स्मार्टफोन क्या वाकई हमें स्मार्ट बना रहे हैं या हम अब 'वेबकूफ' बन रहे हैं. सोशल मीडिया में फेक न्यूज की बाढ़ के बाद तो ऐसा ही लगता है. गलत सूचना ने लोगों को न सिर्फ भटकाया है बल्कि कइयों की जान भी ली है.
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पिछले दिनों असम के कार्बी-आंग्लोंग जिले में भीड़ ने दो युवकों की पीट-पीटकर हत्या कर दी क्योंकि उसे संदेह था कि ये दोनों युवक 'बच्चा चोर' हैं. यह मामला अभी ठंडा नहीं हुआ था कि पिछले हफ्ते मध्य प्रदेश के दो लोगों को भीड़ ने पीट-पीटकर अधमरा कर दिया.
बालाघाट, सिवनी और छिंदवाड़ा जिलों में एक व्हाट्सऐप वीडियो सर्कुलेट हुआ जिसमें दिखाया गया कि दो लोग किसी जिंदा आदमी के शरीर से अंग निकाल रहे हैं. इस अफवाह के बाद 50-60 गांवों के लोगों ने दोनों व्यक्तियों को घेर लिया और पीट-पीटकर घायल कर दिया. पुलिस ने किसी तरह दोनों को बचाया वरना उनकी जान जा सकती थी.
फेक न्यूज पर एशियाई देशों के सख्त नियम
कई देशों में "फेक न्यूज" का नाम नेताओं के मुंह से सुना जाने लगा है. आलोचकों को डर है कि इसका इस्तेमाल सरकार विरोधी खबरों को दबाने के लिए भी किया जा सकता है. एक नजर एशियाई देशों में "फेक न्यूज" के खिलाफ उठाए गए कदमों पर.
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मलेशिया
मलेशिया के कानून के मुताबिक फेक न्यूज की वजह से अगर मलेशिया या मलेशियाई नागरिक को नुकसान हुआ तो इसे फैलाने वाले पर करीब 123,000 अमेरिकी डॉलर का जुर्माना और छह साल की सजा हो सकती है. इसके दायरे में समाचार संस्थान, डिजिटल पब्लिकेशन और सोशल मीडिया भी आते हैं.
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भारत
भारत में सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने फेक न्यूज फैलाने का दोषी पाए जाने पर सरकारी मान्यता वाले पत्रकार की मान्यता पहले अस्थायी और बार बार ऐसा करने पर स्थायी रूप से रद्द करने की घोषणा की. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रेस की आजादी में बाधा बता कर फैसले को रद्द करने का आदेश दिया है.
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सिंगापुर
सिंगापुर में एक संसदीय कमेटी "जान बूझ कर ऑनलाइन झूठ" फैलाने से रोकने के कदमों पर विचार कर रही है. इसके लिए सिंगापुर के इतिहास की अब तक की सबसे लंबी आठ दिन की सुनवाई 29 मार्च को पूरी हुई. कमेटी इस मामले में रिपोर्ट बना कर नया विधेयक मई में पेश करेगी.
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फिलीपींस
राष्ट्रपति रोड्रिगो डुटैर्टे का न्यूजसाइट रैपलर पर से "भरोसा उठ गया" और उन्होंने इसे उनके सभी आधिकारिक कार्यक्रमों को कवर करने पर रोक लगा दी. राष्ट्रपति इसे फेक न्यूज आउटलेट कहते हैं. देश में गलत जानकारी फैलानों वालों को 20 साल तक की कैद की सजा का प्रावधान करने की तैयारी चल रही है.
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थाइलैंड
थाइलैंड में पहले से ही सेक साइबर सिक्योरिटी लॉ है. इसके तहत गलत सूचना फैलाने पर सात साल तक की कैद की सजा हो सकती है. इसके अलावा सैन्य सरकार बड़ी सख्ती से लेसे मजेस्टिक कानूनों का भी पालन करती है जो लोगों को शाही परिवार का अपमान रोकने के लिए बनाया गया है.
