प्राणघातक दवाएं खरीद सकेंगे गंभीर और लाइलाइज बीमारी के मरीज
१० मार्च २०१७
10 साल से भी ज्यादा लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 74 साल के शख्स ने इच्छा मृत्यु के लिए प्राणघातक दवा खरीदने का मुकदमा जीता. यह कानूनी जीत उनकी पत्नी को श्रद्धाजंलि जैसी ही है.
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जर्मनी की संघीय प्रशासनिक अदालत ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा है कि बहुत ही मुश्किल परिस्थितियों में लोगों को आत्महत्या के लिए जरूरी दवाएं खरीदने का अधिकार है. लाइपजिष में संघीय प्रशासनिक अदालत "लाइलाज बीमारी से पीड़ित रोगी को अपना जीवन खत्म करने का अधिकार" देने के हक में फैसला सुनाया है. इसके तहत लाइलाइज बीमारी से जूझ रहा मरीज यह भी तय कर सकेगा कि वह कैसे दम तोड़ना चाहता है. अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में मरीज को "खुलकर अपनी इच्छा जाहिर करने और उस पर अमल करने" का हक भी है. जर्मनी में फिलहाल प्राणघातक दवाओं की खरीद पर प्रतिबंध है.
अदालत ने साफ किया कि केवल अति गंभीर मामलों में ही मरीज को ऐसी दवाएं खरीदने के अधिकार मिलना चाहिए. कोर्ट ने कहा, "यदि अपनी असहनीय जीवन दशा के कारण, वे स्वतंत्र होकर और गंभीरता से जीवन खत्म करने का फैसला करते हैं" और इसके लिए कोई आरामदायक चिकित्सकीय विकल्प नहीं है तो ऐसे रोगी प्राणघातक दवाओं तक पहुंच मिलनी चाहिए.
(कैसे घटित होती है मृत्यु)
मृत्यु का विज्ञान
मृत्यु क्या है और इंसान क्यों मरता है, मनुष्य इन सवाल का जवाब हजारों साल से खोज रहा है. चलिये देखते हैं आखिर विज्ञान मृत्यु और उसकी प्रक्रिया के बारे में क्या कहता है.
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विकास से विघटन तक
30 की उम्र में इंसानी शरीर में ठहराव आने लगता है. 35 साल के आस पास लोगों को लगने लगता है कि शरीर अब कुछ गड़बड़ करने लगा है. 30 साल के बाद हर दशक में हड्डियों का द्रव्यमान एक फीसदी कम होने लगता है.
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भीतर खत्म होता जीवन
30 से 80 साल की उम्र के बीच इंसान का शरीर 40 फीसदी मांसपेशियां खो देता है. जो मांसपेशियां बचती हैं वे भी कमजोर होती जाती है. शरीर में लचक कम होती चली जाती है.
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कोशिकाओं का बदलता संसार
जीवित प्राणियों में कोशिकाएं हर वक्त विभाजित होकर नई कोशिकाएं बनाती रहती हैं. यही वजह है कि बचपन से लेकर जवानी तक शरीर विकास करता है. लेकिन उम्र बढ़ने के साथ कोशिकाओं के विभाजन में गड़बड़ी होने लगती है. उनके भीतर का डीएनए क्षतिग्रस्त हो जाता है और नई कमजोर या बीमार कोशिकाएं पैदा होती हैं.
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बीमारियों का जन्म
गड़बड़ डीएनए वाली कोशिकाएं कैंसर या दूसरी बीमारियां पैदा होती हैं. हमारे रोग प्रतिरोधी तंत्र को इसका पता नहीं चल पाता है, क्योंकि वो इस विकास को प्राकृतिक मानता है. धीरे धीरे यही गड़बड़ियां प्राणघातक साबित होती हैं.
