कुछ कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि वो केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दे कि सभी प्रवासी श्रमिकों को तालाबंदी के दौरान वेतन मिलता रहे. सुप्रीम कोर्ट ने स्थिति में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया है.
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कोविड-19 महामारी और उसे फैलने से रोकने के लिए पूरे देश में लगी तालाबंदी का प्रवासी श्रमिकों पर क्या असर हुआ है यह अब सामने आ चुका है. तालाबंदी के बाद भारी संख्या में शहरों से अपने अपने गांवों की तरफ पलायन करते हुए इन श्रमिकों ने लोगों को विभाजन के समय हुए प्रवासन की याद दिला दी. भूखे मरने से बचने की जद्दोजहद में कइयों ने पैदल चलते चलते अपनी जान गंवा दी.
पर वो इनके साथ होने वाली त्रासदी का सिर्फ पहला चरण था. रोज की कमाई पर किसी तरह गुजर बसर करने वाले इन श्रमिकों के लिए दूसरे चरण में चिंता है कि रोजगार के अभाव में उनका और उनके परिवार का गुजारा आखिर होगा कैसे? इसी प्रश्न को केंद्र में रखकर कुछ अधिकार कार्यकर्ताओं ने एक याचिका के जरिए सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि वो केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को निर्देश दे कि सभी सरकारें यह सुनिश्चित करें कि सभी प्रवासी श्रमिकों को तालाबंदी के दौरान वेतन मिलता रहे.
सरकारों ने इस बारे में तालाबंदी के शुरूआती दिनों में ही निर्देश जारी कर नियोक्ताओं से कहा था कि किसी भी श्रमिक का वेतन ना काटें. लेकिन इस याचिका में कार्यकर्ताओं ने अपील की है कि इस से बेहतर यह होगा कि सरकारें खुद ही श्रमिकों को वेतन दें.
लेकिन कार्यकर्ताओं को निराश होना पड़ा है. सुप्रीम कोर्ट ने स्थिति में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया है, यह कहते हुए कि सरकार जो भी कर रही है उससे बेहतर उपाय हमारे पास नहीं है. सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबडे ने कार्यकर्ताओं से यह भी पूछा कि जब श्रमिकों के रहने और खाने-पीने की सरकारों ने मुफ्त व्यवस्था की है तो उन्हें वेतन की क्या जरूरत है? इस पर कार्यकर्ताओं के वकील प्रशांत भूषण ने अदालत को बताया कि भोजन शेल्टर घरों में दिया जा रहा है और सभी श्रमिक इन घरों में नहीं हैं.
इसी के साथ भूषण ने यह भी कहा कि प्रवासी श्रमिक वेतन का एक हिस्सा अपने परिवार को भी भेजते हैं ताकि उनका भी गुजारा हो सके. सरकार ने अपने जवाब में अदालत को बताया कि वह स्थिति पर नजर रख रही है और जरूरत के हिसाब से आवश्यक कदम उठाए जाएंगे. आगे की सुनवाई 13 अप्रैल को होगी. 14 अप्रैल को तालाबंदी की समय सीमा समाप्त हो जाएगी.
चल रहे हैं 22,000 से ज्यादा सरकारी शिविर
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने अदालत को प्रवासी श्रमिकों के लिए की गई व्यवस्था का ब्यौरा दिया, जिसमें सामने आया कि कौन कौन से राज्यों में कितने श्रमिकों की देखभाल की जा रही है. देश के 578 जिलों में इस समय कुल 22,567 सरकारी राहत शिविर चल रहे हैं जिनमें छह लाख से ज्यादा लोग रह रहे हैं. सरकारों द्वारा 7,848 भोजन शिविर भी चलाए जा रहे हैं, जिनमें 54 लाख लोगों को खाना खिलाया जा चुका है.
गैर सरकारी संगठन भी इस काम में लगे हुए हैं. उनके द्वारा 3909 राहत शिविर चलाए जा रहे हैं जिनमें चार लाख से ज्यादा लोग रह रहे हैं. इसके अलावा 9,473 भोजन शिविर भी चलाए जा रहे हैं जिनमें 30 लाख से ज्यादा लोग खाना का चुके हैं. नियोक्ताओं द्वारा भी इस तरह के इंतजाम के कई मामले हैं. उनके द्वारा लगभग 15 लाख लोगों के रहने और खाने पीने का इंतजाम किया गया है.
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए भारत में तालाबंदी की गई. उसके बाद कई मजदूर काम और भोजन नहीं मिलने की वजह से अपने गांव की तरफ चल गए थे. लेकिन जो मजदूर अब दिल्ली में ही हैं उनके लिए खास इंतजाम किए गए हैं.
