जर्मनी की सर्वोच्च अदालत का कहना है कि जिन लोगों ने इस कंपनी की खराब सॉफ्टवेयर वाली कारें खरीदी थीं, वे मुआवजे के हकदार हैं. वे कंपनी को गाड़ी वापस कर सकते हैं और नुकसान का एक हिस्सा मांग सकते हैं.
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मुआवजा देते समय कार की माइलेज को ध्यान में रखा जाएगा. जर्मनी में फोल्क्सवागेन के खिलाफ दायर हजारों मामलों में से यह पहला मामला है जिस पर अदालत ने सुनवाई की है. माना जा रहा है कि यह फैसला बाकी के मामलों के लिए एक मानक तय कर सकेगा.
क्या है फोल्क्सवागेन स्कैंडल?
2015 में अमेरिका की एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन एजेंसी (ईपीए) के वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि फोल्क्सवागेन की कारों में इस तरह का सॉफ्टवेयर लगाया गया है जो कार से होने वाले उत्सर्जन का गलत नतीजा दिखाता है और कार की परफॉर्मेंस के साथ छेड़छाड़ करता है. यह इस जर्मन कार निर्माता कंपनी पर उसके इतिहास का सबसे बड़ा आरोप था. सितंबर 2015 में आखिरकार कंपनी ने आरोप स्वीकार लिए और बताया कि उसने जानबूझ कर एक करोड़ से भी ज्यादा कारों में ऐसा सॉफ्टवेयर लगाया था जो उत्सर्जन के टेस्ट के साथ छेड़छाड़ करता था यानी कार से जहरीली गैसें निकलती लेकिन लैब में टेस्ट के दौरान सॉफ्टवेयर उसे दिखने नहीं देता. यह स्कैंडल डीजलगेट के नाम से जाना गया. फोल्क्सवागेन के बाद दूसरी कंपनियों की भी जांच शुरू हुई और ऑटोमोबिल जगत को बड़ा झटका लगा.
अदालत के बाहर निपटे मामले
बड़े मुकदमों से बचने के लिए कंपनी जर्मनी में 2,35,000 कार मालिकों को मुआवजा देने की घोषणा कर चुकी है. इसके तहत कंपनी कुल 83 करोड़ यूरो का भुगतान करने को तैयार है. लेकिन अगर बाकी देशों में लगी चपत पर नजर डालें, तो यह रकम कुछ भी नहीं है. 2016 में इस कंपनी ने अमेरिका और कुछ अन्य देशों में इस तरह के सेटलमेंट पर 23 अरब यूरो खर्चे. इसी तरह ऑस्ट्रेलिया में सेटलमेंट में कंपनी को 7.6 करोड़ यूरो खर्चने पड़े. वहीं कनाडा में अदालत ने फोल्क्सवागेन पर पहले 2.3 अरब यूरो का जुर्माना लगाया और फिर बाद में 13 लाख यूरो और देने को कहा.
गंदा है, पर धंधा है ये
होड़ में आगे निकलने के लिए कुछ कंपनियां किसी भी हद तक गिर सकती हैं. देखिये आपराधिक गतिविधियों के कारण बदनाम हुई कंपनियों को.
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फोल्क्सवागेन
डीजल कार के प्रदूषण को कम दिखाने के लिए सॉफ्टवेयर लगाने वाली जर्मन कार कंपनी फोल्क्सवागेन का इतिहास भी विवादों से भरा है. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान कंपनी को मजबूरन हथियार बनाने पड़े. लेकिन कंपनी ने यह बात छुपाई कि वह नाजी सरकार की मदद कर रही थी. कंपनी ने हिटलर के शासन के दौरान यातना शिविर बनाने में भी मदद की.
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आईबीएम
हिटलर के सत्ता में आने के कुछ समय बाद 1933 में नाजी सरकार ने यहूदियों की छंटनी शुरू की. अमेरिकी कंपनी आईबीएम की जर्मन शाखा डेहोमाग ने नाजी सरकार की मदद की और पहचान व आंकड़े जमा करने वाले पहचान पत्र बनाए. आज के पंच कार्ड इसी तकनीक पर चलते हैं. इन पहचान पत्रों का इस्तेमाल यातना शिविरों में निगरानी रखने के लिए किया गया.
