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फ्रांस का नकाब बैन 'मानवाधिकारों का हनन'

२८ अक्टूबर २०१८

संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार समिति ने फ्रांस में चेहरे को ढंकने वाले नकाब पर लगे बैन की आलोचना की है और इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया है. समिति का कहना है कि फ्रांस को इस बैन पर दोबारा विचार करना चाहिए.

Dänemark | Demonstration "Kvinder i Dialog"
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Ritzau Scanpix

संयुक्त राष्ट्र की इस समिति का कहना है कि फ्रांस अपने यहां लगे बैन के बारे में स्पष्टीकरण से उसे संतुष्ट नहीं कर पाया. समिति ने अब फ्रांस को 180 दिन का समय दे कर यह बताने को कहा है कि उसने क्या कदम उठाया.

समिति की ओर से कहा गया है, "समिति खास तौर पर फ्रांस के इस दावे से संतुष्ट नहीं थी कि चेहरे को ढंकने वाले नकाब पर बैन जरूरी है और सुरक्षा के नजरिए से या फिर 'समाज में घुल मिल कर' रहने के उद्देश्य को देखते हुए यह उचित है."

इस समिति में 18 स्वतंत्र विशेषज्ञ हैं जिनका काम इस बात की निगरानी करना है कि नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के अंतरराष्ट्रीय संधि पर अमल हो रहा है या नहीं. इस समिति के फैसले बाध्यकारी नहीं होते, लेकिन संधि की वैकल्पिक प्रोटोकॉल के तहत फ्रांस के ऊपर "सद्भावना में" इसे मानने की कानूनी बाध्यता है.

फ्रांस के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि नकाब पर बैन का कानून पूरी तरह से वैध है. उनके मुताबिक यह पूरी तरह से जरूरी है और धार्मिक आजादी का सम्मान करता है. प्रवक्ता ने कहा कि यह बैन ऐसे किसी धार्मिक कपड़े पर रोक नहीं लगाता जिसमें चेहरा पूरी तरह ना ढंका हो.

फ्रांसीसी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि फ्रांस की संवैधानिक कोर्ट के साथ साथ यूरोपीय मानवाधिकार अदालत ने भी इस बैन को सही ठहराया है, जिसके दिए फैसले कानूनी रूप से बाध्यकारी होते हैं. उन्होंने कहा कि नकाब पर बैन मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं है.

दूसरी तरफ, संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार समिति फ्रांसीसी विदेश मंत्रालय के बयान से सहमत नहीं है. उसका कहना है कि यह बैन धार्मिक विश्वास को प्रकट करने वाली किसी महिला के अधिकारों को नुकसान पहुंचाता है.

समिति कहती है कि नकाब बैन की वजह से ऐसी महिलाएं सिर्फ घर में कैद होकर रह सकती हैं या फिर वो हाशिए पर चली जाएंगी.

दो फ्रांसीसी महिलाओं की शिकायत के बाद समिति ने इस मामले की पड़ताल की. इन महिलाओं को 2012 में इस कानून के तहत दोषी करार दिया गया था. 2010 में बने इस कानून के तहत कोई भी सार्वजनिक जगहों पर अपने चेहरे को नहीं छुपा सकता. समिति ने फ्रांस की सरकार से कहा कि वह इन महिलाओं को हर्जाना दे.

नकाब बैन का उल्लंघन करने पर 150 यूरो का जुर्माना लगाया जा सकता है फिर फ्रेंच नागरिकता की क्लास करनी होंगी. मेट्रोन्यूज मीडिया संस्थान का कहना है कि 2015 में 223 महिलाओं पर ऐसा जुर्माना लगाया गया था.

डेनमार्क में बुरके पर रोक

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कई दूसरे यूरोपीय देशों में भी इस्लामिक पहनावे पर पाबंदियां लगाई हैं. डेनमार्क की संसद ने मई 2018 में सार्वजनिक जगहों पर चेहरे को ढंकने वाला नकाब पहनने पर बैन का कानून बनाया. इससे पहले बेल्जियम, नीदरलैंड्स, बुल्गारिया और जर्मनी के बवेरिया प्रांत ने भी सार्वजनिक जगहों पर ऐसी रोक लगाई है. 

फ्रांस यूरोप में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश है जहां 6.7 करोड़ की आबादी में पचास लाख मुसलमान हैं. हालांकि इस धर्मनिरपेक्ष देश में धार्मिक स्थान या फिर सार्वजनिक स्थलों पर धार्मिक प्रतीकों को पहनने पर गहरा विवाद हो सकता है.

एके/एनआर (रॉयटर्स)

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