2015 में कुछ इस्लामी बंदूकधारियों ने फ्रांस की व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दो की संपादकीय टीम को एक हत्याकांड में खत्म कर दिया था. शार्ली एब्दो एक बार फिर विवादित कार्टून छाप रहा है.
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उस हमले के कथित सहयोगियों पर मुकदमा शुरू होने के मौके पर पत्रिका ने पैगंबर मोहम्मद के कार्टून दोबारा छापने की बात कही है. पत्रिका के निदेशक लॉरां रिस सुरिसे ने शार्ली एब्दो के ताजा अंक के संपादकीय में लिखा है, "हम कभी नहीं झुकेंगे, हम कभी पीछे नहीं हटेंगे." इसी अंक में कार्टून दोबारा छापे जा रहे हैं.
फ्रांस के सबसे मशहूर कार्टूनिस्टों समेत 12 लोगों की 7 जनवरी 2015 को नरसंहार में जान ले ली गई. दो भाइयों साएद और शेरिफ कुआशी ने पेरिस में पत्रिका के दफ्तर में घुस कर अंधाधुंध गोलीबारी की. इन दोनों ने एक पुलिसकर्मी की भी जान ली और खुद को अल कायदा से जुड़ा बताया. इन लोगों ने गोलीबारी के बाद कहा, "हमने पैगंबर का बदला ले लिया."
इस दौरान एक यहूदी सुपरमार्केट को भी निशाना बनाया गया. अगले कई दिनों तक अलग अलग जगहों पर हमले होते रहे. सुपरमार्केट में अमेदी कुलबेली नाम के एक शख्स ने चार लोगों को बंधक बनाया और फिर उनकी हत्या कर दी. आखिरकार कुल मिला कर 17 लोगों की हत्या हुई. कुलबेली और ये दोनों भाई पुलिस की जवाबी कार्रवाई में मारे गए. इन लोगों को हथियार और दूसरी तरह की कथित मदद देने वाले 14 लोगों का पुलिस ने पता लगाया. इन्होंने खुद को इस्लामिक स्टेट से जुड़ा बताया. इन्हीं 14 लोगों के खिलाफ पेरिस में बुधवार से मुकदमा शुरू हो रहा है. इनमें एक महिला भी शामिल है.
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ऐसी थीं पैगंबर मोहम्मद की बीवी
पैगंबर मोहम्मद की पहली बीवी खदीजा बिंत ख्वालिद की इस्लाम धर्म में महिलाओं के अधिकार तय करवाने में अहम भूमिका मानी जाती है. कई मायनों में उन्हें मुस्लिम समुदाय की पहली फेमिनिस्ट भी माना जाता है.
पिता से सीखे व्यापार के गुर
खदीजा के पिता मक्का के रहने वाले एक सफल व्यापारी थे. कुराइश कबीले के पुरुष प्रधान समाज में खदीजा को हुनर, ईमानदारी और भलाई के सबक अपने पिता से मिले. उनके पिता फर्नीचर से लेकर बर्तनों और रेशम तक का व्यापार करते थे. उनका कारोबार उस समय के प्रमुख व्यापारिक केंद्रों मक्का से लेकर सीरिया और यमन तक फैला था.
आजादख्याल और साहसी
खदीजा की शादी पैगंबर मोहम्मद से पहले भी दो बार हो चुकी थी. उनके कई बच्चे भी थे. दूसरी बार विधवा होने के बाद वे अपना जीवनसाथी चुनने में बहुत सावधानी बरतना चाहती थीं और तब तक अकेले ही बच्चों की परवरिश करती रहीं. इस बीच वे एक बेहद सफल व्यवसायी बन चुकी थीं, जिसका नाम दूर दूर तक फैला.
