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फुटबॉल में भी छिपा है विज्ञान

१२ जून २०१०

फुटबॉल को संसार का सबसे लोकप्रिय खेल माना जाता है. हर चार साल पर होने वाला उसका महाकुंभ इस बार पहली बार अफ्रीकी महाद्वीप पर हो रहा है. पर क्या फुटबॉल के पीछे कुछ वैज्ञानिक सिद्धांत भी काम करते हैं?

गेंद में जादू?तस्वीर: AP

फुटबॉल का जन्म सदियों पहले मध्ययुग में इंग्लैंड में हुआ. वहां के ग्रामीण सूअर के मूत्राशय को फुला कर उससे खेलते थे. आज वह संसार में सबसे अधिक खेला जाने वाला खेल तो है ही, एक बहुत बड़ा उद्योग और वैज्ञानिक शोध का विषय भी है.

जर्मनी में डोर्टमुंड के प्रोफ़ेसर मेतीन तोलान भौतिकशास्त्री होने के नाते फ़ुटबॉल में हार जीत को भौतिक विज्ञान के तराज़ू पर तौल कर देखते हैं. यदि आप उन से पूछें कि फ्री किक मारने पर उछली हुई गेंद घूम कर गोल में कैसे पहुंच जाती है, तो उनका उत्तर होगा, "प्रकृति का नियम यहां भी लागू होता है, लेकिन इसमें प्रतिभा और प्रशिक्षण का भी बहुत बड़ा हिस्सा होता है, क्योंकि गेंद के उड़ान मार्ग की सही सही गणना करना बहुत ही टेढ़ी खीर है. उदाहरण के लिए गोला फेंकने के खेल में गोले के रास्ते की गणना करना कहीं आसान है. क्योंकि उसे जिस वायु प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है. वह उसके वज़न की तुलना में कुछ नहीं होता. टेनिस की गेंद के रास्ते की गणना करना भी सरल है. गेंद के वज़न की तुलना में हवा का प्रतिरोध कहीं अधिक होता है. लेकिन फुटबॉल के मामले में गेंद का वज़न और वायु प्रतिरोध इतना एक जैसा है कि यहां कोई अचूक गणना करना भौतिक शास्त्र को भी भारी पड़ जाता है."

तस्वीर: picture-alliance/Bilderbox/DW-Montage

फुटबॉल अन्यायपूर्ण खेल

प्रोफ़ोसर तोलान ने फुटबॉल के लिए प्रासंगिक भौतिकशास्त्र और गणित के नियमों पर एक पुस्तक भी लिखी है. फुटबॉल प्रेमी होते हुए भी उन्होंने फुटबॉल को अन्यायपूर्ण खेल बताया है, "सीधी सी बात है. फुटबॉल में बहुत कम गोल बनते हैं. लेकिन यह अच्छी बात भी है क्योंकि इससे एक कमज़ोर टीम भी अपेक्षाकृत अधिक संभावना के साथ कोई मैच जीत सकती है. यदि संयोग से उसने कोई गोल दाग दिया, तो बहुत संभव है कि उससे बेहतर टीम बराबरी या विजय का गोल नहीं दाग पाये. यह थोड़ा अन्यायपूर्ण ज़रूर है, पर ऐसा अकसर होता है. यदि हैंडबॉल को लें तो वह कहीं न्यायपूर्ण है. वहां बहुत गोल बनते हैं, इस कारण बेहतर टीम के जीतने की संभावना भी अधिक होती है."

तस्वीर: AP

कई भौतिक प्रक्रियाएं

यह सब संभावना गणित की निष्पत्तियां हैं. लेकिन प्रोफेसर तोलान का यह तर्क भी अकाट्य है कि गणित और भौतिकशास्त्र को हम पूरी तरह अलग नहीं कर सकते. "गेंद को गोल की तरफ़ ठोकर मारते ही एक साथ कई भौतिक प्रक्रियाएं चल पड़ती हैं. गेंद लट्टू की तरह तेज़ी से घूमने लगती है, हवा में उड़ने लगती है और केले के आकार का मोड़ बनाते हुए गोल की तरफ़ बढ़ती है. उसका मोड़ गोल वाली लाइन के पहले भी हो सकता है, बाद में भी हो सकता है. लेकिन उसकी गति इतनी तेज़ होगी कि वह एक सेकंड के 200वें हिस्से के बराबर समय में ही गोल वाली लाइन को पार कर जाएगी. इसे देख सकना हमारी आंखों के लिए संभव नहीं है. हमारी आंखें केवल उन्हीं चीज़ों को नोट कर सकती हैं, जो एक सेकंड के 10वें हिस्से से अधिक तेज़ नहीं हैं."

