फ्रांस के समाजवादी राष्ट्रपति फ्रांसोआ ओलांद ने 'जंगल' के नाम से विख्यात शरणार्थी कैंप उजाड़ने की बात कही है. मानवाधिकार संगठनों और दक्षिणपंथी नेताओं ने ओलांद से अनियमित आप्रवासन को रोकने को कहा है.
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यूरोपीय संघ के शरणार्थी शिखर सम्मेलन के बाद राष्ट्रपति ओलांद ने काले शहर का दौरा किया जहां अवैध शरणार्थी कैंप है. उन्होंने कानून लागू करने वाले अधिकारियों और राहतकर्मियों के साथ अस्थायी कैंप के बारे में बात की जहां करीब 10,000 शरणार्थी अमानवीय हालात में रहते हैं. ओलांद ने कैंप को पूरी तरह बंद करने की बात कही और वहां रह रहे शरणार्थियों को देश भर में फैले रिसेप्शन सेंटर में बसाने का वायदा किया. इस साल के शुरू में अधिकारियों ने आधे कैंप को तोड़ दिया था.
राष्ट्रपति ने कहा है कि फ्रांस "शरण का आवेदन देने वाले लोगों को मानवीय और सम्मानजनक स्वागत उपलब्ध कराएगा." लेकिन ठुकराए गए शरणार्थियों को "देश के बाहर भेज दिया जाएगा. ये नियम हैं और उन्हें यह अच्छी तरह पता है." फ्रांस सरकार ने कहा है कि अनौपचारिक कैंप को सर्दियों से पहले ही बंद कर दिया जाएगा. लेकिन कैंप को तोड़ने की कोई तारीख नहीं बताई गई है. राष्ट्रपति का काले दौरा अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनावों से पहले समर्थन जुटाने की कवायद है.
एक सहमी बच्ची की स्केचबुक
सीरियाई गृहयुद्ध के चलते अपने घरों से भागने को मजबूर हुए कई लोगों का जीवन त्रासदी का पर्याय बन गया है. छोटे-छोटे बच्चों को भी इस सब से गुजरना पड़ा है. इस स्केचबुक में एक सीरियाई बच्ची ने इन्हीं अनुभवों को उकेरा है.
तस्वीर: DW/M.Karakoulaki
घर की तबाही
इस चित्र में लाल शब्दों में लिखा है, ''यह सीरिया है. मौत का भूत. सीरिया से खून बह रहा है.'' चित्र में घरों पर बम बरसाते टैंक हैं, जेट और हेलिकॉप्टर हैं. बच्ची एक कब्र के सामने खड़ी हो शहर की तरफ इशारा कर रही है.
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मौत और निराशा
दूसरे चित्र में बच्ची ने लिखा, ''ये मेरे पिता, मां और मेरे परिवार की कब्र है. ये कब्र है सीरिया के सारे परिवारों की.'' हालांकि इस बच्ची के मां बाप इसके साथ कैंप में हैं लेकिन उसने कई दूसरे लोगों और बच्चों को परिवार से बिछड़ते देखा है.
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बच्चे मर रहे हैं
इस चित्र में एजियन समुद्र पार कर ग्रीस आने की कोशिश में मारे गए बच्चे आयलान कुर्दी को दर्शाया गया है. इस मौत ने दुनियाभर में संदेश दिया था कि शरणार्थी संकट कितना भयावह है.
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वास्तविक त्रासदी
हजारों लोग समुद्री लहरों में समा गए. हजारों बच्चों ने अपना परिवार खो दिया. ये एक खतरनाक यात्रा है. लेकिन युद्धग्रस्त सीरिया से लोग जिंदगी बचाने के लिए भागने को मजबूर हैं.
तस्वीर: DW/M.Karakoulaki
उथल पुथल जिंदगी
बच्ची ने इस चित्र में लिखा, ''बच्चों की सारी उम्मीदें, सारे सपने कचरे के डब्बे में जा चुके हैं.'' इनमें से कई बच्चों को उम्मीद है कि वे अपने पिता से मिलेंगे जो उनसे पहले या बाद में सीमा पार कर पाए. उन्हें उम्मीद है फिर से परिवार पाने की.
तस्वीर: DW/M.Karakoulaki
खो गए सपने
''बच्चों की यूरोप से उम्मीदें भी खो गई हैं.'' बच्ची अपने अगले चित्र में जोड़ती है. अस्थाई शिविरों में कई बच्चे यूरोप में एक सुकून की जिंदगी बिताने के सपने देख रहे हैं लेकिन अभी कुछ भी तय नहीं.
