नदी पर बांध फायदे के लिए बनाये जाते हैं, लेकिन भारत और बांग्लादेश के बीच विवाद की वजह रहे फरक्का बांध को अब भारत में भी बाढ़ और जैविक विवधता के लिए नुकसानदेह बताया जा रहा है.
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पटना में हाल में गंगा पर हुए एक सम्मेलन में मैगसेसे विजेता राजेंद्र सिंह और दूसरे विशेषज्ञों ने फरक्का बैराज को बिहार के लिए अभिशाप करार देते हुए इस मामले की तत्काल समीक्षा करने और गंगा नदी की हालत सुधारने के लिए बांध का व्यापक अध्ययन किए जाने की मांग की. दूसरी ओर, बांग्लादेश में भी फरक्का बांध से होने वाले सालाना नुकसान का मुद्दा उठाते हुए विशेषज्ञों ने इसकी प्रासंगिकता की समीक्षा की मांग उठाई है. बांग्लादेश के जल संसाधन मंत्री अनीसुल इस्लाम का कहना है कि अब बांग्लादेश को सालाना 20,000 क्यूसेक पानी मिलता है जबकि बांध बनने से पहले इसका दोगुना मिलता था.
राष्ट्रीय सम्मेलन
बिहार लंबे समय से विभिन्न नदियों में बाढ़ का शिकार रहा है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी लंबे समय से फरक्का बांध को गंगा नदी में आने वाली सालाना बाढ़ के लिए जिम्मेदार मानते रहे हैं और उसे डी-कमीशन करने की मांग करते रहे हैं. बीते साल राजधानी पटना में आई बाढ़ के बाद उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात में इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाया था. नीतीश कुमार का कहना है कि फरक्का बांध की वजह से गंगा नदी में हर साल भारी गाद जम जाती है जिसकी वजह से बाढ़ अब बिहार की नियति बन गई है.
वॉटर मैन के नाम से विख्यात राजेंद्र सिंह कहते हैं, "जो तथ्य सामने आए हैं उनके आधार पर कहा जा सकता है कि फरक्का बिहार के लिए अशुभ है. यह एक अभिशाप है जिसे खत्म करना जरूरी है." उनका कहना था कि इसे नहीं हटाने तक गंगा के बहाव के मुद्दे पर आगे बढ़ना मुश्किल है. पटना में हुए सम्मेलन में फरक्का के इंजीनियरिंग और तकनीकी पहलुओं पर तो चर्चा हुई है, लेकिन अभी पर्यावरण, सांस्कृतिक, प्राकृतिक और आध्यात्मिक पहलुओं पर विचार करना जरूरी है.
पर्यावरण विशेषज्ञ हिमांशु ठक्कर ने कहा कि फरक्का बांध अपने निर्माण के किसी भी मकसद को पूरा करने में नाकाम रहा है. ऐसे में इसकी तत्काल समीक्षा जरूरी है. दिल्ली स्थित साउथ एशिया नेटवर्क आन डैम्स, रिवर एंड पीपुल के संयोजक ठक्कर कहते हैं, "अमेरिका में हर 20 साल पर बांधों की समीक्षा की जाती है. फरक्का बांध तो 42 साल पुराना हो गया है. फरक्का के रहते गंगा में पानी का बहाव निर्बाध नहीं हो सकता." तमाम विशेषज्ञ इस मुद्दे पर सहमत थे कि फरक्का बांध के अध्ययन के लिए प्रस्तावित समिति या आयोग में केंद्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और उन तमाम राज्यों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाना चाहिए जिनसे होकर गंगा गुजरती है. इस अध्ययन में फरक्का के सामाजिक, आर्थिक पहलुओं, लोगों के जीवन पर इसके असर और प्रासंगिकता जैसे मुद्दे शामिल होने चाहिए.
क्यों खतरे में पड़ते हैं विशालकाय बांध
विशाल बांध बेहतरीन इंजीनियरिंग का नमूना हैं. लेकिन अमेरिका में सामने आए संकट ने अब दुनिया भर के इंजीनियरों को नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है.
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सोचा भी नहीं था ऐसा संकट
विशाल बांध अच्छा खासा भूकंप सह सकते हैं लेकिन इंजीनियरों ने यह नहीं सोचा था कि कभी रिलीजिंग कैपिसिटी से भी बहुत ज्यादा पानी जमा हो सकता है.
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280 मीटर की ऊंचाई ने दी ताकत
ओरोविल बांध के लबालब होने के बाद पानी बांध के ऊपर से बहने लगा. 280 मीटर की ऊंचाई से गिरते पानी ने नींव को काटना शुरू कर दिया. जहां हल्की कमजोरी दिखी वहीं उफनते पानी ने दरार डाली.
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हालत खराब
जलस्तर को कम करने के लिए अधिकारियों ने बांध के सारे गेट खोल दिये. इस दौरान निकले तेज रफ्तार पानी ने गेट के नीचे की मिट्टी काटनी शुरू कर दी और संकट ज्यादा भयावह हो गया.
