फेशियल रेकग्निशन तकनीक से अपराधियों को पकड़ने और लापता बच्चों को खोजने में मदद मिलेगी. हालांकि मानवाधिकार और तकनीक के जानकारों का कहना है कि इससे निजता और निगरानी का खतरा बढ़ जाएगा.
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राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक कैमरा तकनीक के इस्तेमाल से पुलिस बल का आधुनिकीकरण, सूचना इकट्ठा करना, अपराधियों की पहचान करना आसान होगा. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने इसके लिए टेंडर निकाला है. अगर यह योजना लागू हो जाती है तो संभव है कि यह दुनिया की सबसे बड़ी पहचान प्रणाली होगी. भारत सरकार इस योजना के लिए शुक्रवार को टेंडर खोलने जा रही है.
हरशख्सकीपहचान
गैर-लाभकारी संगठन इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर अपार गुप्ता कहते हैं कि इसकी जानकारी बहुत ही कम है कि इसका इस्तेमाल कहां होगा, किस तरह के डाटा का इस्तेमाल होगा और डाटा स्टोरेज को कैसे नियमित किया जाएगा.
थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन से अपार गुप्ता कहते हैं, "यह सामूहिक निगरानी प्रणाली है जो बिना आधारभूत कारण के सार्वजनिक जगहों पर डाटा जमा करती है. बिना डाटा संरक्षण कानून और इलेक्ट्रॉनिक निगरानी ढांचा के यह एक तरह से सामाजिक पुलिसिंग को बढ़ावा दे सकता है. "
भारतीय गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस मुद्दे पर टिप्पणी नहीं दी है.
दुनियाभर में क्लाउड कंप्यूटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक के बढ़ने के साथ ही फेशियल रेकग्निशन लोकप्रिय हुआ है. इसका इस्तेमाल अपराधियों को पकड़ने और गैरहाजिर रहने वाले छात्रों की पहचान के लिए होता आ रहा है.
निजता के लिए खतरा
हालांकि इसके खिलाफ विरोध भी बढ़ रहा है और सैन फ्रांसिस्को में प्रशासन ने चेहरे पहचानने की तकनीक पर बैन लगा दिया है. "निगरानी -विरोधी फैशन" भी अब लोकप्रिय हो रहा है. जुलाई में कुछ भारतीय एयरपोर्टों पर फेशियल रेकग्निशन तकनीक लॉन्च हुई थी. दिल्ली पुलिस ने पिछले साल कहा था कि उसने इस तकनीक के ट्रायल के दौरान ही करीब 3000 लापता बच्चों की पहचान कर ली. हालांकि टेक्नोलॉजी साइट कॉम्पेरिटेक ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट में दिल्ली और चेन्नई को दुनिया के दो सबसे ज्यादा निगरानी वाले शहरों की रैंकिंग में डाला. वेबसाइट का कहना है कि सार्वजनिक जगहों पर सीसीटीवी कैमरे की संख्या और अपराध या सुरक्षा के बीच उसने बहुत थोड़ा ही परस्पर संबंध पाया.
भारतीय अधिकारियों का कहना है कि फेशियल रेकग्निशन देश की जरुरत है क्योंकि यहां पुलिस की संख्या बहुत कम. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक एक लाख नागिरकों पर पुलिस के 144 जवान हैं जो कि दुनिया में सबसे कम अनुपात है.
गहरे रंग वाली महिलाएं, जातीय अल्पसंख्यक और ट्रांसजेंडर की पहचान करने में यह तकनीक कारगर नहीं पाई गई. ब्रिटेन स्थित मानवाधिकर संस्था आर्टिकल 19 में वकील और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर रिर्सच करने वाली विदूषी मार्दा कहती हैं, "ऐसी न्याय प्रणाली में इसके दुरुपयोग का खतरा अधिक बढ़ जाता है जहां पर मूल निवासी और अल्पसंख्यकों की स्थिति कमजोर है. वो कहती हैं, "फेशियल रेकग्निशन का इस्तेमाल अपने वादे को पूरा किए बिना तकनीकी निष्पक्षता का दिखावा करता है और यह भेदभाव को संस्थागत प्रणाली बनाता है."
भारत की सर्वोच्च अदालत ने 2017 में आधार पर दिए अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा था निजता मौलिक अधिकार है. अपार कहते हैं, "नीति निर्माण करते वक्त राष्ट्रीय सुरक्षा को केंद्र में रखने का चलन बढ़ा है लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारों को सीमित करने का कोई कारण नहीं हो सकता है."
अपार के मुताबिक, "यह चिंताजनक है कि तकनीक का इस्तेमाल सरकार द्वारा शक्ति के साधन के रूप किया जा रहा जबकि इसका इस्तेमाल तो नागरिकों को सशक्त बनाने के लिए किया जाना चाहिए."
एए/एनआर(रॉयटर्स)
इन कंपनियों से भी चोरी हुआ है निजी डाटा
यूजर्स के निजी डाटा की चोरी फेसबुक के मामले के बाद सुर्खियों में आई लेकिन यह पहला मामला नहीं है जब डाटा चोरी हुआ है. आपके आसपास की तमाम कंपनियों में भी पिछले सालों के दौरान डाटा चोरी के कई मामले सामने आएं हैं.
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याहू
इंटरनेट सर्च इंजन याहू ने साल 2017 में यह बात मानी कि 2013 के दौरान कंपनी के करीब तीन अरब एकाउंट पर हैकर्स ने सेंध मारी थी. साल 2016 में प्रभावित एकाउंट्स की संख्या एक अरब कही गई थी. लेकिन 2017 में यह संख्या बढ़कर तीन अरब तक पहुंच गई.
