मानवाधिकार संस्था रेड क्रॉस ने चिंता जताई है कि कोरोना वैक्सीन को लेकर फैलाई जा रही फेक न्यूज "दूसरी महामारी" की शक्ल ले रही है. ऐसे में कोरोना से निजात पाना मुश्किल हो सकता है.
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कभी फेक न्यूज सिर्फ राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित कर रहा था, लेकिन अब वह कोरोना महामारी से निबटने के प्रयासों पर भी असर डाल रहा है. अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस के अध्यक्ष फ्रांसेस्को रोका का कहना है कि कोरोना महामारी को रोकने के लिए "फेक न्यूज की महामारी" को रोकना बेहद जरूरी है. एक वर्चुअल बैठक में उन्होंने कहा कि दुनिया भर में टीकाकरण को ले कर कर और खास कर कोरोना वैक्सीन को ले कर अविश्वास की भावना बढ़ रही है.
फ्रांसेस्को रोका ने जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के उस शोध की ओर ध्यान दिलाया है जिसके अनुसार जुलाई से अक्टूबर के बीच 67 देशों के लोगों में वैक्सीन को ले कर शंका बढ़ी है. रोका ने बताया कि शोध में हिस्सा लेने वाले एक चौथाई देशों में स्वीकृति दर 50 फीसदी या फिर उससे भी कम पाई गई. जापान में जहां पहले 70 फीसदी लोग वैक्सीन के हक में थे, अब केवल 50 फीसदी ही इसे लेने के लिए तैयार हैं. इसी तरह फ्रांस में यह दर 51 से गिर कर 38 प्रतिशत तक रह गई है.
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पश्चिम के अलावा अफ्रीका में भी संदेह
फ्रांसेस्को रोका ने यह भी कहा कि वैक्सीन को ले कर शक केवल पश्चिमी देशों तक ही सीमित नहीं है. आठ अफ्रीकी देशों की मिसाल देते हुए उन्होंने बताया कि विकासशील देशों में भी वैक्सीन को ले कर विश्वास में कमी आ रही है. उन्होंने कांगो, कैमरून, गाबोन, जिम्बाब्वे, सिएरा लियोन, रवांडा, लेसोथो और केन्या का नाम लिया. उन्होंने कहा, "कई अफ्रीकी देशों में हमने अमूमन वैक्सीन के प्रति ऐसी धारणाएं देखी हैं कि विदेशी लोग अफ्रीका को मेडिकल टेस्टिंग के लिए इस्तेमाल करते हैं."
शोध दिखाते हैं कि अफ्रीका में यह मानने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है कि कोरोना वायरस अफ्रीकी युवाओं को नुकसान नहीं पहुंचा सकता. बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो मानते हैं कि कोरोना वायरस हुआ करता था, लेकिन अब नहीं है.
गांव वालों ने कैसे रोका कोरोना, देखिए
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पाकिस्तानी लोग कोरोना से अनजान
साल 2020 पूरा ही कोरोना महामारी से जूझते हुए निकल गया लेकिन दुनिया में ऐसे भी लोग हैं जिन्हें आज तक इसके बारे में कुछ पता ही नहीं. मिसाल के तौर पर पाकिस्तान में हुए एक शोध में दस फीसदी लोगों को पता ही नहीं था कि कोविड-19 क्या है. ऐसे लोगों तक टीका पहुंचाना और उन्हें टीका लगाने के लिए मनाना स्थानीय सरकार के लिए बेहद मुश्किल काम होगा. रोका ने इस बारे में कहा, "हमें लगता है कि कोविड वैक्सीन को लोगों तक पहुंचाने के लिए जितनी मेहनत की जरूरत है, उतनी ही मशक्कत लोगों में विश्वास पैदा करने के लिए भी करनी होगी."
पाकिस्तान उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल है जहां आज भी पोलियो की बीमारी मौजूद है. वजह यही है कि इतने दशकों बाद भी कुछ लोगों को टीकाकरण के लिए राजी नहीं किया जा सका है. अगर कोरोना वायरस के मामले में भी ऐसा ही होता है, तो अगले कई दशकों तक इस खतरनाक वायरस से पीछा नहीं छुड़ाया जा सकेगा. अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस सोसाइटी दुनिया के 192 देशों में सक्रिय है जहां इसके लगभग डेढ़ करोड़ वॉलंटियर हैं.
महामारी में मुनाफा: कैसे कोविड-19 के दौरान कुछ अमीर और भी अमीर हो गए
कोरोना वायरस संकट के दौरान अधिकतर उद्योगों को भारी नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन कुछ उद्योगों ने मुनाफा भी कमाया है. इन उद्योगों से कुछ नए धनी लोग भी निकले हैं और इनसे जुड़े जो लोग पहले से धनी थे वो और धनवान बन गए हैं.
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कोई कितना अमीर हो सकता है?
अमेजन ने कोविड-19 के बीच काफी व्यापार किया और कंपनी के शेयरों ने नए रिकॉर्ड स्थापित किए. संस्थापक जेफ बेजोस महामारी के पहले ही दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति थे और अब वो और अमीर हो गए हैं. फोर्ब्स मैगजीन के मुताबिक वो 193 अरब डॉलर की संपत्ति के मालिक हैं.
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अव्वल नंबर के करीब
इलॉन मस्क की कंपनी टेस्ला गाड़ियां बनाती है लेकिन स्टॉक एक्सचेंज पर इसे एक बड़ी टेक कंपनी के रूप में देखा जाता है. महामारी के दौरान टेक कंपनियों के स्टॉक बाजार में काफी चर्चा में रहे हैं और टेस्ला को इससे फायदा मिला है. कुछ ही समय पहले मस्क ने दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों की सूची में बिल गेट्स को पीछे कर दिया था. 132 अरब डॉलर की संपत्ति के साथ वो धीरे धीरे जेफ बेजोस की तरफ बढ़ रहे हैं.
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घर से काम करने के चलन का फायदा
घर से काम करने वाले लोगों की संख्या में बढ़ोतरी की वजह से ऑनलाइन मीटिंग ऐप जूम का व्यापार बढ़ गया है और यह उसके संस्थापक एरिक युआन के लिए काफी लाभकारी साबित हुआ है. जूम 2019 में ही स्टॉक एक्सचेंज में शामिल हुई थी, लेकिन युआन आज अनुमानित 19 अरब डॉलर की संपत्ति के मालिक हैं.
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सफलता के लिए फिट
दूसरों से दूरी बनाए रखना और जिमों का बंद रहना जॉन फोली के लिए वरदान जैसा साबित हुआ है. फोली की कंपनी पेलोटॉन घर पर कसरत करने के जिम उपकरण बनाती है और महामारी के दौरान इन उपकरणों की इतनी बिक्री हुई है कि कंपनी के शेयर के दाम में तीन गुना इजाफा हो गया है और 50-वर्षीय फोली अचानक ही अरबपति बन गए हैं.
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दुकानदारों की मदद का व्यापार
शॉपीफाई व्यापारियों की मदद करता है ऑनलाइन उनकी अपनी दुकान खड़ी करने में. इसे जर्मनी के टोबियास लुइटके ने विकसित किया था जो बाद में कनाडा चले गए थे. शॉपीफाई आज कनाडा की सबसे मूल्यवान कंपनी है और मार्च से अभी तक इसके शेयर का दाम दोगुना हो चुका है. फोर्ब्स के अनुसार 39 साल के लुइटके नौ अरब डॉलर के मालिक हैं.
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रातों-रात अरबपति
जर्मन कंपनी बायोएनटेक ने कोविड-19 की वैक्सीन पर जनवरी में ही काम करना शुरू कर दिया था और अब संभव है कि उसके टीके को जल्द ही इस्तेमाल की अनुमति मिल जाए. इस सफलता से कंपनी के तुर्क मूल के मालिक उगूर सहीन पर सबका ध्यान गया है और वो काफी धनी हो गए हैं. इस समय उनके शेयरों का अनुमानित मूल्य है 2.4 अरब बिलियन डॉलर.
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सफलता की सामग्री
खाना बनाने की सामग्री उपलब्ध कराने वाली कंपनी हेलोफ्रेश को रेस्तरां के बंद होने का पूरा फायदा मिल रहा है. लोग जम कर आर्डर कर रहे हैं और कंपनी के शेयरों का मूल्य महामारी के दौरान तीन गुना से भी ज्यादा बढ़ा है. कंपनी के संस्थापक और शेयरहोल्डर डॉमिनिक रिक्टर अभी उन लोगों की बराबरी तो नहीं कर पाए हैं जिन्होंने महामारी में सबसे ज्यादा कमाई की, लेकिन उनके पास वहां पहुंचने की सारी 'सामग्री' है.
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अमेजन से और किसी को भी फायदा
अमेजन की सफलता से सिर्फ जेफ बेजोस ही और अमीर नहीं हुए. उनकी पूर्व-पत्नी मैकेंजी के पास भी कंपनी के कई शेयर हैं जिनकी बदौलत वो दुनिया के सबसे अमीर महिला बन गई हैं. अनुमान है कि उनके पास 72 अरब डॉलर मूल्य की संपत्ति है.
तस्वीर: Dennis Tan Tine/Star Max//AP/picture alliance