ब्रेक्जिट पर नया जनमत संग्रह कराने को लेकर एक रैली हो रही है जिसमें कई नेता हिस्सा लेंगे. पीपुल्स वोट कैंपेन को उम्मीद है कि रैली में करीब एक लाख लोग आएंगे. टेरीजा मे सरकार इसका विरोध कर रही है लेकिन दबाव बढ़ रहा है.
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ब्रेक्जिट का विरोध कर रहे उत्तरी आयरलैंड के कार्यकर्ताओं ने हाल ही में विपक्ष के नेताओं से मुलाकात की. इसके बाद प्रधानमंत्री टेरीजा मे ने संसद में कहा, ''दोबारा जनमत संग्रह नहीं कराया जाएगा.'' ब्रेक्जिट पर देश बंटा है और बहुत से लोगों को अभी भी उम्मीद है कि ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से बाहर निकलना रोका जा सकता है. लेकिन टेरीजा मे जनमत संग्रह के नतीजे को लागू करना चाहती हैं, "आम लोगों ने 2016 में ब्रेक्जिट के पक्ष में वोट दिया था और सरकार उसे पूरा करेगी."
उत्तरी आयरलैंड के डोयर फिन के मुताबिक, ''हमारी पीढ़ी के लिए ब्रेक्जिट से ज्यादा खतरनाक कुछ भी नहीं है.'' दरअसल उत्तरी आयरलैंड ब्रेक्जिट को लेकर हो रही वार्ताओं के केंद्र में है. यूरोपीय संघ और ब्रिटेन दोनों ही ब्रिटेन के हिस्से में आने वाले उत्तरी आयरलैंड और आयरलैंड गणराज्य के बीच खुली सीमा सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं. आयरलैंड में दशकों से चली आ रही तनातनी के बाद लोगों को अब डर है कि स्थिति में किसी प्रकार के परिवर्तन से उत्तरी आयरलैंड में चल रहा शांति का प्रयास भंग हो जाएगा.
ब्रेक्जिट का डर
फिन के 16 वर्षीय साथी का कहना है, ''हमने अतीत में हुई हिंसा कभी नहीं देखी है.'' फिन के मुताबिक, ''ब्रेक्जिट से सभी डरे हुए हैं और कोई भी युवा वापस पीछे नहीं जाना चाहता है.'' दूसरे जनमत संग्रह को न कराने को लेकर टेरीजा मे की जिद से यूरोपीय संघ के पक्षधर विचलित नहीं हुए हैं. अलग-अलग दलों के हजारों लोग पीपुल्स वोट कैंपेन को समर्थन देकर जनमत संग्रह की मांग कर रहे हैं.
पीपुल्स वोट कैंपेन का कहना है कि करीब एक लाख समर्थक जून की रैली में आए थे. अभियान दल को उम्मीद है कि शनिवार का मार्च और बड़ा व बेहतर होगा. मुख्य विपक्षी दल लेबर पार्टी से लंदन के मेयर सादिक खान, लिबरल डेमोक्रैटिक नेता विंस केबल, यूरोपीय संघ समर्थक एना सुब्री व टेरीजा मे की कंजरवेटिव पार्टी की सारा वोलास्टन इस मार्च में आएंगे और लोगों को संबोधित करेंगे.
टेरीजा मे ने हाल ही में कहा था कि उन्होंने ब्रेक्जिट पर अमल के समय को 21 महीने से एक साल और बढ़ा दिया है. एना सुब्री का इस पर कहना है कि मे ऐसा फैसला करने पर मजबूर थीं क्योंकि उनकी सरकार आयरलैंड को खुली सीमा देने के मुद्दे पर बंटी हुई है. साथ ही यूरोपीय संघ से भविष्य में व्यापार सौदे को सुरक्षित करने के मुद्दे पर सरकार विफल साबित हुई है. सुब्री ने ट्वीट किया, ''ब्रेक्जिट का वादा टूटा है''. वह लोगों को शनिवार के मार्च में शामिल होने के लिए कह रही हैं.
ब्रेक्जिट: कैसे होगा ब्रिटेन और ईयू का तलाक
28 मार्च को ब्रिटेन ने 'अनुच्छेद 50' पर हस्ताक्षर के साथ औपचारिक रूप से यूरोपीय संघ से बाहर निकलने की प्रक्रिया की शुरुआत कर दी है. यहां जानिये कि इसके आगे कैसी होगी ब्रिटेन की ईयू से बाहर निकलने की प्रक्रिया.
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क्या है अनुच्छेद 50?
