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फिजिक्स लैब में प्यार की पेंग

११ जून २०१३

तकनीक और विज्ञान के विषयों में अक्सर लड़कियों से ज्यादा लड़कों की दिलचस्पी होती है. रॉस्टॉक यूनिवर्सिटी में विज्ञान के छात्र एक साइंस ऑपेरा के जरिए गणित और तकनीक में लड़कियों की रुचि जगाने की कोशिश कर रहे हैं.

तस्वीर: Rostock denkt 365°

दीवार पर न कोई पोचारा, न कालीन और न ही तस्वीरें. रॉस्टॉक यूनिवर्सिटी के कमरे व्यावहारिक और सीधे सादे हैं. फिर भी यहां बैठी पांच लड़कियों को नेले की आरामदेह रसोई के बारे में सोचना है. नेले जर्मनी के पहले साइंस ओपेरा की मुख्य किरदार है. संचार शास्त्र फैकल्टी में रॉस्टॉक की 15 लड़कियों और एक लड़के ने स्क्रिप्ट राइटिंग का कोर्स किया और फिर ओपेरा की स्क्रिप्ट लिखी. अब यह स्क्रिप्ट नाट्य शास्त्र की विशेषज्ञ जेनी फुक्स के पास है, वे इसके लिए अच्छे डायलॉग लिखेंगी और इसे अंतिम रूप देंगी.

ज्ञान का तूफान

अभी स्क्रिप्ट को पूरी तरह गोपनीय रखा गया है, सिर्फ उसका टाइटिल पता है, ज्ञान का तूफान. जो नियमित रूप से टेलिविजन देखता है, उसे पता है कि यह नाम इस समय के लोकप्रिय सीरियल प्यार का तूफान से लिया गया है. जेनी फुक्स कहती हैं, "हमारा सोप ओपेरा एक तरह का साइंस थ्रिलर होगा." उसके बाद वे इतना तो बता ही देती हैं कि नेले अपने पिता के साथ रॉस्टॉक शिफ्ट करती है, जहां उसकी किसी से जान पहचान होती है और वह उसे अच्छा लगने लगता है, "वह फिर से स्कूल की पुरानी दोस्त से मिलती है, भौतिकी और समुद्री जीव विज्ञान पढ़ने लगती है और फिर कहानी रोमांचक हो उठती है."

जेनी फुक्सतस्वीर: Rostock denkt 365°

इसकी शुरुआत एक ट्रेलर के साथ हुई, जिसे 2012 में सिटी ऑफ साइंस प्रतियोगिता में 50,000 यूरो का पुरस्कार मिला. जूरी को खासकर यह बात बहुत पसंद आई कि साइंस सोप के जरिए युवा महिलाओं को मिंट विषयों की पढ़ाई के लिए आकर्षित किया जा सकता है. मिंट का मतलब है, मैथेमेटिक्स, इंफॉर्मेटिक्स, नेचुरल साइंस और तकनीक. जर्मनी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पास करने वालों में महिलाओं का अनुपात सिर्फ 20 प्रतिशत है. और यह हालत तब हैं जब स्कूलों में लड़कियों के नंबर लड़कों से बेहतर आते हैं.

प्यार की कसमों के बीच विज्ञान

नेल पॉलिश और प्यार के कसमे-वादों तथा साजिशों और बाल्टिक सागर तट पर सूरज की ढलती किरणों के बीच साइंस को पेश करना किसी बड़े स्टीरियोटाइप जैसा लगता है. लेकिन रॉस्टॉक की मीडिया प्रोफेसर एलिजाबेथ प्रोमर इसका विरोध करती हैं और सोप या इस तरह के फॉर्मेट के बारे में पूर्वाग्रहों को छोड़ने की सलाह देती हैं, "ये अब एक तथ्य है कि 15 से 18 साल की किशोरियां जर्मनी की अगली टॉप मॉडल जैसे सीरियल देखती हैं." उन्होंने टेलिविजन देखने की आदतों पर कई रिपोर्टें लिखी हैं. उनका कहना है कि लड़कियों के विपरीत लड़के सिम्पसन या बिग बैंग थ्योरी जैसे कॉमेडी सीरियल देखना पसंद करते हैं.