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चिक्विटा
अमेरिका की इस फ्रूट कंपनी ने 1954 में ग्वाटेमाला में तख्तापलट कराया. अपने हित पूरे ना होते देख कंपनी ने राष्ट्रपति जोकोबो आर्बें गुजमन को सत्ता से हटवा दिया. गुजमन का कृषि सुधार कार्यक्रम देश में लोकप्रिय हो रहा था. अमेरिकी कंपनी को लगा कि इन सुधारों से उसका धंधा मंदा हो जाएगा. गुजमन को देश छोड़ना पड़ा, तख्तापलट के बाद ग्वाटेमाला में 40 साल तक गृहयुद्ध चला.
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बायर
1970 के दशक से 1985 तक अमेरिका के दवा उद्योग में कई विवाद सामने आए. हीमोफिलिया के रोगियों को प्रोटीन फैक्टर-8 बेचा गया. बायर कंपनी की इस दवा में एचआईवी का विषाणु भी था. 10,000 लोग इसके शिकार हुए. हानिकारक साबित होने के बावजूद जर्मन कंपनी बायर की यह दवा आज भी कुछ देशों में बिकती है.
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स्टारबक्स
कॉफी की चुस्की के साथ मुफ्त वाईफाई देने वाली अमेरिकी कंपनी स्टारबक्स और इथियोपिया सरकार के बीच 2006 में बड़ा विवाद हुआ. इथियोपिया सरकार तीन तरह की कॉफी का ट्रेडमार्क रजिस्टर करना चाहती थी, स्टारबक्स ने इसमें रोड़े अटकाये. कंपनी ने गलत प्रचार कर किसानों को अपनी ही सरकार के खिलाफ भड़काया.
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कोका कोला
2014 में भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में कोका कोला की एक फैक्ट्री को बंद करने का आदेश दिया गया. शिकायत के मुताबिक कोका कोला बनाने के लिए कंपनी ने जमीन से इतना पानी निकाला कि भूजल का स्तर बहुत ही नीचे चला गया. दूसरे देशों में भी कोका कोला पर ऐसे आरोप लगते रहे हैं.
तस्वीर: Coca-Cola
मॉन्सैंटो
यह अमेरिकी बीज कंपनी, दूसरे प्रोडक्ट इस्तेमाल करने वाले किसानों पर मुकदमा भी कर देती है. जीन संवर्धित बीज बेचने वाली इस कंपनी पर दुनिया भर में अपना एकाधिकार जमाने के आरोप लगते हैं. 2002 में मॉन्सैंटो पर अल्बामा नदी में कचरा डालने के आरोप भी रहे. वियतनाम युद्ध के दौरान अमेरिका ने रासायनिक हथियार एजेंट ऑरेंज का इस्तेमाल किया, यह भी मॉन्सैंटो ने ही बनाया.
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हैलीबर्टन
फ्रैकिंग तकनीक से तेल निकालने वाली इस कंपनी को पर्यावरणप्रेमी नापसंद करते हैं. इस अमेरिकी कंपनी पर इराक युद्ध में अप्रत्यक्ष रूप से शामिल होने के आरोप भी लगे. कंपनी पर तेल समृद्ध देशों में भ्रष्टाचार फैलाने के आरोप भी हैं. इराक में सिर्फ इसी कंपनी को 7 अरब डॉलर का ठेका मिला, बाकी को कुछ नहीं मिला.
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रियो टिंटो
ऑस्ट्रेलिया की दिग्गज खनन कंपनी रियो टिंटो पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगते रहे हैं. 1970 के दशक में कंपनी नामीबिया में गैरकानूनी रूप से यूरेनियम खनन करने में पकड़ी गई. मुनाफे से वह दक्षिण अफ्रीकी की नस्लभेदी सरकार की मदद करती थी. कंपनी पर अफ्रीका के हथियारबंद गुटों को पैसा देने के आरोप भी लगे.
