संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट कहती है कि सरकारें प्लास्टिक पर बैन तो लगा देती हैं, लेकिन उसके अमल पर ठीक से ध्यान नहीं दिया जाता, इसलिए बैन के बावजूद कुछ नहीं बदलता.
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विश्व पर्यावरण दिवस पर जारी संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि मोरक्को, रवांडा और चीन के कुछ हिस्सों में प्लास्टिक की थैलियों के इस्तेमाल को सीमित करने के लिए बने नियमों का काफी फायदा हुआ है, जबकि बाकी जगहों पर कुछ खास नहीं बदला है.
रिपोर्ट के मुताबिक भारत की राजधानी नई दिल्ली में डिस्पोजेबल प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक लगाई गई थी, लेकिन इसका बहुत ही कम असर देखने को मिला क्योंकि उसे "ठीक से लागू नहीं किया गया". पिछले दस साल के दौरान दिल्ली में कई बार पॉलिथीनों का इस्तेमाल रोकने की कोशिश की गई है. हाल में पॉलिथीन के इस्तेमाल पर भारी जुर्माना लगाने का एलान भी किया गया. बावजूद इसके आप दिल्ली में हर जगह पॉलिथीन इस्तेमाल होते देख सकते हैं.
आप कुछ भी खरीदें, दुकानदार आपको पॉलिथीन में वह सामान थमा देता है. सड़कों पर भी प्लास्टिक कचरा बिखरा दिखता है. हालांकि भारत में ही सिक्किम और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में पॉलिथीन बैन के बेहतर नतीजे देखने को मिले हैं.
प्लास्टिक नहीं, ये इस्तेमाल करें
प्लास्टिक की जगह ये चीजें करें इस्तेमाल
जब प्लास्टिक लोगों की जिंदगियों का हिस्सा बना, तो सिर्फ उसके फायदों पर ही सबका ध्यान गया, इस पर नहीं कि यह कमाल का आविष्कार भविष्य के लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता है. अब प्लास्टिक को अलविदा कहने का वक्त आ गया है.
प्लास्टिक को अपनी जिंदगी से निकालने में सबसे अहम कदम तो यही है कि इसकी दीवानगी को छोड़ा जाए. प्लास्टिक की जगह कपड़े के थैले का इस्तेमाल किया जा सकता है. इन जनाब की तरह प्लास्टिक की स्ट्रॉ को मुंह में फंसाने की शर्त लगाने की जगह कुछ बेहतर भी सोचा जा सकता है. मैर्को हॉर्ट ने 259 स्ट्रॉ को मुंह में रखने का रिकॉर्ड बनाया था.
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खा जाओ
यूरोपीय संघ सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक लगाने पर विचार कर रहा है. ऐसे में प्लास्टिक की स्ट्रॉ, कप, चम्मच इत्यादि बाजार से गायब हो जाएंगे. इनके विकल्प पहले ही खोजे जा चुके हैं. जैसे कि जर्मनी की कंपनी वाइजफूड ने ऐसे स्ट्रॉ बनाए हैं जिन्हें इस्तेमाल करने के बाद खाया जा सकता है. ये सेब का रस निकालने के बाद बच गए गूदे से तैयार की जाती हैं.
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आलू वाला चम्मच
एक दिन में कुल कितने प्लास्टिक के चम्मच और कांटे इस्तेमाल होते हैं, इसके कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं लेकिन इतना जरूर है कि दुनिया भर में कूड़ेदान इनसे भरे रहते हैं. भारत की कंपनी बेकरीज ने ज्वार से छुरी-चम्मच बनाए हैं. स्ट्रॉ की तरह इन्हें भी आप खा सकते हैं. ऐसा ही कुछ अमेरिकी कंपनी स्पड वेयर्स ने भी किया है. इनके चम्मच आलू के स्टार्च से बने हैं.
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चोकर वाली प्लेट
जिस थाली में खाएं, उसी को खा भी जाएं! पोलैंड की कंपनी बायोट्रेम ने चोकर से प्लेटें तैयार की हैं. अगर आपका इन्हें खाने का मन ना भी हो, तो कोई बात नहीं. इन प्लेटों को डिकंपोज होने में महज तीस दिन का वक्त लगता है. खाने की दूसरी चीजों की तरह ये भी नष्ट हो जाती हैं. और इन प्लेटों का ना सही तो पत्तल का इस्तेमाल तो कर ही सकते हैं.
