फेसबुक ने बीजेपी, कांग्रेस और पाकिस्तान से जुड़े कई पेज हटाए
ऋषभ कुमार शर्मा
२ अप्रैल २०१९
चुनाव से पहले फेसबुक ने भारत में एक बड़ी कार्रवाई की है. फेसबुक ने करीब 1,023 पेज, अकाउंट और ग्रुप हटा दिए हैं. ये अधिकांश बीजेपी और कांग्रेस के समर्थक थे.
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सोशल मीडिया बेवसाइट फेसबुक ने एक बड़ी कार्रवाई करते हुए फेसबुक पर गलत आचरण कर रहे हजारों पेज, ग्रुप्स और निजी अकाउंट्स और इंस्टाग्राम अकाउंट्स को हटा दिया है. फेसबुक न्यूजरूम ने 1 अप्रैल को एक प्रेस रिलीज जारी किया. इस प्रेस रिलीज के मुताबिक "कॉर्डिनेट इन-ऑथेंटिक बिहेवियर" यानी लगातार फेसबुक के कम्यूनिटी स्टैंडर्ड्स का पालन नहीं करने की वजह से फेसबुक ने भारत और पाकिस्तान से संचालित होने वाले 1,126 पेज और अकाउंट्स पर यह कार्रवाई की है.
फेसबुक का कहना है कि भारत में हटाए गए पेजों में से अधिकतर राजनीतिक पार्टियों से ताल्लुक रखने वाले लोगों द्वारा चलाए जा रहे हैं. भारत में 11 अप्रैल से 19 मई तक चुनाव होने हैं. ऐसे में इन पेजों पर लगातार नजर रखी जा रही थी. लेकिन लगातार नियमों का उल्लंघन करने के चलते यह कार्रवाई की गई. हालांकि फेसबुक ने अपनी रिपोर्ट में कहीं बीजेपी समर्थक पेजों का जिक्र नहीं किया है. साथ ही पाकिस्तान से चलने वाले 103 पेज हटाए गए हैं.
भारत में फेसबुक की कार्रवाई
भारत से चलाए जाने वाले 1,023 पेज, ग्रुप्स और अकाउंट्स पर कार्रवाई की गई. फेसबुक के मुताबिक 687 पेज और अकाउंट जिनमें से अधिकतर पेज ऐसे लोगों द्वारा चलाए जा रहे थे जो कांग्रेस की आईटी सेल से जुड़े थे, को ऑटोमेटेड सिस्टम ने हटा दिया है. इनमें 138 पेज और 549 फेसबुक अकाउंट थे. ये पेज और अकाउंट स्थानीय और राजनीतिक सामग्री के अलावा बीजेपी और दूसरे विपक्षी दलों के विरोध में लगातार पोस्ट कर रहे थे. इन पेजों के करीब 2,60,000 फॉलोवर्स थे. इन पेजों ने अपने ऐड पर 39,000 डॉलर यानी करीब 27 लाख रुपये खर्च किए थे.
हटाए गए 15 पेज, ग्रुप और अकाउंट एक आईटी फर्म सिल्वर टच द्वारा संचालित थे. फैक्ट चैकिंग साइट ऑल्ट न्यूज के मुताबिक सिल्वर टच अहमदाबाद से ऑपरेट करने वाली फर्म है. इसी फर्म ने साल 2013 में यूपीए सरकार में पासपोर्ट ऐप, 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नमो ऐप बनाई थी. सिल्वर टच के बड़े क्लाइंट्स में गुजरात सरकार शामिल है. सिल्वर टच से जुड़े लोग इंडिया आई नाम से एक फेसबुक पेज चलाते हैं जिस पर करीब 26 लाख लाइक्स हैं. यह पेज बीजेपी और नरेंद्र मोदी के समर्थन में पोस्ट करता है. इस पेज से कई बार फेक न्यूज भी फैलाई गईं हैं. इसे फेसबुक ने हटा दिया है. इन पेजों ने प्रमोशन में 70,000 डॉलर यानी करीब 48 लाख रुपये खर्च किए हैं.
