जर्मनी पहुंच रहे शरणार्थियों में सबसे ज्यादा चर्चा सीरिया से आने वाले लोगों की है. लेकिन दरअसल पाकिस्तान और अफगानिस्तान से भी बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंच रहे हैं और अपने साथ ला रहे हैं क्रिकेट का खुमार.
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हालांकि इंग्लैंड जर्मनी से बहुत दूर नहीं है लेकिन क्रिकेट यहां के लोगों के करीब कभी नहीं पहुंच सका. अब शरणार्थियों के आने से देश में हालात बदल रहे हैं. पाकिस्तान और अफगानिस्तान से जर्मनी आए लोग अधिकारियों से पूछ रहे हैं कि क्रिकेट खेलने के लिए कहां जाएं. आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि 2015 में जर्मनी में असायलम का आवेदन भरने वाले कुल 4,76,649 लोगों में से 31,902 अफगानिस्तान के थे और 8,472 पाकिस्तान के. ये लोग जर्मनी के क्रिकेट संघ डीसीबी को संदेश भेज रहे हैं और लगातार सवाल कर रहे हैं, "मैं कहां पर क्रिकेट खेल सकता हूं?"
डीसीबी के अध्यक्ष ब्रायन मैंटल बताते हैं कि डीसीबी की वेबसाइट (www.cricket.de) पर उन्हें लगातार लोगों के संदेश आ रहे हैं, जो उनसे देश में नए क्रिकेट क्लब स्थापित करने की गुजारिश कर रहे हैं. इंग्लैंड के मैंटल 2012 से डीसीबी के साथ जुड़े हुए हैं. उस समय देश में 70 टीमें हुआ करती थीं और 1500 क्रिकेट खिलाड़ी थे. इस बीच यहां 205 टीमें, 100 क्लब और 4,000 क्रिकेटर मौजूद हैं.
एक पिच का खर्च 10,000 यूरो
मैंटल ने समाचार एजेंसी एएफपी से बात करते हुए बताया, "हमें हर दिन पांच इंक्वायरी मिल रही हैं. अधिकतर सामाजिक कार्यकर्ता हमसे संपर्क करते हैं. इन लोगों ने पहले कभी क्रिकेट के बारे में नहीं सुना था और अब अफगानिस्तान और पाकिस्तान से आए शरणार्थी उन्हें इस बारे में बता रहे हैं." मैंटल ने बताया कि इन लोगों को वॉलीबॉल और फुटबॉल के विकल्प भी दिए गए लेकिन उन्होंने इससे इंकार कर दिया.
क्रिकेट के साइड इफैक्ट्स
भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता किसी से छिपी नहीं है. लोग इस खेल के इस कदर दीवाने हैं कि इसके लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं. इसके चलते ही क्रिकेट के कुछ साइड इफैक्ट्स भी हैं. देखिए क्या हैं ये इन तस्वीरों में.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
दूसरे खेलों की अनदेखी
क्रिकेट के चलते भारत में दूसरे खेलों की अनदेखी आम है. ये बात सिर्फ संस्थागत तौर पर क्रिकेट को प्रोत्साहन दिए जाने की ही बात नहीं है, बल्कि चारों तरफ फैली क्रिकेट की खुमारी, पैसा और ग्लैमर के चलते नए खिलाड़ी भी दूसरे खेलों के बजाय सिर्फ क्रिकेट की ओर आकर्षित होते हैं.
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काम का हर्जा
क्रिकेट के शौकीन मैच की एक एक गेंद, एक एक शॉट पर नजरें गड़ाए रखना चाहते हैं. और इसके चलते मैच वाले दिन काम धाम ठप्प पड़ जाता है. और जहां ठप्प नहीं पड़ता वहां धीमा हो जाना तो लाजमी है.
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सूखे की मार, क्रिकेट का खुमार
पिछले दिनों बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य में भयंकर सूखे के बीच क्रिकेट के मैदानों की सिंचाई पर सवाल उठाकर इस तरफ ध्यान दिलाया कि बुनियादी जरूरतें ज्यादा अहम हैं. क्रिकेट जैसे महंगे खेलों के दौरान ये बात अकसर भुला दी जाती है.
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क्रिकेट का सट्टा बाजार
क्रिकेट के मैदान के बाहर भी क्रिकेट के मैच खेले जाते हैं और इनकी शक्ल होती है अवैध सट्टेबाजी की. एक अनुमान के मुताबिक एक विश्वकप के दौरान केवल भारत में तकरीबन दस हजार करोड़ रूपये से ज्यादा का सट्टा लगाया जाता है. इस सब में काला धन इस्तेमाल होता है.
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समय की बर्बादी
क्रिकेट में वक्त काफी जाया होता है. जहां केवल एक टेस्ट मैच 3 से 5 दिन का समय लेता है. वहीं 50 ओवरों का वनडे भी पूरा एक दिन ले लेता है. हालांकि टी20 के एक नए छोटे फॉर्मेट को भी अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में मान्यता मिली है. लेकिन ये भी कई तरह से बहुत वक्त लेता है.