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कप और ग्लास
अकेले यूरोप में हर साल 500 अरब प्लास्टिक के कप और ग्लास का इस्तेमाल किया जाता है. नए कानून के आने के बाद इन सब पर रोक लग जाएगी. इनके बदले कागज या गत्ते के बने ग्लास का इस्तेमाल किया जा सकता है. जर्मनी की एक कंपनी घास के इस्तेमाल से भी इन्हें बना रही है. तो वहीं बांस से भी ऑर्गेनिक ग्लास बनाए जा रहे हैं.
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घोल कर पी जाओ
इंडोनेशिया की एक कंपनी अवनी ने ऐसे थैले तैयार किए हैं जो देखने में बिलकुल प्लास्टिक की पन्नियों जैसे ही नजर आते हैं. लेकिन दरअसल ये कॉर्नस्टार्च से बने हैं. इस्तेमाल के बाद अगर इन्हें इधर उधर कहीं फेंक भी दिया जाए तो भी कोई बात नहीं क्योंकि ये पानी में घुल जाते हैं. कंपनी का दावा है कि इन्हें घोल कर पिया भी जा सकता है.
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अपना अपना ग्लास
भाग दौड़ की दुनिया में बैठ कर चाय कॉफी पीने की फुरसत सब लोगों के पास नहीं है. ऐसे में रास्ते में किसी कैफे से कॉफी का ग्लास उठाया, जब खत्म हुई तो कहीं फेंक दिया. इसे रोका जाए, इसके लिए बर्लिन में ऐसा प्रोजेक्ट चलाया जा रह है जिसके तहत लोग एक कैफे से ग्लास लें और जब चाहें अपनी सहूलियत के अनुसार किसी दूसरे कैफे में उसे लौटा दें.
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क्या जरूरत है?
ये छोटे से ईयर बड समुद्र में पहुंच कर जीवों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं. समुद्री जीव इसे खाना समझ कर खा जाते हैं. यूरोपीय संघ इन पर भी रोक लगाने के बारे में सोच रहा है. इन्हें बांस या कागज से बनाने पर भी विचार चल रहा है. लेकिन पर्यावरणविद पूछते हैं कि इनकी जरूरत ही क्या है. लोग नहाने के बाद अपना तौलिया भी तो इस्तेमाल कर सकते हैं.
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संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण प्रमुख एरिक जोलहाइम कहते हैं, "प्लास्टिक से होने वाला प्रदूषण हर जगह एक बड़ी समस्या है." उन्होंने पर्यावरण संरक्षण पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान केंद्रित करने के लिए भारत की सराहना की.
उनका कहना है कि भारत में यात्रा करते हुए उन्होंने कुछ बहुत ही "सुंदर जगहें देखी, जो प्लास्टिक प्रदूषण के कारण बर्बाद हो रही हैं". वह कहते हैं, "तो समस्या बड़ी है लेकिन बदलाव करने के लिए क्षमता भी बड़ी है."
संयुक्त राष्ट्र ने प्लास्टिक पर बैन को प्रभावी बनाने के लिए कई सिफारिशें भी पेश की हैं, जिनमें उद्योगों की तरफ से सहयोग को प्रोत्साहित करने से लेकर उन्हें कुछ इंसेंटिव देना भी शामिल है. रिपोर्ट कहती है कि दुनिया भर में हर साल 5 ट्रिलियन प्लास्टिक बैग इस्तेमाल होने का अनुमान है.
सूखे की आशंका वाले साइप्रस में वहां के राष्ट्रपति ने कहा है कि वह चाहते हैं कि उनका देश जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भूमध्यसागर और मध्य पूर्व के देशों के प्रयासों में समन्वयक की भूमिका निभाए. राष्ट्रपति निकोस अनासतासियादेस ने साइप्रस के अधिकारियों से कहा है कि दुनिया के इस हिस्से में साइप्रस को बड़ी भूमिका अदा करनी चाहिए जहां जलवायु परिवर्तन से ज्यादा खतरा है.