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लापरवाही से बढ़ता खतरा
आराम भरी जीवनशैली के चलते शरीर मांसपेशियां विकसित करने के बजाए जरूरत से ज्यादा वसा जमा करने लगता है. वसा ज्यादा होने पर शरीर को लगता है कि ऊर्जा का पर्याप्त भंडार मौजूद है, लिहाजा शरीर के भीतर हॉर्मोन संबंधी बदलाव आने लगते हैं और ये बीमारियों को जन्म देते हैं.
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शट डाउन
प्राकृतिक मौत शरीर के शट डाउन की प्रक्रिया है. मृत्यु से ठीक पहले कई अंग काम करना बंद कर देते हैं. आम तौर पर सांस पर इसका सबसे जल्दी असर पड़ता है. स्थिति जब नियंत्रण से बाहर होने लगती है तो दिमाग गड़बड़ाने लगता है.
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आखिरकार मौत
सांस बंद होने के कुछ देर बाद दिल काम करना बंद कर देता है. धड़कन बंद होने के करीब चार से छह मिनट बाद मस्तिष्क ऑक्सीजन के लिए छटपटाने लगता है. ऑक्सीजन के अभाव में मस्तिष्क की कोशिकाएं मरने लगती हैं. मेडिकल साइंस में इसे प्राकृतिक मृत्यु या प्वाइंट ऑफ नो रिटर्न कहते हैं.
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मृत्यु के बाद
मृत्यु के बाद हर घंटे शरीर का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस गिरने लगता है. शरीर में मौजूद खून कुछ जगहों पर जमने लगता है और बदन अकड़ जाता है.
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विघटन शुरू
त्वचा की कोशिकाएं मौत के 24 घंटे बाद तक जीवित रह सकती हैं. आंतों में मौजूद बैक्टीरिया भी जिंदा रहता है. ये शरीर को प्राकृतिक तत्वों में तोड़ने लगते हैं.
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बच नहीं, सिर्फ टाल सकते हैं
मौत को टालना संभव नहीं है. ये आनी ही है. लेकिन शरीर को स्वस्थ रखकर इसके खतरे को लंबे समय तक टाला जा सकता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक पर्याप्त पानी पीना, शारीरिक रूप से सक्रिय रहना, अच्छा खान पान और अच्छी नींद ये बेहद लाभदायक तरीके हैं.
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अदालत ने यह फैसला एक बुर्जुग पति की याचिका पर सुनाया. असल में याचिकाकर्ता की पत्नी लंबे समय से बीमार थी. 2004 में पति ने फेडरल इंस्टीट्यूट फॉर ड्रग्स एंड मेडिकल डिवाइसेज में आवेदन किया. आवेदन के जरिये वो अपनी लकवाग्रस्त और बुरी तरह बीमार पत्नी के लिए जानलेवा दवा खरीदना चाहते थे. पति ने कहा कि उनकी पत्नी खुद अपनी मर्जी से मौत को गले लगाना चाहती है, उसकी तकलीफ इतनी बढ़ चुकी हैं कि एक एक पल भारी पड़ रहा है. लेकिन ऐसी दवा खरीदने की इजाजत नहीं दी गई. फिर यह दंपत्ति स्विट्जरलैंड गया और वहां इच्छामृत्यु के कानूनी अधिकार के तहत 2005 में पत्नी ने जिंदगी को अलविदा कहा.
पत्नी के निधन के बाद वह व्यक्ति संघीय प्रशासनिक अदालत पहुंचा. लेकिन अदालत ने केस स्वीकार करने से इनकार कर दिया. अदालत ने कहा कि वह खुद पीड़ित नहीं है, लिहाजा उसकी याचिका नहीं स्वीकारी जाएगी. फिर वह शख्स मामले को यूरोपीय मानाधिकार अदालत ले गया. यूरोपीय अदालत ने फैसला उसके हक में सुनाते हुए कहा कि उसे जर्मनी में फैसला पाने का अधिकार है. इस तरह केस फिर लौटकर जर्मनी की संघीय अदालत में पहुंचा. फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में आत्महत्या के लिए दवा देने से इनकार करना गैरकानूनी है. 74 साल के उस बुजुर्ग व्यक्ति के वकील ने फैसले को उनके जैसे कई लोगों के लिए बड़ी राहत बताया है.
