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फुटबॉल के हीरो ऊवे सेलर 75 साल के हुए

५ नवम्बर २०११

ऊवे सेलर पिछले दशकों के नामी फुटबॉलर ही नहीं हैं, वे जर्मनी के अत्यंत लोकप्रिय खेल शख्सियत भी हैं. स्वाभाविक है कि आज उनका 75वां जन्मदिन अत्यंत धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है.

ऊवे सेलर और थोमास बाखतस्वीर: AP

ऊवे सेलर की जिंदगी इस बीच उतनी गोल नहीं रह गई है जितनी फुटबॉल खेलने के दिनों में हुआ करती थी. कुछ ही साल पहले रीढ़ की तकलीफ के कारण उन्होंने टेनिस रैकेट को पेंशन दे दी, लेकिन गोल्फ के मैदान का एकाध चक्कर वे अभी भी लगा ही लेते हैं. इसके बावजूद अपनी बढ़ती उम्र के प्रति वे बहुत व्यावहारिक रवैया रखते हैं, "जब आप सुबह उठते हैं और यहां या वहां कुछ तकलीफ होती है, तो खुशी होती है, क्योंकि तब आपको महसूस होता है कि आप अभी भी जिंदा हैं."

यही वह सहजता और जमीन से जुड़ाव है, जिसके लिए ऊवे जाने जाते हैं और जिसकी वजह से उन्हें पुकारने का नाम भी मिला है, उन्स ऊवे यानि हमारा ऊवे. 53 सालों से शादीशुदा उनकी पत्नी इल्का कहती हैं, "ऊवे हमेशा सबसे लिए उपलब्ध होते थे और आज भी ऐसा ही है." निजी जिंदगी में भी ऊवे सेलर निरंतरता और सहजता को महत्व देते हैं.

असाधारण रूप से साधारण

"दुनिया में सबसे खूबसूरत है साधारण होना और एक दूसरे के साथ मस्त रहना," यह है जीवन के 75 वसंत पूरा कर रहे ऊवे सेलर का जीवन मंत्र. आज युवा पेशेवर खिलाड़ियों के लिए बहुत आम से हो गए नखरे सेलर के लिए अनजाने हैं. इसलिए उनकी शख्सियत को लेकर होने वाले हंगामों में भी, खासकर जन्मदिन जैसे जुबली के मौकों पर, वे अच्छे मूड में होते हैं और सब से बातचीत करने को तैयार होते हैं. "भले ही कभी कभी लगता है कि वह कम भी हो सकता था," वे साफगोई से स्वीकार करते हैं.

एक्शन मेंतस्वीर: picture-alliance/dpa

ऊवे सेलर को यह विनम्रता एक तरह से पालने में ही मिली थी. पिता एरविन 1940 के दशक में हैम्बर्ग क्लब के स्टार बनने से पहले अपनी रोजी रोटी गोदी मजदूर के रूप में कमाते थे. मां एनी भी इस पर जोर देती थी कि बच्चे समृद्धि और प्रसिद्धि को स्वाभाविक न समझें. "नहीं से कुछ भी नहीं आता और अकेले उससे कम हासिल किया जा सकता है जितना मिलजुलकर." एक ऐसा सिद्धांत जिसका पालन ऊवे सेलर अपने सक्रिय खिलाड़ी जीवन में भी किया करते थे, और इसने उन्हें वह बनाया जो आज वे हैं, पीढ़ियों का आदर्श.

क्लब की पहचान

1954 में 17 साल की उम्र में ऊवे सेलर ने हैम्बर्ग स्पोर्ट्स क्लब के लिए पहला मैच खेला. पहली मई 1972 को करियर समाप्त करने तक उन्होंने किसी और क्लब के लिए नहीं खेला. यहां तक कि 1961 में इंटर मिलान की  9 लाख डी-मार्क की पेशकश भी उन्होंने ठुकरा दी. अपने क्लब के लिए वे एक के बाद एक सफलताएं अर्जित करते गए. 1960 में जर्मन चैंपियन और तीन साल बाद जर्मन कप विजेता. इस लोकप्रिय मिडफील्डर ने इस दौरान अपना बेहतरीन खेल दिखाने के अलावा खेल भावना भी दिखाई. "मेरा हमेशा यह लक्ष्य रहा कि टीम जीते. टीम खेल में यही होना चाहिए. मेरी इस बात में कभी दिलचस्पी नहीं रही कि मैंने एक गोल किया या दो गोल. उनका कोई लाभ नहीं होता यदि हम हार जाते."

