जब भी लिव इन की चर्चा होती है तो सबसे पहले मन में प्रीमैरिटल सेक्स की ही बात आती है जबकि यह रिश्ता इससे कहीं ज्यादा है. मुंबई जैसे बड़े शहरों के लिए यह कोई नई बात भी नहीं.
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आपसी रिश्तों के लेकर मुंबई हमेशा से प्रयोगवादी रहा है. मुंबई की महानगरीय संस्कृति में भावनाओं से ज्यादा व्यावहारिकता को प्रमुखता मिली है. स्त्री-पुरुष संबंधों में इस प्रयोग का रंग कुछ ज्यादा चटक होकर सामने आता है.
विवाह पूर्व महिला-पुरुष का एक छत के नीचे रहना यानि लिव इन रिलेशनशिप परंपरावादी भारतीयों के लिए किसी बड़े अनैतिक झटके से कम नहीं है. लेकिन भारत एक बहुआयामी संस्कृति वाला जीवंत देश है जहां परिवर्तन और प्रयोग के लिए अवसर हमेशा मौजूद रहता है. और प्रयोग और परिवर्तन का सबसे बड़ा केंद्र मुंबई है, जहां 'लिव इन पार्टनर्स' के प्रति स्वीकार्यता का भाव है.
शेयरिंगऔरकेयरिंग
जब भी 'लिव इन' की चर्चा होती है तो सबसे पहले लोगों के मन में 'प्रीमैरिटल सेक्स' की ही बात आती है, जबकि यह रिश्ता इससे कहीं ज्यादा है. मुंबई एक आपा धापी वाला शहर है जहां लोग एक दूसरे को कम समय दे पाते हैं. काम के लिए अपने परिवार से इतनी दूर आकर जीवन संघर्ष में युवाओं को एक भावनात्मक सहयोगी की तलाश रहती है, जो लिव इन पार्टनर के रूप में पूरी हो जाती है. एक भीड़ भाड़ वाले शहर में जहां किसी को किसी की परवाह नहीं है, ऐसे में एक साथी मिल जाने से दिल को सुकून मिलता है.
डिप्रेशन का शिकार बॉलीवुड की 10 हस्तियां
अवसाद यानि डिप्रेशन आज भी एक वर्जित विषय है. मानसिक रोगों को उतनी संजीदगी से नहीं लिया जाता जितना किसी शारीरिक रोग को. बॉलीवुड की कुछ हस्तियों ने इस वर्जना को तोड़ने की कोशिश की है, तो कुछ ने इसके दबाव में दम तोड़ दिया.
तस्वीर: Guru Dutt Films
दीपिका पादुकोण
सिर्फ डिप्रेशन ही नहीं, दीपिका कई वर्जनाओं को तोड़ने में लगी हैं. एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने खुल कर अपने डिप्रेशन के बारे में बात की. उन्होंने कहा, "मुझे समझ नहीं आता था कि मैं कहां जाऊं, क्या करूं. मैं बस रोती रहती थी." दीपिका के इस बयान को बहादुरी भरा बताया गया और इसने सोशल मीडिया पर डिप्रेशन के मुद्दे पर बहस छेड़ दी.
तस्वीर: STRDEL/AFP/Getty Images
अनुष्का शर्मा
दीपिका के बाद अनुष्का ने भी अपने डिप्रेशन के बारे में बात की. उन्होंने इस बारे में ट्वीट भी किए और एक इंटरव्यू के दौरान कहा, "जब आपके पेट में दर्द होता है, तो क्या आप डॉक्टर के पास नहीं जाते? इतनी आसान सी बात है." अनुष्का ने बताया कि उन्हें एंग्जायटी डिसॉर्डर है और उनका इलाज चल रहा है.
तस्वीर: AP
परवीन बाबी
2005 में परवीन बाबी को अपने अपार्टमेंट में मृत पाया गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि शायद वे 72 घंटे पहले मर चुकी थीं. मौत का कारण साफ पता नहीं चल सका लेकिन रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कई दिन से कुछ खाया नहीं था. परवीन डिप्रेशन और स्किजोफ्रीनिया की शिकार थीं. एक ऐसी बीमारी जिसमें इंसान सच्चाई की समझ खो देता है.
