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फिल्में समाज का आईना होती हैं

१४ दिसम्बर २०१२

मंथन कार्यक्रम हमारे दर्शकों को पसंद आ रहा है जानकार हमें बहुत खुशी हुई. साथ ही वेबसाइट पर लिखी रिपोर्टों को पढ़ कर हमारे पाठक अकसर अपनी प्रतिक्रिया भेजते रहते हैं, इन्हें आप भी पढ़िए...

Bollywood actor Aamir Khan gestures during a press conference to promote his new film ‘Three Idiots’ in New Delhi, India, Wednesday, Nov. 25, 2009. The film is about three students and their struggle to survive amidst the pressure of college life. (AP Photo/Manish Swarup)
तस्वीर: AP

ज्ञान विज्ञान से जुड़ी अनेक दिलचस्प व रोचक जानकारी "मंथन" कार्यक्रम से मिल रही हैं, इसमें अनेक नये नये विषयों का समावेश है और पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति सजगता भी आ रही है, यह प्रयास सार्थक है. जिज्ञासा से परिपूर्ण यह प्रसारण भारत के राष्ट्रीय नेटवर्क चैनल पर आ रहा है. DW की वेबसाइट की जितनी भी तारीफ की जाए बहुत ही कम है क्योंकि महत्वपूर्ण विषयों पर रोचक जानकारी हमें वहां मिलती है जो किसी और किसी वेबसाईट में देखने को नही मिलती.
हेमलाल प्रजापति, सोनपुरी, जिला बिलासपुर, छत्तीसगढ़

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आपके कार्यक्रमों में भारत और चीन के 50 वर्षों का तुलनात्मक अध्ययन अत्यंत रोचक लगा. देखा जाए तो भारत के विरुद्ध चीन की तरफ से शुरू किया गया युद्ध तत्कालीन नेताओं का अपने देश की जनता के बढते हुई असंतोष से ध्यान हटाना था. बाद में भारत पाकिस्तान की शत्रुता से भी दोनों देशों के सम्बन्ध पहले की भांति नहीं हो पाए. यह एक कटु सत्य है कि हमारे देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था होने पर हम चीन की एकाधिकार व्यवस्था में हो रही प्रगति का मुकाबला नहीं कर पा रहे. केवल आबादी की वृद्धि में हम चीन को अवश्य पीछे छोड़ देंगे इसमें कोई शक की गुंजाइश नहीं है. बांग्लादेश में हुई अग्नि दुर्घटना का जो आपने वर्णन किया उसको देख कर अत्यंत दुःख हुआ. आपकी वेबसाइट बहुत अच्छी लगी, जिसके लिए अनेकानेक बधाइयां.
हरीश चन्द्र शर्मा, हसनपुर, जिला अमरोहा, उत्तर प्रदेश

तस्वीर: DW

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आज भी मुझे वह दिन याद है जब मैं 12 साल का था. मैंने अपने वालिद से मिली ईदी के पैसों से एक रेडियो खरीदा था. फिर शुरू हुआ डीडब्ल्यू हिंदी और मेरा सफर. मैं मऊनाथ भंजन का रहने वाला हूं. बचपन से लोगों को होटल और दुकानों पर रेडियो सुनते हुए देखा है. सर्दी और गर्मी में, अंधेरी रात में, छत पर बैठ कर जो मजा रेडियो सुनने में था वो इंटरनेट में नहीं. शाम होते ही लोग रेडियो ऑन कर देते थे. अब रेडियो की जगह मोबाइल और इंटरनेट ने ले ली है. सबसे पहले मेरे एक दोस्त ने डीडब्ल्यू हिंदी के बारे में मुझे बताया. मैं हर रोज सुनता था. मेरी विज्ञान में ज्यादा दिलचस्पी थी, फिर मैंने मेहनत कर पढाई की और दिल्ली चला आया. रेडियो भूल गया, अब इंटरनेट ने वो जगह ले ली. अब भी मैं हर रोज डीडब्ल्यू हिंदी पढता हूं, पर रेडियो अब भी याद आता है.
फहीम अख्तर, नई दिल्ली

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आमिर खान के मत से मैं पूरी तरह से सहमत हूं. फिल्में समाज का आईना होती हैं, पर आज की फिल्मों का नैतिक स्तर पूरी तरह से गिर गया है. मजे की बात यह है कि ऐसी फिल्में हिट भी हो जाती है. सीधी-सी बात है कि फिल्मों का फूहड़पन कुछ लोगों को पसंद भी आता होगा लेकिन यह भी सच है कि कई स्तरीय फिल्में लोगों की सोच को बदल कर उनमें रचनात्मक बदलाव पैदा कर देती है. ऐसी फिल्मों की आमद कम जरूर है, पर ये समाज की धारा बदलने वाली कालजयी कृतियां साबित होती हैं. फिल्मों का उद्देश्य समाज की रौ में बहना नहीं, बल्कि समाज की सोच बदलना होना चाहिए.
माधव शर्मा, नोखा जोधा, नागौर, राजस्थान

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क्या कम भ्रष्ट होती हैं महिलाएं आलेख पढ़ा. मैं इस बात से कतई सहमत नहीं हूं कि भ्रष्ट होने का कोई भी संबंध लिंग से है. भ्रष्टाचार तो ऐसा रोग है जिसकी चपेट में वो हर व्यक्ति आना चाहता है जिसे इससे लाभ हो रहा हो. इसका अपवाद होना बहुत मुश्किल है. अगर व्यक्ति विशेष की संस्था के नियम ऐसे हों कि वो इसमें लिप्त न हो पाए तो बात दूसरी है.

तस्वीर: DW/Brunsmann

20 साल पहले पहला एसएमएस भेजा गया था यह जानकारी देने वाला आलेख बेहद पसंद आया. आज यह हकीकत है कि एसएमएस का प्रचलन बेहद तेजी से बढ़ा है. लोग मोबाइल पर इतने एसएमएस करते हैं कि पूछिए मत...युवाओं में तो इसका क्रेज बहुत ही ज्यादा है. उंगलियां मोबाइल पर नाचती ही रहती है. प्यार का इजहार या इकरार या फिर तकरार....जय हो एसएमएस बाबा की. रिपोर्ट बहुत ही सुंदर है.

उमेश कुमार यादव, अलीगंज, लखनऊ, उत्तर प्रदेश

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संकलनः विनोद चड्ढा

संपादनः एन रंजन

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