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बुरे हालात में
इस चित्र में बच्ची ने एक शरणार्थी शिविर में लोगों की एक बैठक दिखाई है. ग्रीक में मौजूद यह शिविर सबसे बड़ा शरणार्थी शिविर है मगर यह स्थायी नहीं है और ना ही आधिकारिक है. यहां का जीवन बहुत कठिन है. बच्ची ने इसे नाम दिया,, ''एक बैठक बुरे हालात में.''
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कैंप एक कब्रगाह
जब से इस संकट की शुरूआत हुई है इससे जूझ रहे और इसे करीब से देख रहे लोगों का कहना है कि यूरोप इस संकट से गलत ढंग से निपट रहा है. और यह बात एक दिन इतिहास की किताबों में दर्ज की जाएगी.
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कैंप की भूख
अधिकतर शरणार्थियों ने सीमा पार करने के लिए वो सबकुछ बेच दिया. इस अस्थायी शिविर में होने का मतलब ही यह है कि उनके पास कुछ नहीं है. कोई विकल्प नहीं. इस चित्र में एक महिला अपनी बेचारगी पर रो रही है और एक पुरूष अपनी खाली जेब दिखा रहा है.
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ये बच्चे, बच्चे होना चाहते हैं
यह 10 साल की बच्ची उन बच्चों में से एक है जिन्होंने छोटी सी उम्र में दहला देने वाले अनुभव झेले हैं. डॉक्टर्स विदाउट बोर्डर्स की मनोचिकित्सक एगेला बोलेत्सी कहती हैं ''ये बच्चे सामान्य जीवन की तलाश में हैं. वे महसूस करना चाहते हैं कि वे बच्चे हैं.''
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पिछले महीनों में ओलांद की लोकप्रियता गिरी है और उन पर कंजरवेटिव पूर्व राष्ट्रपति निकोला सारकोजी और आप्रवासन विरोधी नेता मारि ले पेन की ओर से युद्ध की विभाषिका झेल रहे मध्यपूर्व, एशिया और अफ्रीका के देशों से शरणार्थियों की आमद को रोकने का काफी दबाव है.
खत्महोअनिश्चय
काले के शरणार्थी कैंप में ऐसे लोग रह रहे हैं जो फ्रांस में रहने के बजाए इंगलैंड जाना चाहते हैं. यह कैंप सरकार की निष्क्रियता और अधिकारियों द्वारा मानवाधिकारों के हनन के आरोपों के कारण ओलांद की शरणार्थी नीति पर धब्बे के सामान है. 2015 में मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने कैंप के बारे में एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें आप्रवासियों ने पुलिस बर्बरता और यातना के सबूत दिए थे. एरिट्रिया की एक 25 वर्षीय महिला ने संगठन को बताया, "पुलिस ने ट्रक को चेक किया. मैंने कहा, प्लीज मदद कीजिए. लेकिन उन्होंने मुझे मारा और मैं ट्रक के सामने बेहोश हो गई. उन्होंने मुझे जमीन पर गिरा दिया."
युद्ध की पृष्ठभूमि में प्यार
अपने शहर की लगातार बमबारी के बावजूद होम्स के एक जोड़े ने शांति की उम्मीद नहीं छोड़ी है. एएफपी के एक फोटोग्राफर ने उनके प्यार और शादी को दुनिया तक पहुंचाया है.
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प्यार में सीरिया का पुनर्निर्माण
युद्ध और विभीषिका के साए में हुई शादी की तस्वीरों को इस्तेमाल करने के जाफर मिराय के फैसले के बाद एएफपी ने भी कुछ तस्वीरें जारी करने का फैसला किया जिसे उसके फोटोग्राफर ने इस मौके पर लिया था. मिराय ने अपनी तस्वीरों को "प्यार में सीरिया का पुनर्निर्माण" नाम दिया है और फेसबुक पर पोस्ट किया है.
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खंडहर में प्यार
18 वर्षीया नादा मेरही और 27 वर्षीय सैनिक हसन यूसुफ ने जब शादी करने का फैसला किया तो अपनी शादी की तस्वीरों के लिए असामान्य सी पृष्ठभूमि चुनी. बमबारी में खंडहर बना अपना शहर होम्स. मिराय ने खंडहरों का इस्तेमाल यह दिखाने के लिए किया है कि जिंदगी मौत से ज्यादा ताकतवर है.
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बंटा हुआ शहर
सीरिया के गृहयुद्ध में 250,000 लोग मारे गए हैं. उनमें से अधिकांश असैनिक नागरिक हैं. देश के तीसरे सबसे बड़े शहर होम्स ने राष्ट्रपति बशर अल असद के वफादार सैनिकों के हमलों में भारी नुकसान सहा है. यह पहला शहर था जिसने 2012 में असद सरकार के खिलाफ विद्रोह किया था.
