विशेष सुरक्षा दस्ता बनाने पर ऑस्ट्रेलिया करेगा अरबों का खर्च
१२ अगस्त २०१९
ऑस्ट्रेलिया ने अगले 20 सालों में तीन अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (2 अरब डॉलर) अपने विशेष दस्ते की क्षमताएं बढ़ाने पर खर्च करने की घोषणा की है. इसका मकसद प्रशांत क्षेत्र पर खास नजर रखते हुए घरेलू और बाहरी खतरों से निपटना होगा.
ऑस्ट्रेलिया का एक सरकारी बेड़ा जिसने ऑस्ट्रेलिया की तरफ से लापता मलेशियाई विमान एमएच370 के खोजी अभियान में हिस्सा लिया था. तस्वीर: picture-alliance/epa/J. Brown
विज्ञापन
ऑस्ट्रलियाई सरकार ने अपनी 20 वर्षीय योजना के पहले चरण में 50 करोड़ ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (करीब 34 करोड़ डॉलर ) के बजट को हरी झंडी भी दिखा दी है. सुरक्षा प्रबंधन के क्षेत्र में इतने बड़े स्तर पर निवेश की जरूरत पर जोर देते हुए ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने बताया, "यह हमारी प्रतिबद्धता की दिशा में एक अहम कदम होगा. दूसरे विश्व युद्ध के बाद से आज तक का सबसे बड़ा एकमुश्त निवेश, जो कि हमारी सेनाओं को नए स्तर पर ले जाएगा." मॉरिसन ने सिडनी के एक ऑर्मी बेस पर मीडिया से बातचीत में यह बयान दिया.
माना जा रहा है कि हाल के सालों में सिडनी और मेलबर्न में सुरक्षा से जुड़ी कुछ बड़ी घटनाओं के बाद इस बारे में सोचा गया. इसके अलावा पूरे प्रशांत क्षेत्र में चीन के प्रभुत्व बढ़ाने की कोशिशों को भी ऑस्ट्रेलिया टक्कर देना चाहता है. एक महीने पहले ही ऑस्ट्रेलिया ने एक ऐसी नई सैन्य इकाई बनाने की घोषणा की थी, जो प्रशांत क्षेत्र में उसके सहयोगियों को ट्रेनिंग और मदद मुहैया कराएगी.
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने इस निवेश को ऑस्ट्रेलिया और पूरे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के हित में बताया. तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. McGuirk
कुछ ही दिनों पहले ऑस्ट्रेलियाई सरकार के एक सदस्य ने चीन के उभार को लेकर पश्चिमी देशों के रवैये पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि ये कुछ वैसा ही है जैसा दूसरे विश्व युद्ध के समय नाजी जर्मनी के उभार के समय फ्रांस का था. इस टिप्पणी की चीनी दूतावास ने निंदा की थी.
प्रधानमंत्री मॉरिसन ने कहा है, "यह ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय हित में है कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को स्वतंत्र और संप्रभु रखा जाए, जहां दुनिया के इस हिस्से के लोग अंतरराष्ट्रीय कायदे-कानूनों का पालन करते हुए एक दूसरे के साथ स्वतंत्र रूप से संपर्क में रह सकें." जून 2021 में खत्म हो रहे वित्तीय वर्ष में सरकार अपने कुल जीडीपी का दो फीसदी रक्षा पर खर्च करेगी. विश्व बैंक के आंकड़े दिखाते हैं कि 2018 में यह जीडीपी का करीब 1.89 फीसदी रहा.
चीन ने एशिया प्रशांत महासागर में अपना प्रभाव मजबूत करने के लिए बीते सालों में कई बड़े कदम उठाए हैं. लेकिन इस सागर में चीन की बढ़ती ताकत का मतलब है कि उसे अमेरिका से भी टकराना होगा. अमेरिका खुद भी एक मुक्त और खुले "इंडो पैसिफिक" का समर्थक और इस क्षेत्र में एक स्थायी शक्ति है.
थाईलैंड के जंगलों में अमेरिकी सेना की प्रशांत कमांड के सैनिक थाई सेना के साथ खास कंमाडो ट्रेनिंग करते हैं. देखिए, कितनी मुश्किल होती है ये ट्रेनिंग. इसकी कुछ तस्वीरें विचलित कर सकती हैं.
तस्वीर: Reuters/A. Perawongmetha
कोबरा गोल्ड कही जाने वाली इस ट्रेनिंग में 2019 में अमेरिका और थाईलैंड के साथ करीब 29 देशों की सेनाओं ने हिस्सा लिया. ट्रेनिंग के दौरान सैनिक जंगल में सांप, बिच्छू और मकड़ी समेत कई विषैले कीटों के साथ रहते हैं.
तस्वीर: Reuters/S. Z. Tun
इस तस्वीर में सैनिक ने एक सांप को अपने दांतों से काटा. सांप का विष भरा दांत पहले ही निकाला जा चुका है. इस ट्रेनिंग का मकसद सैनिकों के मन से सांप के डर को धीरे धीरे भगाना है.
तस्वीर: Reuters/S. Z. Tun
सैनिक अभ्यास के दौरान सैनिकों के ट्रेन करने के लिए शिविर में 29 कोबरा लाए गए थे. हालांकि इन सभी की दांतों से विष निकाल लिया गया था.
तस्वीर: Reuters/A. Perawongmetha
अभ्यास का लक्ष्य है विषम परिस्थितियों में जीवित रहना. जंगल में कंमाडो ऑपरेशन के दौरान सैनिकों को अक्सर आस पास मौजूद चीजों को खाना पड़ता है, फिर वह मकड़ी ही क्यों न हो.
तस्वीर: Reuters/S. Z. Tun
जंगल में जिंदा रहने के लिए सांप को भी काटकर खाना पड़ सकता है. सैनिक अक्सर सांप का खून भी पी जाते हैं.
तस्वीर: Reuters/A. Perawongmetha
सांप का खून पीने के बाद उसका मांस खाने की बारी आती है. सैनिकों को एक के बाद एक बाइट लेनी पड़ती है.
तस्वीर: Reuters/A. Perawongmetha
कैंप के दौरान सैनिकों को जंगल में मिलने वाले कई तरह के भोजन की जानकारी दी जाती है. यह तस्वीर मकड़ी के अंडों की है.
तस्वीर: Reuters/S. Z. Tun
इस तस्वीर में सैन्य अभ्यास में शामिल सैनिकों को सांप पकड़ने की ट्रेनिंग दी जा रही है.
तस्वीर: Reuters/S. Z. Tun
पानी सिर्फ जलधाराओं में ही नहीं होता. कई पेड़ और पत्ते भी पानी स्टोर किए रहते हैं.
तस्वीर: Reuters/S. Z. Tun
इस तस्वीर में कमांडर सैनिकों को सिखा रहा है कि अलग अलग चीजों में मुट्ठी भर चावल कैसे पकाया जाए. 12 दिनों की ट्रेनिंग के दौरान हर सैनिक के पास थोड़ा बहुत चावल होता है.
तस्वीर: Reuters/S. Z. Tun
यह सैनिक मिट्टी में मिलने वाले कीड़े को खा रहा है. युद्ध के दौरान जंगल में क्या मिलेगा, ये किसी को नहीं पता इसीलिए हर तरह का खाना खाने का अभ्यास होना चाहिए.