तस्वीर: AP
विदड्रॉल सिंड्रोम
क्रिकेट के टूर्नामेंटों में गहरे से मशगूल दर्शक कई बार फाइनल खत्म होते ही इस पशोपेश में पड़ जाते हैं कि अब क्या किया जाए. क्रिकेट के साइड इफैक्ट्स में ये विदड्रॉल सिंड्रोम भी एक पहलू है.
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खेल नहीं धंधा
लोकप्रियता बढ़ने से क्रिकेट खेल की जगह एक बाजार में तब्दील होता ज्यादा दिखाई दिया है. इस खेल से बेतहाशा पैसा जुड़ गया है और बाजार भी क्रिकेट खिलाड़ियों को अपने उत्पाद बेचने के लिए इस्तेमाल करता है.
तस्वीर: AP
नए दौर के ग्लेडिएटर्स
क्रिकेट के नए टी20 फॉर्मेट में खिलाड़ियों के लिए लगने वाली बोलियां, पुराने रोमन साम्राज्य के गुलाम ग्लेडिएटर्स की याद दिलाती हैं, जो अपने खरीदारों के मनोरंजन के लिए अपनी जान की बाजी लगाकर लड़ा करते थे.
तस्वीर: Getty Images
खिलाड़ियों पर दबाव
क्रिकेट सितारों को उनके प्रशंसक जितना सिर आंखों पर बिठा कर रखते हैं, उन पर हमेशा अपने प्रदर्शन को बेहतरीन बनाए रखने का भारी दबाव रहता है. एक लिहाज से ये बढ़िया है लेकिन एक खिलाड़ी के लिए हमेशा एक सा प्रदर्शन बरकरार रखना संभव नहीं होता.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/A.M. Ahad
खेल या उन्माद
कई बार क्रिकेट खेल के बजाय एक उन्माद में बदल जाता है. अपने कूटनीतिक रिश्तों में लंबे समय से खटास के चलते भारत और पाकिस्तान के बीच हो रहा क्रिकेट मैच भी युद्ध के उन्माद जैसा माहौल पैदा कर देता है. ऐसे में खेल, खेल नहीं रह जाता.
तस्वीर: Saeed Khan/AFP/Getty Images
बच्चे और क्रिकेट
क्रिकेट की खुमारी नई पीढ़ी में भी कम नहीं है. बच्चे भी क्रिकेट मैच के लिए अपने समय का एक बड़ा हिस्सा खर्च करते हैं. कुछ क्रिकेट खेलने में और कुछ देखने में. इसके अलावा क्रिकेट के लिए क्लास बंक करना भी आम है.
तस्वीर: Getty Images
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देश में बने नए क्रिकेट क्लब को सामान मुहैया कराने के लिए कुछ पुराने क्लबों और ब्रिटेन के क्रिकेट संघ ने भी मदद दी है. मैंटल बताते हैं कि उन्होंने हाल ही में बल्ले, गेंद इत्यादि से भरा 400वां डिब्बा भेजा है. लेकिन अब इसके बाद उनके पास मदद करने के लिए कुछ भी नहीं बचा है, "यह आखिरी बक्सा था, अब हम नए प्रायोजकों की तलाश में हैं."
किसी भी नए क्रिकेट क्लब के लिए सबसे बड़ी चुनौती है खेलने के लिए एक बड़ा मैदान खोजना और फिर उस पर पिच तैयार करना. मैंटल के अनुसार एक पिच तैयार करने में 10,000 यूरो का खर्च आता है. इसे देखते हुए आईसीसी ने डीसीबी को 15,000 यूरो अतिरिक्त राशि देने का फैसला किया है.
समेकन का बेहतरीन जरिया
इन बदलावों से 44 वर्षीय मैंटल काफी खुश नजर आ रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि भविष्य में जर्मनी भी क्रिकेट के लिए जाना जाएगा. वह बताते हैं, "सबसे बड़ी दिक्कत है शरणार्थियों को जर्मन भाषा सिखाना. लेकिन देखा जाए तो यह समेकन का एक बेहतरीन जरिया हो सकता है. फिलहाल हमारी राष्ट्रीय अंडर-19 क्रिकेट टीम में आधे खिलाड़ी अफगानिस्तान के ही हैं और आने वाले समय में यह संख्या और भी बढ़ेगी."
हो सकता है कि कुछ सालों में जर्मनी की टीम भी भारत में टी20 जैसे मुकाबले खेलती नजर आए. मैंटल कहते हैं, "भविष्य को ले कर मैं उत्साहित हूं लेकिन संसाधनों की कमी के चलते दिक्कत तो होगी ही."
आईबी/एमजे (एएफपी)
मास्टर ब्लास्टर का यादगार सफर
अपने समय के महानतम बल्लेबाज माने गए सचिन रमेश तेंदुलकर ने भारतीय क्रिकेट को अपने 24 साल दिए हैं. इन्हीं सालों का ब्योरा दिया है उन्होंने नई किताब में, जो इन दिनों काफी चर्चा में है.
