फ्रांस में ईशनिंदा का अधिकार क्या कमजोर हुआ है
२ सितम्बर २०२०मजाक बनाने में इंसान और ईश्वर पर एक जैसा रवैया रखने वाला फ्रांस शायद कुछ कुछ बदल रहा है. कम से कम विश्लेषक तो यही मान रहे हैं. पांच साल पहले व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दो के दफ्तर पर हुए घातक हमले ने शायद देश का रवैया कमजोर किया है. शार्ली एब्दो वास्तव में देश की आजादख्याली का सबसे बड़ा हस्ताक्षर रहा है.
जनवरी 2015 में पत्रिका के दफ्तर में हुए हत्याकांड के बाद पेरिस की सड़कों पर 20 लाख लोग मार्च करने निकले. उनका साथ देने के लिए 40 देशों के नेता मौजूद थे. "आई एम शार्ली" का उद्घोष करते नेताओं और लोगों के इस समूह ने दुनिया को अभिव्यक्ति की आजादी के पक्ष में खड़े होने का मजबूत संदेश दिया था.
अब जब हमले के 14 अभियुक्तों पर मुकदमा शुरू हुआ है तो बहुत से लोगों में उस घटना का विरोध करने के प्रति वो उत्साह नहीं दिख रहा है. इस साल फरवरी में शार्ली एब्दो पर कराए गए एक सर्वे में शामिल फ्रांस के लोगों में सिर्फ आधे लोगों ने ही कहा कि वो, "आलोचना के अधिकार" का समर्थन करते हैं भले ही वो "खराब तरीके से, धार्मिक आस्था, प्रतीक या नीति" के खिलाफ हो. 1881 में आधिकारिक रूप से ईशनिंदा को अपराध की श्रेणी से बाहर किया गया. हालांकि फ्रांस में 1789 की क्रांति के बाद से ही इस पर अमल शुरू कर दिया गया था. अब नई स्थिति को देश में बड़ा बदलाव कहा जा रहा है.
पेरिस की साइंसेस पो यूनिवर्सिटी में राजनीतिक धर्मशास्त्र की प्रोफेसर अनास्तासिया कोलोसिमो कहती हैं, "खुद को धर्मनिरपेक्ष कहने वाली दुनिया में फ्रांस, जो अपने को कम से कमतर धार्मिक बताता है वहां ईशनिंदा अब एक बड़ी वर्जना बन गया है. धार्मिक नेताओं के विरोध या नास्तिकता को अपराध के रूप में देखना बढ़ रहा है." मठाधीशों की सत्ता का मतलब चर्च पर आधारित नेतृत्व या विचार से है जिसमें चर्च के अधिकारी नीतिगत फैसलों पर प्रमुखता से राय देते हैं.
धर्म पर विद्रोही रुख रखने वाले शार्ली एब्दो ने दोबारा से पैगंबर मोहम्मद के विवादित कार्टूनों को छापा है. शार्ली एब्दो पर हुए हमले के अभियुक्तों के खिलाफ मुकदमा शुरू होने के मौके पर ऐसा किया गया. फ्रांस के राष्ट्रपति को जब यह खबर मिली तो उन्होंने हमले के पीड़ितों को श्रद्धांजलि दी और "ईशनिंदा की आजादी" का बचाव किया. राजनीतिक इतिहास कार जाँ गैरिग्वे ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "ईशनिंदा के विचार का बहिष्कार इस गणराज्य की उत्पत्ति में अंकित है. यह चर्च के इतिहास, फ्रांस के समाज में कैथोलिक चर्च के प्रभुत्व और राजतंत्र से संबंधित है," जिसे क्रांतिकारी लोकतंत्रवादियों ने उखाड़ फेंका. गैरिग्वे ने कहा," यह फ्रांस की पहचान के साथ बहुत गहराई से जुड़ा है."
कुछ लोगों ने इस ओर ध्यान दिलाया है कि सेल्फ सेंसर की प्रवृत्ति धीरे धीरे बढ़ रही है. इसके पीछे कुछ हद तक शार्ली एब्दो पर हुए हिंसक हमले जैसी घटना का डर भी है. पांच साल पहले इस हमले में दो भाइयों ने पांच कार्टूनिस्टों समेत 12 लोगों की हत्या कर दी थी. प्रोफेसर अनास्तासिया कोलोसिमो का कहना है, "2015 के हमले के साथ किसी की जान पर जोखिम का नतीजा और ज्यादा मजबूत सेल्फ सेंसरशिप के रूप में सामने आया."
प्लेवन कानून
शार्ली एब्दो खुद को सभी धर्मों के नेताओं और हठधर्मियों का समान रूप से आलोचक बताते गर्व महसूस करता है. हालांकि पैगंबर मोहम्मद के कुछ कार्टूनों के लिए इसकी खासतौर से आलोचना हुई और यह सिर्फ मुसलमानों की तरफ से नहीं थी. कुछ लोगों का मानना है कि 2017 में पत्रिका की मुखर पत्रकार जिनेब अल राजुई के शार्ली एब्दो से अलग होने के बाद इसने अपनी धार खो दी. राजुई ने इस्लामी उग्रवाद पर नरम रुख अपनाने का आरोप लगा कर पत्रिका की नौकरी छोड़ी थी. हालांकि उन्होंने दोबारा कार्टून छापने की तारीफ की है और इसे "ईशनिंदा का अधिकार" बताया है.
आलोचक कहते हैं कि अभिव्यक्ति की आजादी पर मिलने वाला संरक्षण धीरे धीरे कमजोर हो रहा है. 1972 में नस्लवाद से लड़ने के लिए लाए गए तथाकथित प्लेवन कानून ने अपमान, निंदा के साथ ही नफरत, हिंसा या भेदभाव के लिए उकसावे को अपराध बनाया. 1990 से यहूदीवाद को खारिज करना भी अपराध है. कोलोसिमो कहती हैं, "प्लेवन कानून के साथ हमने सिर्फ पाबंदियों को मजबूत किया है, जुर्माना बढ़ाया है और अधिकारों को कम कर दिया है."
एनआर/एमजे (एएफपी)
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