चीन ने एशिया प्रशांत महासागर में अपना प्रभाव मजबूत करने के लिए हाल में कई बड़े कदम उठाए हैं. लेकिन इस सागर में चीन की बढ़ती ताकत का मतलब है कि उसे अमेरिका से टकराना होगा.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Kin Cheung
विज्ञापन
पिछले दिनों इंडो पेसेफिक में अमेरिकी बलों के कमांडर एडमिरल फिलिप डेविडसन ने हेलीफेक्स इंटरनेशनल सिक्योरिटी फोरम को बताया कि अमेरिका मुक्त और खुले "इंडो पेसेफिक" की संभावना की रक्षा करेगा. इस क्षेत्र को अमेरिका इंडो पेसेफिक ही कहता है. डेविडसन ने कहा, "अमेरिका प्रशांत क्षेत्र में एक स्थायी शक्ति है, और इसमें कोई बदलाव नहीं होगा. हम चाह कर भी इसे अकेला नहीं छोड़ सकते हैं."
इसी साल एडमिरल डेविडसन ने अपनी नियुक्ति की सुनवाई के दौरान कहा था कि चीन 'युद्ध की किसी भी स्थिति में' दक्षिण चीन सागर में दबदबा कायम करने में सक्षम है. प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका और चीन के बीच राजनीतिक और नौसैनिक प्रतिद्वंद्विता बढ़ रही है. इसकी वजह दक्षिणी चीन सागर क्षेत्र, सागरीय नेविगेशन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय सीमा विवादों को लेकर तनाव है.
हाल में उच्च स्तरीय शिखर सम्मेलनों और द्विपक्षीय बैठकों से साफ होता जा रहा है कि चीन इस क्षेत्र में आर्थिक और रणनीतिक एजेंडे के निर्धारण में अग्रणी भूमिका निभाना चाहता है. इसी वजह से चीन और अमेरिका के बीच क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता उभर रही है.
चीन में समंदर पर दुनिया का सबसे लंबा पुल
समंदर पर दुनिया का सबसे लंबा समुद्री पुल चीन ने बना कर चालू कर दिया है. यह पुल कई मामलों में नजीर है हालांकि बेहद खर्चीले इस पुल से हांगकांग, मकाउ और कुछ दूसरे इलाकों के लोग खुश नहीं हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/MAXPPP
सबसे लंबा समुद्री पुल
समंदर पर दुनिया का सबसे लंबा पुल चीन में चालू हो गया है. मंगलवार को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इसका उद्घाटन किया. इस दौरान हजारों लोग मौजूद थे. इंजीनियरिंग के इस बेजोड़ नमूने को चीन अपनी बड़ी कामयाबी मानता है.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/A. Wong
विशाल आकार
आकार के मामले में इस पुल ने नया रिकॉर्ड बनाया है. यह दुनिया का सबसे लंबा समुद्री पुल और सुरंग है. इसकी कुल लंबाई 55 किलोमीटर है जो किसी भी दूसरे पुल की तुलना में बहुत ज्यादा है. इस पुल में 6.7 किलोमीटर लंबी सुरंग भी शामिल है.
तस्वीर: Reuters/Bobby Yip
भारी मात्रा में लोहा
चीन की सरकारी मीडिया के मुताबिक पुल को बनाने में 4,20,000 टन लोहे का इस्तेमाल किया गया है. इतने लोहे से एक दो नहीं, कुल 60 आइफल टावर बनाए जा सकते हैं. इसके साथ ही 10.8 लाख क्यूबिक मीटर कंक्रीट भी लगा है.
तस्वीर: Getty Images/China Photos
बेहद मजबूत पुल
बताया जा रहा है कि पुल कम से कम 120 साल तक सेवा देने में सक्षम है और यह 340 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार वाली तूफानी हवाओं का दबाव भी झेल सकता है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Kin Cheung
समुद्री रास्ते में बाधा नहीं
पुल का डिजाइन इस तरह से बनाया गया है कि यह समुद्री जहाजों के मार्ग में बाधा नहीं बनेगा. पर्ल रिवर डेल्टा दुनिया के सबसे व्यस्त बंदरगाहों में एक है और इस पुल के कारण बंदरगाह के यातायात में बाधा नहीं आएगी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/MAXPPP
निर्माण में देरी
पुल बनाने का काम 2009 में शुरू हुआ और कानूनी बाधाओं, बजट से ज्यादा खर्च और कुछ दूसरी समस्याओं के कारण निर्माण में देरी हुई. 2011 से अब तक इस पुल के निर्माण में कम से कम 9 लोगों की मौत भी हुई.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Wallace
सख्त सुरक्षा इंतजाम
पुल की सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरों का जाल बिछाया गया है. बस के ड्राइवर अगर ज्यादा जम्हाई लेते दिखें, तो तुरंत उन्हें चेतावनी दी जाएगी. ड्राइवरों के ब्लडप्रेशर पर भी सुरक्षा एजेंसियों की निगरानी रहेगी.