इसके अलावा 321 पेजों और अकाउंट्स को भी हटाया गया है लेकिन इनके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी गई है. इनमें 227 पेज और 94 फेसबुक अकाउंट्स हैं. फेसबुक के मुताबिक इन 321 में उन्हें कोई "एकल" या "सामूहिक" तरीके से चलाए जाने वाले पेज नहीं लगे. इन पेजों द्वार ऐड पर खर्च राशि भी नहीं बताई गई है.
227 पेजों की सच्चाई छिपा गया फेसबुक!
227 पेजों के बारे में फेसबुक ने स्पष्ट जानकारी नहीं दी है. लेकिन बड़ी बात इन पेजों के साथ ही है. भारतीय न्यूज वेबसाइट दी प्रिंट के मुताबिक इनमें लगभग 200 पेज बीजेपी और हिंदुत्व समर्थक हैं. इनमें से कई पेज ऐसे थे जिनके 10 से 50 लाख तक फॉलोवर्स थे. रिपोर्ट के मुताबिक एक नाम नरेंद्र मोदी, अटल मोदी, ग्रेट नरेंद्र मोदी नाम के पेज हटाए गए हैं. इनके करीब 15 लाख फॉलोवर्स थे. ऑल्ट न्यूज के फाउंडर प्रतीक सिन्हा और मोहम्मद जुबैर के मुताबिक सपोर्ट फॉर मोदी-18 लाख, पोस्टकार्ड फैंस-13 लाख फॉलोवर्स जैसे कई प्रो मोदी पेज हटाए गए हैं. इनके अलावा फेक न्यूज फैलाने वाले दैनिक भारत, इंडिया रिपोर्ट कार्ड को हटाया गया है. हैदराबाद के बीजेपी एमएलए राजा सिंह का पेज भी हटाया गया है.
इन पेजों के बंद होने से बीजेपी के समर्थकों को भी झटका लगा होगा. हालांकि बीजेपी आईटी सेल के हैड जल्दबाजी में बिना पूरी जानकारी के एक ट्वीट कर गए. उन्होंने लिखा कि कांग्रेस समर्थक पेजों को हटाया जाना कांग्रेस के लिए शर्म की बात है. कांग्रेस ने इसके जवाब में कहा है कि उनकी पार्टी से जुड़े किसी आधिकारिक पेज पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
पाकिस्तान में फेसबुक की कार्रवाई
फेसबुक के मुताबिक फेसबुक और इंस्टाग्राम से हटाए गए 103 पेज, ग्रुप और अकाउंट्स पाकिस्तान से चलाए जा रहे थे. इनमें सामान्य पाकिस्तान समर्थक पेजों के साथ पाकिस्तानी फौज और कश्मीर के नाम पर चलाए जा रहे पेज शामिल हैं. इन पेजों ने भारतीय सरकार, भारतीय सेना और नेताओं के बारे में आपत्तिजनक पोस्ट किए थे. फेसबुक ने कहा कि इन पेजों को चलाने वाले लोगों की पहचान पाकिस्तानी फौज के इंटर सर्विस पब्लिक रिलेशन के कर्माचारियों के रूप में की गई है.
24 पेज, 57 फेसबुक अकाउंट, 7 ग्रुप फेसबुक पर और 15 अकाउंट और 7 ग्रुप इंस्टाग्राम पर हटाए गए हैं. इन फेसबुक पेजों के 28 लाख फॉलोवर्स, ग्रुप्स में 4,700 लोग और इंस्टाग्राम पर 1,050 फॉलोवर्स थे. साथ ही इन सब को प्रमोट करने पर करीब 1,100 डॉलर यानी 76,000 रुपये खर्च किए गए.