एके/ओएसजे (एपी)
देखिए प्लास्टिक के नोट
इन देशों में चलते हैं प्लास्टिक के नोट
दुनिया में इस समय कुल 23 देशों में प्लास्टिक के नोट चलन में हैं. लेकिन इनमें से छह देश ऐसे हैं जिन्होंने अपने सारे नोटों को प्लास्टिक के नोटों में तब्दील कर दिया है. चलिए डालते हैं इन्हीं पर एक नजर.
तस्वीर: picture-alliance/empics/D. Martinez
ऑस्ट्रेलिया
दुनिया में ऑस्ट्रेलिया पहला देश है जिसने 1988 में प्लास्टिक के नोटों की शुरुआत की. साथ ही वह दुनिया का अकेला देश है जहां पॉलिमर नोटों का उत्पादन होता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Reserve Bank of Australia
न्यूजीलैंड
न्यूजीलैंड में 1999 में कागज के सारे नोटों की जगह पोलिमर नोटों ने ले ली. देश की मुद्रा का नाम न्यूजीलैंड डॉलर है, जिसका सबसे छोटा नोट पांच डॉलर का और सबसे बड़ा नोट 100 डॉलर का है.
तस्वीर: Getty Images/M. Tantrum
ब्रूनेई
दक्षिण पूर्व एशिया में बसा छोटा सा देश ब्रूनेई दुनिया के सबसे अमीर देशों में गिना जाता है. उनकी मुद्रा ब्रूनेई डॉलर है. फर्जी नोटों की समस्या को देखते हुए ब्रूनेई में प्लास्टिक के नोट शुरू किए गए.
तस्वीर: Getty Images/AFP/R. Rahman
वियतनाम
वियतनामी डोंग का सबसे बड़ा नोट पांच लाख का होता है, जिसका मूल्य 20 अमेरिकी डॉलर के बराबर होता है. वियतनाम में 2003 में पहली बार प्लास्टिक के नोटों की शुरुआत हुई. अब वहां सारे नोट प्लास्टिक के हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/L. Thai Linh
रोमानिया
रोमानिया अकेला यूरोपीय देश है जिसने पूरी तरह पॉलिमर नोटों को अपनाया है. देश की मुद्रा का नाम रोमैनियन लेऊ है और यहां 2005 में सारे नोटों को पॉलिमर नोटों में तब्दील कर दिया गया.
तस्वीर: gemeinfrei
वियतनाम
वियतनामी डोंग का सबसे बड़ा नोट पांच लाख का होता है, जिसका मूल्य 20 अमेरिकी डॉलर के बराबर होता है. वियतनाम में 2003 में पहली बार प्लास्टिक के नोटों की शुरुआत हुई. अब वहां सारे नोट प्लास्टिक के हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/L. Thai Linh
पापुआ न्यू गिनी
पापुआ न्यू गिनी 1949 में ऑस्ट्रेलिया से आजाद हुआ. 1975 तक वहां ऑस्ट्रेलियन डॉलर ही चलता रहा. लेकिन 19 अप्रैल 1975 को पापुआ न्यू गिनी में कीना के रूप में नई मुद्रा अपनाई गई. आज वहां सारे नोट प्लास्टिक के हैं.
भारत में भी?
भारत में भी सरकार प्लास्टिक के नोट चलाने की योजना बना रही है. जल्द ही प्लास्टिक का 10 का नोट लाने की तैयारी है. सबसे पहले पांच शहरों कोच्चि, मैसूर, जयपुर, शिमला और भुवनेश्वर में ट्रायल होगा.
तस्वीर: picture-alliance/AP
फायदा
बैंक ऑफ कनाडा का कहना है कि प्लास्टिक के नोट कागज के नोटों के मुकाबले ढाई गुना ज्यादा चलते हैं. नमी और गंदगी भी कम पकड़ते हैं. साथ ही उनकी नकल करना भी मुश्किल होता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Blackwood
नुकसान
प्लास्टिक नोट मोड़ने मुश्किल होते हैं. बहुत चिकने होने की वजह से कई बार उन्हें हाथ से गिनना मुश्किल होता है. कई कम विकसित देशों में उनकी रिसाइकलिंग की सुविधाएं नहीं हो सकती हैं.