तस्वीर: Reuters/A. Song
सबके लिए नहीं है पुल
इस पुल पर सभी लोगों को कार चलाने की इजाजत नहीं होगी. अमीर लोग ही इस पर से गुजर सकेंगे. हांगकांग और चीन के बीच चलने वाली निजी कारों के लिए महज 10 हजार लाइसेंस जारी किए गए हैं. मकाउ के लिए यह लाइसेंस महज 300 लोगों को मिलेगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Stringer
पर्यावरण को नुकसान
पर्यावरण की लड़ाई लड़ रहे लोगों का कहना है कि इस पुल के कारण पर्यावरण को बहुत नुकसान होगा. पर्ल रिवर की दुर्लभ पिंक डॉल्फिन पर इसका सबसे ज्यादा असर होने की बात कही जा रही है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Sorabji
महंगे पुल से नाखुश
चुहाई, मकाउ और हांगकांग के लोग अब तक एक दूसरे के यहां जाने के लिए फेरी का इस्तेमाल करते थे. अब वे इस पुल से आ-जा सकते हैं लेकिन नागरिकों का कहना है कि इस महंगे पुल की उन्हें जरूरत नहीं थी. हालांकि इंजीनियरों का कहना है कि पुल के जरिए जाने पर चार घंटे की यात्रा महज 45 मिनट में पूरी हो जाएगी.
तस्वीर: Reuters/Aly Song
महंगा पुल अमीरों के लिए
चीन सरकार के संगठनों के सदस्य, चीन को टैक्स देने वाले लोग या फिर दक्षिण चीन में कम से कम 7,20,000 डॉलर का दान करने वाले लोग ही इस पुल पर चलने के लाइसेंस के लिए आवेदन कर सकते हैं.
तस्वीर: Reuters/Aly Song
बिना लाइसेंस वालों के लिए शटल
गाड़ी लेकर भले ही आप इस पुल पर ना जा सकें लेकिन अलग अलग शटल सेवाओं के जरिए पुल की यात्रा का मजा ले सकते हैं. यह और बात है कि तब इस पुल से बचने वाला समय गाड़ियों की अदलाबदली में ही खर्च हो जाएगा.
तस्वीर: AFP/Getty Images/P. Fong
12 तस्वीरें1 | 12
वॉशिंगटन के सेंटर फॉर स्ट्रैटिजक एंड इंटरनेशनल स्टडीज में एशिया मैरीटाइम ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इनीशिएटिव के निदेशक ग्रेगोरी पोलिंग कहते हैं कि चीन क्षेत्र के बाकी देशों को भरोसा दिलाने की कोशिश कर रहा है कि चीन का विरोध करने की बजाय उसके साथ सहयोग कहीं ज्यादा फायदेमंद है. वह कहते हैं, "अगर चीन उन देशों का भरोसा जीतने में कायमाब रहता है जिन्हें अमेरिका खो चुका है, तो फिर एशिया के देश चीन की तरफ आएंगे क्योंकि फिर उन्हें कोई और विकल्प नहीं दिखाई देगा."
चीन लगातार ऐसी कोशिशों में जुटा है. वह एशियाई देशों को ऋण दे रहा है, उनके यहां बुनियादी ढांचा तैयार करने के लिए करार किए जा रहे हैं और सैन्य सहयोग बढ़ाया जा रहा है.
चीन ने पाकिस्तानी सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजे
00:44
This browser does not support the video element.
चीन दक्षिणी चीन सागर के ज्यादातर हिस्से पर अपना संप्रभु अधिकार समझता है जबकि अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक इस पर विवाद है. इस सागर में कभी निर्जन पड़े रहे वाले टापूओं पर चीन बड़ी सैन्य तैनातियां कर रहा है.