तस्वीर: dapd
बल्ले की भाषा
100 शतक, 163 अर्धशतक, 34,000 रन. लगता है कि किसी पूरी टीम का ब्योरा है. लेकिन यह सिर्फ एक खिलाड़ी के आंकड़े हैं. नाम बताने की जरूरत नहीं.
तस्वीर: Punit Paranjpe/AFP/Getty Images
16 बरस का
सिर्फ इतनी ही उम्र थी, जब पाकिस्तान के खिलाफ सचिन को टीम में चुना गया. सामने वकार यूनुस और वसीम अकरम जैसे खूंखार गेंदबाज. पहले तो भारतीय बोर्ड ने उनकी सुरक्षा का जिम्मा लेने से ही मना कर दिया. लेकिन फिर टीम में शामिल कर लिया गया.
तस्वीर: Ben Radford/Allsport
गेंदबाजी की चाहत
डेनिस लिली और सचिन तेंदुलकर के रिश्ते पर काफी बात हुई है. लिली ने ही सचिन को गेंदबाजी छोड़ बल्लेबाजी पर ध्यान देने की सलाह दी थी. क्रिकेट की दुनिया को लिली से भी कहना चाहिएः शुक्रिया.
तस्वीर: Ben Radford/Allsport
100 के सचिन
टेस्ट मैचों का यह आंकड़ा बड़े बड़े क्रिकेटरों का सपना होता है. लेकिन सचिन ने 2002 में यह मील का पत्थर हासिल किया, तो किसी को भी शक नहीं था कि अभी यह सितारा लंबे वक्त तक चमकने वाला है.
तस्वीर: LawrenceGriffiths/Allsport
हर कोई दीवाना
भले ही भारत की महिलाएं क्रिकेट के नाम से कुढ़ती हों लेकिन सचिन उनका भी दुलारा है. यही वह क्रिकेटर है, जिसने क्रिकेट को घर घर पहुंचा दिया. कहा जाता है कि सचिन के आउट होते ही आधा भारत टीवी बंद कर देता है.
तस्वीर: Reuters
क्रिकेट का 'भगवान'
कभी मैथ्यू हेडन ने कहा था कि मैंने भगवान को देखा है, वह भारत में चौथे नंबर पर बैटिंग करता है. फिर तो क्रिकेट के दीवाने भी सचिन को भगवान मानने लगे. हालांकि सचिन सिर्फ अच्छे इंसान बने रहना चाहते हैं.
तस्वीर: Reuters
सबसे बड़ा दीवाना
ये सुधीर कुमार चौधरी हैं, जिन्हें क्रिकेट की दुनिया भी पहचानती है और खुद सचिन तेंदुलकर भी. सचिन के प्यार में उन्होंने नौकरी नहीं की, शादी नहीं की. हर जगह मैच देखने जाते हैं और सचिन के नाम से शंख फूंकते हैं.
तस्वीर: Dibyangshu SarkarAFP/Getty Images
बच्चों के प्यारे
सचिन तेंदुलकर को बच्चों से बेइम्तिहां प्यार है. वह मैचों के बीच वक्त निकाल कर बच्चों से जरूर मिलते हैं. कोई 10 साल पुरानी इस तस्वीर में सचिन बैंगलोर में गरीब बच्चों से मुलाकात करते हुए.
तस्वीर: Indranil Mukherjee/AFP/Getty Images
परिवार का साथ
भारत के लिए क्रिकेट खेलने के अलावा कहते हैं कि सचिन का सबसे बड़ा सपना वर्ल्ड कप जीतना था. दो साल पहले उनका यह सपना भी पूरा हुआ, जब भारत ने वानखेड़े स्टेडियम में ही वर्ल्ड कप जीता. इसके बाद उन्होंने कुछ लम्हे अपने परिवार के साथ भी बिताए.
तस्वीर: William West/AFP/Getty Images
खुद से हैरान
शायद अपने रिकॉर्डों और बल्लेबाजी को देख कर खुद सचिन तेंदुलकर भी हैरान होते होंगे. आखिर कैसे कोई बल्लेबाज 24 साल तक क्रीज पर उसी मुस्तैदी से गेंदबाजों की धुनाई करता हुआ टिका रह सकता है. यह उनकी हूबहू मोम की मूर्ति है.
तस्वीर: Indranil Mukherjee/AFP/Getty Images
झलक दिखला जा
आखिरी मैच के पहले तो क्रिकेट के दीवानों की एक ही ख्वाहिश थी कि सचिन तेंदुलकर बस एक बार झलक दिखला जाएं. उनके ऑटोग्राफ के लिए मुंबई में लोगों की लाइन लगी थी. किसी के हाथ में पोस्टर, तो किसी के हाथ में उनके नाम का मेडल.
तस्वीर: Reuters
खरा सोना
पिछले साल सोने का एक सिक्का जारी किया गया, जिसमें सचिन की तस्वीर है. करीब 10 ग्राम के ऐसे एक लाख सिक्के गढ़े गए और 34,000 रुपये की कीमत के बावजूद हाथों हाथ बिक गए.