अकसर ग़लतियां

रेफ़री और लाइनमैन के लिए यह समय सीमा सबसे बड़ी चुनौती है. इसलिए उनसे अकसर ग़लतियां भी होती हैं. "जिस तरह कंप्यूटर को हर गणना में कुछ समय लगता है, उसी तरह हमारे दिमाग़ को भी आंख से आ रहे संकेतों को समझने में कुछ समय लगता है. एक सेकंड के 10वें हिस्से का फुटबॉल के मैदान पर अर्थ है कि गेंद 50 सेंटीमीटर और दूर चली गयी."

तस्वीर: picture-alliance/Pressefoto ULMER/Bjoern Hake

दिल का दौरा बढ़ता है

जब भी किसी फुटबॉल मैच का फ़ैसला 11 मीटर वाले नियम के अनुसार करना होता है, तब देखा गया है कि लोगों को दिल का दौरा पड़ना बढ़ जाता है. 1998 वाले विश्वकप के फ़ाइनल के बाद वाले दो दिनों में इंग्लैंड और अर्जेंटीना में अस्पतालों में भर्ती होने वाले हृदय रोगियों का अनुपात 25 प्रतिशत बढ़ गया.

1996 के यूरोपीय कप के बाद नीदरलैंड में दिल का दौरा पड़ने से मरने वालों की संख्या 50 प्रतिशत बढ़ गई. लेकिन ऐसा केवल मर्दों के साथ होता है. औरतों के साथ नहीं. वैज्ञानिक बहुत अधिक मनोवैज्ञानिक उत्तेजना को कारण मानते हैं.

तस्वीर: AP

पेनाल्टी किक का नुस्खा

जहां तक 11 मीटर वाले पेनाल्टी किक से गोल करने और विजय की संभावना बढ़ाने का प्रश्न है, प्रोफेसर तोलान के पास इसका एक नुस्खा भी है. "इस बार भी 11 मीटर की नौबत ज़रूर आएगी. अब तक का यही अनुभव है. 11 मीटर के पेनाल्टी किक के लिए चुने गए खिलाड़ियों का सबसे अच्छा अनुक्रम यही है कि जो खिलाड़ी इस कला में सबसे कमज़ोर है, वह सबसे पहले किक मारे. फिर दूसरा सबसे कमज़ोर, फिर तीसरा... और इसी तरह बाद के खिलाड़ी. ऐसा इसलिए क्योंकि हर 11 मीटर किक के बाद, बाद वाले खिलाड़ियों पर दबाव बढ़ता जाएगा. बेहतर खिलाड़ी अंतिम क्षणों में इसे बेहतर ढंग से झेल सकते हैं, कमज़ोर खिलाड़ी नहीं."

11 मीटर का अभ्यास ज़रूरी

तोलान का एक और सिद्धांत बहुत दिलचस्प है. उनका कहना है, "गणित के हिसाब से देखें तो 11 मीटर वाले किक की ट्रेनिंग अनुपात से अधिक लाभ देती है. यदि हर खिलाड़ी अपनी कुशलता केवल 10 प्रतिशत भी बढ़ाता है. तो यह संभावना 20 प्रतिशत बढ़ जाती है कि सभी पांचों किक गोल बन सकते हैं."

तस्वीर: AP

गति की लक्ष्मणरेखा

लेकिन एड़ी चोटी का पसीना कोई कितना भी एक कर ले, गेंद को एक सीमा से अधिक गति नहीं प्रदान कर सकता. उनका कहना है, "भौतिक नियम ऐसे हैं कि कोई खिलाड़ी, बहुत हुआ, तो अपने पैर की गति की अपेक्षा दोगुनी गति से गेंद को त्वरित कर सकता है. दौड़ते समय पैर आगे बढ़ाने की गति शरीर का गुरुत्व केंद्र आगे बढ़ने की गति की अपेक्षा दोगुनी होती है. इसका मतलब हुआ कि आदर्श परिस्थितियों में दौड़ लगाने की अपनी गति से हम गेंद को चार गुना अधिक गति प्रदान कर सकते हैं. 11 मीटर वाले किक के समय दौड़ लगाने की सामान्य गति 30 किलोमीटर प्रतिघंटा होती है. उसका चार गुना हुआ 120 किलोमीटर प्रति घंटा. लेकिन संसार के सबसे तेज़ स्प्रिंट धावक उसैन बोल्ट की अधिकतम गति भी साढ़े 44 किलोमीटर प्रति घंटे से आगे नहीं जाती."

आश्चर्य होता है कि फ़ुटबॉल की गेंद में कितना विज्ञान भरा है.

रिपोर्टः राम यादव

संपादनः उ भट्टाचार्य

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