प्लास्टिक को रोकने के लिए किया हजारों किलोमीटर का सफर
६ जुलाई २०१८
तपती गर्मी में एक युवती गुजरात से दिल्ली तक 1100 किलोमीटर पैदल चली. वह लोगों को बताना चाहती थी कि प्लास्टिक पर्यावरण के लिए नुकसानदेह है. मेहनत रंग लाई और अब कई लोगों ने प्लास्टिक से तौबा करने का वादा किया है.
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32 साल की राजेश्वरी सिंह देश को प्लास्टिक प्रदूषण से बचाना चाहती हैं. देश में प्लास्टिक के अंबार लग चुके हैं और चूंकि यह जमीन में घुल नहीं सकता, इसलिए प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करना जरूरी है. वह इसी संदेश को लेकर 22 अप्रैल को वडोदरा से दिल्ली के लिए पैदल चलीं और रास्तेभर लोगों को जागरूक करती रहीं.
4 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर संयुक्त राष्ट्र के दिल्ली ऑफिस पहुंचीं और कहा, ''मेरी यात्रा का मकसद जमीन से जुड़े लोगों को जागरूक करना है क्योंकि प्लास्टिक अब शहर और गांव दोनों जगह देखा जा सकता है.'' टी-शर्ट पर ''जागरूकता के लिए चलें'' और ''मेरा कचरा, मेरी जिम्मेदारी'' जैसे स्लोगन से सिंह लोगों का ध्यान आकर्षित करती हैं.
प्लास्टिक बनाम नेचुरल फाइबर
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भारत में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की खपत (11 किलोग्राम) पूरी दुनिया के मुकाबले (28 किलोग्राम) कम है, लेकिन यहां 15 हजार टन प्लास्टिक हर दिन इस्तेमाल में लाया जाता है. सरकार का कहना है कि रोजाना 9 हजार टन प्लास्टिक रिसाइकल किया जाता है, हालांकि नागरिक समाज इससे इत्तेफाक नहीं रखता. प्लास्टिक कचरे का बड़ा हिस्सा रिसाइकलिंग के बजाए कूड़े के ढेर में फेंक दिया जाता है. अपनी यात्रा के दौरान सिंह को नेशनल हाइवे के नजदीक कूड़े के कई ढेर दिखाई पड़े. वहां से गुजरने के लिए उन्हें अपना मुंह और नाक कसकर बंद करना पड़ा.
12 साल पहले कूड़ा बीनने वालों को पढ़ाने का काम करने वाली सिंह को जब प्लास्टिक के खतरे के बारे में मालूम चला तो उन्होंने ठान लिया कि वह इसके लिए लोगों को जागरूक करेंगी. इस अभियान में उन्हें सरकारी अफसर, ग्रामीण और सामाजिक कार्यकर्ताओं का भरपूर साथ मिला और उन्होंने कदम की सराहना की.
छोटी लड़कियों के ग्रुप ने लोगों को गुलाब का फूल देकर प्लास्टिक प्रदूषण के बारे में बताया और इसके इस्तेमाल को कम करने की अपील की. इसका असर सरिता देवी पर हुआ और उन्होंने प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करने की कसम खाई. वह कहती हैं, ''प्लास्टिक हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है लेकिन अगर हम कोशिश करें तो इस पर निर्भरता कम की जा सकती है.''
अपनी यात्रा में सिंह ने लोगों को प्लास्टिक का विकल्प बताया और एक्टिविस्टों के साथ कपड़े के बैग बांटे. बदले में उन्हें गांव की बुजुर्ग महिलाओं ने नीम की दातून दी जो प्लास्टिक के टूथब्रश का शानदार विकल्प है.
सिंह का अगला लक्ष्य कश्मीर से कन्याकुमारी तक की 2,856 किलोमीटर की लंबी पदयात्रा करना है और लोगों को प्लास्टिक के खतरे और विकल्प के बारे में जागरूक करना है. वह कहती हैं, ''प्लास्टिक के खिलाफ मेरी लड़ाई बस शुरू हुई है. मुझे अभी और आगे जाना है.''
जसविंदर सहगल/वीसी
प्लास्टिक की जगह ये चीजें करें इस्तेमाल
प्लास्टिक की जगह ये चीजें करें इस्तेमाल
जब प्लास्टिक लोगों की जिंदगियों का हिस्सा बना, तो सिर्फ उसके फायदों पर ही सबका ध्यान गया, इस पर नहीं कि यह कमाल का आविष्कार भविष्य के लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता है. अब प्लास्टिक को अलविदा कहने का वक्त आ गया है.
