अपने को दिखाने से कतराते थे और उन्हें केवल इस बात से खुशी मिल जाती थी कि उन्हें यहां रहने का मौका मिला है. लेकिन जब आप कुछ ज्यादा ही शुक्रगुजार होते हैं तो आप समाज में अपना पूरा योगदान नहीं दे पाते. जो अपने को और आत्मविश्वास के साथ पेश करेगा, उसे और सम्मान मिलेगा."
रिपोर्टः डाना शेर्ले/एमजी
संपादनः ए जमाल