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प्रेम और संगीत की अभिव्यक्ति है लव परेड

२४ जुलाई २०१०

दुनिया के सबसे बड़े टेक्नो डांस मेले के तौर पर जानी गई लव परेड 1989 में शांति, सहनशीलता और आपसी समझ के लिए प्रदर्शन के तौर पर शुरू हुई. बाद के सालों में बेतहाशा लोकप्रिय होती गई. दुनिया भर के लोग इसमें शामिल होते हैं.

दुनियाभर का रंग बिरंगा मेलातस्वीर: ap

हालांकि इस साल की लव परेड में जर्मनी के ड्यूसबर्ग शहर में हुई भगदड़ की वजह से मातम छा गया.

लव परेड की शुरुआत बर्लिन में हुई थी और 1989 से लेकर 2006 तक यह लगभग हर साल वहां आयोजित की जाती रही. बाद में 2007 में यह जर्मनी के रुअर क्षेत्र में आयोजित होने लगी. बर्लिन में एक ऐसा भी समय था, जब 1999 में इस परेड में 15 लाख लोगों ने हिस्सा लिया था.

अटपटी पोशाकें, मस्ती में भरे नर्तक और अधनंगी ड्रेसों में लहराती युवतियों के अलावा इस परेड में समलैंगिक जोड़े और संगीत के रसिया शामिल होते आए हैं. 1990 से पहले, जब पश्चिम जर्मनी की राजधानी बर्लिन नहीं, बल्कि बॉन में थी, उस वक्त इसे बर्लिन के सबसे भव्य आयोजन के तौर पर देखा जाता था. इसमें हिस्सा लेने के लिए कई देशों के लोग आया करते थे.

तस्वीर: picture-alliance/ dpa

बर्लिन की दीवार गिर जाने के बाद वहां सैलानियों की संख्या कम होने लगी. लेकिन लव परेड की वजह से लोग एक बार बर्लिन जरूर जाना चाहते थे. इसे युवाओं के लिए बेहद दिलचस्प परेड माना जाता है. लगभग 10 लाख लोगों का तांता छह किलोमीटर लंबी इस परेड में शामिल होने के लिए आया करता था, जो सुर और सुरूर में झूमता गाता आगे बढ़ता. न किसी को नियमों की परवाह हुआ करती और न ही कायदे कानूनों की.

स्थानीय नेता भी इस परेड को लेकर बेहद उत्साहित हुआ करते क्योंकि यह आमदनी का एक बड़ा जरिया था, जिसमें शहर के सभी होटल भर जाया करते. रेस्त्रां और पब में पांव रखने की जगह न होती और सालाना लगभग साढ़े छह करोड़ डॉलर का राजस्व प्राप्त होता.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

इस परेड में किशोर से लेकर 80 साल के बुजुर्गों को बांहों में बांहें डाल कर घूमते देखा जा सकता है और संगीत में पूरा समां इस कदर डूब जाता है कि किसी को किसी की परवाह भी नहीं रहती. ड्यूसबर्ग में शायद यह भी एक वजह रही कि परेड के एक हिस्से को यह पता ही नहीं चला कि उन्हीं के बीच कहीं इतना बड़ा हादसा हो गया है और दूसरे हिस्से में नाच गाना चलता रहा.

लव परेड की शुरुआत 1989 में 150 लोगों की मामूली भीड़ से शुरू हुई थी, जो 1996 में बढ़ कर साढ़े सात लाख लोगों का हुजूम बन गया और इसके अगले साल लगभग 10 लाख लोग इसमें हिस्सा लेने पहुंचे. लेकिन ड्रग्स और कोकीन आदि के इस्तेमाल की वजह से यह परेड कई बार बदनाम भी हुई.

परेड की शुरुआत बर्लिन के कुरफुअरस्ट़ैंडम शॉपिंग इलाके में हुई. लेकिन यहां के दुकानदारों का आरोप था कि परेड की वजह से तोड़ फोड़ होती है. इसके बाद 1995 में इसे 17 जून स्ट्रीट में शिफ्ट कर दिया गया. यह आठ लेन की गली जू से लेकर ब्रैंडनबुर्गर गेट तक पांच किलोमीटर के दायरे में फैली थी. किसी जमाने में ब्रैंडनबुर्गर गेट के पास ही बर्लिन की दीवार हुआ करती थी.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

आम तौर पर दोपहर में शुरू होकर यह परेड आधी रात तक चलती थी और उसके बाद लोग एक जगह जमा होकर मस्ती करते थे. बर्लिन में पर्यावरणविदों ने कई बार कोशिश की कि जिन रास्तों से होकर यह परेड गुजरती थी, वहां रास्तों पर ऐसे इंतजाम किए जाएं कि लोग सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान न पहुंचाएं. लेकिन उन्हें इसमें बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिली.

रिपोर्टः रॉयटर्स/ए जमाल

संपादनः वी कुमार

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