तस्वीर: Fotolia/Paul Posthouwer
ना उम्र की सीमा हो
पैगंबर मोहम्मद से शादी के वक्त खदीजा की उम्र 40 थी तो वहीं मोहम्मद की मात्र 25 थी. पैगंबर मोहम्मद को उन्होंने खुद शादी के लिए संदेश भिजवाया था और फिर शादी के बाद 25 सालों तक दोनों केवल एक दूसरे के ही साथ रहे. खदीजा की मौत के बाद पैगंबर मोहम्मद ने 10 और शादियां कीं. आखिरी बीवी आयशा को तब जलन होती थी जब वे सालों बाद तक अपनी मरहूम बीवी खदीजा को याद किया करते.
तस्वीर: Fotolia/Carina Hansen
आदर्श पत्नी, प्रेम की मूरत
अपनी शादी के 25 सालों में पैगंबर मोहम्मद और खदीजा ने एक दूसरे से गहरा प्यार किया. तब ज्यादातर शादियां जरूरत से की जाती थीं लेकिन माना जाता है कि हजरत खदीजा को पैगंबर से प्यार हो गया था और तभी उन्होंने शादी का मन बनाया. जीवन भर पैगंबर पर भरोसा रखने वाली खदीजा ने मुश्किल से मुश्किल वक्त में उनका पूरा साथ दिया. कहते हैं कि उनके साथ के दौरान ही पैगंबर पर अल्लाह ने पहली बार खुलासा किया.
तस्वीर: fotolia/Anatoliy Zavodskov
पहले मुसलमान
हजरत खदीजा को इस्लाम में विश्वास करने वालों की मां का दर्जा मिला हुआ है. वह पहली इंसान थीं जिन्होंने मोहम्मद को ईश्वर के आखिरी पैगंबर के रूप में स्वीकारा और जिन पर सबसे पहले कुरान नाजिल हुई. माना जाता है कि उन्हें खुद अल्लाह और उसके फरिश्ते गाब्रियाल ने आशीर्वाद दिया. अपनी सारी दौलत की वसीयत कर उन्होंने इस्लाम की स्थापना में पैगंबर मोहम्मद की मदद की.
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गरीबों की मददगार
अपने व्यापार से हुई कमाई को हजरत खदीजा गरीब, अनाथ, विधवा और बीमारों में बांटा करतीं. उन्होंने अनगिनत गरीब लड़कियों की शादी का खर्च भी उठाया और इस तरह एक बेहद नेक और सबकी मदद करने वाली महिला के रूप में इस्लाम ही नहीं पूरे विश्व के इतिहास में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा.
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शार्ली एब्दो के ताजा अंक के कवर पर दर्जन भर कार्टून छापे गए हैं. इन्हें सबसे पहले 2005 में डेनमार्क के अखबार ज्युलैंड पोस्टेन ने छापा था. इसके बाद 2006 में इन्हें शार्ली एब्दो ने छापा. कार्टूनों के छपने के बाद दुनिया भर में बवाल हुआ. कवर के मध्य में काबू के नाम से मशहूर कार्टूनिस्ट जाँ काबु का बनाया कार्टून है. काबू की भी इस नरसंहार में मौत हुई. पहले पन्ने की हेडलाइन है, "ऑल ऑफ दिस जस्ट फॉर दैट (यह सब बस इसके लिए हुआ)." मुसलमान पैगंबर मुहम्मद की तस्वीर या कार्टून को ईशनिंदा के रूप में देखते हैं.
शार्ली एब्दो अलग अलग धर्मों के नेताओं का कार्टून बनाने को अभिव्यक्ति की आजादी मानता है और अकसर यह काम करता है. पत्रिका में इन कार्टूनों को बार बार छापा जाता है.