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पहले सड़क पर अब आश्रयों में
तालाबंदी की वजह से जो लोग सड़क पर आ गए थे और अपने अपने गांव चाहते थे अब उनके रहने के लिए दिल्ली में शिविरों का इंतजाम किया गया है. तालाबंदी के दूसरे ही दिन भारी संख्या में लोग अपने राज्य और गांव की तरफ चल दिए थे. जो लोग अब भी दिल्ली में रहना चाहते हैं उनके लिए सरकार ने राहत शिविर लगा कर हर तरह की सुविधा देने की कोशिश की है.
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काम ठप्प, संकट शुरू
कई मजदूरों का कहना था कि तालाबंदी की वजह से फैक्ट्रियां बंद हो गई, उनके पास इतने पैसे नहीं कि वे अपना खर्च निकाल पाएं. दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक से लोग अपने गांव की तरफ चल दिए. भारी संख्या में प्रवासियों का सड़क पर आना लॉकडाउन के मकसद को ही विफल बना रहा था. इसके बाद केंद्र ने एडवाइजरी जारी कर राज्यों से लोगों की ऐसी आवाजाही रोकने के लिए कहा.
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राहत शिविर
कई राज्यों में प्रवासी, दिहाड़ी मजदूरों और जरूरतमंदों के लिए राहत शिविर लगाए हैं. जहां उनके लिए सोने, खाने-पीने की व्यवस्था की गई है.
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महामारी से बचाव जरूरी
सरकार की कोशिश है कि जो लोग जहां हैं वहीं रहें लेकिन कुछ लोग चाहते हैं कि वे आपदा के इस वक्त में अपने परिवार के साथ वापस लौट जाए. हालांकि सरकार ने गरीबों और दिहाड़ी मजदूरों के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना की घोषणा की है, जिसके तहत 1.7 लाख करोड़ रुपये खर्च ऐसे लोगों पर किए जाएंगे जो तालाबंदी की वजह से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं.
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ड्रोन से नजर
तालाबंदी के दौरान कुछ इलाकों में लोग कानून की अनदेखी कर बाहर निकल जा रहे हैं. दिल्ली के एक ऐसे ही इलाके में ड्रोन के जरिए निगरानी रखी जा रही है. तालाबंदी को ना मानने और बेवजह सड़क पर आने वालों के खिलाफ कानून के मुताबिक सख्ती से कार्रवाई की जा रही है.
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भोजन वितरण
रोज कमाने और खाने वालों के लिए तालाबंदी किसी मुसीबत से कम नहीं है, दिल्ली और अन्य राज्यों में ऐसे लोगों के भोजन का इंतजाम किया गया और उन्हें मुफ्त में भोजन दिया जा रहा है. कई एनजीओ और सामाजिक संगठन जरूरतमंदों के घरों तक राशन भी पहुंचा रहे हैं.
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सुप्रीम कोर्ट में मामला
31 मार्च को मजदूरों के पलायन के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई है. सुप्रीम कोर्ट, केंद्र सरकार से कह चुका है कि वायरस से कहीं अधिक मौत घबराहट के कारण हो जाएगी. कोर्ट ने सरकार को प्रवासियों की काउंसलिंग की भी सलाह दी. कोर्ट ने ऐसे लोगों के लिए भोजन, आश्रय, पोषण और चिकित्सा सहायता के मामले में ध्यान रखने को कहा. कोर्ट ने कोरोना वायरस को लेकर फेक न्यूज फैलाने पर सख्ती से कार्रवाई करने को कहा.
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जरूरतमंदों को भोजन
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि 22 लाख से अधिक लोगों को भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है. प्रवासी मजदूरों के पलायन पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हुई थी. मुख्य न्यायाधीश की बेंच ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग कर सुनवाई की. केंद्र ने कोर्ट को बताया कि 6 लाख 60 हजार लोगों को आश्रय दिया गया है और अब कोई सड़क पर नहीं है.
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सोशल डिस्टैंसिंग का संदेश नहीं पहुंचा!
सरकार ने तो सोशल डिस्टैंसिंग या सामाजिक दूरी बनाए रखने को कह दिया लेकिन जब लाखों लोग दिल्ली या अन्य राज्यों से अपने घरों की तरफ गए तो एक संदेश अप्रभावी साबित हुआ. आशंका है कि घर लौटने वालों की बड़ी भीड़ के साथ वायरस भी नए इलाक़ों तक पहुंचा हो.
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खतरों के साथ पहुंचे घर
कई प्रवासी मजदूर जान जोखिम में डालकर महानगरों से अपने गांव की तरफ निकल गए. कुछ पैदल गए और कुछ लोग इस तरह से जोखिम उठाकर अपने गांव तक पहुंचे.