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फ्रांस के इस गांव से बनते हैं राष्ट्रपति

११ अप्रैल २०१२

फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति जाक शिराक इस बार के चुनाव में फ्रांसोआ ओलांद को क्यों वोट देंगे अगर यह समझना है तो कोरेज आना होगा. पैरिस से 400 किलोमीटर दूर बसे गांव ने देश को एक राष्ट्रपति दिया है और दूसरे की तैयारी है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

फ्रेंच भाषा में इसे ला फ्रांस प्रोफोंड भी कह सकते हैं यानी भीतरी फ्रांस. छोटे से गांव में थोड़े से लोग हैं और मुट्ठी भर पैसे. लेकिन इसी गांव में कई दशकों तक रह कर जाक शिराक ने अपना करियर बनाया. मौजूदा चुनाव में जिस उम्मीदवार के जीतने की बात कही जा रही है उन्होंने भी एक दो नहीं पूरे तीस साल तक इसी गांव में रह कर अपनी क्षमताओं को धारदार बनाया है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

मौजूदा दक्षिणपंथी राष्ट्रपति निकोला सारकोजी इस हिसाब से फ्रांस की राजनीति में अनोखे हैं क्योंकि उन्होंने अपने करियर का ज्यादा वक्त फ्रांस के गांवों की बजाय पैरिस के आलीशान उपनगर में बिताया है. जाहिर है कि इन प्रांतों में वो ज्यादा लोकप्रिय नहीं हैं. 1995 से 2007 तक फ्रांस के राष्ट्रपति रहे जाक शिराक कोरेज के स्थानीय नागरिक हैं. पिछले साल अपनी रुढ़िवादी टोपी उतार कर उन्होंने एलान किया कि वो अपने उत्तराधिकारी सारकोजी की बजाय ओलांद को वोट देंगे. ऐसा नहीं है कि दोनों दक्षिणपंथी नेताओं का आपसी प्रेम खत्म हो गया हो तो भी 79 साल के शिराक यह नहीं कह सके कि वो सारकोजी को चुनेंगे और कोरेज के ज्यादातर लोग मानते हैं कि वो ओलांद को ही वोट देंगे.

ओलांद 1981 में पहली बार शिराक को चुनौती देने के लिए अपने गृहनगर नॉरमैन्डी से आए थे. उस वक्त उन्हें बाहर से भेजा उम्मीदवार कहा गया जिसके टिकने की उम्मीद नहीं थे. वे हारे जरूर लेकिन डिगे नहीं. 1981 में फ्रांसोआ मितराँ जब फ्रांस के पहले समाजवादी राष्ट्रपति बने तो उनकी पार्टी का कोई सदस्य शिराक के खिलाफ खड़ा होने के तैयार नहीं था. पूर्व प्रधानमंत्री और भविष्य के राष्ट्रपति से टकराने का साहस कम ही लोगों में था. ऐसे वक्त में मितराँ ने इकोल नेशनल एडमिनिशट्रेशन स्कूल के ग्रेजुएट 26 साल के ओलांद को यहां भेजा. तब शिराक ने यह कह कर कि "उनसे ज्यादा तो लोग मितराँ के कुत्ते को जानते हैं," उन्हें खारिज किया था. पूर्व समाजवादी कार्यकर्ता 74 साल के क्लोद मेनो याद करते हैं, "उनके हाथों में बस्ता था और वो हाई स्कूल के छात्र जैसे दिखते थे."

तस्वीर: picture-alliance/dpa

आखिरकार इस कोरेज का क्या असर है कि यहां से लोग राजनीति की बुलंदी छूते हैं. ऐसी जगह जहां कम्युनिस्ट दक्षिणपंथियों के लिए वोट देते हैं और रूढ़िवादी समाजवादियों के लिए, जहां नेताओं की छवि उनके आदर्शों पर भारी पड़ जाती है. यह इलाका गरीब है लेकिन खुबसूरत और आजाद ख्याल वाला. यहां की जमीन रजवाड़ों या बुर्जुआ समाज की बजाय किसानों के पास है और एक वक्त ऐसा भी था जब पैरिस की सत्ता के गलियारे में यहां के हितों की बात करने वाला कोई नहीं था. स्थानीय पत्रकार अलाँ एल्बिनेट कहते हैं, "कोरेज को अपने अस्तित्व के लिए राजनीति की जरूरत है. हम केवल अपने दम पर नहीं रह सकते. हमें पैरिस में संपर्क की जरूरत पड़ती है जिससे कि सड़कें बन सकें विकास हो."

हालांकि पास के एक छोटे शहर एग्लेटाँस के मेयर और सारकोजी की पार्टी यूएमपी की स्थानीय शाखा के प्रमुख माइकल पाइलासो नहीं मानते कि कोरेज की मिट्टी में ऐसा कुछ है जो राष्ट्रपति उगाती हो. एग्लेटाँस के दफ्तर में शिराक की एक बड़ी तस्वीर नजर आती है लेकिन सारकोजी की नहीं. वो कहते हैं, "दूसरी जगहों के मुकाबले अब यह राजनेताओं की जमीन नहीं रही."

जन्मभूमि चाहे अलग रही हो लेकिन शिराक और ओलांद ने कोरेज में बराबर वक्त गुजारा है. ओलांद की छवि सर्वसम्मति से चलने वाले की है तो शिराक को सामंती मिजाज वाला माना जाता है. राष्ट्रपति बनने से पहले शिराक 1977 से 1995 तक पैरिस के मेयर रहे हैं. दोनों ही पदों पर रहते हुए उनकी छवि ऐसी नीति पर चलने वाले की रही जिसमें कोरेज के लोगों को प्रमुखता दी गई. इस मामले में अब तो उन्हें एक अपराध का दोषी भी करार दिया गया है. उनके मेयर रहने के दौरान पैरिस के सिटी हॉल में कोरेज के 2000 लोग काम करते थे. जानकार बताते हैं कि उनके राष्ट्रपति रहने के दौरान एलिसी पैलेस में खास अधिकारियों की नियुक्ति की गई थी जो कोरेज से जुड़े मामले देखते थे.

1969 में तब के राष्ट्रपति जॉर्ज पोन्पीदू की सरकार के सबसे युवा सदस्य के रूप में चुने जाने के दो साल बाद शिराक ने कोरेज में सातो दी बिटी नाम का विला खरीदा था. बीमार चल रहे शिराक अब ज्यादा वक्त पैरिस में बिताते हैं लेकिन इस छोटे विला से गुजरने वाली सड़क अब भी अनिवासियों के लिए बंद है. विला के आस पास 300 मीटर के दायरे में कार रोकना अब भी गैरकानूनी है और उपग्रह से ली जाने वाली तस्वीरों में इसे धुंधला कर दिया गया है.

शिराक की केवल अपने घर की चिंता करने वाली छवि से उलट ओलांद समेत सारे समाजवादियों का जोर सर्वसम्मति वाली नीतियां अपनाने पर है. वैसे इतना तो सब जानते हैं कि ओलांद राष्ट्रपति बन गए तो भी कोरेज का बहुत भला नहीं होने वाला. इसलिए नहीं क्योंकि उनके और शिराक के बीच राजनीतिक मतभेद हैं बल्कि इसलिए क्योंकि सरकार के पास पैसा ही नहीं है.

एनआर/एमजे(एएफपी)

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