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कैसे बिगड़े हालात
आमतौर पर ओरोविल बांध में कम ही पानी रहता था. बांध के ऊपर बनी सड़क तक पानी कभी नहीं पहुंचता था. लेकिन इस साल हुई भयंकर बारिश और बर्फबारी ने जलस्तर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा दिया.
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कंक्रीट भी साफ
पानी की ताकत को नींव का कंक्रीट भी नहीं सह पाया. कंक्रीट के कई बड़े हिस्से बह गये. अब हेलीकॉप्टरों के जरिये वहां पत्थर भरे जा रहे हैं. बोल्डर जल कटाव के खिलाफ हमेशा कारगर माने जाते हैं.
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दुनिया भर के लिए चेतावनी
अब तक माना जाता था कि बांधों को ऊपर से बहने वाले पानी से खास खतरा नहीं होता. लेकिन मौसम के बदलते मिजाज से अगर बहुत ज्यादा पानी जमा हो जाए तो ऐसी स्थिति कहीं भी सामने आ सकती है.
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बांग्लादेश में भी उठी मांग
सीमा पार बांग्लादेश में भी बीते कुछ समय से फरक्का बांध को हटाने की मांग उठने लगी हैं. हालांकि वहां विशेषज्ञ इस मसले पर बंटे हुए हैं. एक गुट इसे हटाने की मांग का समर्थन कर रहा है तो दूसरा गुट इसे दो सरकारों का आपसी मसला बता कर बिना किसी ठोस अध्ययन के इस पर टिप्पणी करने से बच रहा है. इंस्टीट्यूट ऑफ वॉटर माडलिंग के कार्यकारी निदेशक डा. एम. मनव्वर हुसैन कहते हैं, "फरक्का बांध को बनाने का मकसद पूरा हो गया है. अब इसे ढहा देने पर बांग्लादेश को और ज्यादा पानी मिल सकता है." उनका कहना है कि आमतौर पर नदी पर बने किसी बांध का जीवनकाल 50 साल माना जाता है. फरक्का को 42 साल से ऊपर हो चुके हैं. हुसैन का दावा है कि इस बांध से देश में खेती, मछलीपालन और सुंदरबन की वानस्पतिक विविधता को अपूरणीय नुकसान पहुंचा है.
पर्यावरणविद् सैयदा रिजवाना हुसैन कहती हैं, "अगर गंगा के ऊपरी तट पर स्थित भारतीय राज्य में फरक्का बांध से इतना नुकसान होता है तो निचले तट पर स्थित बांग्लादेश की हालत समझी जा सकती है." वह कहती हैं कि खेती पर निर्भर बांग्लादेश को बांध के प्रतिकूल प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है. बांग्लादेश-भारत साझा नदी आयोग के निदेशक मोहम्मद महमदुर रहमान ने यह कहते हुए इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की है कि यह दो देशों की सरकारों व संबंधित मंत्रालयों का आपसी मुद्दा है. बांग्लादेश के अखबारों में भी यह मुद्दा प्रमुखता से उठ रहा है. राजधानी ढाका से छपने वाले अंग्रेजी अखबार ढाका ट्रिब्यून ने इस मुद्दे पर विशेषज्ञों की टिप्पणी को तवज्जो देते हुए संपादकीय छापा है. इसमें नीतीश कुमार के बयानों का भी जिक्र है.
मालदा जिले में बांग्लादेश की सीमा से लगभग 16 किमी की दूरी पर स्थित फरक्का बांध को कोलकाता बंदरगाह की हालत सुधारने के लिए बनाया गया था ताकि बड़े जहाज यहां तक आवाजाही कर सकें. लेकिन इसे लंबे अरसे से पानी के बहाव को कम करने, नदी में गाद जमा होने के चलते उसकी गहराई कम होने और पानी को खारा बनाने के अलावा सुंदरबन डेल्टा के सूखने के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है. वर्ष 2014 में नौ भारतीय नागरिकों ने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में एक याचिका दायर कर फरक्का बांध से पर्यावरण को सालाना 3,226 करोड़ रुपए का नुकसान होने का आरोप लगाया था.
अब नीतीश कुमार की मांग को तमाम विशेषज्ञों का समर्थन मिलने और सीमा पार से भी फरक्का के खिलाफ तेज होने वाली आवाजों से अबकी मानसून के सीजन में इस बांध के खिलाफ मुहिम के और जोर पकड़ने का अंदेशा है.
पानी पर तैराया बांध
1970 के दशक से ही अमेरिकी कलाकार क्रिस्टो पानी पर चलने का सपना देखा करते. अब अपनी रचना "द फ्लोटिंग पियर्स" के साथ उन्होंने उस सपने को सच कर दिखाया है.