लिस्बन संधि का 'अनुच्छेद 50' यूरोपीय संघ के मौजूदा सदस्यों को संघ छोड़ने का अधिकार देता है. साथ ही संघ से बाहर निकलने की रूपरेखा भी इसी अनुच्छेद के तहत निर्धारित होती है. इसके अंतर्गत बाहर निकल रहे देश को आपसी बातचीत कर सहमति के लिये दो साल का वक्त मिलता है. अगर एक बार अनुच्छेद 50 लागू हो जाए तो फिर उसे वापस नहीं लिया जा सकता है. यह वापस तभी होगा जब सभी सदस्य देश इसके लिये हामी भरेंगे.
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क्या कहता है अनुच्छेद 50?
इसमें पांच बातें शामिल हैं. सबसे पहले बाहर जाने वाले देश को ईयू काउंसिल को औपचारिक रूप से सूचित करना होगा और यह बताना होगा कि वह किसी समझौते तक पहुंचने के लिये दो साल का वक्त दे रहा है. साथ ही वह देश ईयू की उन आंतरिक चर्चाओं का हिस्सा नहीं होगा, जिनमें उस देश पर बातचीत होगी. बाहर निकलने के फैसले को बहुमत से मंजूरी मिलनी चाहिये. साथ ही यूरोपीय संसद के सदस्यों का सहयोग भी आवश्यक है.
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अनुच्छेद कब होगा लागू?
ब्रिटेन ने जून 2016 में एक जनमत संग्रह के बाद यूरोपीय संघ छोड़ने के पक्ष में निर्णय लिया था. लंबी संसदीय बहस और कानूनी प्रक्रियाओं के बाद ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरीजा मे, यूरोपीय संघ के अध्यक्ष डोनाल्ड टुस्क को अधिसूचना का औपचारिक पत्र भेज चुकी हैं, जिसके बाद अनुच्छेद 50 को लागू माना जाएगा. ब्रसेल्स में अधिकारियों ने इससे जुड़ा बिल तैयार कर लिया है.
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आगे क्या होगा?
ईयू इस पर पहली प्रतिक्रिया देने में एक सप्ताह ले सकता है. 29 अप्रैल को ईयू नेताओं का सम्मेलन होना है. इसमें मई-जून में होने वाली ब्रेक्जिट वार्ता को लेकर दिशानिर्देश तैयार किये जा सकते हैं. सबसे कठिन बिंदु उन 10 लाख से अधिक ब्रिटेनवासियों के भविष्य का फैसला होगा, जो ईयू के अन्य हिस्सों में रहते हैं. उन 30 लाख से अधिक ईयू नागरिकों पर भी सोचना होगा जो ब्रिटेन में काम और व्यापार के लिये रहते हैं.
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अस्वीकार विधेयक
इस साल गर्मियों तक ब्रिटेन की सरकार, यूरोपीय संघ छोड़ने से जुड़े कानून और ईयू के सभी कानूनों को खत्म करने को लेकर, ब्रिटेन में बिल पेश कर सकती है. इस संभावित कदम से साल 1972 के यूरोपियन कम्युनिटीज एक्ट (ईसीए) को रद्द किया जा सकेगा. यह कानून ब्रिटेन में यूरोपीय संघ के कानूनों की तत्काल प्रभाव से अनुमति देता है.
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कब समाप्त होगी प्रक्रिया
ईयू नेताओं के मुताबिक वे बातचीत की इस पूरी प्रक्रिया को 18 महीने के भीतर समाप्त करना चाहते हैं और यही समय ब्रिटेन, यूरोपीय संसद और सभी सदस्य देशों द्वारा ब्रिटेन के बाहर निकलने की शर्तों की पुष्टि करने के लिये तय किया गया है. अगर दो साल तक किसी समझौते पर नहीं पहुंचा गया तो ब्रिटेन स्वत: ही यूरोपीय संघ और इसके सभी मौजूदा समझौतों से मुक्त हो सकता है.
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ब्रिटने पलट गया तो?
अनुच्छेद 50 के पांचवें पैरा में इस बात का उल्लेख किया गया है. इसके मुताबिक बाहर जाने के बाद अगर कोई राज्य दोबारा संघ में शामिल होना चाहता है तो उस पर भी विचार किया जा सकता है. दोबारा शामिल होने जैसे प्रस्तावों पर अनुच्छेद 49 के तहत विचार किया जाएगा. (आसिम सलीम/एए)
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बंटा है ब्रिटेन
अपने संदेशों में लंदन के मेयर सादिक खान का कहना है कि या तो टेरीजा मे ब्रिटेन को एक खराब ब्रेक्जिट डील की ओर ले जा रही हैं या यह कोई डील है ही नहीं. उनका कहना है, "यह दोनों ही परिस्थितियां टेरीजा में द्वारा किए गए वादों से कोसों दूर हैं.'' दैनिक 'द इंडिपेंडेंट' द्वारा शुरू किए गए एक ऑनलाइन पीटिशन में करीब नौ लाख लोगों ने दोबारा जनमत संग्रह कराए जाने का समर्थन किया है. यह आंकड़ा देखने में बड़ा लगता है कि लेकिन प्रधानमंत्री मे का यूरोपीय संघ समर्थकों को कहना है कि करीब 1.74 करोड़ लोगों ने यूरोपीय संघ छोड़ने के लिए वोट दिया है.
