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फरहाद दरया की महफिल में पर्दानशीनों की सीटियां

२७ नवम्बर २०११

अफगान एल्विस के रूप में मशहूर हो चुके फरहाद दरया अफगानिस्तान की इकलौती आवाज हैं जो पर्दानशीनों के चेहरे पर खुशियों के कमल खिला रहे हैं, बरबस हिलते हाथ, होठों पर आहें और सीटियां बजाती भीड़ बस उन्हीं की महफिलों में हैं.

तस्वीर: DW

उस देश में जहां महिलाओं को बस नाम मात्र के ही अधिकार हैं और जहां संगीत पर 10 साल पहले तालिबान के शासन में बंदिशों की बेड़ियों डाल दी गईं, वहां लाखों दिलों के लिए दरया खुशी और सकून की बड़ी आवाज बन कर उभरे हैं. काबुल में खास महिलाओं के लिए कड़ी सुरक्षा के बीच आयोजित कुछ दुर्लभ कार्यक्रमों ने साबित किया है कि उनकी गायकी किस तरह से लोगों को लुभाती है. इस हफ्ते गुरुवार को भी ऐसा ही एक कार्यक्रम था जिसे तालिबान के डर से बहुत गुपचुप तरीके से आयोजित किया गया.

छात्रों से लेकर मध्यम आयु वर्ग की हजारों महिलाएं ने घंटों तक झूम झूम कर दरया की संगीत दरिया में डुबकी लगाई. टेलीविजन कैमरों की मौजूदगी थी नहीं तो महफिल में मौजूद महिलाओं के जज्बात जिस तरह से मचल रहे थे उन्हें थिरकने में जरा सा भी वक्त नहीं लगता. गैर मर्द की मौजूदगी में नाचना महिलाओं के लिए अफगानिस्तान में बहुत बुरा समझा जाता है. महफिल परवान चढ़ी तो एक महिला हिम्मत जुटा कर जोर से चीखी 'हम तुम्हें प्यार करते हैं.(वी लव यू).' पुरुष गायकों के लिए दुनिया भर में यह बात बहुत सामान्य सी बात है लेकिन अफगानिस्तान में ऐसी हरकतों की उम्मीद नहीं की जा सकती.

तस्वीर: DW

दरया की गायकी से प्रभावित 18 साल की छात्र मित्रा अलोकोजे कहती हैं, "मैंने हमेशा हर किसी से कहा है कि वो मेरे सपनों के राजकुमार हैं, वो इतना अच्छा गाते हैं, उनका व्यक्तित्व इतना ऊंचा है, वो महान हैं."

फरहाद दरया को संयुक्त राष्ट्र ने अपना गुडविल एम्बेसडर भी बनाया है और उनके बारे में कहा है कि अफगानिस्तान के लिए, "वह सबसे बेहतरीन रोल मॉडलों में एक हैं." फरहाद दरया घरेलू हिंसा के खिलाफ अभियान के लिहाज से हाल ही में एक कंसर्ट में आए थे. अफगानिस्तान में यह समस्या बहुत विकराल रूप में मौजूद है. यह आयोजन देश भर में उनके कार्यक्रमों की सीरीज में सबसे नया है. समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में दरया ने उम्मीद जताई कि उनके प्रशंसकों को इससे बहुत कुछ मिलेगा. इसके अलावा देश के बाहर के लोग भी यह जानेंगे कि अफगान महिलाओं के लिए बुर्का, चादर, मुश्किलें और रसोई के अलावा भी बहुत कुछ है.

तस्वीर: DW

काले बाल, कलेजे में उतरती नीली आंखें और ठुड्डी पर जमी दाढ़ी वाले 49 साल के फरहाद दरया कहते हैं कि अफगानिस्तान के लिए संगीत मनोरंजन के अलावा भी बहुत कुछ है. फरहाद कहते हैं, "अफगानिस्तान की राजनीति और सरकार के जिम्मेदार लोगो काम नहीं कर पा रहे हैं. यहां तक कि काबिल और सक्षम लोग भी सिस्टम में फंस के रह जा रहे हैं. ऐसे में क्या होगा, लोग किसी राजनेता से क्या सुनना पसंद करेंगे. यही वजह है कि लोग उन्हें नहीं सुनते और कलाकारों के पास आते हैं." इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि पश्चिमी देशों में हर कोई अपना काम कर रहा है. राजनेता जानते हैं कि उन्हें क्या करना है, प्रशासन अपना काम जानता है और इसी तरह संगीतकार और दूसरे लोग भी जानते हैं कि उन्हें क्या करना है.

फरहाद ने कहा कि अफगानिस्तान में लोगों को संगीतकारों से बहुत उम्मीदें हैं, "कोई संगीतकार या गायक देश को बड़ा संदेश दे सकता है और उसकी आवाज देर तक लोगों को सुनाई देती रहेगी."

दरया फरहाद के संगीत में उनकी सोच गूंजती है. उनके 35 अल्बमों में कई ऐसे हैं जिनमें मजबूत राजनीति और शांति की पुकार सुनी जा सकती है. उनका गाना काबुल जान (प्यारा काबुल) तालिबान का शासन खत्म होने के बाद 2001 में अफगान रेडियो पर बजने वाला पहला गाना था. इस गाने की पंक्तिया हैं, ''मैं मेरे गरीब लोगों की आवाज हूं....मैं एक पुराना रुबाब (एक वाद्य यंत्र) हूं, जो अपने दोस्तों के दुख के गीत गा रहा है.''

हालांकि दरया 1990 में ही देश से बाहर निकल गए और अब अमेरिका में रहते हैं, फिर भी वह बहुत सारा वक्त अफगानिस्तान में बिताते हैं और 10 सालों की जंग से खतरे का उन्हें अहसास है.

पिछले साल पश्चिमी शहर हेरात में एक कंसर्ट के बाद हुए बम हमले में उनके 13 प्रशंसक घायल हो गए. दरया ने बताया कि धमाका ठीक उस दरवाजे के बाहर हुआ जहां से उन्हें कुछ ही देर बाद निकलना था. हालांकि अब भी वह सुरक्षाकर्मियों के साथ सफर नहीं करते. दरया मानते हैं कि अफगानिस्तान ने पिछले एक दशक में बहुत प्रगति की है लेकिन आशंकित भी हैं कि 2014 में अमेरिकी फौजों के चले जाने के बाद देश का हाल क्या होगा.

रिपोर्टः एएफपी/एन रंजन

संपादनः ओ सिंह

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