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फुकुशीमा दाइची परमाणु संयंत्र बंद

१६ दिसम्बर २०११

जापान में भूकंप और सूनामी के कारण खराब हुए फुकुशीमा दाइची परमाणु संयंत्र को नौ महीनों बाद आखिरकार बंद कर दिया गया है. सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है, लेकिन पर्यावरणविदों की नाराजगी अभी भी बनी हुई है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

फुकुशीमा दाइची परमाणु संयत्र टोक्यो से कुछ 250 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. सरकार का कहना है कि शुक्रवार से इसे पूरी तरह बंद कर दिया गया है. सरकार ने आश्वासन दिलाया है कि अब इस संयंत्र में कोई भी परमाणु रिएक्शन नहीं हो रहे हैं. सरकार के अनुसार परमाणु संयंत्र अब सुरक्षित है और रिसाव की मात्रा खतरे के दायरे से बहुत कम है. इसीलिए अब वहां सफाई का काम शुरू किया जा सकता है.

सरकार ने अपने बयान में कहा है कि परमाणु संयंत्र का बंद होना एक अच्छा संकेत है, इससे पता चलता है सरकार ने साल के अंत तक संयंत्र को बंद करने का जो लक्ष्य तय किया था, वह पूरा हो गया है. मगर साथ ही सरकार ने यह बात मानी है कि संयंत्र और उसके आसपास के इलाके को पूरी तरह साफ करने और यह सुरक्षित करने में ताकि वहां किसी तरह के परमाणु अवशेष नहीं बचे, उसमें अभी चालीस साल लग सकते है. संयंत्र के हालत पर बैठक में प्रधानमंत्री योशिको नोडा ने कहा, "संयंत्र अब 'कोल्ड शटडाउन' की हालत में आ गया है और अब उस पर इतना काबू पा लिया गया है कि वहां अब कोई हादसा न हो."

तस्वीर: AP

'कोल्ड शटडाउन' के नाम पर

वहीं पर्यावरणविदों का कहना है कि सरकार 'कोल्ड शटडाउन' की बात कर लोगों को बेवकूफ बना रही है. 'कोल्ड शटडाउन' का मतलब होता है जब रिएक्टर को ठंडा करने के लिए इस्तेमाल होने वाला पानी रिएक्टर की गर्मी से उबलना बंद हो जाता है. जानकारों का कहना है कि सरकार इन तकनीकी शब्दों के साथ खिलवाड़ कर रही है. ऑस्ट्रिया के परमाणु जानकार राइनहार्ड ऊरिष का कहना है, "यहां कोल्ड शटडाउन की बात करने का मतलब है, जानबूझ कर झूठ बोलना."

सरकार इसे अपनी सफलता का दूसरा कदम बता रही है. इससे पहले जुलाई में सरकार पहली बार संयंत्र पर काबू पाने में कामयाब हुई. एटॉमिक एनर्जी सोसाइटी ऑफ जापान के उपाध्यक्ष ताकाशी सवादा ने कहा कि इस दूसरे कदम से रिएक्टर एक स्थायी स्थिति में तो आ गए हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे अब सुरक्षित हैं, "कोल्ड शटडाउन और डीकमीशनिंग जैसे शब्दों का अलग तरह से इस्तेमाल किया जा रहा है. मुझे इस बात का डर है कि लोग इन शब्दों को सुनकर सोचने लगेंगे कि अब सब कुछ ठीक हो जाएगा. हम लोग जैसा सोच रहे हैं यह दरअसल वैसा नहीं है." ऊरिष के मुताबिक डीकमीशनिंग से सरकार का मतलब है कि वह दुर्घटना वाली स्थिति टल चुकी हैं. लेकिन पूरी तरह डीकमीशनिंग होने में चालीस साल या उससे अधिक समय लगेगा. ई़धन का पूरी तरह निकाला जाना भी पक्का नहीं है. ऊरिष कहते हैं कि इस हालत में पूरे इलाके के चारों ओर दीवार खड़ी करनी होगी.

तस्वीर: AP/Kyodo News

असुरक्षित भविष्य

भूकंप और सूनामी के कारण जापान में बीस हजार लोगों की जानें गई. परमाणु रिसाव के कारण किसी के मारे जाने की अब तक कोई खबर नहीं है, लेकिन जानकारों को डर है कि इसके बुरे नतीजे भविष्य में देखने को मिल सकते हैं. मार्च में संयंत्र में खराबी आई. उसका कूलिंग सिस्टम खराब हो गया, जिस कारण छह में से दो रिएक्टरों में परमणु ईंधन वाली नलियां पिघलने लगी. इसकी वजह से परमाणु रिसाव हुआ और संयंत्र के बीस किलोमीटर के दायरे से लोगों को हटाना पड़ा. इन लोगों को अब तक घर लौटने की अनुमति नहीं दी गई है. रिसाव रोकने के लिए रिएक्टर को ठंडा करने की जरूरत थी, इसके लिए समुद्र का पानी रिएक्टर में डाला गया. बाद में इस पानी को दोबारा समुद्र में बहा दिया गया. मछुआरों को इस वजह से काफी नुकसान हुआ है क्योंकि कई सरकारों ने उन इलाकों की मछली खाने पर रोक लगा दी.

रिपोर्ट: डीपीए, एएफपी / ईशा भाटिया

संपादन: एम गोपालकृष्णन

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