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फर्जी एनकाउंटर पर फिर घिरी योगी सरकार

समीरात्मज मिश्र
९ अक्टूबर २०१९

उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में कथित तौर पर पुलिस मुठभेड़ में मारे गए एक युवक की मौत के मामले में यूपी पुलिस पर एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं. इस मामले में अब राजनीतिक गर्मी भी बढ़ने लगी है.

Yogi Aditynath
तस्वीर: UP Govt

बुधवार को समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव पीड़ित परिवार के घर पहुंचे और उन्होंने सीधे तौर पर आरोप लगाया कि पुलिस निर्दोष लोगों की जानबूझकर एनकाउंटर के नाम पर हत्या कर रही है. झांसी में 28 वर्षीय एक युवक की पुलिस की गोली से रविवार को मौत हो गई थी. पुलिस का दावा है कि युवक ने पहले एक अधिकारी पर गोली चलाई जिसके बाद पुलिस वालों से उसकी मुठभेड़ हुई और युवक की मौत हो गई. जबकि परिवार वालों का आरोप है कि रिश्वत देने से मना करने पर उसे मार दिया गया.

पुलिस का दावा है कि पुष्पेंद्र यादव बालू खनन का कारोबार करता था और रविवार को पुलिस इंस्पेक्टर पर गोली चलाने के बाद एक पुलिस टीम ने उसे मार गिराया. पुलिस के मुताबिक इसी टीम ने कुछ दिन पहले रेत खनन के लिए इस्तेमाल किए गए ट्रक को जब्त कर लिया था. लेकिन परिवार वालों का आरोप है कि पुलिस वालों ने जब्त ट्रक के बदले ढेड़ लाख रुपए रिश्वत की मांग की थी. परिवार वालों के मुताबिक, पुष्पेंद्र ने पुलिस वालों से इस पूरे घटनाक्रम को उजागर करने की धमकी दी थी जिसकी वजह से उसकी हत्या कर दी गई.

इस मामले में अब तक घटना में शामिल पुलिस वालों के खिलाफ कोई केस भी दर्ज नहीं किया गया है. मामले की गंभीरता को देखते हुए झांसी के डीएम शिवसहाय अवस्थी ने मजिस्ट्रेटी जांच के आदेश दे दिए हैं जबकि एडीजी जोन प्रेम प्रकाश ने कहा है कि इस मामले की जांच में अगर पुलिसवाले दोषी पाए जाएंगे, तो उनके खिलाफ केस दर्ज किया जाएगा. इस बीच झांसी पुलिस ने मंगलवार को पुष्पेंद्र यादव के खिलाफ पहले से दर्ज मामलों की जो सूची सार्वजनिक की है उनके अनुसार पुष्पेंद्र पर मामूली झड़पों के अलावा कोई ख़ास केस नहीं दर्ज है.

हजारों एनकाउंटर

योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार एनकाउंटर्स को लेकर कई बार चर्चा में रही है. सरकार इसे जहां अपनी उपलब्धि बताती है वहीं कई बार एनकाउंटर्स के फर्जी होने के आरोप लगे हैं. कुछेक मामलों में तो एनकाउंटर फर्जी पाए भी गए और दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर भी हुई. योगी सरकार के ढाई साल के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश में अब तक साढ़े तीन हजार से भी ज्यादा एनकाउंटर हो चुके हैं जिनमें 73 अपराधियों के मारे जाने का दावा किया गया है. इस दौरान चार पुलिसकर्मी भी मारे गए.

तस्वीर: DW/S. Mishra

यूपी में इससे पहले भी कई एनकाउंटर संदेह के घेरे में आ चुके हैं. लखनऊ में विवेक तिवारी एनकाउंटर पर यूपी पुलिस की जमकर किरकिरी हुई थी. इस मामले में दो पुलिसकर्मियों को निलंबित किया गया था. पिछले साल एक गैर सरकारी संगठन ने मुठभेड़ के कुछ मामलों का अध्ययन करके एक रिपोर्ट जारी की थी. इन 28 मामलों में सोलह मामले यूपी के थे जबकि बारह मामले हरियाणा के थे. रिपोर्ट में दावा किया गया था कि तमाम तथ्य जांच में ऐसे पाए गए जो कि एनकाउंटर्स के सही होने पर सवाल उठाते हैं.

उत्तर प्रदेश में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी रहे वीएन राय कहते हैं, "एनकाउंटर की संख्या बढ़ाकर अपराध कम नहीं किए जा सकते. फर्जी एनकाउंटर एक गंभीर मसला है. यूपी में जिस तरह से पिछले कुछ समय से एनकाउंटर की खबरें आ रही हैं, उनमें कई ऐसे हैं जो सही नहीं ठहराए जा सकते. तमाम एनकाउंटर्स में पुलिस ने ऐसे लोगों को मारा है जो कि कभी किसी अपराध में शामिल ही नहीं थे. आखिर ऐसे लोगों को पुलिस कैसे अपराधी ठहरा सकती है.”

उत्तर प्रदेश सबसे आगे

साल 2017 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसके अनुसार फर्जी एनकाउंटर की शिकायतों के मामलों में उत्तर प्रदेश पुलिस देश में सबसे आगे है. आयोग ने पिछले बारह साल का एक आंकड़ा जारी किया था, जिसमें देश भर से फर्जी एनकाउंटर की कुल 1241 शिकायतें आयोग के पास पहुंची थीं जिनमें 455 मामले यूपी पुलिस के खिलाफ थे.

एक साल पहले नोएडा में एक जिम संचालक को पुलिस के एक सब इंस्पेक्टर ने आपसी रंज़िश में गोली मार दी थी और बाद में उसे एनकाउंटर दिखा दिया गया था. मामले की जांच के बाद इंस्पेक्टर का दावा ग़लत निकला और उसके खिलाफ मामला दर्ज किया गया. यही नहीं, एनकाउंटर के कुछेक मामले ऐसे भी सामने आए जिसमें पुलिसकर्मियों ने प्रमोशन के लालच में निर्दोष लोगों को मार गिराया. ऐसे मामलों की जांच भी हो रही है.

राज्य सरकार और खुद मुख्यमंत्री अक्सर ये दावा करते हैं कि सरकार की कार्रवाई से डरकर तमाम अपराधियों ने अपनी जमानत निरस्त कराकर जेल का रुख किया है लेकिन यूपी में लगातार बढ़ रहे अपराध की स्थिति को देखते हुए सरकार के ऐसे दावों पर भी सवाल उठते रहे हैं.

फर्जी एनकाउंटर को लेकर यूपी पुलिस का रिकॉर्ड पहले भी कुछ अच्छा नहीं रहा है. साल 1991 में पीलीभीत जिले में हुए 12 लोगों के फर्जी एनकाउंटर के मामले में हाईकोर्ट ने 47 पुलिसकर्मियों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी. आरोप था कि पीलीभीत में पटना साहिब और दूसरे तीर्थ स्थल से लौट रहे यात्रियों के एक जत्थे को रोककर पुलिस बारह लोगों को अपने साथ ले गई थी. उसके बाद सभी को अलग-अलग एनकाउंटर में मार गिराया था. पुलिस ने इन सभी लोगों को आतंकवादी बताया था.

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