अमेरिकी रिपब्लिकन पार्टी की शिकायत पर फेसबुक ने अपने 'ट्रेंडिंग टॉपिक्स' सेक्शन की कुछ प्रक्रियाओं में बदलाव किए हैं और ब्लॉग पोस्ट के बतौर एक बड़ा स्पष्टीकरण छापा है.
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मई की शुरूआत में ही फेसबुक के साथ काम कर चुके एक पूर्व कांट्रेक्टर ने कंपनी पर आरोप लगाया था कि उसके संपादक जान बूझकर रूढ़िवादी विचारों को दबा रहे हैं. इन आरोपों को तकनीकी समाचारों की न्यूज वेबसाइट गिजीमोडो ने छापा था. हालांकि इस पत्रिका ने इस पूर्व कांट्रेक्टर की पहचान नहीं बताई थी.
इस रिपोर्ट पर रिपब्लिकन सांसद जॉन थून ने फेसबुक को एक पत्र लिखकर खबरों के चुनाव की प्रक्रिया का खुलासा करने की मांग की थी. साउथ डकोटा से सीनेटर थून ने राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया के दौरान पक्षपातपूर्ण खबरों के प्रसार के आरोप लगाए और फेसबुक से उनका जवाब देने की अपील की. अमेरीकी सांसद थून ने दुनिया की सबसे बड़ी सोशल नेटवर्किंग साइट से पारदर्शिता बरतने की मांग भी की थी.
यह आरोप फेसबुक के एक फीचर 'ट्रेंडिंग टॉपिक्स' के बारे में था. 'न्यूज फीड' से इतर यह फेसबुक का एक ऐसा फीचर है जिसमें अधिकतर फेसबुक यूजर ताजा खबरों पर नजर रखते हैं.
सांसद के पत्र के दो दिन बाद फेसबुक के जनरल कांउसेल कॉलिन स्ट्रेच ने कंपनी की ओर से एक लंबे ब्लॉग पोस्ट में सांसद के पत्र और कंपनी पर लगे आरोपों का जवाब दिया है. कंपनी का कहना है कि उसने इस पूरे मामले की जांच की है. अंदरूनी जांच में 'ट्रेंडिग टॉपिक्स' के लिए समाचारों के चयन में इस तरह का कोई भी राजनीतिक पक्षपात सामने नहीं आया है. ट्रेंडिंग टॉपिक्स पहचान के आधार पर खुद ब खुद विषय चुनता है.
फेसबुक की इस जांच में किन्हीं राजनीतिक वजहों से खबरों, विषयों या स्रोतों को नहीं दबाया गया है. फेसबुक सामान्यतया ऐसी तकनीकी प्रक्रियाओं को सार्वजनिक नहीं करता है. हालांकि फेसबुक ने एहतियातन अपने 'ट्रेंडिंग टॉपिक्स' सेक्शन की कुछ प्रक्रियाओं में बदलाव किए हैं.
पिछले हफ्ते फेसबुक के मुख्य कार्यकारी मार्क जकरबर्ग ने कंजरवेटिव पार्टी के दर्जन भर से अधिक नेताओं से इस सिलसिले में मुलाकातें की थीं.
आरजे/आरपी (रायटर्स)
जिसने बदल दी 21वीं सदी
21वीं सदी का जिक्र आते ही अत्याधुनिक तकनीक से लैस दुनिया नजर आती है. इस सदी के दूसरे ही दशक में तकनीक ने ऐसी चीजें ईजाद की हैं जिनसे हमारी जिंदगी और आदतें बदल गई हैं. देखिए इन तस्वीरों में.
तस्वीर: vladgrin - Fotolia.com
कृत्रिम हृदय
2001 में पहली बार एक कृत्रिम हृदय को सफलता पूर्वक मानव हृदय की जगह इस्तेमाल किया गया. यह बिना किसी बाहरी संपर्क के खुद-ब-खुद काम करने वाला पहला कृत्रिम हृदय था.
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फेसबुक
4 फरवरी 2004 को लॉन्च की गई इस सोशल नेटवर्किंग साइट ने दुनिया भर में लोगों की जिंदगी और आदतें बदल डाली हैं. यूजर फ्रेंडली होने के चलते इसने दूसरी वेबसाइट्स को बहुत पीछे छोड़ दिया.
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यू ट्यूब
यू ट्यूब भी एक ऐसी वेबसाइट है जिसके ऑनलाइन वीडियो प्लेटफॉर्म पर आप कुछ भी तलाश सकते हैं. पेपॉल कंपनी के तीन भूतपूर्व कर्मचारियों ने 2005 में ये वेबसाइट शुरू की जिसे बाद में गूगल ने खरीद लिया.
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ह्यूमन रोबोट
सिंगापुर की वैज्ञानिक नादिया थाल्मन ने ऐसा रोबोट तैयार किया है जो हूबहू इंसानों से मेल खाता है. नदीन नाम के इस रोबोट का सॉफ्टवेयर उसे कई तरह के मनोभावों को जाहिर करने और पिछली बातचीत को याद करने में मदद करता है.
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एप्पल आईफोन
एप्पल ने 2007 में अपने मशहूर आईफोन की शुरूआत की. स्मार्ट फोन की दुनिया में अपना लोहा मनवा चुके आईफोन के अब तक कई मॉडल आ चुके हैं और दुनियाभर में इसके तकरीबन 90 करोड़ से अधिक हैंडसेट बिक चुके हैं.
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एंड्रॉयड
2008 में आए गूगल के ऑपरेटिंग सिस्टम एंड्रॉयड ने स्मार्ट फोन की दुनिया बदल दी. 2007 में आईफोन के आईओएस की धूम के बीच दूसरी कंपनियों को एंड्रॉयड ने सहारा दिया, जिसे गूगल ने मोबाइल ओएस एक रूप में विकसित किया था.
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किंडल
2007 में एमेजन कंपनी की ओर से आए ईबुक रीडर किंडल ने लोगों की पढ़ने की आदत पर खासा असर डाला है. लोग अब किताबों के पन्ने ईबुक रीडर पर पलटने लगे हैं. उसका ईबुक रीडर के 80 प्रतिशत बाजार पर कब्जा है.
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बिन ड्राइवर की कार
2012 में गूगल ने प्रयोग के बतौर कैलिफार्निया में बिना ड्राइवर के खुद से ही चलने वाली कार लॉन्च की. उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में गूगल की ये नई तकनीक दुनियाभर में यातायात का नजारा बदल सकती है.
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गूगल ग्लास
गूगल ग्लास एक ऐसा चश्मा है जिसकी मदद से आप बिना कोई मशक्कत किए सारी मनचाही जानकारी अपनी आंखों के आगे तैरती पा सकते हैं. हालांकि अभी यह डिवाइस इतनी आम नहीं हुई है कि हर कोई इसे पहन सके.