प्रवासी मजदूरों को आबादी नियंत्रण के पाठ पढ़ा रही है सरकार
५ जून २०२०![Indien Regierungsbeamte verteilen Familienplanungs-Kits an Wanderarbeiter](https://static.dw.com/image/53674959_800.webp)
कोरोना संकट स्वास्थ्य के अलावा आर्थिक और सामाजिक समस्याएं भी पैदा कर रहा है. महामारी को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के बाद लाखों की तादाद में प्रवासी मजदूर वापस लौटे हैं. उनके पास अब परिवार के साथ रहने का मौका है तो सरकार की चिंता जनसंख्या विस्फोट है. इसलिए आइसोलेशन या क्वारंटीन सेंटर पर तय अवधि पूरी कर घर लौटने के वक्त इन कामगारों की काउंसलिंग की जा रही है. बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग के तहत काम करने वाली राज्य स्वास्थ्य समिति ने अपने एक्रीडेटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट (आशा) एवं ऑक्जिलरी नर्सिंग मिडवाइफ (एएनएम) कार्यक्रमों के जरिए एक अभियान चलाया है. बाहर से आने वाले ये कामगार चाहे होम क्वारंटीन में हों या फिर गांव के बाहर बनाए गए क्वारंटाइन सेंटर में रह रहे हों, जनसंख्या नियंत्रण को लेकर उनकी काउंसलिंग की गई तथा उन्हें गर्भनिरोधक सामग्रियां उपलब्ध कराई गई ताकि समय रहते अनचाहे गर्भ को रोका जा सके.
कोरोना संकट के कारण विभिन्न संसाधनों से करीब 30 लाख प्रवासी बिहार लौट चुके हैं. इतनी बड़ी आबादी इससे पहले राज्य से बाहर थी. इनमें अधिकतर पुरुष हैं जिनकी पत्नियां यहां रह रही थीं. जाहिर है, उनके लौट आने से उनका अधिकतर समय अब घर में ही व्यतीत होना है. समाजशास्त्रियों का मानना है कि "संकट काल में भावनात्मक लगाव बढ़ता है, जिसके कई बार असहज परिणाम भी सामने आते हैं." राज्य स्वास्थ्य समिति के कार्यकारी निदेशक मनोज कुमार कहते हैं, "पूर्व में किए गए अध्ययन में यह सामने आया है कि होली, दशहरा, दीवाली व छठ के मौके पर काफी संख्या में श्रमिक घर आते हैं और इन त्योहारों के बाद के नौवें महीने में राज्य के सरकारी अस्पतालों में संस्थागत प्रसव की संख्या में काफी वृद्धि हो जाती है." कोरोना संकट के दौरान काफी संख्या में लोग घर लौटे हैं और आने वाले समय में उनके पास कोई काम भी नहीं होगा. इसलिए अधिकारियों ने उनके बीच परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता फैलाने की योजना बनाई और इसी के तहत उनकी काउंसलिंग की जा रही है तथा प्रीवेंटिव टूल्स दिए जा रहे हैं.
आबादी बढ़ने की चिंता
स्वास्थ्य विभाग इसे एक ऐसे खतरे के रूप में देख रहा है जिसे अगर समय रहते रोकने की कोशिश न की गई तो कई स्तरों पर इसका बहुआयामी कुपरिणाम निकलना तय था. साथ ही इस परिस्थिति को वैसे अवसर के रूप में भी देखा गया जिसके तहत एक ही मौके पर अधिक से अधिक लोगों को परिवार नियोजन के लाभ-हानि से अवगत कराया जा सकता था. स्पष्ट है, इन कामगारों में एक बड़ी संख्या अशिक्षितों की है जो आज भी बच्चे के जन्म को अपने ईष्ट की नेमत मानते हैं. इसी कड़ी में गांव-गांव में कोरोना सर्वे कर रही आशा कार्यकर्ताओं व स्वास्थ्यकर्मियों की टीम को यह काम सौंपा गया कि वे अपने विजिट के दौरान लोगों की काउंसलिंग करें और दंपतियों को परिवार नियोजन के संसाधन यथा कंडोम, गर्भनिरोधक गोलियां व प्रेग्नेंसी टेस्ट किट सौंपे. इस बीच प्रदेश के क्वारंटीन केंद्रों पर चौदह दिन की अवधि पूरी कर भारी संख्या में लोग अपने घरों में जा चुके हैं.