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पाकिस्तान
पाकिस्तान में 2016 में प्रिवेंशन ऑफ इलेक्ट्रॉनिक साइबरक्राइम्स एक्ट पास किया. इसके तहत नफरत फैलाने वाले भाषण, इस्लाम की गरिमा को ठेस पहुंचाने, महिलाओं की इज्जत पर हमला करने वाली सामग्री, आतंकवाद की साजिश रचने जैसी गतिविधियों पर रोक लगाई गई. इसके लिए जेल और जुर्माना दोनों का प्रावधान है.
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मध्य प्रदेश में सर्कुलेट हुए इस फेक वीडियो के साथ मैसेज भी आया जिसमें लिखा था कि 500 लोग आसपास के जिलों में घूम रहे हैं जो इंसानों को मारकर उनके अंग निकाल लेते हैं. पुलिस का कहना है कि यह फेक मैसेज 3 हफ्ते से वायरल हो रहा था. अफवाह उड़ी कि दो लोग किडनी चुराकर बालाघाट की ओर आ रहे हैं. गुस्साए ग्रामीणों ने बिना सोचे-समझे दोनों को बेरहमी से पीट दिया और उनकी एक न सुनी.
ऐसा पता लगाए वीडियो फेक है या असली
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पुलिस ने वहां पहुंचकर पीड़ितों को बचाया और अस्पताल में भर्ती कराया. बालाघाट के पुलिस प्रमुख जयदेवन का कहना है कि पुलिस अफसरों ने लोकल व्हाट्सऐप ग्रुप को जॉइन किया तो मालूम चला कि तीन लोग इस फेक मैसेज को फैला कर रहे थे. व्हाट्सऐप पर ऐसे फेक मैसेज नए नहीं हैं.
इससे पहले बेंगलुरु में अफवाह फैली की शहर में 400 बच्चा चोर घूम रहे हैं. इसका खामियाजा एक 26 वर्षीय प्रवासी मजदूर को भुगतना पड़ा क्योंकि भीड़ ने उसे ही अपहरणकर्ता समझ लिया और जमकर पीटा.इस साल अब तक फेक मैसेज की वजह से एक दर्जन से ज्यादा लोगों को पीटा गया है और इनमें से कम से कम 3 की जान जा चुकी है.
भारत में 20 करोड़ लोग व्हाट्सऐप इस्तेमाल करते हैं जिसमें कई मैसेज, फोटो या वीडियो फेक होते हैं जो देखते ही देखते वायरल हो जाते हैं. प्राइवेसी विवाद से जूझ रही कंपनी फेसबुक के लिए व्हाट्सऐप पर फेक सामग्री सिरदर्द बन चुकी है. भारत में हिंदू बनाम मुस्लिम या उच्च जाति बनाम निचली जाति जैसे मुद्दे पहले से मौजूद हैं. ऐसे में फेक सामग्री आग में घी का काम करती है.
केंद्रीय गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2017 में सांप्रदायिक हिंसा के 822 मामले सामने आए जिनमें करीब 2,384 लोग घायल हुए और 111 की जान गई. यह साफ नहीं है कि ऐसी घटनाओं को हवा देने में व्हाट्सऐप के फेक या भड़काऊ मैसेज का कितना रोल था.
व्हाट्सऐप के अधिकारी घटनाओं को दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक मानते हैं. उनका कहना है कि अब वे एजुकेशन और लोगों में समझ पैदा करने के लिए काम कर रहे हैं जिससे ऐप में सेफ्टी फीचर्स के बारे में लोगों को पता चले और वे फेक खबर पर विश्वास न करें.
ट्रोल्स से कैसे बचें?
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केंद्र सरकार की दो सीनियर अफसरों के मुताबिक, व्हाट्सऐप के साथ इस मुद्दे पर बातचीत चल रही है. भारतीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने हाल ही में एक ऐसी कंपनी बनाने के लिए टेंडर जारी किया जिससे भारतीय सोशल मीडिया यूजर्स और फेक न्यूज पर नजर रखी जा सके.
चीन का फेसबुक, यूट्यूब दुनिया से अलग है
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वीचैट
यह एक संपूर्ण सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है, करीब करीब फेसबुक जैसा है.