अमेरिकी नौसेना दक्षिणी चीन सागर में अकसर 'फ्रीडम ऑफ नेविगेशन' नाम के अभियान चलाती है. इस दौरान, अमेरिकी नौसैनिकों की समंदर में गश्त करने वाली चीनी नौकाओं से तनातनी भी हुई है. चीन ने बार बार मांग की है कि अमेरिकी नेवी ऐसी अभियानों को रोके. सितंबर में ऐसे ही एक अभियान के दौरान एक अमेरिकी डेस्ट्रोयर नौका चीनी डेस्ट्रॉयर से लगभग टकरा गई थी, जिसे 'आक्रामक करतब' करार दिया गया था.
चीनी सेना कहां से कहां पहुंच गयी
चीन ने जो सैन्य ताकत हासिल की है, उससे किसी को भी रश्क हो सकता है. आइए एक नजर डालते हैं चीनी सेना के अतीत और वर्तमान पर.
तस्वीर: Reuters/Stringer
कब हुआ गठन?
चीन में 1 अगस्त 1927 को गृह युद्ध छिड़ा और यही दिन चीन की मौजूदा सेना का स्थापना दिवस माना जाता है. इस गृह युद्ध में एक तरफ चीन की राष्ट्रवादी ताकतें थीं तो दूसरी तरफ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी. गृह युद्ध में आखिरकार कम्युनिस्टों की जीत हुई और चीन पर उनका नियंत्रण हो गया. वहीं राष्ट्रवादियों को भागकर ताइवान जाना पड़ा.
तस्वीर: AP
1989, बीजिंग
1949 में आधुनिक चीन की स्थापना के बाद चीनी सेना कई ऐतिहासिक घटनाओं की गवाह बनी जिनमें कोरियाई युद्ध, चीनी सांस्कृतिक क्रांति और चीन-वियतनाम युद्ध शामिल रहे. लेकिन 1989 में कुछ चीनी युवा अपनी ही व्यवस्था के खिलाफ उठ खड़े हुए. चीन की सेना ने जिस बर्बरता से इस लोकतंत्र समर्थक आंदोलन को कुचला, उसकी अब तक आलोचना होती है.
तस्वीर: AP
भारत-चीन युद्ध
अपनी आजादी के 15 साल बाद ही भारत को 1962 में चीन के साथ युद्ध लड़ना पड़ा. एक महीने तक चले इस युद्ध में भारत को हार का कड़वा घूंट पीना पड़ा. युद्ध का मुख्य कारण सीमा विवाद था लेकिन इसके लिए कई वजहें भी जिम्मेदार थीं. इनमें एक कारण तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा को उनके अनुयायी के साथ भारत में शरण दिया जाना भी था.
तस्वीर: Diptendu Dutta/AFP/Getty Images
चीन और अमेरिका का टकराव
बीते 20 साल में चीन का किसी देश से कोई युद्ध तो नहीं हुआ है, लेकिन चीनी सेना लगातार सुर्खियों में रही है. 1 अप्रैल 2001 को चीन और अमेरिका के विमान एक दूसरे से टकरा गये. चीन ने इस घटना के लिए अमेरिका को जिम्मेदार करार दिया और इसे लेकर दोनों देशों के रिश्ते खासे तनावपूर्ण हो गये थे.
तस्वीर: AP
हादसा
अप्रैल 2003 में चीनी नौसेना को एक बड़ी दुर्घटना का सामना करना पड़ा जिसमें उसके 70 अफसर मारे गये थे. ये लोग चीनी पनडुब्बी 361 में सवार थे. पानी के नीचे उनकी ट्रेनिंग हो रही थी कि तभी पनडुब्बी का सिस्टम फेल गया. सरकारी मीडिया के मुताबिक पनडु्ब्बी के डीजल इंजन ने सारी ऑक्सीजन इस्तेमाल कर ली जिसके चलते यह हादसा हुआ.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/featurechina
सेना में भ्रष्टाचार
हाल के सालों में भ्रष्टाचार चीन की सेना के लिए एक बड़ी समस्या रही है. लेकिन जब से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सत्ता संभाली है, तब से देश में भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम चल रही है. इसी तहत सेना में उच्च पदों पर रह चुके शु सायहोऊ और कुओ बॉक्सीओंग के खिलाफ कार्रवाई हुई.