2016 में हुए जनमत संग्रह में 52 फीसदी लोगों ने यूरोपीय संघ छोड़ने के पक्ष में वोट दिया था. पीपुल्स वोट ने हालांकि अभी तक विस्तार से यह नहीं बताया है कि वह कैसे दोबारा वोट लेगा, क्या सवाल होंगे या दो मतों का कैसे मेल किया जाएगा. अभियान दल ने चेतावनी दी है कि यूरोपीय संघ को मार्च में ब्रिटेन अलविदा कर सकता है. इसके साथ ही भविष्य में बातचीत जारी रखने का भरोसा दे सकता है.
लेबर की दुविधा
लेबर सांसद क्रिस लेसली का कहना है कि ऐसे अंधकारमय ब्रेक्जिट से ब्रिटेन किसी भी डील पर नहीं पहुंच रहा है. इसमें स्पष्टता नहीं है. महत्वपूर्ण है कि लेबर पार्टी के वामपंथी नेता जेरेमी कोर्बिन पीपुल्स वोट रैली को संबोधित नहीं करेंगे. कोर्बिन समेत अन्य वरिष्ठ नेताओं को डर है कि अगर उन्होंने नए मत का समर्थन किया तो उनकी पार्टी को संसदीय सीटें खोनी पड़ सकती हैं. उत्तरी और मध्य इंग्लैंड में लेबर पार्टी का दबदबा है और उन्होंने 2016 में ब्रेक्जिट का समर्थन किया था.
ब्रेक्जिट को लेकर चल रही राजनीति के बीच लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के राजनैतिक विश्लेषक साइमन हिक्स का ट्वीट दिलचस्प है. उन्होंने पिछले हफ्ते ट्वीट किया, ''पीपुल्स वोट कैंपेन का कोई नतीजा नहीं निकलेगा जब तक वे वोटर्स को छोड़कर उनके वैध मुद्दों पर काम करना न शुरू करें.''
वीसी/एमजे (डीपीए)
ब्रिटेन का बाजा बजाने लगा है ब्रेक्जिट
2016 में यूके ने ब्रेक्जिट का फैसला किया. अब उस पर अमल होने लगा है. संबंधों की कड़ियां एक एक कर टूट रही हैं और ब्रिटेन भारी मुश्किल में फंसता जा रहा है.
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फाइनेंस सेक्टर
ब्रेक्जिट की मार ब्रिटेन के बैंकिंग और फाइनेंस सिस्टम पर पड़ी है. कई बड़े बैंक लंदन छोड़कर जर्मन शहर फ्रैंकफर्ट का रुख कर रहे हैं. सैकड़ों नौकरियां खत्म हो चुकी हैं. अनुमान है कि ब्रिटेन में फाइनेंस सेक्टर से जुड़ी कुल 75,000 नौकरियां खत्म होंगी.
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नेशनल हेल्थ सर्विस
यूके की नेशनल हेल्थ सर्विस (NHS) में यूरोपीय संघ के देशों के 62,000 लोग काम करते हैं. ज्यादातर विदेशी कर्मचारी ब्रिटेन छोड़ने लगे हैं. ब्रिटेन के सांसदों के मुताबिक इन कर्मचारियों के बिना NHS 24 घंटे के भीतर ठप जाएगा.
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पशु चिकित्सक
ब्रिटेन में काम करने वाले 90 फीसदी पशु चिकित्सक यूरोपीय संघ के 27 देशों से आते हैं. अब ये लोग भी ब्रिटेन से वापसी की तैयारी कर रहे हैं.
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सूने खेत खलिहान
अब तक यूरोपीय संघ के अलग अलग देशों से आए कुशल कर्मचारियों ने ब्रिटेन के खेतों में कामकाज किया. 65 फीसदी कमर्चारी ईयू से आते रहे. लेकिन ब्रेक्जिट के चलते अब ये कर्मचारी भी नहीं मिलेंगे.
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महंगाई की मार
ब्रेक्जिट के लागू होते ही ब्रिटेन में यूरोप के कई प्रोडक्ट महंगे हो जाएंगे. सिंगल टैक्स मार्केट से बाहर होने पर डेयरी प्रोडक्ट, फल, सब्जियां, प्रोसेस्ड फूड और वाइन जैसी चीजें भी महंगी होंगी.
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अरबों पाउंड का नुकसान
ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को अरबों पाउंड की चपत लगनी तय है. अब ब्रिटेन नए बाजार तलाश रहा है, लेकिन भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में पहले ही यूरोपीय संघ का अच्छा खासा दबदबा है.