फेसबुक को फोन नंबर देने से पहले हजार बार सोचिए
अपने ऑनलाइन एकाउंट की सुरक्षा के लिए यूजर पासवर्ड के अलावा टू फैक्टर ऑथेन्टिकेशन प्रक्रिया का इस्तेमाल करते हैं. इसमें सिक्युरिटी कोड फोन पर आ जाता है. लेकिन क्या फेसबुक जैसी कंपनी पर भरोसा किया जा सकता है.
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क्या है फीचर
फेसबुक का एक सिक्युरिटी फीचर है "टू फैक्टर ऑथेन्टिकेशन". फीचर का मकसद है यूजर के एकाउंट को हैकर्स से बचाना. इस सिस्टम में यूजर सबसे पहले अपने एकाउंट में लॉग-इन करता है और फिर अपना पासवर्ड डालता है. लेकिन इसके बाद यूजर की पहचान को पुख्ता करने के लिए दूसरे चरण में एक कोड यूजर के स्मार्टफोन पर भेजा जाता है. इसके बाद ही यूजर अपना फेसबुक एकाउंट एक्सेस करता है.
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ये हैं खामियां
फेसबुक के इस सिक्युरिटी फीचर में ढेर सारी खामियां हैं, जिसमें सबसे अहम है कि यह सब एक बाहर की कंपनी के प्लेटफॉर्म पर होता है. एक अमेरिकी स्टडी के मुताबिक जब यूजर अपने मोबाइल नंबर को फेसबुक पर रजिस्टर करता है तो वह अपने नंबर को मार्केटिंग से जुड़ी चीजों के लिए भी इस्तेमाल करने की इजाजत दे देता है.
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मार्केटिंग और बहुत कुछ
मार्केटिंग के अलावा, कंपनियां यूजर्स को फोन नंबर की मदद से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर तलाश भी कर सकती हैं. इसका मतलब है कि अगर आपके पास किसी का मोबाइल नंबर है तो आप उसका प्रोफाइल आसानी से खोज सकते हैं. हैरानी की बात है कि इस फीचर को बंद नहीं किया जा सकता, लेकिन अपने फेसबुक फ्रेंड्स और उनकी फ्रैंड्स लिस्ट के लिए इसे सीमित किया जा सकता है.
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क्या है डर
जर्मनी के हैम्बर्ग में डाटा प्रोटेक्शन कमिश्नर योहानस कास्पर कहते हैं कि फेसबुक लोगों की सिक्योरिटी से जुड़ी चिंता को भुना रहा है. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "फेसबुक यूजर्स से बिना पूछे डाटा इस्तेमाल कर रहा है जो यूरोपीय कानूनों का उल्लघंन हैं." वहीं फेसबुक इस पर कुछ और ही तर्क देता है.
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फेसबुक का तर्क
अमेरिकी मीडिया में फेसबुक के हवाले से कहा गया है कि फेसबुक का यह फीचर यूजर को मोबाइल नंबर के जरिए अपने ऐसे दोस्तों को ढूंढने का मौका देता है जो उनके परिचित तो हैं लेकिन फेसबुक पर जुड़े नहीं हैं. फेसबुक का कहना है जो भी इस प्रक्रिया को गलत समझता है वह अपना मोबाइल नंबर नेटवर्क से डिलीट कर दे.
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नया फीचर
इस बहस के बीच एक नया टू फैक्टर ऑथेन्टिकेशन फीचर लॉन्च किया गया है, जिसमें मोबाइल नंबर के बजाय किसी बाहर की कंपनी द्वारा तैयार की गई ऑथेन्टिकेशन ऐप इस्तेमाल की जाती है. ऐप इस्तेमाल को विशेषज्ञ ज्यादा सुरक्षित तरीका मान रहे हैं. वहीं फेसबुक अब भी अपने यूजर्स से टू फैक्टर ऑथेन्टिकेशन के इस्तेमाल के लिए कह रहा है.
