1976 तेज रफ्तार होते औद्योगीकरण के साथ कंपनियों और ग्राहकों की आदतें भी बदलने लगी. प्लास्टिक का उपयोग आम जिंदगी में बढ़ने लगा. लेकिन उस वक्त दुनिया भर के कुछ ही देशों में प्लास्टिक का उत्पादन होता था. वह भी करीब 5 करोड़ मैट्रिक टन.
प्लास्टिक का अंबार
धीरे धीरे प्लास्टिक कारखानों या मशीनों के बजाए आम जिंदगी में आने लगा. कार्बन के इस संयोजित रूप ने स्टील, लकड़ी और कई तरह के भारी कच्चे माल की जगह ले ली. आज हमारे आस पास की करीब 50 फीसदी चीजें प्लास्टिक से बनी हुई हैं. हार्ड प्लास्टिक तुलनात्मक रूप से ज्यादा आसानी से रिसाइकिल हो जाता है. लिहाजा यह बिक भी जाता है. लेकिन असली मुश्किल पॉलिथिन या बोतल बनाने वाले प्लास्टिक से खड़ी हुई. 40 साल पहले की तुलना में आज प्लास्टिक का उत्पादन 6 गुना बढ़ चुका है. और इस्तेमाल के बाद कचरा बनता प्लास्टिक पर्यावरण में जहर घोल रहा है. अक्सर कचरे को सही तरीके से नहीं निबटाया जाता.
हर साल दुनिया भर में प्लास्टिक की लाखों बोतलें बेची जाती हैं. यह लोगों में लोकप्रिय भी है, लेकिन इसे बनाने में बहुत तेल खर्च होता है. और क्या होता है जब बोतल खाली होती है?
तस्वीर: Fotolia/zhekosपानी की बोतल खरीदने वाले प्लास्टिक की भी कीमत चुकाते हैं. लेकिन पर्यावरण को क्या कीमत चुकानी पड़ती है? बोतल बनाने, भरने, लेबल लगाने, ट्रांसपोर्ट, गोदाम में रखने और उसे निबटाने का खर्च काफी है. देखिए शुरू से अंत तक की दास्तान.
तस्वीर: Fotolia/fottooज्यादातर बोतलें पोलिएथेलीन टेरेफ्थलेट (पीईटी) प्लास्टिक से बनती हैं, जिसके लिए खनिज तेल की जरूरत होती है. तेल की निकासी में तो ग्रीन हाउस गैसें बनती ही हैं, प्लास्टिक के उत्पादन में भी जहरीली गैसें निकलती हैं. तेल को इस रिफायनरी जैसे कारखानों तक पहुंचाना भी पड़ता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaसाफ तेल को उत्पादक तक पहुंचाया जाता है, जो उससे प्लास्टिक के छोटे टुकड़े बनाता है. बोतल बनाने वाले इस कच्चे माल को गला कर प्रोटोटाइप बनाते हैं. बोतलों में पेय भरने वाली कंपनी उसे गर्म कर असली रूप में लाती हैं. रिसाइक्लिंग में बोतलों से प्लास्टिक के छोटे टुकड़े बना दिए जाते हैं.
तस्वीर: Fotolia/digitalstockबॉटलिंग प्लांट में प्रोटोटाइपों को असल रूप देकर साफ किया जाता है और फिर उसमें पानी या दूसरा पेय भरा जाता है. बोतल को सील कर उस पर लेबल लगाया जाता है और ट्रांसपोर्ट के लिए पैकेजिंग की जाती है. सैक्सनी के इस प्लांट में हर रोज 15 लाख लीटर पानी और सॉफ्ट ड्रिंक भरा जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaमक्का या गन्ने जैसे पदार्थों से बने बायोप्लास्टिक से भी बोतलें बनाई जा सकती हैं. इस तरह का प्लास्टिक नष्ट किया जा सकता है और उसे इस्तेमाल के बाद कम्पोस्ट में गलने के लिए डाला जा सकता है. लेकिन वह भी पर्यावरण के लिए ठीक नहीं. इसे बनाने में खेत के अलावा बहुत अधिक पानी लगता है.
