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फॉर्मूला वन में इंडियन टीमें चमकीं, ड्राइवर फीके

२८ नवम्बर २०११

फर्राटा रेसिंग का साल खत्म होने के बाद भारतीय फॉर्मूला वन टीम फोर्स इंडिया ने ठीक ठाक जगह बना ली और इसके दोनों ड्राइवरों को अच्छे अंक मिल गए. लेकिन भारतीय ड्राइवर नाकाम रहे और उन्हें सीजन शून्य पर ही खत्म करना पड़ा.

तस्वीर: picture alliance/dpa

जर्मनी के सेबास्टियन फेटल और रेड बुल में उनके जोड़ीदार मार्क वेबर की चर्चा तो दुनिया कर रही है क्योंकि वे चोटी के ड्राइवर हैं लेकिन फॉर्मूला वन में इस साल कुल 28 ड्राइवरों ने स्टीयरिंग के पीछे हाथ आजमाए, जिसमें दो भारतीय ड्राइवर भी थे.

नाकाम भारतीय ड्राइवर

भारत में मोटर रेसिंग की शुरुआत करने वाले विकी चंढोक के बेटे करुण चंढोक टीम लोटस में शामिल थे और उन्होंने कई रेसों में हिस्सा लिया. उन्होंने कई रेस पूरी भी की लेकिन अंकों के मामले में उन्हें नाकामी ही हाथ लगी. फॉर्मूला वन में पहले दस नंबर पर आने वाले ड्राइवरों को अंक दिए जाते हैं, जबकि उसके बाद कोई प्वाइंट नहीं दिया जाता. पहले नंबर पर आने वाले ड्राइवर को सबसे ज्यादा 25, दूसरे नंबर वाले को 18 और इस तरह दसवें नंबर पर रहने वाले को एक अंक मिलता है.

सेबास्टियान फेटलतस्वीर: dapd

भारत के लिए पहली बार फॉर्मूला वन कार चलाने वाले नारायण कार्तिकेयन ने भारत में हुई पहली फॉर्मूला वन रेस में हिस्सा लिया. वह हिस्पानिया टीम के सदस्य हैं. उन्होंने रेस तो पूरी की लेकिन अंक नहीं हासिल कर पाए. 2005 में फॉर्मूला वन करियर की शुरुआत करने वाले कार्तिकेयन ने अपने करियर में कुल पांच अंक हासिल किए हैं.

कामयाब भारतीय टीम

दूसरी तरफ विजय माल्या और सहारा परिवार की फोर्स इंडिया ने इस सीजन में उम्मीद से कहीं बेहतर प्रदर्शन करते हुए अंक तालिका में अच्छी जगह बनाई है. जर्मनी के विश्वसनीय ड्राइवर आद्रियान सुटिल ने इस साल कुल 42 अंकों के साथ नौवें नंबर पर कब्जा किया है, जबकि इसी टीम के ड्राइवर ब्रिटेन के पॉल डी रोस्टा ने भी इस सीजन में अच्छी कार चलाई. वह 13वें नंबर पर रहे और उनके खाते में कुल 27 अंक आए.

भारत में कार रेसिंग को नया मुकाम देने वाले कारोबारी विजय माल्या बार बार कह चुके हैं कि अगर उनकी टीम पहले नंबर पर न आ पाए तो कोई बात नहीं लेकिन वह नहीं चाहते कि उनकी टीम कभी आखिरी नंबर पर रहे. हालांकि उन्होंने कभी भी भारतीय ड्राइवरों को फॉर्मूला वन में मौका नहीं दिया है. क्रिकेट में आईपीएल की बैंगलोर रॉयल्स भी माल्या की ही टीम है.

टीम गेम है फॉर्मूला वन

फॉर्मूला वन की फर्राटा कारों को टेलीविजन पर भागते हुए देखने पर लगता है कि ड्राइवर के गुण और उसकी प्रतिभा ही किसी रेस को जिताने के लिए काफी होती होगी. लेकिन असल में ऐसा नहीं होता. भले ही स्टीयरिंग ड्राइवर के हाथ में होती है लेकिन फॉर्मूला वन एक जबरदस्त टीम गेम है. रेस के दौरान कभी टायर बदलने और पेट्रोल भरने के अलावा टीम के अनुभवी कमांडरों के दम पर बहुत कुछ होता है.

आद्रियान सुटिलतस्वीर: picture-alliance/ dpa

तकनीक से टक्कर

इसके अलावा तकनीकी तौर पर कारों की दक्षता भी बहुत मायने रखती है. कारों का डिजाइन और उनके इंजन किसी भी कार रेसर की जान होते हैं. आम तौर पर जर्मनी के कार इंजनों को बेहतरीन माना जाता है. लेकिन फॉर्मूला वन में इन दिनों तहलका मचा रही रेड बुल की गाड़ियों के इंजन फ्रांसीसी कंपनी रेनां बना रही है. फॉर्मूला वन में सबसे ज्यादा बार जीत दर्ज करने वाले मिषाएल शूमाकर भी फरारी की कार चला रहे थे, जिसका इंजन इटली में बना था. हालांकि जर्मनी का योगदान यह रहा कि रेड बुल और फरारी दोनों के ही सबसे सफल ड्राइवर जर्मनी के सेबास्टियन फेटल और शूमाकर रहे.

ब्राजील के साओ पाओलो में 2011 का सीजन खत्म होने के साथ फेटल पहले नंबर पर रहे. उनके खाते में 392 अंक हैं, जबकि मर्सिडीज मैकलैरन चलाने वाले ब्रिटेन के जेनसन बटन 270 अंकों के साथ दूसरे नंबर पर हैं. वेबर के पास 258 अंक हैं और वह तीसरे, जबकि सिर्फ एक अंक कम के साथ फरारी चलाने वाले फर्नांडो ओलोन्जो चौथे नंबर पर हैं. अब फॉर्मूला वन की अगली रेस सीजन 2012 के मार्च में मेलबर्न में होगी.

रिपोर्टः अनवर जे अशरफ

संपादनः ओ सिंह

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