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फुटबॉल क्लब का मशहूर बकरा

२१ फ़रवरी २०१२

कॉमनवेल्थ खेलों का मैसकॉट शेरा कुछ वक्त के लिए आया, लोगों का दिल बहलाया और कहीं गायब हो गया. एशियाड का अप्पू भले ही तब तक लोगों के साथ रहा जब तक दिल्ली में अप्पू घर बना रहा. पर एक मैसकॉट है जिसका साथ दशकों से बना है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

यह है जर्मनी के फुटबॉल क्लब एफसी कोलोन का हेन्नेस. 1950 के दशक से ही हेन्नेस नाम का यह बकरा इस क्लब के साथ जुड़ा हुआ है. और ऐसा नहीं है कि इसकी जगह बकरे की पैशाक पहने करतब दिखाने वाले किसी इंसान ने ली हो. बल्कि हर मैच के लिए यह बकरा ही मैदान में पहुंचता है. यह जर्मनी का इकलौता ऐसा मैसकॉट है जिसका रूप किसी इंसान ने नहीं लिया है. हेन्नेस को लोग एफसी कोलोन का 'लकी चार्म' कहते हैं, यानी इसके रहते टीम जीत की ओर बढ़ती रहती है.

कहां से आया हेन्नेस

किसी राजा की तरह एक बकरे के चले जाने पर दूसरा बकरा उसकी गद्दी संभालता है. फिलहाल यह आठवां बकरा है. कहा जाता है कि 1950 में इस बकरे को मजाक के तौर पर क्लब में लाया गया था. उस समय एफसी कोलोन को बने दो ही साल हुए थे. कार्निवाल की पार्टी के दौरान एक सर्कस के मालिक ने क्लब के मालिक को बकरा भेंट किया. क्लब के मालिक हेन्नेस वाईसवाइलेर समझ नहीं पाए कि करें क्या. सभी लोगों के सामने तोहफा लेने से इनकार कर नहीं सकते थे. तो ले आए बकरे को अपने साथ. जल्द ही बकरे का नाम मालिक के नाम पर हेन्नेस पड़ गया. उसके बाद से वह उसे हर मैच में अपने साथ ले कर जाया करते. टीम मैच जीतती तो लोग कहते की हेन्नेस टीम का नसीब अपने साथ ले कर आता है. तभी से इसे क्लब का 'लकी चार्म' कहा जाने लगा.

तस्वीर: DW

आज कोलोन शहर को जितना यहां के कार्निवाल के लिए जाना जाता है उतना ही एफसी कोलोन क्लब के लिए भी. हेन्नेस क्लब के साथ साथ शहर की भी पहचान बन चुका है. हेन्नेस की तस्वीरों वाली टी शर्ट, झंडे, मग और कई तरह की चीजें यहां खरीदी जा सकती हैं.

मुश्किल है देखभाल

लेकिन हेन्नेस की देख भाल करना भी कोई आसान काम नहीं. यह बकरा एक छोटे से खेत में रहता है. खेत के मालिक विल्हेल्म शेफर 2006 तक खुद इसकी देख भाल किया करते थे. उनके गुजरने के बाद उनकी पत्नी हिल्डेगार्ड शेफर ने हेन्नेस की देख भाल की जिम्मेदारी उठाई. लेकिन जल्द ही उन्हें समझ आ गई कि यह टेढ़ी खीर है. इसलिए उन्हें एक व्यक्ति को इस काम पर लगाना पड़ा. इंगो राइप्के अब यह काम करते हैं. इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि हर मैच में उन्हें सबसे आगे की सीट में बैठने का मौका मिलता है. लेकिन नुकसान यह भी है कि दुनिया चाहे इधर की उधर हो जाए वह किसी भी मैच से खुद को दूर नहीं रख सकते.

तस्वीर: picture-alliance/Sven Simon

मैच शुरू होने से पहले उन्हें हेन्नेस को तैयार करना होता है. हेन्नेस को एफसी कोलोन की जैकेट पहनाई जाती है, उसके सींगों को पॉलिश कर के चमकाया जाता है. इसके बाद हेन्नेस पूरे मैदान में चक्कर लगाता है. तभी जा कर मैच शुरू हो पाता है. कहीं हेन्नेस को मैच के दौरान भूख परेशान न करने लगे, इसके लिए गाजर और ब्रेड का थैला भर के साथ ले जाया जाता है. लोग भी इस से खूब प्यार करते हैं. खास तौर से चौथे हेन्नेस का दौर क्लब के लिए सबसे अच्छा रहा है. 1978 में क्लब ने बुंडसलीगा और जर्मन कप दोनों अपने नाम किए.

रिपोर्ट: आंद्रे लेस्ली/ईशा भाटिया

संपादन: आभा एम

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