यूरोपीय संघ ने ब्रिटेन को "सॉफ्ट" ब्रेक्जिट के लिए अब और भी ज्यादा समय दे दिया है. लेकिन क्या ज्यादा समय मिलने से अफरा तफरी कम हो जाएगी?
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ब्रेक्जिट का तमाशा और भी हास्यास्पद होता चला जा रहा है. यूरोपीय संघ का ये सदस्य अलग भी होना चाहता है लेकिन ये भी नहीं जानता कि अलग होने के लिए खुद को कैसे संभाले. और इसलिए अब इसे मजबूरन यूरोपीय संघ के चुनाव में भी हिस्सा लेना पड़ेगा. एक ऐसा देश चुनाव में हिस्सा लेगा जो साथ रहना ही नहीं चाहता है.
इसलिए अब हैरानी की कोई बात नहीं कि कट्टर रूप से ब्रेक्जिट का समर्थन करने वाले इस मौके का इस्तेमाल यूरोपीय संघ की छवि खराब करने के लिए करेंगे. चुनावों के बाद पहले से ही सुस्त ढांचे पर अब और धूल उड़ाई जाएगी. वहीं ईयू इस बेवकूफी को छिपाने के लिए दिखा रहा है कि उसने समय सीमा बढ़ाई जरूर है लेकिन कुछ शर्तों पर.
यह तय किया गया है कि ब्रिटेन के लोग जब भी कभी आखिरकार एक समझौते पर पहुंचेगे, तो वो उसके अगले महीने की शुरुआत से ईयू से अलग हो सकेंगे. लेकिन ऐसा उन्हें 31 अक्टूबर से पहले पहले ही करना होगा. हालांकि इस पर कोई सवाल नहीं उठाया गया कि इस तरह की समय सीमा की आखिर जरूरत ही क्यों पड़ी.
और भी आगे बढ़ सकता है ब्रेक्जिट
पूरी तरह बंटी हुई संसद और एक ऐसी प्रधानमंत्री के होते जिनके पास ना तो कोई शक्ति है और ना ही कोई समर्थन, अब अक्टूबर तक अशांत माहौल के बावजूद ब्रिटेन को ईयू के साथ सम्मानपूर्वक जीना होगा और ये भी सुनिश्चित करना होगा कि वह ईयू के काम में किसी भी तरह की रुकावट ना डाले. ब्रेक्जिट के लिए हुए जनमत संग्रह से पहले जब प्रचार चल रहा था, उन दिनों "टेक बैक कंट्रोल" यानी "नियंत्रण फिर अपने हाथों में लो" के नारे लग रहे थे. आज इन जादुई शब्दों का मतलब बदला हुआ सा नजर आ रहा है.
ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ के नेताओं की रात भर चली बैठक के दौरान ईयू ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री टेरीजा मे पर शर्तों को थोप कर दबाव बनाया. ईयू को तय करना था कि इतना ढोंग कर चुका ये देश अब शुक्रवार को बिना किसी समझौते के अलग होगा या फिर कुछ और महीनों के लिए उसे मोहलत दी जाएगी.
अब इस समय सीमा के पूरा होने के बाद भी दोनों पक्ष एक समझौते पर पहुंच पाएंगे, ये तो हरगिज तय नहीं है. बहुत मुमकिन है कि ये तमाशा और खिंचेगा. इतना तो अभी से तय है कि अगर जरा भी शंका हुई तो अक्टूबर के अंत में एक बार फिर सीमा बढ़ा दी जाएगी. ऐसा इसलिए क्योंकि ईयू किसी भी हाल में "हार्ड" ब्रेक्जिट के नतीजों की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता.
रेफरेंडम के बाद से अब तक क्या क्या हुआ
ब्रेक्जिट: रेफरेंडम के बाद से अब तक क्या क्या हुआ
24 जून 2016 को ब्रिटेन ने जनमत संग्रह कर यूरोपीय संघ से अलग होने का फैसला लिया और पूरी दुनिया को चौका दिया. तब से अब शुरू हुआ तारीख पर तारीख का सिलसिला थमता नहीं दिखता. जानिए कहां तक पहुंची है ब्रेक्जिट की गाड़ी.
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जून 2016: जनता का फैसला
जनमत संग्रह के दौरान 24 जून को 52 फीसदी ब्रिटेन वासियों ने यूरोपीय संघ से अलग होने के हक में वोट दिया. तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने इसे "ब्रिटेन के लोगों की मर्जी" कहा और अगली ही सुबह अपने पद से इस्तीफा दे दिया. कैमरन ब्रेक्जिट के हक में नहीं थे.
