दर्दनाक हादसे में 44 की मौत
३० अक्टूबर २०१३इस बार हादसा बुधवार तड़के महबूबनगर जिले के पालेम गांव के पास हुआ. बैंगलोर से हैदराबाद आ रही लक्जरी वॉल्वो बस सड़क के किनारे बने कल्वर्ट से टकराई. टक्कर के फौरन बाद बस में आग लग गई. आग इतनी तेजी से फैली कि बस में सो रहे यात्रियों को कुछ समझने का मौका भी नहीं मिला. देखते ही देखते बस में धुंआ फैल गया. एक पुलिस अधिकारी के मुताबिक, "ऐसा लगता है कि बस बहुत तेज रफ्तार में थी, तभी उसका ईंधन टैंक सड़क किनारे बने कल्वर्ट से टकराया और आग लग गई. बस में सवार यात्री तो कुछ समझ में आने से पहले ही जल गए. पूरी बस खाक हो गई."
वोल्वो बस में खिड़कियां नहीं खुलती हैं, दरवाजे भी ऑटोमैटिक होते हैं, जिन्हें सिर्फ ड्राइवर ही खोल सकता है. शुरुआती रिपोर्टों के मुताबिक सेंट्रल लॉकिंग सिस्टम की वजह से यात्री बाहर नहीं निकल सके. ड्राइवर, क्लीनर समेत पांच लोग जान बचाने में कामयाब रहे.
बस में ड्राइवर और क्लीनर समेत 49 लोग सवार थे. बस मंगलवार रात 11 बजे बैंगलोर से चली थी. मृतकों में ज्यादातर लोग ऐसे थे जो दीपावली का त्योहार मनाने के लिए घर जा रहे थे. पुलिस ने ड्राइवर और क्लीनर को हिरासत में ले लिया है. बस चलाने वाली निजी फर्म से भी पूछताछ की जा रही है.
हादसे की जांच के लिए वोल्वो इंडिया ने अपने अधिकारियों को घटनास्थल पर भेजा है.
भारत में खराब सड़कों, तेज रफ्तार, और असुरक्षित ड्राइविंग की वजह से ज्यादातर हादसे होते हैं. देश में बड़ी कर्मशियल गाड़ियां अक्सर नियमों को ताक पर रखती हैं. उनके ड्राइवर दुश्वार हालातों में कई घंटों तक गाड़ी चलाते रहते हैं. कई बार उन्हें नींद आ जाती है. छोटी गाड़ियां और दुपहिया बेतरतीब चलते हैं.
ये कुछ ऐसे कारण हैं जिनके चलते हर साल सवा लाख से ज्यादा भारतीय जान गंवाते हैं. 2012 में भारत में सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या 1,40,000 हजार थी, यानी हर घंटे 16 लोग सड़क हादसों में मारे गए. लेकिन इसके बावजूद सड़क परिवहन को सुरक्षित बनाने के नाम पर वहां कोई राष्ट्रीय पहल नहीं दिखती. हादसों की जांच स्थानीय पुलिस करती है. उसके पास तकनीकी विशेषज्ञ नहीं के बराबर होते हैं. राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी कोई संस्था नहीं जो परिवहन को सुरक्षित बनाने के लिए वैज्ञानिक ढंग से काम करे और भ्रष्टाचार से भरे मौजूदा सिस्टम को जिम्मेदार बनाए.
ओएसजे/एएम (एएफपी)