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फलीस्तीनियों का अपमान है ट्रंप की योजना

२९ जनवरी २०२०

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की मध्यपूर्व शांति योजना सिर्फ इस्राएलियों के हितों को ध्यान में रखकर बनाई गई है जबकि फलीस्तीनियों के हित नजरअंदाज किए गए हैं. डॉयचे वेले के राइनर सोलिच कहते हैं कि इसका नतीजा अच्छा नहीं हो सकता.

Westjordanland Mahmud Abbas | Reaktion auf Friedensplan von Donald Trump & Benjamin Netanjahu
तस्वीर: Reuters/R. Sawafta

कई दशकों से इस्राएल और फलीस्तीनियों का विवाद अनसुलझा है. न तो युद्ध, न ही हमले, न विद्रोह और न ही अंतरराष्ट्रीय पहल, शांति संधि या संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के लिए नियमित समर्थन स्थिति में थोड़ा भी बदलाव लाने में कामयाब हो पाए हैं. अविश्वास बहुत गहरा है, और ऐतिहासिक समझौते की तैयारी या क्षमता दोनों ही पक्षों में थोड़ी भी नहीं है.

ऐसे में यदि राष्ट्रपति ट्रंप वाशिंगटन से मध्य पूर्व में शांति का भरोसेमंद संदेश देते तो यह शांति प्रक्रिया में एक उम्मीद भरा संदेश हो सकता था. कि हम बंद गली के मुहाने पर खड़े हैं, इसलिए अब नए विचारों के साथ एकदम नई राह पर चलने की कोशिश कर रहे हैं.  

समझौते के बदले अपमान

लेकिन डॉनल्ड ट्रंप ऐसे राष्ट्रपति हैं, जो शांति वाली दूरदृष्टि के लिए नहीं जाने जाते. मध्यपूर्व के लिए भी उनके पास कोई आइडिया या हल नहीं है. इसके विपरीत सदियों के डील के रूप में घोषित उनकी पहल समान अधिकारों वाले पार्टनर के बीच भारी सौदेबाजी के बाद तय हुई कोई डील नहीं है. यह राजनीतिक हुक्मनामे की साफ कोशिश है. कुछ सांकेतिक बातों को छोड़कर इस योजना में इस्राएल के सुरक्षा हितों पर उदारता से ध्यान दिया गया है जबकि फलीस्तीनियों को योजना के निर्माण में भी साझेदार नहीं बनाया गया, और वे साफ तौर पर खोने वाले हैं. उनके और इलाकों को इस्राएल के हाथों गंवाने का खतरा है.

डॉयचे वेले के राइनर सोलिच

हालांकि उन्हें अपना राज्य देने की बात कही गई है, लेकिन उसे इस्राएल के सुरक्षा हितों का ख्याल रखना होगा और पूरी तरह विसैन्यीकृत होगा. येरूशलम हमेशा के लिए इस्राएल की अविभाजित राजधानी रहेगी, जैसी कि ट्रंप ने 2015 में ही घोषणा कर दी थी. और सांत्वना पुरस्कार के रूप में शहर के अरब आबादी वाले एक छोटे से हिस्से में फलीस्तीनी अपनी राजधानी बना सकेंगे. ट्रंप ने कहा है कि उनकी योजना संभवतः फलीस्तीनियों के लिए अंतिम मौका होगा. वे यह भी कह सकते थे, इसे मानो या जाने दो. इस तरह से दो समान अधिकारों वाले देश कभी नहीं बन सकते. ट्रंप ने फलीस्तीनियों को दो राज्यों वाला नहीं बल्कि डेढ़ राज्यों वाला समाधान दिया है.

इस्राएल के लिए खुले हाथ

ये राजनीतिक विचार न सिर्फ अनैतिक और अपमानजनक है, क्योंकि दो दलों के बीच विवाद में सिर्फ एक दल को फायदा पहुंचाया जा रहा है. ट्रंप की शांति योजना खतरनाक भी है क्योंकि यह इस्राएल को व्यावहारिक रूप से तथाकथित डील के आधार पर और फलीस्तीनी इलाकों पर अधिकार करने की खुली आजादी देती है. इस्राएल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू के लिए यह अच्छा ही है, क्योंकि अब तक कोई इस्राएली प्रधानमंत्री अमेरिका से इससे बेहतर रियायत पाने में सफल नहीं रहा है.

यह नेतन्याहू को इस्राएल में होने वाले चुनावों और साथ ही अदालत में तल रहे भ्रष्टाचार वाले मुकदमे में फायदा पहुंचाएगा. लेकिन अरब मुस्लिम पक्ष से शांति योजना का भारी विरोध होगा. कट्टरपंथी ताकतें खुशी से फूले नहीं समा रही हैं क्योंकि शांति योजना उन्हें आतंक और हिंसा के सही बहाना देती है. ये सब मध्य पूर्व को निश्चित तौर पर सुरक्षित नहीं बनाएगा. इस्राएल को भी नहीं.

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