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सिल्क स्मिता
फिल्म डर्टी पिक्चर में विद्या बालन ने दक्षिण भारत की अभिनेत्री सिल्क स्मिता का किरदार बखूबी निभाया. फिल्म में शोहरत और निजी जीवन के बीच झूल रही सिल्क की मानसिक स्थिति को दर्शाया गया है. 1996 में उन्होंने अपने घर में पंखे से लटक कर खुदकुशी कर ली थी.
तस्वीर: ALT Entertainment/Balaji Motion Pictures
जिया खान
2013 में जिया खान की खुदकुशी की खबर से सब सकते में रह गए. महज 25 साल की उम्र में जिया ने अपने जीवन का अंत करने का फैसला ले लिया और मुंबई के अपने अपार्टमेंट में आधी रात को गले में फंदा डाल लिया. माना जाता है कि खूबसूरत मुस्कुराहट वाली जिया पर करियर का बहुत दबाव था.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo
मनीषा कोइराला
गर्भाशय के कैंसर के कारण मनीषा डिप्रेशन में चली गयीं. लेकिन परिवार और दोस्तों के साथ से उन्हें फायदा हुआ. उनका कहना है कि वे निराशावादी नहीं हैं, इसलिए डिप्रेशन से भी लड़ना जानती हैं. क्लिनिकल डिप्रेशन का असर मनीषा के रूप रंग पर भी पड़ा.
तस्वीर: Getty Images/AFP
शाहरुख खान
बॉलीवुड के बादशाह कहलाने वाले और अपनी फिल्मों से लोगों का बेइंतहा मनोरंजन करने वाले शाहरुख भी डिप्रेशन का शिकार हो सकते हैं, यह बात सुनने में अजीब लगती है. लेकिन एक इंटरव्यू में शाहरुख ने माना कि कंधे की सर्जरी के बाद वे कुछ समय के लिए डिप्रेशन में थे.
तस्वीर: Johannes Eisele/AFP/Getty Images
अमिताभ बच्चन
फिल्मों में कठोर किरदार निभाने वाले अमिताभ भी इससे गुजर चुके हैं. 90 के दशक में उन्होंने बतौर निर्माता अपनी कंपनी शुरू की. लेकिन एक के बाद एक फिल्मों के फ्लॉप होने के कारण उन्हें भारी नुकसान हुआ और कंपनी दिवालिया हो गयी. इस कारण अमिताभ डिप्रेशन का शिकार हुए. इस दौरान वे बीमारियों से भी गुजर रहे थे, जिनसे वे शारीरिक और मानसिक तौर पर काफी कमजोर हो गए थे.
तस्वीर: STRDEL/AFP/Getty Images
धर्मेंद्र
शोले के जय के साथ वीरू भी इस उदास सफर से गुजर चुका है, वह भी 15 साल तक. धर्मेंद्र ने माना है कि डिप्रेशन के कारण वह शराब पीने लगे और धीरे धीरे उन्हें उसकी इतनी लत लग गयी कि उनके निजी जीवन पर भी इसका असर पड़ने लगा. लेकिन पंजाब के शेर ने इस बीमारी से पीछा छुड़ा लिया.
तस्वीर: Mskadu
गुरु दत्त
संजीदा फिल्में बनाने वाले गुरु दत्त को 10 अक्टूबर 1964 को अपने किराए के मकान में मृत पाया गया. वे उदास थे, पूरी शाम शराब के साथ गुजार चुके थे और नींद की गोलियों का भी सहारा ले रहे थे. दोनों को एक साथ लेना जहर के बराबर है. ऐसा उन्होंने जानबूझ कर किया या गलती से हुआ आज तक कोई नहीं जानता.