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ईबे
ई-कॉमर्स कंपनी ईबे ने साल 2014 में डाटा चोरी का मामला दर्ज कराया था. कंपनी ने कहा था कि हैकर्स ने कंपनी के तकरीबन 14.5 करोड़ यूजर्स के नाम, पता, जन्मतिथि हासिल कर लिए हैं. कंपनी में काम करने वाले तीन लोगों के नाम का इस्तेमाल कर हैकर्स ने कंपनी नेटवर्क में जगह बनाई और सर्वर में 229 दिनों तक बने रहे.
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पिज्जा हट
पिज्जा हट ने साल 2017 में अपनी वेबसाइट और ऐप के हैक होने की बात स्वीकारी. कंपनी ने कहा कि इस डाटा चोरी में यूजर्स की निजी जानकारी को निशाना बनाया गया. हालांकि इस हैकिंग में कितने एकाउंट्स को निशाना बनाया था, उसकी कोई पुख्ता जानकारी नहीं दी गई. लेकिन स्थानीय मीडिया ने 60 हजार अमेरिकी ग्राहकों के निशाना बनने की बात कही थी.
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उबर
टैक्सी एग्रीगेटर ऐप उबर ने साल 2017 में करीब 5.7 करोड़ यूजर्स के डाटा लीक होने की बात कही. कंपनी को साल 2016 में हैकर्स की सेंधमारी का अंदेशा हुआ था. डाटा हैकिंग के इस मामले में हैकर्स ने कंपनी के साथ दर्ज छह लाख ड्राइवरों का लाइसेंस नंबर भी चुरा लिया था.
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जोमैटो
मोबाइल पर लोगों को खाने के ठिकानों की जानकारी देने वाली भारतीय कंपनी जोमैटो ने साल 2017 में डाटा चोरी की बात कही थी. कंपनी ने कहा था कि उसके करीब 1.7 करोड़ यूजर्स का डाटा चुरा लिया गया है. इसमें यूजर्स के ईमेल और पासवर्ड शामिल हैं. जोमैटो की स्थापना साल 2008 में दो भारतीयों ने की थी. फिलहाल कंपनी 23 देशों में अपनी सेवाएं दे रही है.
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इक्वीफैक्स
क्रेडिट मॉनिटिरिंग कंपनी इक्वीफैक्स पर हुआ साइबर अटैक डाटा चोरी का बड़ा मामला माना जाता है. इसमें करीब 14.55 करोड़ लोगों का निजी डाटा चोरी हो गया. इसमें संवेदनशील जानकारियां मसलन सोशल सिक्युरिटी नंबर, ड्राइविंग लाइसेंस नंबर आदि के चोरी होने की खबर आई थी.
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बूपा
भारत में मैक्स समूह के साथ काम कर रही बीमा कंपनी बूपा भी डाटा चोरी का शिकार बन चुकी है. ब्रिटेन की इस कंपनी से जुड़े पांच लाख लोगों की बीमा योजनाओं की जानकारी हैकर्स ने चुरा ली थी. ब्रिटेन में करीब 43 हजार लोग इस डाटा चोरी से प्रभावित हुए थे.
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डेलॉयट
दुनिया की बड़ी कंसल्टेंसी फर्म में शुमार डेलॉयट भी हैकर की गिरफ्त में आ चुकी है. इस चोरी में हैकर्स ने कंपनी के ब्लू-चिप क्लाइंट की निजी जानकारी को निशाना बनाया. हालांकि इसमें कुछ गुप्त ई-मेल, निजी योजनाओं और डॉक्युमेंट्स को भी चुराया गया. इस हैकिंग का सबसे अधिक असर अमेरिकी ग्राहकों पर पड़ने की बात सामने आई थी.
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लिंक्डइन
नौकरी देने-लेने का प्लेटफॉर्म बन उभरा लिंक्डइन भी डाटा चोरी की शिकायत करता है. साल 2012 मे कंपनी के नेटवर्क को हैक कर करीब 65 लाख यूजर्स की जानकारी निकाल ली गई. इसमें रूस के हैकर्स का हाथ होने की बात कही गई थी. साल 2017 में कंपनी ने करीब 10 करोड़ यूजर्स के एकाउंट पर मंडरा रहे खतरे की जानकारी देते हुए कहा था कि हैकर्स, यूजर्स की जानकारी ऑनलाइन बेचना चाहते हैं.
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सोनी प्लेस्टेशन नेटवर्क
गेमिंग की दुनिया के लिए सोनी प्लेस्टेशन नेटवर्क में हुई डाटा चोरी चौंकाने वाली थी. साल 2011 में सामने आई इस हैकिंग में 7.7 करोड़ प्लेस्टेशन यूजर्स के एकाउंट हैक हो गए. इस हैकिंग से कंपनी को 17.1 करोड़ का नुकसान हुआ था और कंपनी की साइट भी एक महीने तक डाउन रही.
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जेपी मॉर्गन
अमेरिका के बड़े बैंकों में शुमार जेपी मॉर्गन भी अपना डाटा चोरी होने से नहीं बचा पाया. साल 2014 के साइबर अटैक में करीब 7.6 करोड़ अमेरिकी लोगों का डाटा चोरी हो गया और करीब 70 लाख छोटे कारोबारों को भी हैकर्स ने निशाना बनाया.