(दिल पिघला देते हैं शोक में डूबे जानवर).
दिल पिघला देते हैं शोक में डूबे जानवर
अपने करीबी की मौत से सदमा सिर्फ इंसान को ही नहीं लगता, जानवर भी साथी की मौत से टूट जाते हैं. उनका शोक दिल पिघला देता है.
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बच्चा बिछड़ गया
गुरिल्ला मां गाना को यकीन नहीं हुआ कि उसका बच्चा मर चुका है. कई दिन तक वह मरे हुए बच्चे को अपनी पीठ पर लेकर घूमती रही. बीच बीच में वह बच्चे को जगाने की कोशिश भी करती थी. इस दौरान उसने म्युंस्टर जू के कर्मियों को भी करीब नहीं आने दिया.
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कई दिन तक तैराना
विशालकाय व्हेल, डॉल्फिन और अन्य समुद्री स्तनधारी भी अपने करीबी के शव को कई दिन तक साथ रखते हैं. शव को डूबने से बचाने के लिए वो नीचे से अपनी पीठ का सपोर्ट देते हुए तैरते हैं. कुछ महीनों तक ऐसा करने के बाद आखिकार शव डूब जाता है.
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जाग जा, जाग जा
हाथी जबदरस्त याददाश्त वाले होते हैं, लेकिन झुंड में किसी को मौत हो जाए तो सारे हाथी शोक में डूब जाते हैं. वह काफी समय तक शव की देखभाल करते हैं, उसे जगाने की कोशिश करते हैं. जवान हाथी की मौत होने पर दूसरे झुंड के हाथी भी शोक जताने पहुंचते हैं. झुंड कुछ साल बाद भी मृतक की हड्डियों के पास पहुंचता है.
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अंतिम यात्रा
परिवार में किसी की मौत होने पर बंदर बहुत ही ज्यादा भावुक हो जाते हैं. वैज्ञानिकों के मुताबिक उनके खून में तनाव संबंधी हॉर्मोन बहुत ही ज्यादा बढ़ जाता है. साथी की अंतिम यात्रा निकालने के बाद भी वे कई दिनों तक एक दूसरे से चिपटकर सदमे से निपटते हैं.
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मेरा खेल भी खत्म
झुंड के कौव्वे की मौत होने पर बाकी साथी शव को घेर लेते हैं और कुछ समय के लिए खाना पीना छोड़ देते हैं. जोड़ा बनाकर रहने वाले पंछियों में से अगर एक की मौत हो जाए तो दूसरा परिंदा भी खाना पीना छोड़ देता है. बत्तख और गाने वाले कुछ पक्षी तो भोजन त्यागकर जान भी दे देते हैं.
करीबी की मौत होने पर मछलियां भी एक ही जगह स्थिर हो जाती हैं. एक्वेरियम में किसी मछली के मरने के बाद दूसरी मछलियों का स्ट्रेस हार्मोन बढ़ जाता है, वे कुछ दिन तक अलग व्यवहार करती हैं.
बिल्ली और भालू प्राकृतिक रूप से दोस्त नहीं होते. लेकिन बर्लिन के चिड़ियाघर में इस बिल्ली की भालू से दोस्ती हो गई. फिर जब भालू की मौत हुई तो बिल्ली कई दिन तक रोती रही. वह भालू का पिंजरा छोड़ने को तैयार ही नहीं हुई.
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अंतहीन इंतजार
पालतू कुत्ते के मरने पर जितना दुख इंसान को होता है, उससे कहीं ज्यादा दुख मालिक के मरने पर कुत्ते को होता है. मालिक की मौत के बाद कुत्ते कई दिन तक खाना नहीं खाते हैं. संभव हो तो हर दिन कब्रिस्तान जाकर कब्र के पास घंटों बैठे रहते हैं.