स्क्रिप्ट पर चर्चातस्वीर: Rostock denkt 365°

प्रोफेसर प्रोमर को इस बात का पूरा भरोसा है कि यदि आपको युवा लड़कियों से अपनी बात कहनी है तो साइंस के मुद्दों की पैकेजिंग ऐसे फॉर्मेट में करनी होगी जो उनकी पसंद का है. इसमें अच्छी सी कहानी, प्यार, रोमांच और ड्रामा के अलावा यूनिवर्सिटी में महिलाओं के करियर की भी भूमिका होनी चाहिए. वे खुद अपना उदाहरण देती हैं. वे प्रोफेसर हैं, रॉस्टॉक यूनिवर्सिटी की मीडिया रिसर्च सेंटर की प्रमुख हैं और तीन बच्चों की मां हैं. अपने पति से वे यूनिवर्सिटी में ही मिलीं. उन दिनों वे उनके टीचर हुआ करते थे.

विज्ञान का स्टीरियोटाइप

जून के अंत तक स्क्रिप्ट लिखने का काम पूरा हो जाएगा. इंफॉर्मेटिक्स के प्रोफेसर ऊवे फॉन लुकास की टेबल पर इस समय उसका अंतिम मसौदा पड़ा है. ग्राफिक डाटा प्रोसेसिंग इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर के मन में साइंस सोप का आइडिया आया. वे खुद को टीवी सीरियलों का बड़ा प्रशंसक तो नहीं मानते, लेकिन वे याद करते हैं कि वे प्राइम टाइम सीरियल डलास नियमित रूप से देखा करते थे.

ऊवे फॉन लुकास लंबे समय से रॉस्टॉक की 365° की सोच नामक संस्था में सक्रिय हैं, जिसमें शहर की सारी वैज्ञानिक संस्थाएं शामिल हैं. वे नियमित रूप से प्रयोगशालाओं में हो रहे शोध के बारे में लोगों में दिलचस्पी पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं. लुकास के लिए नया साइंस सोप इसे हासिल करने का जरिया है. वे इस बात का कोई खतरा नहीं देखते कि विज्ञान को भोंडे तरीके से पेश किया जाएगा. उनका मानना है कि लोगों तक पहुंचने के लिए स्टीरियोटाइपों का इस्तेमाल जरूरी है. उनके लिए जरूरी यह है कि सीरियलों में पर्याप्त साइंस हो.

ऊवे फॉन लुकासतस्वीर: Rostock denkt 365°

अभिनय के छात्रों की भूमिका

ज्ञान का तूफान सीरियल के पांच एपीसोड तैयार किए जाएंगे. इनमें से हरेक की लंबाई सिर्फ दस मिनट होगी. इसके लिए पैसे का इंतजाम अलग अलग साधनों से किया गया है. पुरस्कार में जीते गए 50,000 यूरो के अलावा रॉस्टॉक सिटी प्रशासन इस प्रोजेक्ट के लिए 30,000 यूरो दे रहा है. यहां तक कि टाइटल को भी रजिस्टर करा लिया गया है.

गर्मियों में रॉस्टॉक यूनिवर्सिटी की प्रयोगशालाओं के अलावा सागर तट पर स्थित सील शोध संस्थान में भी शूटिंग की जाएगी. किरदारों का अभिनय वहां काम करने वाले वैज्ञानिक नहीं करेंगे, बल्कि उनकी भूमिका में रॉस्टॉक थिएटर स्कूल के एक्टिंग के छात्र होंगे. इसके बावजूद साइंस सोप पूरी तरह छात्रों का प्रोजेक्ट नहीं है. निर्देशन, कैमरा और प्रोडक्शन की जिम्मेदारी शहर के पेशेवर मीडियाकर्मी उठाएंगे.

इस साल सर्दियों तक सीरियल पूरा हो जाएगा और उसका डिस्ट्रीब्यूशन इंटरनेट के जरिए शुरू हो जाएगा. ऊवे फॉन लुकास को भरोसा है कि यह साइंस सीरियल रॉस्टॉक शहर के लिए पब्लिसिटी का जरिया बनेगा. उनका सपना सीरियल को अंग्रेजी में भी डब करने का है ताकि और ज्यादा विदेशी छात्रों और रिसर्चरों को जर्मनी के पूर्वोत्तर में आकर्षित किया जा सके.

रिपोर्ट: लेनोरे लोएच/एमजे

संपादन: ईशा भाटिया

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