बीच बीच में जेलर पर अचानक करियर खत्म होने का खतरा भी मंडराता रहा. 1965 में टखने की चोट के कारण उन्हें लंबा विराम करना पड़ा. लेकिन ट्रांसप्लांटेशन के बाद उन्होंने लौह इच्छाशक्ति का परिचय देकर वापसी की. लेकिन कमबैक के बाद वे और कोई टाइटल नहीं जीत पाए.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

सक्रिय खेल जीवन की समाप्ति के बाद भी वे हैम्बर्ग के फुटबॉल क्लब के साथ जुड़े रहे. 1995 में उन्होंने संशयों के बावजूद क्लब के अध्यक्ष का पदभार संभाला. 1998 में जब उन्होंने यह पद छोड़ा तो अपने पीछे दुखद समय भी छोड़ आए. यह समय खेल के मैदान पर विफलताओं और विभिन्न कांडों से भरा रहा. लेकिन अपने क्लब के लिए उनका प्यार अभी भी खत्म नहीं हुआ है. वे बुंडेसलीगा के संस्थापक क्लब की मौजूदा हालत से बहुत चिंतित हैं. खेल और वित्तीय परेशानी झेल रही टीम तालिका में काफी नीचे है और ऊवे सेलर से अक्सर राय पूछी जाती है, "हर कोई सोचता है कि मुझे पता है कि मैच कैसे जीता जाता है, लेकिन इसका जवाब सिर्फ टीम दे सकती है. मुझे उम्मीद है कि शांति लौटेगी और टीम फिर से अंक बनाएगी. मेरे लिए यह व्यक्तिगत तौर पर भी अच्छा रहेगा, क्योंकि तब मुझे भी शांति मिलेगी."

बड़े टाइटलों का कमी

ऊवे सेलर तीन बार साल के सर्वोत्तम फुटबॉलर रहे, कई बार विश्व और यूरोपीय चैंपियनशिप खेलने वाली टीमों में रहे, 1000 से ज्यादा गोल किए और 1972 में पहले फुटबॉलर के रूप में उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार संघीय सेवा मेडल मिला. फिर भी उनका खेल जीवन एक पदक से वंचित रहा, वे कभी कोई अंतरराष्ट्रीय पदक नहीं जीत पाए. 1968 में उनकी हैम्बर्ग टीम यूरोपीय कप का फाइनल मिलान से हार गई. राष्ट्रीय टीम के लिए खेले गए 72 मैचों में भी उन्हें कोई बड़ी सफलता नहीं मिली. लेकिन वह उस जर्मन टीम के कप्तान जरूर थे जो 1966 में लंदन के वेंबली स्टेडियम में इंगलैंड के खिलाफ खेला गया. टीम विश्वकप का ऐतिहासिक फाइनल फुटबॉल इतिहास के सबसे विवादास्पद गोल के कारण  हार गई. ऊवे सेलर अब तक उस हार से निबट नहीं पाए हैं, वे आज भी यही कहते हैं, "उसके बारे में मैं कोई बात नहीं करना चाहता क्योंकि वह कोई गोल ही नहीं था."

जीवन का यह अध्याय ऊवे सेलर की जिंदगी के उन थोड़े से अध्यायों में शामिल है जिसकी चर्चा से उनका मूड खराब हो जाता है. और कोई बात उन्हें विचलित नहीं करती. सिर्फ एक बात और, उनका पोता हमें चुपके से बताता है, "अगर कोई फुटबॉल मैच के दौरान अचानक टेलीविजन ऑफ कर दे." तब मस्तमौला ऊवे एक क्षण के लिए विलेन मिस्टर सेलर बन जाते हैं.

रिपोर्ट: टॉर्स्टन आहलेस/मझा                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                             

संपादन: आभा मोंढे

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