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"फुकुशिमा के बावजूद परमाणु ऊर्जा बढ़ेगी"

२२ अगस्त २०११

फुकुशिमा परमाणु हादसे के बाद से परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल को लेकर चिंताएं हैं. जर्मनी जैसे देश न्यूक्लियर एनर्जी से पीछे हट रहे हैं. लेकिन आईएईए के प्रमुख युकिया अमानो का मानना है कि परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ेगा.

तस्वीर: AP

अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के महानिदेशक युकिया अमानो कहते हैं कि आने वाले सालों में गति धीमी हो सकती है, लेकिन परमाणु ऊर्जा की जगह बढ़ेगी.

इसी साल जापान में आए विनाशकारी भूकंप ने फुकुशिमा परमाणु रिएक्टर को गंभीर नुकसान पहुंचाया था. उसके बाद 1986 के चेरनोबिल परमाणु हादसे जैसा खतरा पैदा हो गया था. कई हफ्तों तक दुनिया की सांसें अटकी रहीं. पूरे जापान में लाखों लोग इससे प्रभावित हुए. हजारों लोगों को घर छोड़कर जाना पड़ा. और ये हालात देखकर बाकी देशों ने भी परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल के बारे में सोचना शुरू कर दिया. जर्मनी ने तो 2022 तक अपने सारे परमाणु रिएक्टरों को बंद करने का फैसला कर लिया है. इटली में जनमत संग्रह के जरिए जनता ने जनादेश देकर देश में दशकों तक परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल की बात को ताले में बंद कर दिया.

तस्वीर: AP

परमाणु ऊर्जा तो बढ़ेगी

इस सबके बावजूद, जापान के ही पूर्व राजनयकि अमानो को यकीन है कि परमाणु ऊर्जा की जगह उससे कोई नहीं छीन सकता. उनका भरोसा ग्लोबल वॉर्मिंग और ऊर्जा सुरक्षा की बढ़ती जरूरतों पर है. उन्हें लगता है कि इन वजहों से बहुत से देशों के पास परमाणु ऊर्जा का कोई विकल्प नहीं होगा.

भारत और चीन उनकी इस बात पर खरे उतरते हैं. दुनिया की दो तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं वाले ये देश परमाणु ऊर्जा को लेकर खासे उत्साहित हैं और नए नए रिएक्टर लगा रहे हैं. भारत ने तो हाल ही में कई बड़े समझौते किए हैं. हालांकि भारत में भी परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल को लेकर विरोध हो रहा है. महाराष्ट्र के जैतापुर में लगाए जा रहे परमाणु रिएक्टर का लोग भारी विरोध कर रहे हैं.

अमानो कहते हैं, "गति कुछ धीमी होगी, लेकिन यकीन मानिए विकास तो होगा. मुझे नहीं लगता कि लोग मौसम परिवर्तन के खतरों को भूल गए हैं. खतरा आज भी कायम है. और देशों को और ज्यादा ऊर्जा की जरूरत है. यह तथ्य बदलेगा नहीं."

फुकुशिमा संकट से पहले आईएईए ने उम्मीद की थी कि 2030 तक 25 देशों में पहला परमाणु रिएक्टर लग जाएगा. आज 29 देशों में परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल हो रहा है.

तस्वीर: dapd

कड़े सुरक्षा बंदोबस्त की तैयारी

फुकुशिमा के बाद दुनिया परमाणु ऊर्जा परिदृश्य में बदलाव सिर्फ इतना हुआ है कि ज्यादातर देश और ज्यादा कड़ी सुरक्षा के बारे में सोचने लगे हैं. आईएईए भी अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानकों को और ज्यादा बेहतर और कड़ा बनाने पर काम कर रही है ताकि फुकुशिमा जैसी घटना दोबारा न हो. इसके चलते अमेरिका, यूरोप और एशियाई देश अपने अपने परमाणु रिएक्टरों की सुरक्षा व्यवस्था की दोबारा जांच कर रहे हैं और उसे बेहतर बना रहे हैं.

परमाणु सुरक्षा के लिए आईएईए ने एक योजना बनाई है जिसका मसौदा 151 सदस्य देशों को भेजा गया है. विएना स्थित यह यूएन एजेंसी अगले तीन साल में दुनिया के कम से कम 10 फीसदी परमाणु रिएक्टरों में सुरक्षा उपायों की जांच करेगी. इस वक्त दुनिया में करीब 440 न्यूक्लियर रिएक्टर ईकाइयां हैं.

आईएईए की योजना में परमाणु रिएक्टरों की सुरक्षा को सदस्य देशों की जिम्मेदारी बनाया गया है लेकिन ऐसे संकेत दिए गए हैं कि आईएईए की भूमिका बढ़ाई जाएगी. एजेंसी के विशेषज्ञों को जांच करने के ज्यादा अधिकार मिलेंगे ताकि सभी परमाणु रिएक्टरों की सुरक्षा का अंतरराष्ट्रीय स्तर सुनिश्चित किया जा सके. योजना में कहा गया है कि सभी परमाणु रिएक्टरों को वैसे हालात में सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी, जैसे हालात में फुकुशिमा का परमाणु रिएक्टर बेबस हो गया.

तस्वीर: dapd

खर्चे का क्या होगा

यह योजना सभी सदस्यों को मंजूर होगी, इसमें संदेह बरकरार है. क्योंकि ज्यादातर देश परमाणु सुरक्षा को निजी राष्ट्रीय मुद्दा बनाए रखना चाहेंगे. हालांकि अमानो को उम्मीद है कि अगले महीने होने वाले सम्मेलन में आईएईए के सदस्य इस योजना को मंजूरी दे देंगे. उन्हें यकीन है कि यह योजना परमाणु ऊर्जा को सुरक्षित बनाने में बेहद कारगर साबित होगी. इसके लिए धन की भी जरूरत होगी, लेकिन अमानो को इसमें कोई दिक्कत नजर नहीं आती.

परमाणु सुरक्षा में धन एक अहम मुद्दा है क्योंकि परमाणु रिएक्टरों की सुरक्षा बढ़ाना एक महंगा काम है. इसी वजह से जून महीने में कुछ निजी कंपनियों ने यह मुद्दा उठाया था कि परमाणु ऊर्जा आर्थिक रूप से बुरे दौर से गुजर रही है, ऐसे में खर्च बढ़ाने वाले सुरक्षा उपाय करना मुश्किल होगा. लेकिन अमानो कहते हैं कि इसमें ज्यादा खर्च नहीं आएगा. वह कहते हैं, "न्यूक्लियर पावर प्लांट एक बहुत महंगा निवेश है. इसलिए प्लांट की बिल्डिंग को मजबूत करने या डीजल जेनरेटरों को बेहतर बनाने से खर्च में कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा."

रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार

संपादनः एन रंजन

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