तस्वीर: Getty Images
नो बिजनेस
चीन की सेना में 1990 के दशक में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार देखने को मिला. 1985 में खर्चों में कटौती के लिए चीनी सेना को आर्थिक गतिविधियां चलाने की अनुमति दे दी गयी. लेकिन कुछ समय बाद इस फैसले के चलते न सिर्फ सेना की क्षमता प्रभावित हुई बल्कि बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार भी हुआ. इसीलिए 1998 में चीन ने सेना की आर्थिक गतिविधियों पर पूरी तरह रोक लगा दी.
तस्वीर: Reuters/D. Sagolj
नए हथियार
तौर पर चीन के बड़ी ताकत बनने के साथ ही उसके रक्षा खर्च में भी बेतहाशा इजाफा हुआ. सेना का आधुनिकीकरण किया गया और उसे नये नये हथियारों से लैस किया गया. उसके जखीरे में अब तेज तर्रार लड़ाकू विमान, विमानवाहक पोत, टोही विमान, पनडुब्बियां और परमाणु मिसाइलों समेत हर तरह के हथियार हैं.
तस्वीर: Reuters/Stringer
गहराते मतभेद
चीन की ताकत बढ़ने के साथ ही पड़ोसी देशों से उसके विवाद भी गहराये हैं. जापान से जहां उसकी पारंपरिक प्रतिद्ंवद्विता है, वहीं जल सीमा को लेकर वियतनाम, फिलीफींस, इंडोनेशिया, मलेशिया, ताइवान और ब्रूनेई जैसे देशों उसके मतभेद गहरे हुए हैं. इसके अलावा भारत के साथ सैकड़ों किलोमीटर लंबी सीमा का विवाद भी अनसुलझा है.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot/Xinhua/Liu Rui
ताइवान से तनातनी
छह विमानवर्षक शियान एच-6 विमानों को जुलाई में ताइवान के एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन के पास उड़ता हुआ पाया गया. इससे ताइवान की सेना सतर्क हो गयी. चीन ताइवान को अपना एक अलग हुआ हिस्सा बताता है जिसे उसके मुताबिक एक दिन चीन में ही मिल जाना है. जबकि ताइवान खुद को एक अलग देश समझता है.
तस्वीर: Reuters/Ministry of National Defense
विदेश में सैन्य अड्डा
चीन की सेना अब देश की सीमाओं से परे भी अपने पांव पसार रही है. अफ्रीकी देश जिबूती में चीन ने अपना पहला विदेशी सैन्य बेस बनाया है. रणनीतिक रूप से बेहद अहम लोकेशन वाले जिबूती में अमेरिका, जापान और फ्रांस के भी सैन्य अड्डे मौजूद हैं. चीन अफ्रीका में भारी पैमाने पर निवेश भी कर रहा है.
चीन की सेना दुनिया की कई बड़ी सेनाओं के साथ सैन्य अभ्यास करती है और इस दौरान वह अपने दमखम का परिचय देती है. जुलाई 2017 में रूस के साथ बाल्टिक सागर में सैन्य अभ्यास के लिए उसने तीन पोत भेजे. पहली बार चीन ने अपने पोत यूरोप भेजे हैं. बहुत से नाटो देश इस पर नजदीक से नजर बनाये हुए थे.
तस्वीर: picture alliance/dpa/Tass/S. Konkov
12 तस्वीरें1 | 12
दक्षिणी चीन सागर में चीनी और अमेरिकी पोतों के बीच लगातार संपर्क होता रहता है. अमेरिकी रीयर एडमिरल कार्ल थॉमस ने समाचार एजेंसी एपी के साथ बातचीत में कहा कि यह संपर्क बहुत ही 'पेशेवर तरीके से' होता है और नौकाओं के टकराने की घटना बहुत ही दुर्लभ बात है.
पोलिंग का कहना है, "मैं नहीं समझता कि कोई भी दक्षिणी चीन सागर में एक दूसरे से टकराना चाहता है. मुझे लगता है कि चीन के सामने बहुत अच्छा मौका है कि बिना एक भी कारतूस दागे वह अपना दबदबा कायम कर सकता है. इसे रोकने के लिए अमेरिका को जिस तरह का निवेश करना चाहिए था, वह उसने नहीं किया." वह कहते हैं कि चीन अपना दबदबा कायम करने के लिए लगातार कोशिशें कर रहा है और उसने दुनिया को संदेश भी दे दिया है कि उसका इरादा दक्षिणी चीन सागर को नियंत्रित करने का है.