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जुलाई 2016: ब्रेक्जिट मतलब ब्रेक्जिट
11 जुलाई को तत्कालीन गृह मंत्री टेरीजा मे ने प्राधमंत्री का पद संभाला और देश से वायदा किया: "ब्रेक्जिट मतलब ब्रेक्जिट". हालांकि जनमत संग्रह से पहले मे भी कैमरन की ही तरह ब्रेक्जिट विरोधी थीं. पद संभालते वक्त उन्होंने यह घोषणा नहीं की कि वे ईयू के साथ ब्रेक्जिट पर चर्चा कब शुरू करेंगी.
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मार्च 2017: अलविदा
29 मार्च को टेरीजा मे ने आर्टिकल 50 के तहत ब्रेक्जिट की प्रक्रिया शुरू की. ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने की औपचारिक तारीख 29 मार्च 2019 तय की गई. यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष डॉनल्ड टस्क ने उस वक्त अपने बयान के अंत में कहा, "हमें अभी से आपकी कमी खलने लगी है. आपका शुक्रिया. अलविदा."
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जून 2017: बहस शुरू
19 जून को ब्रसेल्स में ब्रेक्जिट की प्रक्रिया पर बहस शुरू हुई. पहले चरण की बातचीत में ब्रिटेन ईयू द्वारा तय कई गई टाइमलाइन से संतुष्ट नहीं दिखा. लेकिन बावजूद इसके उसे ईयू की शर्तें माननी पड़ीं. ईयू ने ब्रेक्जिट को दो चरणों में बांटा. पहले चरण में तय होना था कि ब्रिटेन ईयू से कैसे अलग होगा. और दूसरे चरण में तय होना था कि ब्रेक्जिट के बाद ईयू और ब्रिटेन के संबंध कैसे आगे बढ़ेंगे.
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जुलाई से अक्टूबर 2017: पहला चरण
पहले चरण पर बहस तो हुई लेकिन तीन मुख्य मुद्दों पर कोई ठोस नतीजा निकलता नहीं दिखा. पहला, ईयू छोड़ने के बाद ब्रिटेन किस तरह से ईयू के बजट में भागीदार होगा. दूसरा, ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन और ईयू के नागरिकों के अधिकार क्या क्या होंगे. और तीसरा, क्या ब्रिटेन आयरलैंड और उत्तरी आयरलैंड के बीच दरवाजे खुले रख सकेगा.
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दिसंबर 2017: दूसरा चरण
बाकी के सभी 27 सदस्य देशों ने माना कि दूसरे चरण की बहस शुरू की जा सकती है. इस चरण में ईयू और ब्रिटेन के बीच भविष्य में होने वाले व्यापार के लिए शर्तें तय करनी थीं. डॉनल्ड टस्क ने चेतावनी दी कि दूसरे चरण की बातचीत ब्रिटेन के लिए बेहद मुश्किल साबित हो सकती है.
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जुलाई 2018: इस्तीफे
ब्रिटेन के विदेश मंत्री बॉरिस जॉनसन और ब्रेक्जिट मंत्री डेविड डेविस ने ब्रेक्जिट से जुड़ी योजना पर असहमति दिखाते हुए इस्तीफे दे दिए. इस योजना के अनुसार ब्रिटेन और ईयू के बीच व्यापार के दौरान सभी वस्तुओं पर एक जैसे नियम लागू होने थे. जेरेमी हंट और डोमिनीक राब ने जॉन्सन और डेविस की जगह ली.
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सितंबर 2018: नाकाम मे
ब्रेक्जिट के लिए मे के प्रस्ताव ईयू के नेताओं की पसंद से काफी दूर दिखे. हालात यहां तक पहुंच गए कि डॉनल्ड टस्क ने इंस्टाग्राम पर टेरीजा मे को ट्रोल करते हुए एक तस्वीर डाली. तस्वीर में टस्क और मे साथ खड़े हैं और उसे कैप्शन दिया गया, "केक का एक टुकड़ा चाहेंगे? माफ कीजिए, साथ में चेरी नहीं मिलेगी."
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दिसंबर 2018: अविश्वास मत
10 दिसंबर को मे ने ब्रेक्जिट डील पर संसद में होने वाले एक वोट को स्थगित कर दिया. अगले दिन वे जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल से मिलीं और उनसे समर्थन की मांग की. लेकिन इसी दौरान विपक्षी सांसद अविश्वास प्रस्ताव ले आए. हालांकि मे इसे जीत गईं.