प्लास्टिक को अपनी जिंदगी से निकालने में सबसे अहम कदम तो यही है कि इसकी दीवानगी को छोड़ा जाए. प्लास्टिक की जगह कपड़े के थैले का इस्तेमाल किया जा सकता है. इन जनाब की तरह प्लास्टिक की स्ट्रॉ को मुंह में फंसाने की शर्त लगाने की जगह कुछ बेहतर भी सोचा जा सकता है. मैर्को हॉर्ट ने 259 स्ट्रॉ को मुंह में रखने का रिकॉर्ड बनाया था.
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खा जाओ
यूरोपीय संघ सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक लगाने पर विचार कर रहा है. ऐसे में प्लास्टिक की स्ट्रॉ, कप, चम्मच इत्यादि बाजार से गायब हो जाएंगे. इनके विकल्प पहले ही खोजे जा चुके हैं. जैसे कि जर्मनी की कंपनी वाइजफूड ने ऐसे स्ट्रॉ बनाए हैं जिन्हें इस्तेमाल करने के बाद खाया जा सकता है. ये सेब का रस निकालने के बाद बच गए गूदे से तैयार की जाती हैं.
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आलू वाला चम्मच
एक दिन में कुल कितने प्लास्टिक के चम्मच और कांटे इस्तेमाल होते हैं, इसके कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं लेकिन इतना जरूर है कि दुनिया भर में कूड़ेदान इनसे भरे रहते हैं. भारत की कंपनी बेकरीज ने ज्वार से छुरी-चम्मच बनाए हैं. स्ट्रॉ की तरह इन्हें भी आप खा सकते हैं. ऐसा ही कुछ अमेरिकी कंपनी स्पड वेयर्स ने भी किया है. इनके चम्मच आलू के स्टार्च से बने हैं.
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चोकर वाली प्लेट
जिस थाली में खाएं, उसी को खा भी जाएं! पोलैंड की कंपनी बायोट्रेम ने चोकर से प्लेटें तैयार की हैं. अगर आपका इन्हें खाने का मन ना भी हो, तो कोई बात नहीं. इन प्लेटों को डिकंपोज होने में महज तीस दिन का वक्त लगता है. खाने की दूसरी चीजों की तरह ये भी नष्ट हो जाती हैं. और इन प्लेटों का ना सही तो पत्तल का इस्तेमाल तो कर ही सकते हैं.
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कप और ग्लास
अकेले यूरोप में हर साल 500 अरब प्लास्टिक के कप और ग्लास का इस्तेमाल किया जाता है. नए कानून के आने के बाद इन सब पर रोक लग जाएगी. इनके बदले कागज या गत्ते के बने ग्लास का इस्तेमाल किया जा सकता है. जर्मनी की एक कंपनी घास के इस्तेमाल से भी इन्हें बना रही है. तो वहीं बांस से भी ऑर्गेनिक ग्लास बनाए जा रहे हैं.
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घोल कर पी जाओ
इंडोनेशिया की एक कंपनी अवनी ने ऐसे थैले तैयार किए हैं जो देखने में बिलकुल प्लास्टिक की पन्नियों जैसे ही नजर आते हैं. लेकिन दरअसल ये कॉर्नस्टार्च से बने हैं. इस्तेमाल के बाद अगर इन्हें इधर उधर कहीं फेंक भी दिया जाए तो भी कोई बात नहीं क्योंकि ये पानी में घुल जाते हैं. कंपनी का दावा है कि इन्हें घोल कर पिया भी जा सकता है.
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अपना अपना ग्लास
भाग दौड़ की दुनिया में बैठ कर चाय कॉफी पीने की फुरसत सब लोगों के पास नहीं है. ऐसे में रास्ते में किसी कैफे से कॉफी का ग्लास उठाया, जब खत्म हुई तो कहीं फेंक दिया. इसे रोका जाए, इसके लिए बर्लिन में ऐसा प्रोजेक्ट चलाया जा रह है जिसके तहत लोग एक कैफे से ग्लास लें और जब चाहें अपनी सहूलियत के अनुसार किसी दूसरे कैफे में उसे लौटा दें.
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क्या जरूरत है?
ये छोटे से ईयर बड समुद्र में पहुंच कर जीवों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं. समुद्री जीव इसे खाना समझ कर खा जाते हैं. यूरोपीय संघ इन पर भी रोक लगाने के बारे में सोच रहा है. इन्हें बांस या कागज से बनाने पर भी विचार चल रहा है. लेकिन पर्यावरणविद पूछते हैं कि इनकी जरूरत ही क्या है. लोग नहाने के बाद अपना तौलिया भी तो इस्तेमाल कर सकते हैं.
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