तस्वीर: Guru Dutt Films
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लिव इन उन लोगों को आकर्षित करता है, जो वैवाहिक जीवन तो पसंद करते हैं लेकिन उससे जुड़ी जिम्मेदारियों से मुक्त रहना चाहते हैं. उत्तरदायित्व के बिना 'शेयरिंग और केयरिंग' के लिए युवा वर्ग के बीच लिव इन लोकप्रिय हो रहा है. अभिनेता अर्जुन कपूर की मानें, तो लिव इन विवाह पूर्व प्रशिक्षण का काम करता है. लिव इन में रहने वाले ज्यादातर जोड़े इसे शादी के पहले एक-दूसरे को समझने का मौका मानते हैं. यहां के युवाओं में लिव इन एक प्रकार से विवाह के विकल्प या विवाह पूर्व प्रशिक्षण संस्था के रूप में ज्यादा लोकप्रिय हो रहा है.
साथ ही मुंबई में महंगाई भी बहुत है. इस शहर का रुख करने वाले युवाओं के लिए आशियाने की तलाश बहुत मुश्किल और महंगा सौदा साबित होता है. फ्लैट्स के महंगे किराए अकेले के बस की बात नहीं होते. ऐसे में कोई पार्टनर मिल जाने पर उनका आर्थिक बोझ हल्का हो जाता है. पार्टनर के साथ रहना आर्थिक प्रबंधन के लिए मुफीद साबित होता है. विपरीत सेक्स के पार्टनर के साथ रहना युवाओं को ज्यादा लुभाता भी है.
बॉलीवुडकाप्रभाव
लिव इन को लेकर मुंबई की स्थिति देश के दूसरे शहरों से थोड़ी बेहतर जरूर है लेकिन शादी किए बिना रहने वाले जोड़ों की संख्या यहां भी बहुत ज्यादा नहीं है. केवल मनोरंजन उद्योग और कॉर्परेट जगत से जुड़े एक वर्ग तक ही यह सीमित है. बॉलीवुड की फिल्में और कलाकार अलग अलग कारणों से लिव इन के समर्थक रहे हैं. इसका प्रभाव मुंबई की सोचने की प्रक्रिया पर भी पड़ा है. इन जोड़ो के प्रति मुंबई का समाज अनुदार या पक्षपाती नहीं है. लिव इन रिलेशनशिप के विरोधी भी इसे पाप या अनैतिक नहीं मानते.
कहीं कोई पछतावा तो नहीं?
जिंदगी के हर पल को हम सोच समझ कर नहीं जीते लेकिन जब जिंदगी के आखिरी पल आते हैं, तब एक फिल्म की तरह वह हमारी आंखों के सामने चलने लगती है और हम सोचते हैं कि काश..
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काश लोगों की ना सोची होती
"लोग क्या कहेंगे", इसकी परवाह करना छोड़ दीजिए. यह जीवन की विडंबना ही है कि आप अपने फैसले लेते हुए लोगों के बारे में सोचने पर मजबूर हो जाते हैं. समाज में रहना है, इसलिए समाज के तौर तरीकों से चलना होगा. लेकिन इसका मतलब यह हरगिज नहीं कि लोगों को आप अपने से भी ज्यादा एहमियत देने लगें.
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काश वो नौकरी की होती
बहुत से लोग अपनी मनचाही नौकरी के लिए भी इसलिए अर्जी नहीं डालते क्योंकि उन्हें यह डर होता है कि वे उसके काबिल ही नहीं हैं. विफलता का डर अक्सर बाद में चलकर पछतावे में बदल जाता है. जिंदगी बीत जाने के बाद नौकरी पर अफसोस करने से बेहतर है कि कोशिश करें और हार का सामना करें. और फिर क्या पता, शायद आप जीत ही जाएं.
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काश अपनी जिंदगी जी होती
माता पिता अपने बच्चों के जरिये अपने अधूरे ख्वाब पूरा करने की कोशिश करते हैं और बच्चे अधिकतर खुद को एक अच्छा बेटा, एक अच्छी बेटी साबित करने के चक्कर में अपने सपनों को दबा देते हैं. लेकिन जिंदगी में एक वक्त ऐसा आता है जब आप यह सोचने लगते हैं कि आखिर मैं किसकी जिंदगी जी रहा हूं. तो क्यों ना अपने दिल की आवाज सुनें.
