"फ्रांस, ग्रीस, स्पेन और पुर्तगाल छोड़ें यूरो"
२० मार्च २०११
जनमत सर्वेक्षणों में मारी ले पें की लोकप्रियता बढ़ती दिखाई पड़ती है. एक अखबार से बातचीत में उन्होंने कहा, "हमसे वादा किया गया था कि इस मुद्रा से विकास और कल्याण होगा, लेकिन फिर क्या हुआ? लोग बर्बाद हो गए, हम एक संकट की बात कर रहे हैं, ग्रीस में क्या हुआ?" ले पें का कहना है कि ग्रीस का समाज पिछड़ रहा है लेकिन ग्रीस की जनता फिर भी संयम दिखा रही है. इन लोगों को आजाद करना होगा और वापस अपनी मुद्रा में जाने देना होगा.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के प्रमुख डोमिनिक स्त्राउस कान भी ले पें की तरह अगले साल फ्रांस के राष्ट्रपति चुनावों में खड़े हो रहे हैं. लेकिन ले पें कहती हैं कि उन्हें खुद यूरो की परेशानियों के बारे में सही समझ नहीं है. ले पें ने कहा कि यह देश बडे आर्थिक संकट की राह पर है और यूरो से अभी इसी वक्त निकलना होगा. ले पें की पार्टी ने कभी प्रवासियों का समर्थन नहीं किया है. उनका कहना है कि देश में क्रांति की लहर दौड़ रही है और लोग न्याय और लोकतंत्र की मांग कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि सरकार अब तक गैर कानूनी प्रवासियों को अपनी मनमानी करने दे रहे थे और यह अपने आप में लोकतंत्र के खिलाफ है.
शरणार्थियों के मुद्दे पर उन्होने कहा, "हमारे मूल्य, हमारी ईसाई सभ्यता खतरे में है और हमें निर्णायक रूप से काम करना होगा." ले पें का मानना है कि फ्रांस और यूरोपीय देश अब भी गैर कानूनी शरणार्थियों को बढ़ावा देते हैं और इसे रोका जाना चाहिए.
रविवार को फ्रांस भर में 2,000 पार्षदों का चुनाव होना है. अगले साल राष्ट्रपति चुनावों से पहले यह आखिरी चुनाव हैं. अब तक इस महीने किए गए जनमत सर्वेक्षणों में राष्ट्रपति निकोला सारकोजी के मुकाबले ले पें की स्थिति अच्छी लग रही है. ले पें ने जनवरी में पार्टी की अध्यक्षता संभाली. इससे पहले उनके पिता जां ले पें पार्टी प्रमुख थे. 2002 में उन्होंने भी राष्ट्रपति चुनावों में हिस्सा लिया था और प्रतिद्वंद्वी जाक शिराक को कड़ी चुनौती दी.
रिपोर्टः रॉयटर्स/एमजी
संपादनः ए कुमार