तस्वीर: Fotolia/siwi1पानी की बोतलों के ट्रांसपोर्ट में भी संसाधनों की बर्बादी होती है. कुछ मामलों में तो हर बोतल के ट्रांसपोर्ट पर एक लीटर तेल खर्च होता है. कम से कम 25 फीसदी बोतलों का ट्रांसपोर्ट एक से दूसरे देश में होता है. ट्रांसपोर्ट के दौरान पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाला कार्बन डाई ऑक्साइड निकलता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaपैसिफिक इंस्टीट्यूट के अनुसार पानी की एक लीटर की बोतल बनाने पर कम से कम तीन गुना पानी खर्च होता है. इसकी वजह से जिन इलाकों में बॉटलिंग प्लांट हैं, उनमें जलस्तर सामान्य से नीचे जा सकता है. इसका खामियाजा इलाके के लोगों को पानी की कमी के रूप में भुगतना पड़ता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaयूरोप में हर साल इस्तेमाल हो रही बोतलों का आधा यानि छह करोड़ प्लास्टिक बोतलों की रिसाइक्लिंग होती है. बाकी कचरा बन जाता है जिसे कूड़े की जगहों पर या पानी में फेंक दिया जाता है. उसे नष्ट होने में सैकड़ों साल लगेंगे. सागर पहुंचने वाला प्लास्टिक जीव जंतुओं के लिए भी खतरा बन जाता है.
तस्वीर: JOSEPH EID/AFP/Getty Imagesजर्मनी में डिपोजिट सिस्टम है. लोगों से बोतल खरीदते समय डिपोजिट लिया जाता है जिसे वापस लेने के लिए वे बोतलों को वापस सुपर बाजार में लाते हैं और इन मशीनों में बोतलों को डालकर आम तौर पर 25 सेंट डिपोजिट वापस पाते हैं. प्लास्टिक की बोतलें बेचने वाला हर दुकानदार उसे वापस लेने को बाध्य है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaअमेरिका पानी की बोतलों का सबसे बड़ा खरीदार है. लेकिन चीन तेजी से उसके करीब पहुंच रहा है. वहां हर साल अरबों बोतलें बनाई और खरीदी जाती हैं. इसमें 1.8 करोड़ टन खनिज तेल का इस्तेमाल होता है. बढ़ती मांग के साथ चीन में इस्तेमाल हो चुके बोतलों का पहाड़ भी बढ़ रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaरिसाइकिल हुए प्लास्टिक के छोटे टुकड़े बना दिए जाते हैं, जिनसे दूसरे उत्पाद बनते हैं. उनमें से एक फ्लीस है, लोकप्रिय होता सिंथेटिक कंबल.
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गैबॉन का हीरो
पश्चिम अफ्रीका का गैबॉन भी प्लास्टिक कचरे की गंभीर समस्या झेल रहा है. लेकिन एक युवा उद्यमी देश को संकट से बाहर निकलने की राह दिखा रहा है. लांबारेने शहर के निवासी फिर्मिन मकाया ने अपने शहर को प्लास्टिक से बचाने के लिए ग्लोबल सर्विसेज नाम की संस्था शुरू की. हफ्ते में कई बार वह अपने कर्मचारियों के साथ शहर के अलग अलग इलाकों में जाते हैं और वहां जमा कचरे को अलग करते हैं. जैविक कचरा गुलाबी बैग में डाला जाता है और प्लास्टिक नीले बैग में.
फिर्मिन लोगों और नगर प्रशासन को जागरूक भी कर रहे हैं. वे कहते हैं, "दुर्भाग्य से यहां के लोगों को अपना कूड़ा सड़क पर फेंकने की आदत है. बहुत से लोगों को समझ में ही नहीं आता कि वे कचरे को अलग करने और रिसाइक्लिंग के बारे में क्यों सोचें. इसलिए हमें उन्हें बार बार इसके महत्व के बारे में बताना पड़ता है. सिर्फ यहां के निवासियों को ही नहीं बल्कि नगर प्रशासन के अधिकारियों को भी."
सालों से छोटा सा शहर लांबारेने कचरे की बड़ी समस्या झेल रहा है. तमाम विकासशील देशों की तरह गैबॉन में भी कचरा प्रबंधन सिर्फ कागज पर ही मजबूत दिखता है. अपने शहर की बुरी हालत जब देखी नहीं गई तो फिर्मिन माकाया ने खुद कदम उठाया. 37 वर्षीय उद्यमी ने कचरा जमा करने की अपनी कंपनी खोल ली, एक दफ्तर लिया और 8 तगड़े लोगों की एक टीम बनाई. अब वे शहर के हीरो हैं.