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जर्मनी की इस कार कंपनी ने दुनिया भर में किसी तरह मामले निपटाए लेकिन अपने ही देश में यह अब तक उलझी हुई है. यहां अधिकतर कार मालिकों ने इसे विश्वासघात बताते हुए अदालत के बाहर मामला निपटाने से इंकार कर दिया था. ऐसे में हजारों लोगों ने कंपनी पर मुकदमा किया. इनमें से पहले मुकदमे की सुनवाई हुई है.
अब आगे क्या होगा?
फोल्क्सवागेन के खिलाफ जर्मनी की अलग अलग अदालतों में कुछ 60,000 मुकदमें दायर हैं. निचली अदालतें अकसर ऊपरी अदालतों के फैसलों के आधार पर अपने फैसले सुनाती हैं. ऐसे में क्योंकि ताजा फैसला सर्वोच्च अदलात ने सुनाया है, तो माना जा रहा है कि बाकी के मुकदमे भी कंपनी को भारी पड़ेंगे. जुलाई में अदालत डीजलगेट से जुड़े अन्य मुकदमों की सुनवाई करेगी.
यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्ट वर्जीनिया में फोल्क्सवागेन की डीजल कारों पर टेस्ट हुआ, तो पता चला कि गाड़ियां अनुमति से चालीस गुना ज्यादा नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन कर रही थीं. यहां से हुई डीजल स्कैंडल की शुरुआत.
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18 सितंबर 2015
अमेरिका की पर्यावरण संरक्षण संस्था ईपीए ने कंपनी पर आरोप लगाया कि उसने कारों में ऐसे सिस्टम लगाए हैं जो टेस्ट के दौरान गड़बड़ी करते हैं. अमेरिका में ऐसी कम से कम 4.8 लाख कारें थीं और कंपनी से उन्हें वापस लेने को कहा गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Gambarini
22 सितंबर 2015
कंपनी ने माना कि उसने एक करोड़ से अधिक कारों में ऐसा सॉफ्टवेयर लगाया जिससे लैब में टेस्ट के दौरान कम उत्सर्जन होता है. इसके बाद दो दिन में कंपनी के शेयर चालीस फीसदी तक गिर गए.
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23 सितंबर 2015
कंपनी के सीईओ मार्टिन विंटरकॉर्न ने इस्तीफा दिया लेकिन कहा कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी. जर्मनी के ब्राउनश्वाइग में फोल्क्सवागेन के खिलाफ मामला दर्ज किया गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/B. von Jutrczenka
25 सितंबर 2015
पोर्शे के माथिआस मुलर ने विंटरकॉर्न का पद संभाला. जर्मन संसद में उन्होंने कहा कि देश भर में 28 लाख गाड़ियां इस स्कैंडल से प्रभावित हुई हैं.
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22 अप्रैल 2016
फोल्क्सवागेन ने घोषणा की कि 20 सालों में पहली बार कंपनी घाटे में गई. कंपनी ने माना कि डीजलगेट के कारण उसे अरबों का नुकसान हुआ है, जिसकी भरपाई में लंबा वक्त लग जाएगा.
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28 जून 2016
अमेरिका के साथ एक समझौते के तहत कंपनी 14.7 अरब डॉलर का जुर्माना देने को तैयार हुई. इसमें अमेरिका के लगभग पांच लाख कार मालिकों को दिया जाने वाले भुगतान शामिल था.
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21 सितंबर 2016
निवेशकों ने जर्मनी में कंपनी पर मुकदमा किया और आरोप लगाया कि कंपनी ने समय रहते उन्हें स्थिति से आगाह नहीं कराया. अपने नुकसान की भरपाई के लिए निवेशकों ने अरबों डॉलर का दावा किया.