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जनवरी 2019: संसद में डील
16 जनवरी में ब्रिटिश संसद में टेरीजा मे की ब्रेक्जिट डील पर मतदान हुआ. डील के खिलाफ 432, जबकि डील के पक्ष में सिर्फ 202 वोट पड़े. डॉनल्ड टस्क ने इस पर सुझाव दिया कि ब्रिटेन के लिए सबसे अच्छा उपाय यही होगा कि वह ईयू में ही बना रहे. इस बीच विपक्षी लेबर पार्टी ने एक बार फिर अविश्वास प्रस्ताव लाने की घोषणा कर दी.
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मार्च 2019: बढ़ाई समय सीमा
मे डील में बदलाव कर 12 मार्च को इसे फिर से संसद में ले कर आईं. इस बार डील के खिलाफ 391 और पक्ष में 242 वोट पड़े. यूरोपीय संघ के नेताओं ने चेतावनी दी कि ऐसी स्थिति में "नो डील ब्रेक्जिट" यानी बिना किसी समझौते के ही ब्रिटेन को ईयू से अलग होना होगा. दो दिन बाद सांसदों से ब्रेक्जिट की तारीख आगे बढ़ाने के हक में वोट दिया. अगली तारीख 12 अप्रैल की थी.
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मार्च 2019: तीसरी बार
29 मार्च - शुरुआत में इसी दिन को ईयू से अलग होने का दिन चुना गया था. इस दिन टेरीजा मे तीसरी बार डील का प्रस्ताव संसद में ले कर पहुंचीं. एक बार फिर उन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा. इस बार 344 वोट उनके खिलाफ थे, जबकि 286 उनके हक में. एक समझौते की उम्मीद में मे विपक्षी नेता जेरेमी कॉर्बिन से मिलीं और अपनी ही पार्टी के लोगों को नाराज कर बैठीं.
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अप्रैल 2019: तारीख पर तारीख
12 अप्रैल की डेडलाइन तक तो कोई समझौता होता नहीं दिख रहा था. इसलिए मे ने समयसीमा और आगे बढ़ाने की मांग की. सवाल था कि इस बार कितना और समय दिया जाए. नई तारीख तय हुई 31 अक्टूबर की. अगर ब्रिटेन चाहे तो उससे पहले भी अलग हो सकता है. लेकिन अब ऐसे में उसे मई में होने वाले यूरोपीय संघ के चुनावों में हिस्सा लेना होगा.
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इस तमाशे को रोकने का सबसे सरल तरीका होता कि ब्रिटेन की सरकार आर्टिकल 50 को ही हटा देती. ऐसे में ब्रिटेन के पास अपने मसले हल करने के लिए दुनिया भर का वक्त होता. ब्रिटेन को एक और मौका मिलता और वह ईयू के साथ नए समझौते पर बात कर सकता था. इसके बाद ब्रेक्जिट के कट्टर समर्थकों की चीख पुकार सुनने लायक होती. आर्टिकल 50 के हटाए जाने के बाद टेरीजा मे को इस्तीफा दे देना पड़ता लेकिन वो तो पहले ही एक बार संसद को लाइन पर लाने के लिए ऐसा प्रस्ताव दे ही चुकी हैं.
पीछा नहीं छोड़ेगा ब्रेक्जिट का भूत
नागरिकों और उद्योगों के लिए अनिश्चितता बरकरार है. सब कुछ हवा में है और निवेश के लिए ये जहर जैसा है. अब तक ईयू के सभी 27 सदस्य देश ब्रेक्जिट की प्रक्रिया को लेकर उल्लेखनीय रूप से एकजुट रहे हैं. लेकिन ये एकता अब छिन्न भिन्न होने लगी है. फ्रांस ने बहुत कोशिश की कि समय सीमा इतनी ना बढ़े लेकिन ज्यादातर सदस्य देश इसके हक में थे.
टेरीजा मे की ही तरह फ्रांस भी इसे 30 जून तक ही बढ़ाना चाहता था ताकि ब्रिटेन को यूरोपीय संघ के चुनावों में हिस्सा लेने से रोका जा सके. इसके विपरीत जर्मनी ने तो दिसंबर या फिर अगले साल मार्च तक इसे खींचने का प्रस्ताव दिया था ताकि ब्रेक्जिट के मुद्दे को सुर्खियों से दूर किया जा सके. फिर आखिर में सबने एक समझौता कर लिया. एक ऐसा समझौता जिसे निष्पक्ष नजरिए से समझना मुमकिन ही नहीं है. लेकिन उन्हें बीच का रास्ता चुनना था, तो अक्टूबर चुन लिया.