पत्रिका की संपादकीय टीम का कहना है कि अब यह उन कार्टूनों को दोबारा छापने का सही समय है. उनके मुताबिक मुकदमा शुरू होने के लिहाज से अब यह "जरूरी" है. टीम ने लिखा है, "जनवरी 2015 के बाद हमसे अकसर मोहम्मद के दूसरे कार्टूनों को छापने के लिए कहा जाता रहा. हम हमेशा यह करने से मना करते रहे. इसलिए नहीं क्योंकि इस पर कोई रोक है, कानून हमें ऐसा करने की इजाजत देता है. हमें ऐसा करने के लिए किसी मकसद की जरूरत थी, ऐसा मकसद जिसका कोई अर्थ हो और जिसे लेकर बहस की जा सके." पत्रिका के दोबारा कार्टून छापने के फैसले ने उसे फ्रांस में बहुत से लोगों के लिए बोलने की आजादी का अगुआ बना दिया. हालांकि बहुत से लोग मानते हैं कि वह जरूरत से ज्यादा अपनी हदों से पार जाता है.
इन सबके बाद भी नरसंहार ने लोगों को दुख की घड़ी में एकजुट किया. बहुत दिनों तक #JeSuisCharile(आइ एम शार्ली) वायरल होता रहा.
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कार्टून के जरिए समझें, कैसी होती हैं जर्मन आदतें
जब आप जर्मन लोगों के बारे में सोचते हैं तो आपके जहन में सबसे पहली बात क्या आती है? वक्त के पाबंद! कार्टूनिस्ट मिगुएल फेर्नानडेस ने कुछ ऐसी ही आदतों को अपने कार्टूनों में दर्शाया है. आप भी देखिए...
रात को फ्लाइट नहीं
भारत में अधिकतर अंतरराष्ट्रीय उड़ानें रात में ही होती हैं, जबकि जर्मनी में ऐसा नहीं है क्योंकि एयरपोर्ट के आसपास रहने वालों की नींद का भी तो ख्याल करना है. फ्रैंकफर्ट हवाई अड्डे से भी आधी रात को कोई उड़ान नहीं भरी जाती. ऐसे में अगर कोई एलियन भी रात में जर्मनी आ जाए, तो उससे भी जुर्माना ले लिया जाएगा.
प्लेट भर कर
चाहे दफ्तर की कैंटीन हो या फिर छुट्टी बिताने के लिए कोई रिजॉर्ट. जब खाने की बारी आती है, तो जर्मन लोग प्लेट को पूरा भर लेते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि अकसर वे सुबह और शाम ठंडा नाश्ता ही लेते हैं. गर्म खाना एक ही बार खाते हैं, वो भी पेट.. या कहें प्लेट भर कर.
छोटी सी कैंची, बड़े सारे काम
जर्मन लोग परफेक्शनिस्ट होते हैं. सब काम सलीके से होना चाहिए. अपने घर के बगीचे भी ये खुद ही सजाते हैं. और वह भी इस शिद्दत से कि घास के हर सेंटीमीटर पर ध्यान होता है. ऐसे में कई बार तो नाखून काटने के लिए इस्तेमाल होने वाली छोटी सी कैंची गार्डन में इस्तेमाल होती दिखती है.
सैंडल संग जुराबें
कहीं भी छूट्टी बिताने जाएं, अपने साथ बिरकनश्टॉक ब्रैंड के सैंडल ले जाना नहीं भूलते. गर्मी में पहने जाने वाले इन सैंडलों के साथ दुनिया के और किसी भी देश में लोग जुराब नहीं पहनते हैं. जहां आप ये कॉम्बिनेशन देखें, समझ जाएं कि सामने वाला यकीनन जर्मन है.
मजाक समझ में नहीं आता
कहा जाता है कि अगर कोई जर्मन चुटकुला सुनाए तो उसे अंत में कहना पड़ता है कि अब हंस दीजिए, चुटकुला खत्म हो चुका है. जर्मन लोग जब मजाक करने की कोशिश करते भी हैं तो वह मजाक मजेदार नहीं रह जाता.