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बैंकिंग में इस्तेमाल
कुछ मामलों में विशेषज्ञ टू-फैक्टर प्रक्रिया के इस्तेमाल पर जोर देते रहे हैं. ऐसे फीचर आमतौर पर बैंकिंग में इस्तेमाल किए जाते हैं. लेकिन मोबाइल फोन के जरिए यूजर ऑथेन्टिकेशन को अब सुरक्षित नहीं माना जा रहा है क्योंकि यह फीचर काफी कुछ उस कंपनी पर निर्भर करता है जो इसे ऑपरेट करती है.
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हैकर्स का खतरा
एक खामी और भी है. स्मार्टफोन पर टेकस्ट मैसेज तब भी दिखाई देते हैं जब फोन स्टैंडबाय पर हो, साथ ही फोन पर आया सिक्योरिटी कोड से जुड़ा मैसेज इन्क्रिप्टेड मतलब किसी कोड में नहीं होता. ऐसे में हैकर्स के लिए ऐसे संदेशों को मॉनिटर करना बेहद आसान हो जाता है. ऐसी सब कमियों के चलते अब विशेषज्ञ टू-फैक्टर ऑथेन्टिकेशन के बजाय, ऑथेन्टिकेशन ऐप्स के इस्तेमाल की वकालत कर रहे हैं.
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मोबाइल नंबर से पहचान
विशेषज्ञ अब कहने लगे हैं कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर मोबाइल नंबर देना जोखिम भरा हो सकता है. अब कई कंपनियां यूजर से ईमेल एकाउंट सेट करने के लिए भी फोन नंबर मांगती हैं. जानकार कहते हैं कि मोबाइल नंबर किसी को पहचानने का सबसे बड़ा तरीका है. मोबाइल नंबर के जरिए कंपनियां यूजर की गतिविधियों पर नजर रख सकती हैं इसलिए डाटा पर निर्भर रहने वाली फेसबुक जैसी कंपनियां फोन नंबर पर जोर देती हैं.
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फीचर का विरोध
टेक उद्यमी जेरेमी बर्ज ट्विटर पर फेसबुक के इस फीचर का लंबे समय से विरोध कर रहे हैं. फेसबुक के पूर्व चीफ सिक्योरिटी ऑफिसर एलेक्स स्टामोस भी इस फीचर की आलोचना करते हैं. एलेक्स कहते हैं, "फेसबुक का टू फैक्टर फीचर इसकी विश्वसनीयता को खतरे में डाल रहा है." कुछ विशेषज्ञ तो ये भी मानते हैं कि ये फीचर राजनीतिक ताकतों का विरोध करने वाले ऐसे लोगों के लिए खतरा साबित हो सकते हैं जो गुमनाम रहना चाहते हैं.
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असंवेदनशील होते यूजर
फेसबुक के इस मॉडल के चलते जानकारों को एक और डाटा स्कैंडल का डर सताने लगा है. कास्पर को डर है कि फेसबुक से जुड़े ऐसे खुलासे यूजर्स को असंवेदनशील बना सकते हैं, और इस वजह से हो सकता है फेसबुक डाटा सिक्योरिटी जैसी बातों पर ध्यान न दे और अपने मौजूदा बिजनेस मॉडल पर कायम रहे.
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फेसबुक नहीं सुधरा
पिछले सालों में एलेक्स स्टामोस की तरह फेसबुक के कई बड़े अधिकारियों ने कंपनी को अलविदा कह दिया है. न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक फेसबुक छोड़ कर गए अधिकारी डाटा सिक्योरिटी से जुड़े मुद्दों पर कंपनी के साथ सहमत नहीं थे. यहां तक कि फेसबुक में चीफ सिक्योरिटी ऑफिसर का पद अब तक खाली पड़ा हुआ है. इससे कहीं न कहीं ऐसा लगता है कि डाटा सिक्योरिटी जैसे मुद्दों पर फेसबुक जैसी कंपनी गंभीर नहीं है.