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प्रोजेरियाः बचपन में बुढ़ापा

तनुश्री सचदेव (संपादनः ए कुमार)८ दिसम्बर २००९

हाल में आई फ़िल्म "पा" के कारण प्रोजेरिया नाम की विरली बीमारी ख़ासी चर्चा में है. ऐसी बीमारी जिसमें बचपन में ही बुढ़ापा आने लगता है. दुनिया में बहुत कम लोगों को यह रोग है. तो क्या इसीलिए आजतक इसका इलाज नहीं ढूंढा जा सका.

बच्चे या बूढ़े?तस्वीर: DPA/Montage DW

अमिताभ बच्चन ने "पा" में ओरो नाम के एक एसे बच्चे का किरदार निभाया है जिसे प्रोजेरिया नाम की एक जेनेटिक बीमारी है, जिसके कारण 12-13 साल की उम्र में उसे बुढ़ापा घेर लेता है. प्रोजेरिया नाम ग्रीक भाषा से लिया गया है. प्रो यानी पहले और जेरास मतलब बुढ़ापा, यानी वक़्त से पहले बुढ़ापा. 1886 में डॉ. जोनाथन हचिनसन और 1897 में डॉ. हटिंग्स गिलफ़ोर्ड ने इस बीमारी की ख़ोज की थी. इसी कारण इसे हचिनसन-गिलफ़ोर्ड प्रोजेरिया सिंड्रोम के नाम से भी जाना जाता है.

अब तक नहीं मिला है इलाजतस्वीर: DW

प्रोजेरिया एक आनुवांशिक बीमारी है. लैमिन-ए जीन में गड़बड़ी होने की वजह से यह बीमारी होती है. यह बीमारी अचानक ही हो जाती है और 100 में से एक मामले में ही यह बीमारी अगली पीढ़ी तक जाती है. ये एक विरली बीमारी रोग है और इसीलिए करीब 80 लाख में से एक व्यक्ति में पाई जाती है.

आर्टेमिस अस्पताल के डॉ.छाबड़ा का कहना है कि प्रोजेरिया एक जन्मजात बीमारी और इसमें ख़ास ध्यान देने वाली बात यह है कि जैसे बुढ़ापे में ट्यूमर होता है, इसमें वह नहीं होता है. ज्यादातर बदलाव त्वचा, धमनी और मांसपेशियों में ही रहते हैं. आम तौर पर दो साल की उम्र तक ऐसे लक्षण दिखने लग जाते हैं जिनसे पता लगाया जा सकता है कि बच्चे की वृद्धि नहीं हो रही है. बाल झड़ जाते हैं और दांत ख़राब होने लगते हैं. अभी तक इसका कोई इलाज नहीं आया है. इस बारे में अभी तक प्रयोग के आधार पर जो भी कोशिश हो रही हैं उनका मक़सद इनमें कोलेस्ट्रोल को कम करना है ताकि उनके जीवन को लंबा किया जा सके.

दुनिया भर के वैज्ञानिक और बाल रोग विशेषज्ञ अत्यंत दुर्लभ बीमारी प्रोजेरिया का तोड़ ढूंढ़ने में लगे हैं, लेकिन दुर्भाग्य से उन्हें अब तक सफलता नहीं मिल पाई है. आम लोगों को ऐसी दुर्लभ बीमारियों के बारे में कम जानकारी होती है लेकिन फिल्म पा ने लोगों में इस बीमारी के बारे में जानने की लालसा को बढ़ा दिया है. यह बीमारी जीन्स और कोशिकाओं में उत्परिवर्तन की स्थिति के चलते होती है. इस बीमारी से ग्रसित अधिकतर बच्चे 13 साल की उम्र तक ही दम तोड़ देते हैं, जबकि कुछ बच्चे 20-21 साल तक जीते हैं. बच्चों के सिर के बाल उड़ जाते हैं, खोपड़ी का आकार बड़ा हो जाता है और नसें उभर कर त्वचा पर साफ दिखाई देती हैं, उसके शरीर की वृद्धि भी रुक जाती है. वर्तमान में विश्व में प्रोजेरिया के करीब 35 से 45 मामले हैं. भारत में इस बीमारी पर काफ़ी समय से शोध चल रहा है.

ज़्यादा नहीं जानती दुनिया प्रोजेरिया जैसी बीमारियों के बारे मेंतस्वीर: AP

प्रोजेरिया के बारे में डॉ. बलबीर लालिया बताते हैं, "प्रोजेरिया में वे सभी लक्षण दिखते हैं जो आपको बुढापे की तरफ़ ले जाते हैं. इससे कभी यह भी पता लगाया जा सकता है कि आदमी की उम्र क्यों बढ़ती है." प्रोजेरिन नाम के एक प्रोटीन से प्रोजेरिया की बीमारी होती है. आमतौर पर किसी परिवार के एक सदस्य को यह बीमारी होने के बाद बाकी इससे बचे रहते हैं.

लेकिन कोलकाता के एक परिवार में पांच सदस्य इससे पीडि़त रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इसकी वजह माता-पिता के जीन्स में इस बीमारी का मौजूद होना बताते हैं. इनके पांचों बच्चों में से अब 23 साल के इकरामुल ख़ान और 11 साल के अली हसन ही जीवित हैं. प्रोजेरिया से पीड़ित इन बच्चों की तीन बहनें 17 साल की गुड़िया की, 24 साल की रेहाना और 13 साल की रोबिना की भी प्रोजेरिया के कारण मृत्यु हो चुकी है. अब इनके माता-पिता को इन बच्चों को भी खो देने का डर दिन रात सता रहा है.

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