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फूलों पर जिंदा थे हिमयुग के जानवर

८ फ़रवरी २०१४

रिसर्च से इस बात के संकेत मिले हैं कि हिमयुग में विलुप्त हो चुके जानवरों की कई प्रजातियां जंगली फूलों पर निर्भर थीं. इनमें भारी बालों वाले विशालकाय हाथियों की प्रजाति और गैंडे भी शामिल हैं.

तस्वीर: Behnam Rahdari

आर्कटिक में जमीन की अंदरूनी तह से मिट्टी के नमूनों (परमाफ्रॉस्ट) और विलुप्त हो चुके जानवरों के जीवाश्मों की डीएनए जांच के बाद वैज्ञानिकों ने ये परिणाम दिए हैं. उनका कहना है कि पृथ्वी से विलुप्त हो चुकी कई भारी भरकम जानवरों की प्रजातियां इन फूलों को खाकर जिंदा थीं. साइंस पत्रिका नेचर में प्रकाशित रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने कहा है कि प्रोटीन से भरे ये जंगली फूल उस समय इस इलाके में फैले हुए थे.

लेकिन पर्यावरण परिवर्तन से इन फूलों की पैदावार पर भारी असर पड़ा. इनकी जगह आर्कटिक में घास और झाड़ियों ने ले ली. इनमें पोषण का स्तर फूलों जैसा नहीं है. ऐसे में इन फूलों पर निर्भर शाकाहारी प्रजातियों की संख्या पर असर पड़ा.

आर्कटिक में पौधों की पैदावार में इस तरह का परिवर्तन करीब 25,000 साल पहले से शुरू हो कर आज से करीब 10,000 साल पहले तक चला. तब तक कई प्रजातियां गायब हो चुकी थीं. सालों से वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि इतने बड़े स्तर पर जानवरों की विलुप्ति की क्या वजह रही होगी. इस दौरान विषालकाय जानवरों की दो तिहाई नस्लें उत्तरी गोलार्ध से मिट गईं.

तस्वीर: picture alliance/AP Photo

कोपनहेगन यूनिवर्सिटी के एस्के विलरस्लेव प्राचीन डीएनए रिसर्च के विशेषज्ञ हैं. उन्हीं की अध्यक्षता में अंतरराष्ट्रीय टीम ने इस रिसर्च को अंजाम दिया. उन्होंने बताया, "मेरे हिसाब से अब हमारे पास इसे समझने की एक ठोस वजह है." ब्लित्सक्रीग धारणा के अनुसार इन प्रजातियों की विलुप्ति का कारण मानव जाति द्वारा शिकार और जानवरों को लेकर लापरवाही को माना गया है. लेकिन ताजा रिसर्च उस धारणा का विरोध करती है. विलरस्लेव ने कहा, "हमें लगता है विलुप्ति का मुख्य कारण मनुष्य नहीं था." हालांकि वह इस बात से इनकार नहीं करते हैं कि खाने की कमी में पहले से ही कम हो रही प्रजातियां शिकार के कारण और भी पूरी तरह खत्म हो गईं.

एक समय था जब आर्कटिक में भी अफ्रीकी जंगलों की तरह बड़े जानवरों के झुंड रहा करते थे. जीवन के लिए पौधों पर निर्भर ये प्रजातियां विषालकाय हाथियों, गैंडों, लकड़बग्घों, जंगली बिल्लियों, बब्बर शेरों और छोटे मुंह वाले भालुओं की हुआ करती थीं. वैज्ञानिकों ने साइबेरिया और उत्तरी अमेरिका से प्राप्त पचास हजार साल पुराने पौधों के इतिहास की मदद से इस रिसर्च को अंजाम दिया. उन्होंने आर्कटिक के अलग अलग इलाकों से मिट्टी की परत के 242 तरह के नमूने इकट्ठआ किए. इसके अलावा उन्होंने हिम युग के जानवरों के अवशेषों से पेट में मौजूद नमूनों की डीएनए जांच की.

कई वैज्ञानिक अब तक मानते आए हैं कि पारिस्थितिक तंत्र घास का मैदान हुआ करता था और बड़े जानवर घास खाया करते थे. इस शोध में यह बात सामने आई है कि इस हरियाली में ज्यादा बड़ा हिस्सा जंगली फूलों का था. विलरस्लेव ने कहा, "आर्कटिक का पूरा पारिस्थितिक तंत्र आज से बहुत अलग दिखता था. आप फूलों से भरे मैदान की कल्पना कर सकते हैं जहां बड़े पेड़ न हों."

एसएफ/एमजी (रॉयटर्स)

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