किसानों के आंदोलन को दबाने के प्रशासन के तरह तरह के प्रयासों के बीच किसानों ने कहा है कि वो 6 फरवरी को पूरे देश में चक्का जाम करेंगे. सरकार और किसानों के बीच गतिरोध और गहराने की संभावनाएं नजर आ रही हैं.
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किसान संगठनों ने शनिवार 6 फरवरी को पूरे देश के राज्यमार्गों पर यातायात को ठप करने की योजना बनाई है. उनकी घोषणा के अनुसार यह 'चक्का जाम' दिन में 12 बजे से तीन बजे तक आयोजित किया जाएगा. इसे किसानों के प्रदर्शन स्थलों पर सरकार द्वारा इंटरनेट को बंद करने, बिजली-पानी बंद करने, रास्तों पर तरह तरह के बैरियर लगाने, किसानों पर लाठीचार्ज करने और कई किसानों को गिरफ्तार करने के खिलाफ किसानों के कदम के रूप में देखा जा रहा है.
किसानों ने आरोप लगाया है कि सरकार आंदोलन में शामिल किसानों को तरह तरह से परेशान कर रही है और उनके आंदोलन से नए सिरे से जुड़ने के लिए आने वाले लोगों को भी उनके पास नहीं आने दे रही है. दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बीच गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों के धरना स्थल के इर्द गिर्द पुलिस ने बाहरी घेराबंदी कर दी है. पहले लोहे के बैरियर लगाए हैं, फिर सीमेंट के भारी बैरियर, फिर सीमेंट के बैरियरों की दो कतारों के बीच सीमेंट घोल कर डाला गया है.
इतना ही नहीं, उसके बाद फिर से लोहे के बैरियरों की कई कतारें लगाई गई हैं और उसके बाद कंटीली तारों का एक जाल बिछा दिया गया है. किसानों का आरोप है कि पंजाब से ट्रेनों से दिल्ली आ रहे किसानों को भी दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचने से रोकने की कोशिश की जा रही है. दिल्ली की सीमाओं पर पुलिसकर्मी स्टील की लाठीनुमा नए हथियारों से लैस भी नजर आ रहे हैं.
किसानों ने सोमवार को लाए गए आम बजट की भी आलोचना की और कहा कि ना सिर्फ इस बजट में उनकी मांगों को अनदेखा किया गया है, बल्कि कृषि से संबंधित कई महत्वपूर्ण योजनाओं पर सरकारी खर्च को कम कर दिया गया है. किसानों ने कहा कि शनिवार को चक्का जाम का आयोजन करने के पीछे इसका विरोध जताना भी एक कारण है. देखना होगा कि शनिवार को इस प्रदर्शन का कैसा असर रहता है.
मोदी सरकार इन दिनों अपने सबसे मुश्किल इम्तिहान का सामना कर रही है. नए कृषि कानूनों के खिलाफ धरने पर बैठे किसान आंदोलनकारी हटने का नाम नहीं ले रहे हैं. एक नजर उन घटनाओं पर, जब मोदी सरकार को लोगों की नाराजगी झेलनी पड़ी.
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किसान आंदोलन
कई हफ्तों से दिल्ली की सीमाओं पर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान प्रदर्शन कर रहे हैं और सरकार से नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं है. इस बीच, 26 जनवरी को हुई हिंसा के बाद स्थिति काफी तनावपूर्ण हो गई है.
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नागरिकता संशोधन अधिनियम
नरेंद्र मोदी सरकार ने जब 2019 में नागरिकता संशोधन विधेयक पारित किया तो इसके खिलाफ देश में कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए. धर्म के आधार पर पड़ोसी देशों के शरणार्थियों को नागरिकता देने वाले इस कानून को आलोचकों ने संविधान विरोधी बताया.
तस्वीर: DW/Dharvi Vaid
धारा 370
5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाली धारा 370 को खत्म कर दिया. कई विपक्षी पार्टियों ने इसका तीखा विरोध किया. हिंसक विरोध प्रदर्शनों की आशंका को देखते हुए केंद्र सरकार ने कई महीनों तक जम्मू कश्मीर में कर्फ्यू लगाए रखा.
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नोटबंदी
8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने का एलान कर दिया. सरकार का कहना था कि काले धन को बाहर लाने के लिए उसने यह कदम उठाया. लेकिन असंगठित क्षेत्र के कई उद्योग चौपट हो गए और लोग बेरोजगार हो गए.
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जेएनयू की नारेबाजी
दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी अकसर सुर्खियों में रहती है. लेकिन 2016 में यूनिवर्सिटी परिसर में कन्हैया कुमार और अन्य छात्र नेताओं पर लगे देशद्रोह के आरोपों ने इसे अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में ला दिया. आंदोलन को दबाने के लिए पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Gupta
लिंचिंग
2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के कुछ महीनों बाद गौरक्षा के नाम देश के अलग अलग हिस्सों में लिंचिंग घटनाएं हुईं. गोमांस रखने या खाने के आरोप में कुछ समुदायों को निशाना बनाया गया. इसके बाद सरकार के खिलाफ प्रदर्शन हुए, कई लोगों ने अपने पुरस्कार लौटाए.
तस्वीर: Imago/Hundustan Times
रोहित वेमुला
हैदराबाद यूनिवर्सिटी में पीएचडी कर रहे एक दलित छात्र रोहित वेमुला की जुलाई 2015 में आत्महत्या ने भारत के बड़े शैक्षणिक संस्थानों में जाति आधारित भेदभाव को उजागर किया. इसके बाद सड़कों पर उतरे लोगों ने उन तत्वों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की जिनकी वजह से "रोहित वेमुला को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा."