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समाज

फेक न्यूज की महामारी से कैसे निपटेगी दुनिया?

१ दिसम्बर २०२०

मानवाधिकार संस्था रेड क्रॉस ने चिंता जताई है कि कोरोना वैक्सीन को लेकर फैलाई जा रही फेक न्यूज "दूसरी महामारी" की शक्ल ले रही है. ऐसे में कोरोना से निजात पाना मुश्किल हो सकता है.

Atemschutzmaske mit Aufschrift Fake News
तस्वीर: imago images/C. Ohde

कभी फेक न्यूज सिर्फ राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित कर रहा था, लेकिन अब वह कोरोना महामारी से निबटने के प्रयासों पर भी असर डाल रहा है. अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस के अध्यक्ष फ्रांसेस्को रोका का कहना है कि कोरोना महामारी को रोकने के लिए "फेक न्यूज की महामारी" को रोकना बेहद जरूरी है. एक वर्चुअल बैठक में उन्होंने कहा कि दुनिया भर में टीकाकरण को ले कर कर और खास कर कोरोना वैक्सीन को ले कर अविश्वास की भावना बढ़ रही है.

फ्रांसेस्को रोका ने जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के उस शोध की ओर ध्यान दिलाया है जिसके अनुसार जुलाई से अक्टूबर के बीच 67 देशों के लोगों में वैक्सीन को ले कर शंका बढ़ी है. रोका ने बताया कि शोध में हिस्सा लेने वाले एक चौथाई देशों में स्वीकृति दर 50 फीसदी या फिर उससे भी कम पाई गई. जापान में जहां पहले 70 फीसदी लोग वैक्सीन के हक में थे, अब केवल 50 फीसदी ही इसे लेने के लिए तैयार हैं. इसी तरह फ्रांस में यह दर 51 से गिर कर 38 प्रतिशत तक रह गई है.

पश्चिम के अलावा अफ्रीका में भी संदेह

फ्रांसेस्को रोका ने यह भी कहा कि वैक्सीन को ले कर शक केवल पश्चिमी देशों तक ही सीमित नहीं है. आठ अफ्रीकी देशों की मिसाल देते हुए उन्होंने बताया कि विकासशील देशों में भी वैक्सीन को ले कर विश्वास में कमी आ रही है. उन्होंने कांगो, कैमरून, गाबोन, जिम्बाब्वे, सिएरा लियोन, रवांडा, लेसोथो और केन्या का नाम लिया. उन्होंने कहा, "कई अफ्रीकी देशों में हमने अमूमन वैक्सीन के प्रति ऐसी धारणाएं देखी हैं कि विदेशी लोग अफ्रीका को मेडिकल टेस्टिंग के लिए इस्तेमाल करते हैं."

शोध दिखाते हैं कि अफ्रीका में यह मानने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है कि कोरोना वायरस अफ्रीकी युवाओं को नुकसान नहीं पहुंचा सकता. बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो मानते हैं कि कोरोना वायरस हुआ करता था, लेकिन अब नहीं है.

गांव वालों ने कैसे रोका कोरोना, देखिए

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पाकिस्तानी लोग कोरोना से अनजान

साल 2020 पूरा ही कोरोना महामारी से जूझते हुए निकल गया लेकिन दुनिया में ऐसे भी लोग हैं जिन्हें आज तक इसके बारे में कुछ पता ही नहीं. मिसाल के तौर पर पाकिस्तान में हुए एक शोध में दस फीसदी लोगों को पता ही नहीं था कि कोविड-19 क्या है. ऐसे लोगों तक टीका पहुंचाना और उन्हें टीका लगाने के लिए मनाना स्थानीय सरकार के लिए बेहद मुश्किल काम होगा. रोका ने इस बारे में कहा, "हमें लगता है कि कोविड वैक्सीन को लोगों तक पहुंचाने के लिए जितनी मेहनत की जरूरत है, उतनी ही मशक्कत लोगों में विश्वास पैदा करने के लिए भी करनी होगी."

पाकिस्तान उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल है जहां आज भी पोलियो की बीमारी मौजूद है. वजह यही है कि इतने दशकों बाद भी कुछ लोगों को टीकाकरण के लिए राजी नहीं किया जा सका है. अगर कोरोना वायरस के मामले में भी ऐसा ही होता है, तो अगले कई दशकों तक इस खतरनाक वायरस से पीछा नहीं छुड़ाया जा सकेगा. अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस सोसाइटी दुनिया के 192 देशों में सक्रिय है जहां इसके लगभग डेढ़ करोड़ वॉलंटियर हैं. 

आईबी/एमजे (एपी)

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