तस्वीर: picture alliance/dpa/J. Stratenschulte
8 दिसंबर 2016
यूरोपीय आयोग ने जर्मनी, ब्रिटेन, स्पेन और लक्जमबर्ग समेत यूरोपीय संघ के सात देशों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने के आदेश दिए. आयोग का आरोप था कि ये देश उत्सर्जन में हुई गड़बड़ी को रोकने में नाकाम रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Stratenschulte
11 जनवरी 2017
कंपनी ने अमेरिका द्वारा लगाए गए धोखाधड़ी के तीन आरोपों में अपनी गलती मानी और 4.3 अरब डॉलर का जुर्माना देने की बात स्वीकारी. कंपनी ने यह भी माना कि यह कांड 2006 से चल रहा था.
तस्वीर: picture alliance/dpa/J. Stratenschulte
1 फरवरी 2017
कार में लगाया गया सॉफ्टवेयर बनाने वाली कंपनी बॉश ने भी अमेरिका को 33 करोड़ डॉलर का जुर्माना दिया. बॉश ने कहा कि उसे कोई अंदाजा नहीं था कि फोल्क्सवागेन उसके सॉफ्टवेयर का गलत इस्तेमाल कर रही है.
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25 अगस्त 2017
फोल्क्सवागेन के इंजीनियर जेम्स लिएंग ने अपनी गलती मानी और अमेरिका की एक अदालत ने उन्हें 40 महीने कैद और दो लाख डॉलर जुर्माने की सजा सुनाई.
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6 दिसंबर 2017
कंपनी के एक अन्य अधिकारी ओलिवर श्मिट को हिरासत में लिया गया और सात साल की जेल की सजा दी गई. जिस समय उन्हें गिरफ्तार किया गया, वे फ्लोरिडा में छुट्टी मना रहे थे.
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23 फरवरी 2018
2017 में रिकॉर्ड तोड़ गाड़ियां बेचने के बाद फोल्क्सवागेन ने एक बार फिर मुनाफे की घोषणा की. पोर्शे, ऑडी, स्कोडा और सिएट जैसे बड़े नाम भी फोल्क्सवागेन ग्रुप का ही हिस्सा हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Kraufmann
12 अप्रैल 2018
माथिआस मुलर को हटा कर हैर्बेर्ट डीस को सीईओ का पद सौंपा गया. मुलर ने ढाई साल तक कंपनी की कमान संभाली लेकिन इस दौरान वे जांचकर्ताओं के शक के दायरे से बाहर नहीं हो सके.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Arnold
3 मई 2018
पूर्व सीईओ मार्टिन विंटरकॉर्न पर अमेरिका में मुकदमा शुरू हुआ. उन पर कंपनी की धोखाधड़ी को छिपाने के आरोप लगाए गए. 70 वर्षीय विंटरकॉर्न के अनुसार अगर उन्हें इस बारे में खबर होती, तो वे इसे रोकने के प्रयास करते.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Stratenschule
13 जून 2018
कंपनी जर्मनी में एक अरब यूरो का जुर्माना देने को राजी होती है. अब तक फोल्क्सवागेन अलग अलग सरकारों को कुल मिला कर 27 अरब यूरो जुर्माने के तौर पर दे चुकी है.
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18 जून 2018
फोल्क्सवागेन की सहायक कंपनी ऑडी के सीईओ रूपेर्ट श्टाडलर को जर्मनी में गिरफतार किया जाता है. उन पर धोखेबाजी और सबूतों को छिपाने के आरोप लगाए गए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Dedert
2 सितंबर 2018
जर्मन अखबार "बिल्ड" ने कंपनी पर आरोप लगाए कि उसने पेट्रोल कारों के साथ भी छेड़छाड़ की, जिसके जवाब में जर्मनी का परिवहन मंत्रालय सफाई देता है कि इस बात के कोई सबूत नहीं मिले हैं और मामला डीजल कारों तक सीमित है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Woitas
10 सितंबर 2018
जर्मन शहर ब्राउनश्वाइग के हाईकोर्ट में कंपनी के खिलाफ नया मुकदमा शुरू हुआ. हालांकि इससे पहले भी मुकदमे चल रहे हैं लेकिन ये इसलिए अहम है क्योंकि इसके जरिए सभी निवेशकों के बारे में फैसला लिया जाएगा.
रिपोर्ट: ईशा भाटिया (एएफपी)