नीदरलैंड के एक युवा ने पृथ्वी के महासागरों को प्लास्टिक के मलबे से मुक्त कराने का सपना देखा. उसके खास फिल्टर बनाने के आइडिया को कई समुद्र विज्ञानियों ने प्रेरणादायक माना तो कईयों ने मजाक उड़ाया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Heon-Kyunसंयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने महासागरों में फैले प्रदूषणकारी प्लास्टिक के करीब सात लाख टन कचरे के बारे में एक साल का अध्ययन किया. इसमें पाया गया कि मछली और पक्षियों की खाद्य श्रृंखला में प्लास्टिक ने घुसपैठ कर ली है. इसके छोटे छोटे टुकड़े इन सभी जानवरों के शरीर में पहुंच कर उनकी जान ले रहे हैं.
तस्वीर: Gavin Parson/Marine Photobankनीदरलैंड के एक 20 वर्षीय छात्र बोयान स्लाट ने इस सदी की सबसे बड़ी पर्यावरणीय समस्या से निपटने का एक सरल समाधान सुझाया. उसने आइडिया दिया कि समुद्री पानी पर तैरने वाले प्लास्टिक के कचरे को एक खास फिल्टर से साफ किया जाए. इस विचार को समुद्री विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने ज्यादा पसंद नहीं किया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Heon-Kyunवैज्ञानिकों ने इसे एक बड़ी समस्या को बेहद हल्का समझने वाला उपाय बताया. फिर भी 16 साल की उम्र से ही इस आइडिया पर काम कर रहे स्लाट ने इसे छोड़ा नहीं और धीरे धीरे उनके दि ओशन क्लीनअप फाउंडेशन के साथ लोग जुड़ते गए. क्राउडफंडिंग के माध्यम से कई लाख डॉलर की राशि जुटाने वाले स्लाट ने अपने प्रोटोटाइप उत्पाद के परीक्षण के लिए 100 विशेषज्ञों को आमंत्रित किया. नतीजे बेहद उत्साहजनक मिले.
तस्वीर: theoceancleanup.comस्लाट के कृत्रिम फिल्टर के प्रोटोटाइप का परीक्षण कर वैज्ञानिकों ने माना कि उसके इस्तेमाल से 10 साल के भीतर समुद्र में करीब 100 किलोमीटर की दूरी में लगभग 40 प्रतिशत समुद्री कचरे को निकाला जा सकता है. यह विधि समुद्र की धाराओं के साथ बहकर आए प्लास्टिक को छानने पर आधारित है.
तस्वीर: theoceancleanup.comइस विधि में सबसे बड़ी समस्या यह है कि अगर हवा के झोंके नहीं चलें तो प्लास्टिक का कचरा बहकर फिल्टर की तरफ नहीं पहुंच पाएगा. ज्यादातर वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने कृत्रिम फिल्टर की प्रभावशीलता पर शक जताया है. फिल्टर हल्का होने के कारण बड़ी आसानी से दूर बह सकता है और क्षतिग्रस्त हो सकता है. फिर भी किसी पक्के उपाय के मिलने तक छोटे छोटे कदम उठाने में स्लाट को कोई हर्ज नहीं लगता.
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मदद की दरकार
शुरुआती पूंजी की मदद से खरीदे गए कंपनी के दो थ्रीव्हीलर शहर के बाहरी इलाके में बने गार्बेज सेंटर पर कूड़ा पहुंचाते हैं. यहां कचरे को जलाया जाता है. ग्लोबल सर्विसेज के कर्मचारियों के लिए यह सबसे मुश्किल काम है. मकाया भी मानते हैं कि इसका कोई और टिकाऊ इलाज खोजना होगा, "ये कतई अच्छा नहीं है, न तो यहां काम करने वाले लोगों के स्वास्थ्य के लिए और न ही पर्यावरण के लिए जिसे हम बचाना चाहते हैं."
अब मकाया अपनी पत्नी के साथ मिलकर इस प्रोजेक्ट के अगले चरण पर काम कर रहे हैं. वे लांबारेने के जंगल में एक रिसाइक्लिंग प्लांट लगाना चाहते हैं. उनकी योजना प्लास्टिक कचरे को रेत के साथ मिलाकर सीमेंट जैसी ईंट बनाने की है. इसका इस्तेमाल रोड बनाने में किया जा सकेगा. उन्होंने जमीन खरीद ली है, लेकिन प्लांट लगाने के लिए धन कम पड़ रहा है. एक प्रोड्यूसर मकाया को सस्ती रेत देने को तैयार हो गया है. पर्यावरण और लोगों के लिए ये अच्छी खबर है.
एमजे/ओएसजे