इस बारी मिली एक्सटेंशन को एक नाम भी मिल गया है - हैलोवीन ब्रेक्जिट. क्योंकि माना जाता है कि अक्टूबर की आखिरी रात को भूतप्रेत आसपास घूम रहे होते हैं. क्या पता, यही ब्रिटेन के लिए ये एक अच्छा शगुन हो.
यूके, जीबी, ब्रिटेन और इंग्लैंड में फर्क
यूके, जीबी, ब्रिटेन और इंग्लैंड में फर्क
कभी यूके, कभी ग्रेट ब्रिटेन तो कभी इंग्लैंड, आखिर ये चक्कर क्या है. चलिए इस समझते हैं ताकि आगे ये कंफ्यूजन न रहे.
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यूनाइटेड किंगडम (यूके)
असल में इसका पूरा नाम यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एंड नॉदर्न आयरलैंड है. यूके में इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, उत्तरी आयरलैंड और वेल्स आते हैं. इन चारों के समूह को ही यूके कहा जाता है.
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ग्रेट ब्रिटेन
इंग्लैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स के संघ को ग्रेट ब्रिटेन कहा जाता है. तीनों अलग अलग प्रांत हैं. तीनों प्रांतों की अपनी संसद है लेकिन विदेश नीति और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर फैसला ग्रेट ब्रिटेन की संघीय संसद करती है. तस्वीर में बायीं तरफ इंग्लैंड का झंडा है, दायीं तरफ स्कॉटलैंड का. बीच में ग्रेट ब्रिटेन का झंडा है.
तस्वीर: Andy Buchanan/AFP/Getty Images
ब्रिटेन
यह नाम रोमन काल में इस्तेमाल हुए शब्द ब्रिटानिया से आया है. ब्रिटेन इंग्लैंड और वेल्स को मिलाकर बनता है. हालांकि अब सिर्फ ब्रिटेन शब्द का इस्तेमाल कम होता है. यूरो 2016 में इंग्लैंड बनाम वेल्स का मैच.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Rain
इंग्लैंड
इंग्लैंड एक देश है. जिसकी राजधानी लंदन है. स्काटलैंड और वेल्स की तरह इंग्लैंड की अपनी फुटबॉल और क्रिकेट टीम हैं. इन टीमों में दूसरे प्रांतों के खिलाड़ी शामिल नहीं होते हैं.
तस्वीर: Reuters/J.-P. Pelissier
राजधानियां
उत्तरी आयरलैंड की राजधानी बेलफास्ट है. स्कॉटलैंड की राजधानी एडिनबरा है और वेल्स की राजधानी कार्डिफ है.
भाषा
अंग्रेजी भाषा होने के बावजूद इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, उत्तरी आयरलैंड और वेल्स में लहजे का फर्क है. आम तौर पर मजाक में लोग एक दूसरे इलाके के लहजे का मजाक भी उड़ाते हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpa
खासियत
स्कॉटलैंड के लोगों को अपनी विश्वप्रसिद्ध स्कॉच पर गर्व है. बैगपाइपर का संगीत स्कॉटलैंड की पहचान है. वहीं आयरलैंड के लोग आयरिश व्हिस्की और बियर का गुणगान करते हैं. इंग्लैंड मछली और चिप्स के लिए मशहूर है.
तस्वीर: Getty Images
मतभेद
राजस्व के आवंटन के अलावा ग्रेट ब्रिटेन (इंग्लैंड, वेल्स और स्कॉटलैंड) के प्रांतों के बीच विदेश नीति को लेकर भी मतभेद रहते हैं. यूरोपीय संघ की सदस्यता को लेकर मतभेद सामने भी आ चुके हैं. अगर ग्रेट ब्रिटेन यूरोपीय संघ से निकला तो स्कॉटलैंड स्वतंत्र देश बनने का एलान कर चुका है.
तस्वीर: Andy Buchanan/AFP/Getty Images
ईयू से मतभेद
यूरोपीय संघ के आलोचकों का कहना है कि ईयू की सदस्यता से ब्रिटेन को आर्थिक और सामाजिक क्षति पहुंची है. तटीय इलाकों में रहने वाले मछुआरे करीब करीब बर्बाद हो चुके हैं. बड़ी संख्या में पोलैंड से आए प्रवासियों का मुद्दा भी समय समय पर उठता रहा है.
तस्वीर: Reuters/T. Melville
राजनैतिक खींचतान
यूरोपीय संघ की नीतियां सदस्य देशों को लागू करनी पड़ती हैं. चाहे वह बजट का वित्तीय घाटा हो, शरणार्थियों का मुद्दा हो या फिर मार्केट रेग्युलेशन. ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन इसे राजनीतिक हस्तक्षेप करार दे चुके हैं.