इस संबंध में राज्य स्वास्थ्य समिति के स्टेट प्रोग्राम अफसर डॉ. मोहम्मद सज्जाद अहमद कहते हैं, "राज्य की तेज प्रजनन दर पूर्व से ही चिंता का विषय है. जनसंख्या नियंत्रण के संदर्भ में जरूरी काम हेल्थ वर्कर पहले से ही कर रहे हैं. लॉकडाउन के आरंभ में आशा कार्यकर्ता या अन्य हेल्थ वर्कर गांव-गांव में घर-घर स्क्रीनिंग के लिए जा रहे थे. तब तय किया गया कि जांच के साथ-साथ वे परिवार नियोजन के प्रति भी लोगों को क्यों न जागरूक करें. इससे एक ही समय पर और एक साथ काफी लोगों तक बात पहुंचायी जा सकती थी. इसी तरह जब प्रवासियों के लौटने का सिलसिला शुरू हुआ तो यही काम क्वारंटीन सेंटर में रह रहे लोगों के संदर्भ में भी तय किया गया. इतनी बड़ी संख्या में लोगों के घर लौटने के कारण जनसंख्या विस्फोट का अंदेशा तो था ही. इसलिए लॉकडाउन के कारण उत्पन्न इस विशेष स्थिति से निपटने की रणनीति बनाई गई. तय किया गया कि उन्हें गर्भनिरोधक टूल्स दिए जाएं. सोच थी कि इससे अनचाहा गर्भ तो रूकेगा ही और अगर पूरी तरह रोक न लग सकी तो भी एक समय पर प्रेग्नेंसी मेच्योर होने के क्रम को तो एक हद तक बाधित किया जा सकेगा. वर्तमान परिस्थिति में पापुलेशन एक्सप्लोशन का मुद्दा तो है ही, साथ ही इससे एक ही समय पर भारी संख्या में प्रेग्नेंसी मेच्योर होने के कारण डिलीवरी लोड बढ़ जाएगा और जब डिलीवरी का लोड व बर्थ रेट बढ़ेगा तो इस वजह से मैटरनल मॉर्टिलटी रेट या इंफेंट मॉर्टिलिटी रेट भी बढ़ने की संभावना बढ़ जाएगी. इसलिए आइसोलेशन या क्वारंटीन सेंटर से डिस्चार्ज के समय प्रवासियों को कंडोम, गर्भ निरोधक गोलियां सहित एक किट दिया जा रहा है जिसका वे इस्तेमाल कर सकें. क्वारंटीन सेंटर के बंद होने तक यह अभियान चलता रहेगा. इस पूरी कवायद का कोविड-19 से कोई संबंध नहीं है."
गर्भ निरोधकों का वितरण
इस अभियान के संबंध में जमुई के सिविल सर्जन डॉ. विजेंद्र सत्यार्थी कहते हैं, "प्रखंड स्तर के सभी अधिकारियों से कहा गया है कि वे क्वारंटीन सेंटर से प्रवासियों के घर जाने के वक्त परिवार नियोजन को लेकर उनकी काउंसलिंग व उनके बीच गर्भ निरोधक सामग्रियों का वितरण सुनिश्चित करें." अभी तक दो हजार से अधिक कंडोम व गोलियों को प्रवासियों के बीच वितरित किया जा चुका है. यह अभियान क्वारंटीन सेंटर के बंद होने तक चलेगा. वहीं समस्तीपुर के सिविल सर्जन डॉ. रति रमन झा का कहना है, "बड़ी संख्या में प्रवासियों के आने के कारण जनसंख्या विस्फोट की संभावना तो बढ़ ही गई है. इसे ही ध्यान में रखते हुए पूरे जिले में आइसोलेशन या क्वारंटीन सेंटर में रह रहे श्रमिकों के बीच गर्भनिरोधक सामग्रियों का वितरण किया जा रहा है. हर घर सर्वे के दौरान भी कार्यकर्ता इसे दंपतियों को सुलभ करा रहीं हैं." जमुई जिला स्वास्थ्य समिति के डिस्ट्रिक्ट प्रोग्राम मैनेजर सुधांशु नारायण लाल का कहना है, "जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में पहले से ही काम चल रहा था. यह उसी कार्यक्रम की कड़ी है. इस लॉकडाउन में उन सभी फोरम पर काम रुक गया जहां फैमिली प्लानिंग पर काम होता था. इतने लोगों के एकसाथ वापस आने को एक अवसर के रूप में भी लिया गया जिसके तहत परिवार नियोजन का मैसेज बड़े टारगेट ग्रुप तक पहुंचाया जा सकता था."
इस अनोखे अभियान में राज्य स्वास्थ्य समिति को तकनीकी सहयोग दे रही स्वयंसेवी संस्था के एक अधिकारी कहते हैं, "डोर-टू-डोर स्क्रीनिंग के दौरान गर्भनिरोधकों का वितरण आसान व प्रभावी रहा. हालांकि महिला व गांव का होने के कारण शुरू में कार्यकर्ताओं को थोड़ी परेशानी हुई लेकिन बाद में सब सुचारू हो गया." कोरोना संकट के इस दौर में राज्य सरकार के इस अनोखे व दूरगामी पहल की केंद्र सरकार ने भी प्रशंसा की है तथा दूसरे राज्यों को भी इसका अनुकरण करने की सलाह दी है. राज्यभर में आशा-एएनएम कार्यकर्ताओं की भारी-भरकम फौज की सहायता से सरकार ने जो प्रयास किया है उसके बेहतर परिणाम परिलक्षित होंगे. राज्य में हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार के गंभीर व प्रभावी उपाय जल्द से जल्द न किए गए तो देश के हेल्थ इंडेक्स के मानकों पर निचले पायदान पर चल रहे एवं संसाधनों की कमी से जूझ रहे बिहार को संभावित जनसंख्या विस्फोट की भयावहता झेलना पड़ा सकता है.
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