अमेरिका के राष्ट्रीय रक्षा रणनीति आयोग ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा कि अमेरिकी सेना की सर्वोच्चता को 'खतरनाक हद' तक नुकसान हुआ है. पोलिंग कहते हैं कि अमेरिका और चीन की सेना के बीच अंतर लगातार कम हो रहा है. उनके मुताबिक चंद दशकों में चीन अमेरिका के बराबर आ जाएगा.
खत्म करेगा चीन विदेशी निवेश की सीमा
01:30
This browser does not support the video element.
ऐसे में सवाल यह है कि क्या अमेरिका इंडो पेसेफिक क्षेत्र में अपने सहयोगियों के हितों की रक्षा के लिए चीन से उलझने के बारे में सोचेगा? अमेरिकी जनता चीनी आक्रमण से सहयोगी देशों को बचाने का तो समर्थन जताती है, लेकिन दक्षिणी चीन सागर में सिर्फ अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को बनाए रखने के लिए चीन से उलझने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं होगी.
पोलिंग कहते हैं, "ऐसा लगता है कि अमेरिकी लोग चीनी हमले की स्थिति में जापान और कोरिया का समर्थन करेंगे, लेकिन दक्षिणी चीन सागर का मतलब टोक्यो में चीनी टैंकों को उतारना नहीं है, इसलिए वहां अमेरिकी हितों की अहमियत को समझाना मुश्किल होगा."
अगर अमेरिका दक्षिणी चीन सागर के आसपास के देशों के बीच नेतृत्व करने वाली अपनी भूमिका को बनाए रखना चाहता है तो उसे मजबूत गठबंधन बनाने होंगे, जो अभी चीन के पास नहीं हैं लेकिन वह इनके लिए कोशिश कर रहा है.
जब से डॉनल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बने हैं तब से अमेरिकी प्रशासन की तरफ से क्षेत्र के देशों को विरोधाभासी संदेश मिल रहे हैं. ऐसे में उनके लिए यह तय करना मुश्किल हो रहा है कि किधर जाएं. आसियान देशों के हालिया शिखर सम्मेलन में सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली ह्साइन लूंग ने कहा कि अमेरिका और चीन की प्रतिद्वंद्विता के चलते दोनों देशों के सहयोगी किसी एक की तरफ होने के लिए मजबूर हैं.पोलिंग कहते हैं, "अमेरिकी हितों की रक्षा गठबंधनों और साझेदारियों से ही होती है और अमेरिका की यही ताकत है कि चीन के पास ऐसे गठबंधन और साझेदारियां नहीं हैं."
चीन नहीं, ये देश ताइवान के साथ हैं
चीन नहीं, ये देश ताइवान के साथ हैं
चीन के बढ़ते दबदबे के कारण ऐसे कम ही देश हैं जिनके ताइवान के साथ कूटनीतिक रिश्ते हैं. चीन की वन चाइना नीति के तहत कोई देश चीन और ताइवान में से एक से ही राजनयिक रिश्ते रख सकता है. बस इन देशों में ताइवान के दूतावास हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/R. Arangua
निकारागुआ
तस्वीर: Getty Images/AFP/R. Arangua
पैराग्वे
तस्वीर: picture-alliance/AP/J. Saenz
स्वाजीलैंड
तस्वीर: picture-alliance/epa/S. Mohamed
होली सी
तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS/E. Inetti
हैती
तस्वीर: Reuters/A. Martinez Casares
बेलिजे
तस्वीर: Brianne Fischer
सेंट विंसेंट एंड ग्रेनाडिंस
तस्वीर: picture-alliance/AP Images/D. Vincent
होंडुरास
तस्वीर: DW/Anne Sofie Schroder
सेंट किट्स एंड नेविस
तस्वीर: picture alliance/blickwinkel/S. Rocker
किरिबाती
तस्वीर: DW/G.Ketels
सेंट लुसिया
तस्वीर: Mandel Ngan/AFP/Getty Images
अल सल्वाडोर
तस्वीर: Reuters/K. Pfaffenbach
मार्शल आइलैंड्स
तस्वीर: Imago/Zumapress
नाउरू
तस्वीर: picture-alliance/New Zealand Defence Force