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सफेद ड्रेस भूरा मलबा
कभी लहलहाते चमचमाते शहर के बीचोंबीच नादा की सफेद झकझक ड्रेस युवा जोड़े के आस पास में हुई बर्बादी को दिखाती है. खंडहर बने घर, दीवारों पर बुलेट के निशान और सुनसान सड़कें होम्स में रहने वाले लोगों को लगातार इस बात का अहसास दिलाती हैं कि उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई है.
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लगातार जारी हमले
होम्स पर सरकार का नियंत्रण फिर से होने के बावजूद हमले रुके नहीं हैं. अल जहरा इलाके में 26 जनवरी को हुए आत्मघाती हमले में 22 लोग मारे गए थे और 100 से ज्यादा घायल हो गए. इस इलाके में मुख्य रूप से अलावी समुदाय के लोग रहते हैं जो इस्लाम का अल्पसंख्यक समुदाय है. राष्ट्रपति असद इसी समुदाय के हैं.
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अकेला नहीं होम्स
सितंबर 2015 से रूसी बमवर्षकों ने राष्ट्रपति असद के सैनिकों के समर्थन में विपक्षी ठिकानों पर बमबारी की है. सीरिया में आईएस के ठिकानों पर अमेरिका के नेतृत्व वाली अंतरराष्ट्रीय सहबंध भी हवाई हमले कर रहा है. 15 फरवरी को तुर्की की सीमा से लगे इलाकों में स्कूलों और अस्पतालों पर बमबारी की गई.
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अंतरराष्ट्रीय कोशिशें
अंतरराष्ट्रीय समुदाय सीरिया में शांति स्थापना की कोशिशें कर रहा है. पश्चिमी देश और सीरिया का विपक्ष भावी समाधान में राष्ट्रपति असद की कोई भागीदारी नहीं चाहते. लेकिन सरकारी सैन्य कार्रवाई में असद की मदद कर रूस इलाके में नए हालात पैदा करना चाहता है. इस बीच आईएस लगातार पैर पसार रहा है.
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संघर्ष विराम तय
म्यूनिख में हुए इस साल के सुरक्षा सम्मेलन में अमेरिका और रूस के सहयोग से सीरिया में संघर्ष विराम तय हुआ है. लेकिन इसके लागू होने से पहले ही राष्ट्रपति असद ने एक ओर समय कम होने की बात कही है तो दूसरी ओर तुर्की की सीमा पर कुर्दों के आगे बढ़ने के कारण तुर्की संघर्ष में और उलझता जा रहा है.
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युद्धकाल में प्यार
फेसबुक पर मिराय की तस्वीरों पर कुछ यूजर्स ने भावनात्मक टिप्पणियां की हैं. एक ने लिखा है, "तस्वीर में मैं दूल्हे जैसा लगता हूं." एक अन्य ने लिखा, "ईश्वर तुम्हारे और सारे सीरियावासियों के साथ रहे. इन तस्वीरों और उन्हें दुनिया के साथ बांटने के लिए शुक्रिया." एक अन्य ने इसका टाइटल युद्धकाल में प्यार करने की सलाह दी है.
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जिंदगी नाम जीने का
मिराय की तस्वीरें इस बीच इतनी लोकप्रिय हो गई हैं कि लोग लगातार उनके फेसबुक पेज पर कमेंट डाल रहे हैं. कुछ इन तस्वीरों का स्लाइड शो बना रहे हैं, तो कुछ इसे यूट्यूब वीडियो में बदल रहे हैं. एक यूजर ने तो मिराय की तस्वीरों को खंडहर बने शहर होम्स में भी जिंदगी जारी रहने का सबूत बताया है.
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ह्यूमन राइट्स वॉच की पश्चिमी यूरोपीय रिसर्चर इजा लेतास ने फ्रांसीसी अधिकारियों से अपील की है कि वे सिर्फ कानून की जिम्मेदारियों के हिसाब से न चलें बल्कि "काले के बहुत से शरणार्थियों की अनिश्चय की स्थिति खत्म करें." लेतास कहती हैं, "शरणार्थियों और आप्रवासियों को फ्रांस में पुलिस हिंसा का सामना करने की जरूरत नहीं होनी चाहिए. और शरण का आवेदन करने वाले किसी भी इंसान को सड़क पर जीने के लिए नहीं छोड़ा जाना चाहिए. ओलांद ने 2016 में देश में 80,000 लोगों को शरण देने का आश्वासन दिया है. यह पिछले साल जर्मनी द्वारा लिए गए शऱणार्थियों का छोटा सा हिस्सा है. जर्मनी ने पिछले साल 10 लाख से ज्यादा शरणार्थियों को देश के अंदर आने दिया था.