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सुल्जानो: एक अस्थाई म्यूजियम
सुल्जानो की मेयर फियोरेला तुर्ला बहुत खुश हैं. 18 जून से 3 जुलाई 2016 के बीच उत्तरी इटली के उनके छोटे से गांव में आठ लाख पर्यटकों के आने की उम्मीद जो है. वे सब यहां क्रिस्टो के बनाए तैरते बांध को देखने पहुंचेंगे. यह तीन किलोमीटर लंबे पियर्स सुल्जानो को लेक इजियो में बसे पास के दो द्वीपों से जोड़ता है.
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स्केचों से शुरुआत
मजे की बात यह भी है कि इसे देखने आने वाले पर्यटकों से कोई फीस नहीं ली जाएगी. अमेरिकी कलाकार क्रिस्टो चाहते हैं कि हर कोई कला का आनंद ले और हर चीज को व्यावसायिक ना बना दिया जाए. वैसे इसे तैयार करने में 1.3 करोड़ यूरो का खर्च आया है, जो उन्होंने अपने स्केच और फोटो बेच कर इकट्ठा किया. इस तरह क्रिस्टो पर किसी प्रायोजक का कोई दबाव नहीं.
मेयर तो इन फ्लोटिंग पियर्स को "क्रिस्टो का चमत्कार" कहती हैं. 16 मीटर चौड़ा ये बांध तैराकी में इस्तेमाल होने वाले तैरते पीपों पर बनाया गया है. पर्यटक मुख्य शहर से टहलते हुए मॉन्टे इसोला और सैन पाओलो के द्वीपों तक जा सकेंगे. यह पानी में चलने वाली फेरी का एक अस्थाई विकल्प बन जाएगा. इसका इस्तेमाल मॉन्टे इसोला के 2,000 निवासी किया करते हैं.
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दि आर्ट कपल: क्रिस्टो और जाँ क्लोद
क्रिस्टो ने ये प्रोजेक्ट अपनी पत्नी जाँ क्लोद के साथ बनाई. हालांकि पत्नी का 2009 में देहान्त हो गया. पानी पर तैरने का आइडिया क्रिस्टो के दिमाग में 70 के दशक से ही था. उन्हें अपनी पसंद की जगह पर इसे बनाना था. और यह हो सका उत्तरी इटली के लेक इजियो इलाके में.
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कैनवास तैयार करना
जर्मनी के हामिंगकेल्न की टेक्सटाइल कंपनी सेटेक्स ने मैटीरियल बनाया. वो चमकदार नायलॉन फैब्रिक जो पूरे बांध पर बिछाया गया है. कुल 90 वर्ग किलोमीटर मैटीरियल का इस्तेमाल हुआ है. इससे बांध के तीन किलोमीटर के अलावा सुल्जानो की सड़कों और आसपास के गांवों को भी ढका गया.
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खास फैब्रिक का निर्माण
ल्युबेक की कंपनी जियो-डी लुफ्टवेर्केर को कपड़े के कई सारे थान बनाने के लिए एक साल का समय मिला था. यह पांच मीटर लंबा और 200 किलो भारी था. उन्हें यहां तक पहुंचाना अपने आप में मुश्किल काम था. इन्हें करीब 200 मोटे मोटे बैगों में भर के ट्रक पर चढ़ा कर सुल्जानो भेजा गया.
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XXL साइज की सिलाई मशीन
फैब्रिक इतना भारी था कि एक सिलाई मशीन पर दो लोग मिलकर काम करते थे. कपड़े की कटाई बिल्कुल सही हो इसके लिए अल्ट्रासाउंड लेसर तकनीक का इस्तेमाल किया गया. पीपों को एक साथ सिलने के लिए एक खास मशीन का इस्तेमाल हुआ.
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पीपे तैरते कैसे हैं
क्रिस्टो के इस विशाल आर्ट इंस्टॉलेशन के लिए पॉलीएथीलिन के बने 220,000 तैरने वाले क्यूब बनवाए गए. इनसे ही पहले तीन किलोमीटर लंबा पुल बना. फिर उसे फैब्रिक से ढका गया.
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पानी पर चले क्रिस्टो
आखिरकार क्रिस्टो ने पानी पर चलने का अपना सपना पूरा कर ही लिया. अक्टूबर 2015 की इस फोटो में क्रिस्टो पियर्स पर चल कर उसकी मजबूती का परीक्षण करते दिख रहे हैं. उन्हें इस बात की बहुत खुशी है कि इस पर चलते हुए बांध के नीचे मौजूद पानी की हरकत को महसूस किया जा सकता है.
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सुंदर, लेकिऩ नश्वर
तैरते पीपों पर फैब्रिक लग चुका है और अब इसे देखने पर्यटक पहुंच सकते हैं. 18 जून को मेहमानों को इस सुनहरे पुल पर चलने का मौका मिलेगा और अपने कदमों के नीचे पानी की हरकत को महसूस करने का भी. इस पर एक साथ अधिकतम 20,000 लोग चल सकते हैं.