वक्त के पाबंद
ग्यारह बजे की मीटिंग के लिए ग्यारह बजने में पांच मिनट कम पर पहुंच जाएं, तो ही बेहतर है. अगर कहीं ग्यारह बज कर पांच मिनट पर पहुंचे, तो समझिए कि बहुत देर हो गई है. वक्त के मामले में जर्मन लोग भारतीयों से बहुत अलग होते हैं.
एंटीनेशनल?
फुटबॉल के मैच से पहले राष्ट्रगान की धुन जरूर सुनाई देती है लेकिन स्कूलों में बच्चे राष्ट्रगान नहीं गाते. इसकी वजह जर्मनी का इतिहास है. नाजी काल के दौरान राष्ट्रवाद की भावना ने जो नुकसान पहुंचाया, देश उससे आज भी शर्मिंदा है.
कुत्तों से प्यार
जर्मन लोग अपने कुत्तों से उतना ही प्यार करते हैं जितना कि अपने बच्चों से. कई मामलों में तो वे अपने बच्चों के साथ सख्ती दिखा सकते हैं लेकिन कुत्तों के साथ नहीं. उन्हें बहुत लाड़ प्यार से पाला जाता है.
मेरा सामान कहां है?
जर्मन लोग जब देश से बाहर कहीं घूमने जाते हैं तो सबसे ज्यादा अपनी ब्रेड और कॉफी को याद करते हैं. लेकिन अगर कहीं किसी जर्मन का सूटकेस इधर उधर हो गया, तो वह बाकी हर चीज भूल जाता है.
तकनीक के दीवाने
जर्मन तकनीक दुनिया भर में मशहूर है. जिस चीज पर "मेड इन जर्मनी" का ठप्पा लग जाए, उस पर लोगों को ज्यादा भरोसा होता है. तकनीक के दीवाने इन लोगों के पास हर काम के लिए एक अलग औजार होता है. सही औजार ना हो, तो उस काम को हाथ ही नहीं लगाएंगे.
कठिन भाषा
अंग्रेजी के मुकाबले जर्मन भाषा काफी मुश्किल है. इसकी व्याकरण समझने में अच्छे अच्छों के पसीने छूट जाते हैं. अंग्रेजी के एक सीधे सरल से "द" के जर्मन में अनेक रूप होते हैं.
आदत के मारे
अधिकतर जर्मन एक बार जिस देश में छुट्टी बिताने जाते हैं, तो बार बार वहीं जाते रहते हैं. मसलन स्पेन इन्हें काफी पसंद है. और वहां जा कर भी वे आदत से मजबूर जर्मन खाना ही पसंद करते हैं.
ये मेरा पाला
भारतीय लोग जर्मनों की इस आदत को बखूबी समझ सकेंगे. जर्मन लोग जब किसी बीच पर या पार्क में जाते हैं तो वहां अपना तौलिया या चटाई रख देते हैं, ये बताने के लिए कि ये जगह तो हमने ले ली, आप कहीं और जाइए.
शिकायत का शौक
अगर कोई जर्मन आपसे कहे, "नॉट बैड" तो उसका मतलब है कि वह आपकी तारीफ कर रहा है. जर्मन लोग बहुत खुल कर तारीफ नहीं करते हैं. लेकिन जब शिकायत करने की बारी आती है, तो कोई गुंजाइश नहीं छोड़ते हैं.
कुछ ऐसी भी आदतें
जर्मनी में कई ऐसे पार्क, झीलें, स्वीमिंग पूल इत्यादि हैं जहां लोग निर्वस्त्र हो कर घूम सकते हैं. इसे एफकेके या फ्री बॉडी कल्चर कहा जाता है. कई बार जर्मनी आने वालों के लिए ये काफी बड़ा झटका होता है.
ब्रिटेन पर तंज
ब्रेक्जिट का मुद्दा इतना लंबा लटक गया कि समझ ही नहीं आ रहा है कि देश ईयू में रहना चाहता है या नहीं. इस कार्टून में टीटी एक ब्रिटिश यात्री से पूछ रहा है कि आप आ रहे हैं या जा रहे हैं.