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काश इजहार किया होता
बहुत से लोग बुढ़ापे में अपनी जवानी के किस्से सुनाते हैं. दादा नाना बताते हैं कि कैसे स्कूल या कॉलेज में किसी लड़की पर दिल आ गया था पर कभी इजहार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए. ये पुरानी यादें मीठी भी होती हैं और कई बार बहुत सारा दर्द भी देती हैं. तो बाद में पछताने की जगह क्यों ना वक्त रहते ही पहल की जाए.
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काश बच्चों को वक्त दिया होता
बच्चों के साथ रहना उनकी परवरिश के लिए बेहद जरूरी होता है. काम की मसरूफियत के कारण हो सकता है कि आप उन्हें जरूरत से कम वक्त दे रहे हों. बच्चों को बस कुछ दिनों की छुट्टियों पर ले जाना काफी नहीं. हर दिन उनके लिए समय निकालिए, उनके साथ कुछ वक्त बिताइए ताकि बाद में आपको इसका अफसोस ना हो.
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काश माफी मांग ली होती
ऐसे बहुत से रिश्ते होते हैं जो किसी छोटी सी बात से बिगड़ जाते हैं और हमारा अहम हमें माफी मांग कर उसे सुधारने ही नहीं देता. वक्त के साथ आपको लगता है कि आप उन रिश्तों को भूल गए हैं और उन पलों से छुटकारा पा चुके हैं. लेकिन जब आप अपने जीवन के आखिरी पड़ाव पर पहुंचते हैं, तो एहसास होता है कि काश ऐसा ना किया होता.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
काश सेहत पर ध्यान दिया होता
जब तक तबियत खराब नहीं होती, तब तक अधिकतर लोग उस पर ध्यान नहीं देते. बीमार पड़ने पर हम कहने लगते हैं कि आगे से जरूर ध्यान रखेंगे. ऐसी नौबत ही ना आने दें. अपने खाने पीने की आदतों पर ध्यान दें, ठीक से सोएं, थोड़ा बहुत नियमित व्यायाम करें और सेहत से जुड़े पछतावों से दूर रहें.
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काश हम साथ होते
अधिकतर लोगों को अपने ब्रेक अप का पछतावा ताउम्र रहता है. मरते दम तक मन में यह बात चलती रहती है कि काश हम साथ होते. अपनी जिंदगी को बिना पछतवों के जिएं. "काश" में नहीं, आज में जिएं. जो गुजर गया, उसे हमेशा के लिए गुजर जाने दें, ताकि अपनी आखिरी सांसें सुकून से ले सकें.
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लेकिन एक दूसरा पहलु यह भी है कि लिव इन पार्टनर्स के बीच समझदारी और पार्टनर के प्रति ईमानदारी का आभाव होते ही यह रिश्ता दर्दनाक और दुख का कारण भी बन जाता है. भारतीय अभिभावक अपने बच्चों को लिव इन रिलेशनशिप में देखना पसंद नहीं करते. भारत के संदर्भ में मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि जो जोड़े लिव इन में रहते हैं उनके बीच अनबन या लड़ाई होने पर सुलह समझौता कराने वाला कोई अपना नहीं होता.
इससे उनके अवसाद या तनाव में घिरने की आशंका ज्यादा रहती है. इसके अलावा भारतीय संस्कृति में पले बढ़े जोड़े पति-पत्नी की ही तरह एक दूसरे से समर्पण की मांग करने लगते हैं. समर्पण में दरार या ब्रेक अप होने पर अवसाद और तनाव घर कर जाता है. खासतौर पर महिलाओं पर इसका ज्यादा असर होता है. लिव इन संबंधों से उत्पन्न तनाव जानलेवा भी साबित हो सकता है. टीवी अभिनेत्री प्रत्यूषा बनर्जी की मौत, इस रिश्ते के दुखद और पीड़ादायी अंत की कहानी ही तो कहती है.
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